Thursday, April 25, 2024
Homeविविध विषयभारत की बातधर्मराज, उनका दीवान और वो दीवार... त्रावणकोर में खोदी गई थी हिन्दुओं और ईसाइयों...

धर्मराज, उनका दीवान और वो दीवार… त्रावणकोर में खोदी गई थी हिन्दुओं और ईसाइयों के नरसंहारक टीपू सुल्तान की ‘कब्र’

चीन के दीवार के बारे में जानने वाले भारत की इस दीवार की गाथा क्यों नहीं जानते? आज हिन्दू अपने पूर्वजों के संरक्षक धर्मराज राम वर्मा को क्यों नहीं याद करता? जबकि, टीपू सुल्तान आज भी कइयों का नायक है।

जैसे उत्तर भारत में मंदिरों के ध्वंस और हिन्दुओं पर अत्याचार करने के लिए मुग़ल कुख्यात रहे हैं, ठीक उसी तरह से दक्षिण भारत में टीपू सुल्तान ने किया था। मैसूर के सुल्तान हैदर अली का बेटा टीपू सुल्तान आज कट्टरपंथियों के एक बड़े वर्ग द्वारा ‘नायक’ के रूप में पूजा जाता है। लेकिन, दक्षिण भारत में कुछ ऐसे हिन्दू योद्धा भी थे, जिन्होंने उसे धूल चटाई। त्रावणकोर के धर्मराज राम वर्मा और राजा केशवदास पिल्लई उनमें से एक थे, जिन्होंने टीपू सुल्तान को नेदुमकोट्टा के दीवार के युद्ध (Battle Of Nedumkotta) में नाकों चने चबवाए।

धर्मराज की दूरदर्शिता और उस दीवार ने त्रावणकोर को बचा लिया

ये वो समय था, जब केरल को बाहरी खतरों का भान हो चला था और उसने एक दीवार बनवाई थी, ताकि उत्तर से आने वाले दुश्मनों से रक्षा की जा सके। ये चीन की दीवार की तरह बड़ा और विशाल तो नहीं था, लेकिन फिर भी इससे काम चल जाता था। इसी दीवार को वहाँ ‘नेदुमकोट्टा’ या फिर ‘Travancore Lines’ कहा जाता था। यहीं से मैसूर के टीपू सुल्तान ने केरल पर हमला किया। जब युद्ध का परिणाम उसके पक्ष में नहीं आया तो इसने इसे ‘घिनौनी दीवार’ बता दिया।

ये मैसूर के आक्रमण के दशकों पहले की बात है, जब त्रावणकोर के साम्राज्य को कालीकट से आक्रमण का भय रहता था और इसीलिए सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे। सन 1759 में धर्मराज राम वर्मा को असली खतरे का आभास हुआ और उन्हें लगा कि अगर मैसूर मालाबार (उत्तरी केरल) पर आक्रमण कर के उस पर कब्ज़ा कर लेता है तो फिर त्रावणकोर के लिए समस्या खड़ी हो जाएगी। उस समय ओडेयर राजवंश (Wadiyar Dynasty) के नेतृत्व वाले मैसूर के सैन्य अभियानों का नेतृत्व हैदर अली ही किया करता था।

मैसूर की शक्ति दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थी। उसकी फ़ौज की खासियत ये थी कि वो अलग-अलग लोकेशन पर एक रणनीतिक मोर्चेबंदी के जरिए तैनात रहते थे और काफी चपल हुआ करते थे, जिनके आवागमन के बारे में विरोधियों को पता ही नहीं चल पाता था। धर्मराज राम वर्मा ने इस खतरे को भाँपा और उनका आकलन ये था कि एक दीवार बना कर मैसूर की सेना को रोका जा सकता है और राज्य की सुरक्षा हो सकती है।

