Thursday, April 18, 2024
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अर्जुन, श्रीकृष्ण, शिशुपाल वध… जयशंकर ने बताया ‘महाभारत’ को समझे बिना भारत को नहीं जान सकते: जानिए, एक महाकाव्य कैसे है विदेश नीति की धुरी

जयशंकर ने अपनी किताब में समझाया है कि कैसे एक योद्धा के तौर पर अर्जुन का व्यवहार अंतरराष्ट्रीय संबंधों व बड़े-बड़े फैसले लेने के दौरान अधिकारियों में दिखता है।

एस जयशंकर ( S Jaishankar) ने जब से केंद्र सरकार की मोदी सरकार में विदेश मंत्री की जिम्मेदारी संभाली है, वे अक्सर चर्चा में रहते हैं। पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बाद उन्होंने इस मंत्रालय में काम करते हुए भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अपनी किताब ‘द इंडिया वे (The India Way)’ में भी उन्होंने उसी विचार पर बात की है, जिसके अनुरूप वह विश्व में भारत का योगदान चाहते हैं और चाहते हैं कि दुनिया भी भारत को उसी तरह देखे। अपनी पुस्तक में भारत पर बात करते हुए उन्होंने महाभारत का और श्रीकृष्ण की नीतियों का उल्लेख किया है।

इस किताब में एक अध्याय है-  ‘कृष्ण की इच्छा- एक उभरती हुई शक्ति की सामरिक संस्कृति।’ इस अध्याय में जयशंकर समझाते हैं कि क्यों भारत को अपनी रणनीतियों और लक्ष्य को समझने के लिए तथा विश्व को भारत को जानने के लिए महाभारत का अध्य्यन करना जरूरी है। अध्याय की शुरुआत जर्मन साहित्यकार गोथे के कथन होती है जिन्होंने कहा था- एक राष्ट्र जो अपने अतीत का सम्मान नहीं करता उसका कोई भविष्य नहीं हो सकता।

अपनी किताब के जरिए जयशंकर ने ये बात स्पष्ट की है कि यहाँ पहले ही एक बहुध्रुवीय दुनिया है। यह कुछ ऐसा है जिसे पश्चिमी शक्तियाँ स्वीकार करने से हिचकिचाती हैं, कम से कम उनके बयानों और उम्मीदों से ऐसा नहीं लगता। जयशंकर के अनुसार भारतीय विचार प्रक्रिया, विकल्प और कशमकश इस बहुध्रुवीय दुनिया में नजर आते हैं। इसके अलावा कई आधुनिक संदर्भ हैं, जिनका वर्णन उनके अनुसार महाकाव्य में है।

अपनी किताब में उन्होंने बताया कि जिस तरह होमर के इलियड या मैकियावेली के द प्रिंस को नकार कर पश्चिमी रणनीतिक परंपरा पर टिप्पणी करना असंभव है, या उनके समकक्ष तीन राज्यों की अवहेलना करते हुए चीन को समझने की कोशिश करना मुमकिन नहीं है। ऐसे ही कोई भी महाभारत का अध्ययन किए बिना भारत को नहीं समझा जा सकता। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत समेत पूरी दुनिया के सामने वर्तमान में जो कई चुनौतियाँ हैं उनका जिक्र महाकाव्य में किया जा चुका है।

अर्जुन के चरित्र से समझें आज का परिदृश्य

इस किताब में अर्जुन की उस दुविधा का भी उल्लेख है, जो उन्हें युद्ध के मैदान में अपनों पर आक्रमण करने को लेकर हुई। एस जयशंकर ने अपनी किताब में समझाया है कि कैसे एक योद्धा के तौर पर अर्जुन का व्यवहार अंतरराष्ट्रीय संबंधों व बड़े-बड़े फैसले लेने के दौरान अधिकारियों में दिखता है। कई बार ऐसी स्थिति आती है जहाँ निर्णायक कार्रवाई करनी होती है, लेकिन नहीं की जाती। इसका कारण क्षमता में कमी नहीं होता, बल्कि अर्जुन की तरह परिणामों से भय होता है। वह समझाते हैं कि कैसे नरम राज्य कभी भी जरूरी फैसले नहीं ले पाता।

एस जयशंकर आतंकवाद से लड़ने में भारत की जो भूमिका रही है, उसे भी वह अर्जुन की स्थिति से जोड़ते हैं और कहते हैं कि आतंक के प्रति भारत का रवैया बदला है। अभी तक हम जोखिम लेने से डरते थे, लेकिन अर्जुन की तरह हमें एक योद्धा के तौर पर उभरना होगा जो जोखिम लेने के लिए और परिणामों का सामना करने के लिए तैयार हो चुका। अपनी किताब में वह जिम्मेदारी प्रदर्शित करने की आवश्यता और शक्ति के प्रयोग पर भी प्रकाश डालते हैं। वह समझाते हैं कि कैसे शक्ति के बढ़ने पर इस पर बहस होना और इसका विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल किया जाना जरूरी है।

