Thursday, March 28, 2024
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ना वंदे मातरम् के लिए श्रद्धा, ना ही भारतीय सेना को सैल्यूट… सवाल पूछने पर आमिर खान की टीम से रिपोर्टर को धमकी

आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान की समय-समय पर बेहूदा हरकतें देखता हूँ तो महसूस होता है कि ये अपने मुस्लिम समाज के भी दुश्मन हैं। अपने समाज को कोई सीख नहीं देते, कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं करते, कट्टरता का विरोध नहीं करते। शादियाँ हिंदू लड़कियों से करते हैं, लेकिन सम्मान ये किसी भी धर्म का नहीं करते।

एक अभिनेता के तौर पर आमिर खान (Aamir Khan) मुझे हमेशा अच्छे लगे हैं। उनकी अच्छी-बुरी, हिट-फ्लॉप शायद ही कोई ऐसी फिल्म होगी, जिसे मैंने देखा न हो, लेकिन पिछले रविवार को अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) के शो कौन बनेगा करोड़पति (Kaun Banega Crorepati- KBC) में आमिर खान की कुछ हरकतों से मैं अचंभित रह गया।

KBC के पहले शो में आमिर खान के अलावा कारगिल युद्ध के योद्धा मेजर डीपी सिंह और सेना पदक पाने वाली पहली महिला अफसर कर्नल मिताली मधुमिता भी आई थीं। हुआ यूँ कि कर्नल मिताली मधुमिता के शौर्य पर वंदे मातरम् के नारे लगे और सभी लोगों ने हाथ उठाकर वंदे मातरम् कहा।

उस समय खुद अमिताभ बच्चन ने वंदे मातरम् कहते हुए कई बार हाथ उठाया, लेकिन आमिर खान हाथ लटकाए रहे। वंदे मातरम् भी नहीं बोला। सिर्फ एक बार ‘मातरम्’ कहा और वो भी हँसते हुए। बात सिर्फ इतनी नहीं थी।

Posted by Vikas Mishra on Wednesday, 10 August 2022

सेना के सम्मान में सबने खड़े होकर सैल्यूट किया। अमिताभ बच्चन, मेजर डीपी सिंह समेत सभी लोग हाथ को माथे पर सटाकर सैल्यूट की मुद्रा में थे, लेकिन आमिर खान का हाथ ऊपर की तरफ उठा ही नहीं। यूँ ही वो ये सब देखते रहे। तो इसे हम क्या मानें, आमिर के मन में देश की सेना के प्रति सम्मान नहीं है या फिर वो लापरवाह हैं या फिर वो कट्टर मुसलमान हैं, जो मानते हैं कि हाथ उठाकर वंदे मातरम् कहने और देश को सैल्यूट करने से उनका इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा?

यहाँ मैं साफ कर दूँ कि आमिर खान ने जो हरकत की, वो कानून के खिलाफ नहीं है। वंदे मातरम् आप किसी से जबरन नहीं कहलवा सकते और न ही सैल्यूट न करके उन्होंने कोई कानून तोड़ा है, लेकिन इमोशन भी तो कोई चीज होती है। खास तौर पर आमिर के लिए, क्योंकि आमिर अभिनेता हैं और फिल्मों में इमोशन ही सबसे ज्यादा बेचा जाता है।

फिल्म पीके ने लाख विरोध के बावजूद अगर करोड़ों की कमाई की तो उसके पीछे वजह ये है कि कई बार फिल्म ने भावनाओं को छुआ। कभी भावनाओं को गुदगुदी हुई तो हँसी छूटी तो कभी फिल्म देखते हुए आँख भी नम हुई। आमिर तो वैसे भी भावनाओं के माहिर खिलाड़ी हैं, फिर उन्होंने देशवासियों की भावनाओं से खिलवाड़ क्यों किया..? उनसे ये चूक कैसे हुई..? ये उनकी चूक है या फिर लापरवाही या फिर जानबूझकर की गई हरकत.. फैसला आमिर को करना है।

इस सीन का वीडियो निकालकर मैंने अपने इंटरटेनमेंट रिपोर्टर सौरभ शर्मा को भेजा था। दिल्ली में आमिर खान की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी कल। हमारे रिपोर्टर ने आमिर से ये सवाल पूछा तो आमिर इधर-उधर झाँकने लगे। पहले तो उन्होंने कहा कि वो सोशल मीडिया पर नहीं हैं, इस नाते उन्होंने वीडियो देखा नहीं। हमारे रिपोर्टर ने कहा, “ये वीडियो वायरल नहीं है, मेरे पास है।”

तब आमिर ने कहा, “ओह अच्छा, मुझे याद नहीं है कि उस एपीसोड में सैल्यूट का कोई सीन था। मैंने भी किया होगा। मुझे याद नहीं है, सॉरी। वंदे मातरम् पर मैंने भी सैल्यूट किया था। हो सकता है कि जब मैं सैल्यूट कर रहा था तो कैमरे का फोकस मेरी तरफ न रहा हो।”

मेरे रिपोर्टर ने कहा कि आप इजाजत दें तो मैं आपको वो वीडियो आपके पास लाकर दिखा सकता हूँ। प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म हुई तो आमिर खान की टीम का एक सदस्य हमारे रिपोर्टर को ही धमकाने लगा कि ये सवाल हटा दीजिए। खैर, हमारे रिपोर्टर ने भी उसे खाने भर को दिया।

आमिर खान को मैं सजग इंसान मानता हूँ। अच्छी फिल्में देने के अलावा उन्होंने ‘सत्यमेव जयते’ जैसा मेगा शो किया है, जिसने समाज पर असर डाला। जब वे भगवान शिव पर दूध चढ़ाने की जगह 20 रुपये का दूध गरीब बच्चे को देने की बात कहते हैं तो मैं उनसे सहमत होता हूँ, लेकिन वंदे मातरम् पर उनकी चुप्पी और देश के नाम पर एक सैल्यूट करने के लिए उनका हाथ नहीं उठा, इसे मैं इत्तेफाक कैसे मान लूँ?