उन्होंने अपने पड़ोसी राज्य कोचीन में इस दीवार को बनवाने का कार्य प्रारंभ करवाया। यूरोपियन इसे ही ‘त्रावणकोर लाइन्स’ कहा करते थे। राजा ने इसे बनवाने के समय सप्लाई और संसाधनों के मार्गों और स्रोतों का पूरा ध्यान रखा था, ताकि सेना और जनता कभी संकट में न पड़े। लगभग 48 किलोमीटर की ये दीवार 1764 में बन कर तैयार हुई, जो पश्चिमी समुद्री सीमाओं (अभी का कोच्चि) से घाटों तक फैली हुई थी।

ऐसा नहीं था कि त्रावणकोर ने कुछ बहुत नया सोच लिया और उस पर अमल किया। केरल में आज भी पहाड़ों और समुद्र के बीच एक अलग तरह का गैप है, जो प्राचीन काल से ही राज्य की रणनीतिक पोजीशन का हिस्सा रहा है। धर्मराज राम वर्मा ने इतिहास से ही सीख लेकर अपनी दूरदर्शिता का प्रदर्शन किया। यहाँ दुश्मन फ़ौज के पास पैंतरेबाजी के लिए जगह ही नहीं होती थी और वो दबा दिए जाते थे।

हिन्दू राजवंश को धोखा देकर सुल्तान बन बैठा था टीपू सुल्तान का अब्बू

मैसूर में इधर सत्ता के स्थानांतरण का खेल चल रहा था। हैदर अली ने ओडेयर राजवंश को धोखा दे दिया। एक हिन्दू राजवंश को एक इस्लामी आक्रांता को अपना सेनापति बनाना भारी पड़ा। जिस ओडेयर राजवंश ने उसे पाला, उसे ही धोखा देकर वो सुल्तान बन बैठा। उसके बाद उसके बेटे टीपू सुल्तान ने राज किया। लेकिन, समय का खेल देखिए कि आज टीपू सुल्तान का नामोंनिशान मिट गया है लेकिन ओडेयर राजवंश जिन्दा है।

टीपू सुल्तान की मौत के बाद ओडेयर राजवंश को फिर से स्थापित किया गया। ये अपनेआप को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज मानते हैं और द्वारका से आए थे। अभी 28 वर्षीय यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा ओडेयर इस राजवंश के मुखिया हैं और मैसूर के मानद महाराजा भी हैं। अमेरिका के MIT से अंग्रेजी साहित्य और अर्थशास्त्र में स्नातक कृष्णदत्त इस राजघराने के ‘कस्टडियन’ भी हैं। विजयनगर साम्राज्य के बाद इसी राजवंश ने श्रीरंगपट्टम की सुरक्षा की थी।

तो, हैदर अली ने धोखा देकर मैसूर की राजगद्दी हड़प ली और सुल्तान बन बैठा। मालाबार में तो वो पहले ही आक्रमण कर चुका था, इसीलिए उसे क्षेत्र का अच्छा अनुभव था। अबकी उसका लालच उसे फिर से केरल लेकर गया। उसका मंसूबा था कि वो पूरे केरल पर कब्ज़ा कर के मसालों के व्यापार और अंतरराष्ट्रीय करोबार पर नियंत्रण करे ही, साथ में केरल व उसके मंदिरों की सम्पत्तियों को भी हड़प ले।

वो लगातार आक्रमण करने लगा। 17 सालों के सैन्य अभियान के बाद, 1761-78 तक संघर्ष करने के बाद उसे मालाबार नसीब हुआ। इस दौरान प्रिंस फ़तेह अली टीपू भी उस क्षेत्र में अपने अब्बू के लिए सैन्य अभियान का नेतृत्व करता था। आखिरकार 1766 में कालीकट पर भी मैसूर का कब्ज़ा हो गया और इस तरह से एक और हिन्दू साम्राज्य का पतन हुआ। 117वें ज़मोरिन राजा ने अपने राज्य की ये हालत देख कर आत्महत्या कर ली।