पड़ोसी देशों की हरकत पर भारत का रवैया और श्रीकृष्ण के हाथों हुआ शिशुपाल वध

‘द इंडिया वे’ में एस जयशंकर ने पड़ोसी शक्तियों से कैसे निपटा जाए इस पर समझाते हुए शिशुपाल वध का उदाहरण दिया। बताया कि कैसे श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध करने से पहले उसके पापों का घड़ा भरने दिया। उन्होंने अर्जुन के उदाहरण से ये भी समझाया कि कैसे सही रणनीति युद्ध के लिए जरूरी होती है। जैसे महाभारत में नारायणी सेना को न चुनकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण का साथ माँगा और विजय हासिल की। वैसे ही सही निर्णय किसी भी युद्ध का परिणाम बदल सकती है।

विदेश मंत्री अपनी किताब में समझाते हैं कि आज के समय में जब तकनीक, ताकत, बड़े-बड़े उपकरणों, रोबोट अपनी पैठ बना चुके हैं उस समय अपनी क्षमताओं की सही पहचान करना, पूरा खेल बदल सकता है। यानी हाथ में यदि पत्ते आ भी जाएँ तो भी उनके साथ कैसे खेला जाएगा यही नया विश्व बनाने का मूलमंत्र है। दुर्योधन हारा क्योंकि उसे श्रीकृष्ण की शक्ति का एहसास नहीं था। उसे लगा कि नारायणी सेना ही उसे जिताने में मदद करेगी।

किताब में एस जयशंकर कई मौकों का जिक्र करते हैं जब युद्ध के नियमों का उल्लंघन हुआ। फिर वो चाहे दुर्योधन को मारने की युक्ति हो या भीष्म पितामह को मारने की युक्ति या फिर कर्ण की मृत्यु। उन्होंने समझाना चाहा कि नियमों का सम्मान हर जगह होता है। मगर सामने वाला यदि लगातार शक्तियों का गलत इस्तेमाल करे तो खेल में थोड़ा बदलाव करना हमेशा जस्टिफाई किया जा सकता है। उन्होंने इस किताब में बताया है कि सत्ता परिवर्तन हमेशा से अभ्यास का हिस्सा रहा है। श्रीकृष्ण ने जरासंध (98 राजकुमारों को कैदी बनाने वाला राजा) को जब रास्ते से हटाया तब इसका मकसद था एक चुनौती को दूर करना नहीं, बल्कि युधिष्ठिर के राजा बनने के रास्ते में आने वाले काँटे को हटाना भी था।

जयशंकर बताते हैं कि राष्ट्रीय शक्ति को मजबूत करने की जो लोग वकालत करते हैं, वे सही हैं, लेकिन दूसरों के प्रभाव और शक्ति के दोहन करने के कौशल को भी नहीं नजरअंदाज किया जाना चाहिए। उन्होंने कौरव और पांडवों को उदाहरण देकर समझाया कि भले ही पांडव आजीवन कौरवों की तुलना में पीड़ित रहे। मगर उनके पास अपनी वीरता और महानता से कहानी को गढ़ने और उसे नियंत्रित करने की वो क्षमता थी जिसने उन्हें कौरवों से ऊपर रखा।

जयशंकर महाभारत को लेकर बताते हैं कि इसमें लिखी गई बातें इस संबंध है कि कैसे सत्ता में सामंजस्य बिठाया जाए। आज के समय में ऐसे सामंजस्य खत्म हो रहे हैं। आगे बढ़ते हुए हमें अपनी क्षमता, अपना आत्मविश्वास बढाना होगा। ये समझते हुए कि राष्ट्र हिंत की एक कीमत होगी नेतृत्व को कठिन फैसलने लेने होंगे। अपनी किताब में एस जयशंकर ने कहा कि श्रीकृष्ण की तरह हर खेल में जीत के लिए लोगों को रणनीति को मद्देनजर रखते हुए समाधानों को खोजते हुए लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना होगा।

भारत को देना होगा अपनी क्षमताओं पर ध्यान

बता दें कि इससे पहले दिल्ली में रायसीना डायलॉग में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने देश की 25 सालों की विदेश नीति की रूपरेखा पेश की थी। उन्होंने कहा था कि देश अपनी क्षमताओं पर भरोसा रखे और दुनिया क्या है, यह जानने की बजाए, हम क्या हैं, यह देखें और हर क्षेत्र में मौजूद अवसरों का लाभ उठाएँ। उन्होंने कहा था कि एक वक्त था, जब विश्व के इस हिस्से में हम एकमात्र लोकतंत्र थे। हमें हमारी क्षमताओं पर ध्यान देना चाहिए और आगामी वर्षों में दुनिया के माहौल को देखकर हर क्षेत्र में लाभ उठाना चाहिए।

हिंदी में जयन्ती मिश्रा द्वारा अनुवादित यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में संघमित्रा ने काफी विस्तार से लिखी है। इसे आप यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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