आमिर वैसे भी 2015 में ये बयान देकर हिंदुत्ववादियों के निशाने पर हैं कि उनकी पत्नी को इस देश में रहने में डर लगता है। अभी लाल सिंह चड्ढा में एक आतंकी को बचाकर उसका इलाज करवाने वाले सीन की खातिर एक बार फिर वो लोगों के निशाने पर आने वाले हैं।

शाहरुख खान हों, आमिर खान हों या फिर सलमान खान। सही बात ये है कि इन तीनों में मैं आमिर को अच्छा इंसान समझता था, लेकिन सच ये है कि ये तीनों बदमाश हैं। बाहर से कितने भी ये जन-जन के हीरो बनें, लेकिन भीतर से ये कट्टर मुसलमान ही हैं।

याद कीजिए शाहरुख खान और फरहा खान की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ का वो सीन, जिसमें एक फिल्म का प्रीमियर होता है और उसमें देशभक्ति की फिल्में बनाने वाले मनोज कुमार जाते हैं। गार्ड उनसे आईकार्ड माँगता है तो आईकार्ड में जो तस्वीर होती है वो हाथों से छुपी होती है। गार्ड मनोज कुमार को डंडे मारकर भगाता है।

मनोज कुमार की अदाकारी का एक रूप ये भी था कि अक्सर वो अपने चेहरे पर हाथ रख लेते थे, लेकिन शाहरुख-फरहा ने इसका बहुत ही बेहूदे तरीके से मजाक उड़ाया। अब इस सीन के माध्यम से शाहरुख-फरहा क्या साबित करना चाह रहे थे? मनोज कुमार, जिन्हें लोग भारत कुमार कहकर पुकारते रहे, उनके लिए इतना अपमानजनक सीन रखने के पीछे कौन सी मानसकिता थी..? क्या मनोज कुमार का देशभक्त होना और देशभक्तिपूर्ण फिल्में बनाना इन्हें रास नहीं आया था..?

सलमान खान को ही लीजिए, हर साल उनकी गणपति पूजा वाली तस्वीरें आती हैं, लेकिन जब काले हिरण शिकार मामले में फँसे तो पुलिस की हिरासत में गोल टोपी पहनकर गए। संदेश दिया कि मुसलमान हूँ इस नाते कानून सता रहा है। इनसे दो हाथ आगे तो संजय दत्त थे, जिन्होंने समाजवादी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करते हुए विलक्षण बात कही थी- “मैं जेल में बंद था, वहाँ पर मुझे लोग पीटते थे, क्योंकि मेरी माँ एक मुसलमान थी।”

अब ऐसी बेतुकी बात पर कोई भी माथा पीट लेगा। इन फिल्मी कलाकारों का कितना सम्मान है हिंदुस्तान में, लेकिन ये इसका ये बार-बार फायदा उठाते हैं। मेरी पत्नी सलमान खान की फैन हैं। देश की जानी मानी एंकर श्वेता सिंह भी सलमान खान की फैन हैं और अंजना ओम कश्यप शाहरुख खान की फैन हैं। मैं खुद इन तीनों की तमाम फिल्मों का प्रशंसक हूँ।

ये हिंदुस्तानी फिल्मप्रेमी ही हैं, जो आमिर खान की फिल्म ‘फना’ देखकर एक आतंकी की प्रेम कहानी को कबूल कर लेते हैं और ‘चक दे इंडिया’ में हॉकी कोच कबीर खान (शाहरुख खान) के साथ पूरा देश एक हो जाता है। आज मैं ये पोस्ट भारी मन से लिख रहा हूँ, क्योंकि मैं राजनीतिक पोस्ट और हिंदू-मुस्लिम पर पोस्ट लिखने से बचता हूँ। मेरे दोस्त हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई भी हैं।

मेरे गाँव में मुस्लिमों की अच्छी-खासी संख्या है और मेरा गाँव बहुत मेलजोल से रहता है। गाँव पर तो मैं कभी मजहबी आँच आने भी नहीं दूँगा। मैं उस सिद्धार्थनगर जिले का रहने वाला हूँ, जहाँ आमने-सामने दो गाँव हैं। एक अल्लापुर तो दूसरा भगवानपुर। भगवानपुर में कोई हिंदू नहीं है और अल्लापुर में कोई मुसलमान नहीं है।

आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान की समय-समय पर बेहूदा हरकतें देखता हूँ तो महसूस होता है कि ये अपने मुस्लिम समाज के भी दुश्मन हैं। अपने समाज को कोई सीख नहीं देते, कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं करते, कट्टरता का विरोध नहीं करते। शादियाँ हिंदू लड़कियों से करते हैं, लेकिन सम्मान ये किसी भी धर्म का नहीं करते।

(खबर के लिए साभार: विकास मिश्र। 10 साल आजतक में रहने के बाद इन्होंने नई पारी की शुरुआत न्यूज नेशन चैनल में बतौर एक्जीक्यूटिव एडिटर की है। फेसबुक पर इन्होंने जो लिखा है, उसे यहाँ पढ़ सकते हैं।)

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