कालीकट की वो दुर्दशा की गई कि वहाँ से लोग भागने लगे। मैसूर की सेना ने जैसे ही वहाँ कब्ज़ा जमाया, लोगों को एक ही उम्मीद नजर आई और वो था त्रावणकोर। शरणार्थियों की संख्या बढ़ गई। इस्लामी आक्रांता द्वारा कब्जाए प्रदेश से लाखों की संख्या में शरणार्थी त्रावणकोर पहुँचने लगे। हजारों लोग मार डाले गए। अब वो समय आ गया था, जब दीवार की परीक्षा होनी थी। उत्तरी सीमा से बड़ा खतरा केरल के भीतर जा पहुँचा था।

आगे बढ़ने से पहले इस दीवार की बात कर लेते हैं। इसे डच कमांडर ‘Eustachius De Lannoy’ ने बनाया था। उसे धर्मराज राम वर्मा के पूर्वजों ने 1741 में कोलचेल के युद्ध में हरा दिया था। लान्नोय इस दौरान त्रावणकोर में ही रहा और कमांडर की पदवी तक पहुँचा। वो एक अच्छा रणनीतिज्ञ था, जिसका फायदा त्रावणकोर को 40 फ़ीट ऊँची और 30 फ़ीट मोटी इस दीवार के रूप में मिला।

ये चीन नहीं, भारत की दीवार थी: त्रावणकोर में कैसे हारा टीपू सुल्तान

इस दीवार को क्ले, मिट्टी के घोल, लैटेराइट मृदा, पत्थर और ग्रेनाइट से बनाया गया था। आधुनिक बंदूकों और माइंस के खिलाफ बचाव के लिए ये कारगर था। साथ ही सुरक्षा बढ़ाने के लिए वहाँ खाई भी बनाई गई थी। खाई के पास कँटीले पेड़ लगाए थे और झाड़ियाँ बना दी गई थी। दीवार के पास अंडरग्राउंड टनल भी था। साथ में सेना के लिए जगह भी बनाई गई थी। अपनी सहूलियत और दुश्मन की परेशानी – इस उद्देश्य के लिए सारे काम किए गए थे।

1777 में दीवार बनाने वाले लान्नोय की मृत्यु हो गई और अब हैदर अली को लगा कि त्रावणकोर कमजोर हो गया है। उसने संधि के लिए धर्मराज राम वर्मा को प्रस्ताव भेजा और उन्हें झुकने को कहा। राजा इसके लिए तैयार नहीं हुए। डच और अंग्रेज, ये दोनों से ही उनके रिश्ते अच्छे थे और अंग्रेज तो टीपू सुल्तान के नंबर एक दुश्मन थे। हैदर अली वहाँ पहुँचता, उससे पहले ही मालाबार में विद्रोह हो गया और कर्नाटक में ही कई समस्याएँ खड़ी हो गईं।

उधर हैदर अली कर्नाटक के लिए निकला और वहाँ एक-एक कर कई क्षेत्र जीत लिए। अंग्रेजों को ये रास नहीं आया और इस तरह से दूसरा एंग्लो-मैसुर युद्ध शुरू हुआ। 1782 में पीठ में कार्बन्कले नामक बीमारी से हैदर अली की मृत्यु हो गई और उसका बेटा टीपू सुल्तान गद्दी पर बैठा। 2 साल बाद उसके और अंग्रेजों के बीच संधि तो हो गई लेकिन टीपू सुल्तान की नजर त्रावणकोर पर थी। त्रावणकोर भी जानता था कि खतरा अभी टला नहीं है।

वो समय 4 साल बाद आया, जब टीपू सुल्तान फिर से त्रावणकोर के लिए निकल गया। मालाबार के सारे अमीर लोग अपने धन के साथ त्रावणकोर भाग गए थे। वहाँ हुए विद्रोह को त्रावणकोर का समर्थन था, सो अलग। उसके अब्बू को किस तरह से त्रावणकोर जीतने से पहले ही भागना पड़ा था, ये बात उसके जेहन में बैठी हुई थी। इस्लामी आक्रांता टीपू सुल्तान अपमान की आग में जल रहा था। उसे बदला भी लेना था। उसकी नजर कारोबार और संपत्ति पर कब्जे पर भी थी।

उसने फिर से राजा को कूटनीति और धमकियों के जरिए झुकाने की कोशिश की, लेकिन राजा जब उसके अब्बू के सामने नहीं झुके तो बेटे के सामने ख़ाक झुकते। टीपू सुल्तान दीवार को अवैध बताता रहा, राजा नकारते रहे। अंततः झल्लाए टीपू सुल्तान ने आक्रमण कर दिया। वो 40,000 की फ़ौज के साथ बढ़ चला। त्रावणकोर की सेना कमजोर थी, उनकी संख्या ज्यादा नहीं थी। ये कोई कृष्णदेव राय का विजयनगर तो था नहीं, जिससे बाबर से लेकर हैदराबाद तक खौफ खाएँ।

त्रावणकोर के केशवदास: गरीबी में जन्मे, गरीबी में मरे, पर टीपू सुल्तान को सबक सिखाया

लेकिन, यहाँ एंट्री होती है एक ऐसे व्यक्ति की, जिसने दिखा दिया कि अगर नेतृत्व ठीक हो तो सीमित संसाधन के साथ भी कमाल किया जा सकता है। त्रावणकोर के दीवान राजा केशवदास (रमन केशव पिल्लई) का जन्म 1745 में एक गरीब परिवार में हुआ था और वो बचपन से ही कुशल रणनीतिकार थे। डच कमांडर लान्नोय के अंतर्गत उनकी प्रतिभा और निखरी। जब इसमें अनुभव का मिश्रण हुआ तो वो एक कुशल प्रशासक बन कर उभरे।

हजारों हिन्दुओं और ईसाईयों के शरणदाता राजा धर्मराज राम वर्मा की प्रतिष्ठा दाँव पर थी और उस महानायक के विश्वास को वो बनाए रखें, इसके लिए केशवदास ने भरसक प्रयास किया और सफल भी हुए। अंग्रेजों ने मदद के नाम पर एक छोटी सी टुकड़ी मद्रास से भेज दी थी। अब जो करना था, खुद करना था। उधर से टीपू सुल्तान खुद नेतृत्व कर रहा था, इसीलिए परीक्षा और भी बड़ी होने वाली थी।

खैर, मैसूर की सेना आगे बढ़ चली। उन्हें कोई रोक नहीं पाया और उन्होंने दीवार के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन, ये तो दिन की बात थी। अभी रात बाकी थी। जैसे ही रात हुई, न जाने कहाँ से त्रावणकोर के 20 योद्धा निकले और टीपू सुल्तान की सेना पर आग के गोले गिरने लगे, फायरिंग होने लगी। मैसूर की फ़ौज को अँधेरे में कुछ सूझता ही नहीं था। ऐसा लगता था, जैसे एक बड़ी विशाल सेना ने उन्हें घेर लिया है।

मैसूर की सेना में ऐसी अफरातफरी मची कि सब इधर-उधर भागने लगे। खुद टीपू सुल्तान के पाँव में जख्म हो आया और वो चलने की हालत में भी नहीं रहा। उसके सैनिक किसी तरह उसे लेकर भागे। रास्ते में उसकी तलवार, अंगूठी, पालकी, गहने और न जाने क्या-क्या छीन लिया गया। त्रावणकोर ने एक बड़े राज्य के योद्धा की ये हालत कर दी थी। टीपू सुल्तान लगातार अपमान मिलने के कारण अंदर से धधक उठा।

2 महीने बीते और वो फिर आ धमका। इस बार फ़ौज और बड़ी थी। बंदूकें और हथियार भी बड़े-बड़े थे। उसने दीवार के एक हिस्से को निशाना बनाना शुरू किया। केशवदास ने फिर से अंग्रेजों से मदद के लिए कहा। अंग्रेजों ने फिर धोखा दिया। मैसूर की सेना फिर बढ़ चली। दीवार का एक हिस्सा ध्वस्त हो गया। त्रावणकोर की सेना अबकी उसे रोक नहीं पाई और उसने पूरे दीवार के दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया।

भागती हुई त्रावणकोर की सेना पर फिर टीपू सुल्तान का कहर बरपा। लूटपाट और हत्याओं का दौर फिर से शुरू हो गया। पेरियार नदी तक खदेड़ते-खदेड़ते मैसूर की फ़ौज बढ़त में दिख रही थी। लेकिन, युद्ध अभी बाकी था। केशवदास ने ऐसा दिमाग लगाया कि टीपू का दिमाग हिल गया। बारिश का मौसम आने वाला था। ऐसे में पानी से बढ़िया हथियार क्या हो सकता था? केशवदास ने पेरियार नदी को ही युद्ध में उतार दिया।

नदी का एक बाँध कुछ इस तरह से खोल दिया गया कि विशाल पानी की धारा न सिर्फ टीपू सुल्तान की फ़ौज को ले डूबी, बल्कि उसके बारूद को भी बहा ले गई। टीपू इससे उबर पाता कि बारिश का मौसम शुरू हो गया। बेहाल फ़ौज में बीमारी फैली। एक-एक कर सब या तो कुछ करने की हालत में ही नहीं रहे, या फिर मारे गए। तभी मद्रास में एक नया गवर्नर आ गया। अंग्रेजों ने मैसूर पर ही हमला बोल दिया।

मराठे भी उसके खिलाफ हो गए थे। उसने त्रावणकोर की दीवार तो तोड़ दी थी, लेकिन अब वो कहीं का नहीं रहा था। टीपू सुल्तान इतना कमजोर हो गया था कि वो अब त्रावणकोर के लिए खतरा भी नहीं रहा। 1799 में अंग्रेजों से युद्ध के दौरान वो मारा भी गया। जिस तरह उसके अब्बू ने ओडेयर राजाओं को धोखा दिया था, टीपू के भी करीबियों ने उसे धोखा दिया। हालाँकि, इधर नए राजा ने केशवदास को भी निकाल दिया था। उसी काल में केशवदास की भी जहर के कारण मृत्यु हो गई।

लेकिन, त्रावणकोर का ये इतिहास अमर हो गया। राजा धर्मराज राम वर्मा और केशवदास पिल्लई ने जिस तरह से टीपू सुल्तान और उसके अब्बू का सामना किया, हिन्दुओं और ईसाईयों की सुरक्षा की, मसाला के कारोबार और मंदिरों की संपत्ति को बचाया, अपने लोगों की सुरक्षा के लिए दूरदर्शिता के साथ प्रबंध किए, उसने इतिहास रच दिया। अफ़सोस ये कि आज टीपू को नायक मानने वाले धर्मराज राम वर्मा और केशवदास पिल्लई को भुला बैठे हैं। धर्मराज, उनके दीवान, वो दीवार और टीपू सुल्तान के खिलाफ ये सफलता इतिहास में कहीं गुम है।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

मार्क्सवादी सोच पर नहीं करेंगे काम: संपत्ति के बँटवारे पर बोला सुप्रीम कोर्ट, कहा- निजी प्रॉपर्टी नहीं ले सकते

संपत्ति के बँटवारे केस सुनवाई करते हुए सीजेआई ने कहा है कि वो मार्क्सवादी विचार का पालन नहीं करेंगे, जो कहता है कि सब संपत्ति राज्य की है।

मोहम्मद जुबैर को ‘जेहादी’ कहने वाले व्यक्ति को दिल्ली पुलिस ने दी क्लीनचिट, कोर्ट को बताया- पूछताछ में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला

मोहम्मद जुबैर को 'जेहादी' कहने वाले जगदीश कुमार को दिल्ली पुलिस ने क्लीनचिट देते हुए कोर्ट को बताया कि उनके खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe