Tuesday, March 19, 2024
Homeविविध विषयभारत की बातराजा हरिश्चंद्र के पुत्र ने त्रेतायुग में इस दुर्ग को बनवाया: शाहजहाँ-मुमताज को यहीं...

राजा हरिश्चंद्र के पुत्र ने त्रेतायुग में इस दुर्ग को बनवाया: शाहजहाँ-मुमताज को यहीं हुआ मुराद, दीवारों से टपकता खून और रात में आती हैं आवाजें

शेरशाह सूरी इस किले से बेहद प्रभावित था। उसने वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में झेलम नदी के किनारे रोहतासगढ़ की हूबहू नकल करने की कोशिश करते हुए 'रोहतास किला' का निर्माण कराया था। इस किले को 1997 में पाकिस्तान सरकार की पहल से UNESCO की विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित इमारतों की कितनी दुर्दशा है, यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। ऐसी ही बिहार के रोहतास में एक अति प्राचीन किला है रोहतासगढ़ का किला, जिसके रख-रखाव के अभाव यह दिन-ब-दिन जर्जर होता रहा है और यहाँ सुअर जैसे जीव घुमते नजर आते हैं। राजा मान सिंह के काल में अपने वैभव पर रहा यह दुर्ग आजकल कूड़े का ढेर और गंदगी का अंबार हो गया है।

कहा जाता है कि यह दुर्ग त्रेतायुग का है और इसे सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने बनवाया था। तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं कि यह दुर्ग कितना प्राचीन और कितने महत्व का है। इससे जुड़ी किवदंतियाँ और रहस्यों की भी हम बात करेंगे।

बिहार के रोहतास जिले में एक पहाड़ी बना रोहतासगढ़ किला मध्यकाल में सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण और बनावट में बेहद भव्य रहा है। इस कारण इस पर आधिपत्य को लेकर लंबी लड़ाइयाँ लड़ी गईं। आधुनिक भारत में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में भी इसका खासा महत्व रहा है।

ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व किला होने के बावजूद ASI ने इस किले को कभी विश्व धरोहर की सूची में शामिल कराने की कोशिश नहीं की। हालाँकि, जिस जिस ASI के अधिकार में यह गंदगी से मुक्त नहीं हो सका उससे विश्व धरोहर की सूची में शामिल कराने की उम्मीद करना बेमानी है।

लेकिन, इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि कभी किले पर अपना प्रभुत्व रखने वाले शेरशाह सूरी इससे बेहद प्रभावित था। उसने वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में झेलम नदी के किनारे रोहतासगढ़ की हूबहू नकल करने की कोशिश करते हुए ‘रोहतास किला’ का निर्माण कराया था। इस किले को 1997 में पाकिस्तान सरकार की पहल से UNESCO की विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।

सासाराम का इतिहास

बिहार के रोहतास में स्थित सासाराम के आसपास नवपाषाणकालीन मानव ने अपनी बस्तियाँ बसाकर कृषि तथा पशुपालन का शुरू किया था। इनमें सेनुवारगढ़, सकासगढ़, कोटागढ़, अनंत टिला प्रमुख हैं।

वाल्मीकि रामायण के बालकांड में कहा गया है कि सिद्धाश्रम कैमूर की तलहटी में स्थित सहसराम में था। यहाँ पर भगवान् विष्णु ने एक हजार वर्ष तक तपस्या की थी। इसी धरती पर महर्षि कश्यप और पत्नी अदिति के गर्भ से वामन अवतार हुआ था।

सासाराम में मगध सम्राट् अशोक ने अपना लघु शिलालेख लिखवाया था। इसी शहर में अपने कारोबार का विस्तार देने वाले रौनियार वैश्य हेमचंद्र उर्फ हेमू ने दिल्ली की गद्दी पर बैठकर भारत पर शासन किया था। हेमू ने दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी।  

राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने बनवाया दुर्ग

कहा जाता है कि रोहतासगढ़ दुर्ग त्रेता युग में बना था। इसे अयोध्या के महाराजा त्रिशंकु के पौत्र और सत्यवादी सम्राट महाराजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने बनवाया था। जैसे महाराजा भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा, वैसे ही महाराजा रोहिताश्व के नाम पर ही जिले का नाम रोहतास पड़ा है। इस किले का वर्णन कई प्राचीन हरिवंश पुराण एवं ब्रह्मांड पुराण सहित कई शास्त्रों एवं पुराणों में है।

लाखों वर्ष बितने के बाद इसके प्रमाण आज मौजूद नहीं है, लेकिन दुर्ग से संबंधित सबसे पुराना ऐतिहासिक ऐतिहासिक अभिलेख एक शिलालेख है, जो 7वीं शताब्दी का है। इस अभिलेख के अनुसार, उस समय रोहतास पर महाराजा शशांक देव गौड़ का शासन था।

बिहार में स्थित रोहतासगढ़ दुर्ग (फोटो साभार: wayfarexp)

इतिहासकार डॉ. श्याम सुंदर तिवारी के अनुसार, यहाँ से शशांक देव की मुहर का साँचा भी मिला था। कालांतर में इस पर खरवार वंश के क्षत्रियों का शासन रहा। बाद में यह अफगान शासक शेरशाह सूरी और बाद में जगदीशपुर के राजा वीर कुँवर सिंह के अधिकार में भी यह दुर्ग रहा।

विंध्य पर्वत श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी पर रोहतासगढ़ दुर्ग स्थित है। यतह समुद्र तल से लगभग 1,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इस दुर्ग पर चढ़ाई करने में डेढ़ से दो घंटे का समय लगता है। 28 वर्गमील क्षेत्र में फैले इस दुर्ग में 83 दरवाजे हैं।

रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। 28 वर्गमील क्षेत्र में फैले इस दुर्ग के कुल 83 दरवाजों में मुख्य चारा हैं। इनके नाम हैं- घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट है। इनके प्रवेश द्वारों पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग अद्भुत हैं। यह किसी के भी मन को मोह लेने में सक्षम हैं।

रोहितेश्वर महादेव का मंदिर (फोटो साभार: rohtasdictrict)

इस दुर्ग में रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, राजा मानसिंह की कचहरी सहित कई इमारतें आज भी मौजूद हैं। परिसर इनके अलावा, कई और इमारतें हैं, जिनकी भव्यता देखकर अंदाजा, लगाया जा सकता है कि जब यह आबाद रहा होगा तो इसकी शान-ओ-शौकत कैसी रही होगी।

मंदिर में आदिकाल से स्थित हैं रोहितेश्वर महादेव

दुर्ग के उत्तर-पूर्व में एक मील के बारे में दो मंदिरों के खंडहर हैं। यहाँ 28 फीट के एक विशाल शिलाखंड पर रोहतेश्वर महादेव नाम का मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। माना जाता है कि यह मंदिर राजा हरिश्चंद्र के समय से अस्तित्व में है। यह भी कहा जाता है कि रोहिताश्व इस मंदिर में पूजा करते थे।

मंदिर के गर्भगृह में स्थित रोहितेश्वर महादेव शिवलिंग (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

इस मंदिर में शिखर नहीं है। इसमें एक मुख्य भवन और 84 सीढ़ियाँ बची हैं। समय के समय यह नष्ट हो गया। इसके पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि किन वजहों से यह नष्ट हुआ। हालाँकि, 625 ईस्वी में बंगाल के राजा शशांक देव गौड़ द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार कराने का प्रमाण मिलता है।

इन सीढ़ियों के कारण इस मंदिर को चौरासन मंदिर भी कहा जाता है। इसके अलावा, इसे रोहितासन मंदिर भी कहा जाता है। सावन के महीने में यहाँ भारी भीड़ लगती है। दूर-दराज के इलाकों से लोग यहाँ जल चढ़ाने के लिए आते हैं।

इस मंदिर के नीचे एक देवी मंदिर है। मंदिर निर्माण नागर शैली में होने के कारण इसके 7वीं सदी में जीर्णोद्धार के संकेत मिलते हैं। मंदिर रोहतासगढ़ किला क्षेत्र में होने के कारण पुरातत्व विभाग के अधीन है, लेकिन उसकी तरफ से किसी प्रकार का विकास कार्य नहीं किया गया है। 

किला परिसर में राजा मान सिंह के बनवाए महल के करीब आधे किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में भगवान गणेश का खूबसूरत मंदिर स्थित है। इस मंदिर को राजपूताना शैली में बनवाया गया है।

खरवार क्षत्रिय के अधिकार में रहा किला

प्राप्त शिलालेखों के अनुसार, 12वीं सदी यहाँ खरवार राजवंश के राजा महानृपति प्रताप धवल देव का शासन था। उनका शासनकाल 1162 ईस्वी का माना जाता है। माँ तुतला भवानी में इससे संबंधित पहला शिलालेख प्राप्त हुआ था, जिसे तुतराही शिलालेख भी कहते हैं। इसके बाद माँ चाराचंडी धाम और तिलौथू के फुलवरिया में भी इसके शिलालेख मिले हैं।

इन शिलालेखों को अंग्रेज पुरातत्वविद फ्रांसिस बुकानन ने खोजा था। इसके कुछ अंश पढ़े गए हैं, हालाँकि इस शिलालेख को अभी पूरी तरह पढ़ा नहीं जा सका है। बुकानन ने इस किले से संबंधित कुछ अन्य रहस्यों के बारे में भी लिखा है।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार, राजा धवल प्रताप के वंश से यह दुर्ग सम्राट पृथ्वीराज चौहान के हाथों में चला गया। उसके बाद 1494 ईस्वी में दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोधी का इस पर अधिकार हो गया। उसके बाद शालीवाहन क्षत्रियों के हाथ में इसका अधिकार आ गया। 1592 ईस्वी में बाबर ने इस किले पर अधिकार कर लिया। हालाँकि, यह लंबे समय तक उसके अधिकार में नहीं रहा और फिर इस पर खरवार वंश के क्षत्रियों का अधिकार हो गया।

मंत्री चूड़ामणि के सहयोग से शेरशाह ने दुर्ग कब्जाया

कहा जाता है कि साल 1539 में बक्सर के निकट चौसा के युद्ध में शेरशाह सूरी की बाबर के बेटे हुमायूँ के बीच युद्ध की स्थिति आ गई। शेरशाह सासाराम में ही पला-बढ़ा था और वह रोहतासगढ़ दुर्ग के सामरिक महत्व को समझता था। इसलिए हुमायूँ से युद्ध करने से पहले उसने इस पर कब्जा करने की सोची।

शेरशाह ने खरवार राजा नृपति के ब्राह्मण मंत्री चुड़ामणि को स्वर्ण मुद्राएँ और कई तरह का लालच देकर खुद में मिला। इसके बाद शेरशाह राजा नृपति के पास अपनी महिलाओं की सुरक्षा के लिए आश्रय माँगने गया, लेकिन राजा नृपति मुस्लिमों के छल को समझते थे। इसलिए उन्होंने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद चूड़ामणि ने राजा को कई तरह की बातें समझाकर इसके लिए तैयार। हालाँकि, नृपति ने शर्त रखा कि सिर्फ महिलाएँ ही दुर्ग में आएँगी कोई पुरुष नहीं।

महाकवि जय शंकर प्रसाद ने ‘ममता’ में इस घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि चुड़ामणि स्वर्ण मुद्राएँ लेकर अपनी इकलौती संतान और विधवा बेटी ममता के पास गया और उसे देने लगा, लेकिन ममता ने चुड़ामणि को धिक्कारते हुए उस रिश्वत को रखने से मना कर दिया। जब वह जान गई कि उसके पिता शेरशाह की मदद कर रहे हैं तो वह दुर्ग छोड़कर बौद्ध विहार में रहने लगी।

इधर शेरशाह ने पालकियों में महिलाओं के साथ अपने सैनिकों को भी भेज दिया। वह भी अंतिम पालकी में बैठा था, जबकि शुरू की पालकियों में वृद्ध महिलाएँ थीं। बीच के पालकियों में उसने सैनिकों को स्त्री वेश में बैठा रखा था।

रोहतासगढ़ दुर्ग में जब शेरशाह की महिलाओं की पालकियाँ आने लगीं, तो उनकी जाँच हुईं, जिनमें स्त्रियाँ दिखीं, लेकिन जब अंतिम पालकी रोहतासगढ़ दुर्ग में पहुँची तब शेरशाह के सैनिक हमला कर दुर्ग पर अधिकार कर लिए। कहा जाता है कि शेरशाह ने दुर्ग पर अधिकार करने के बाद चुड़ामणि की वहीं हत्या कर दी।

इतिहास में इस बात का भी जिक्र आता है कि चौसा के युद्ध में हारने के बाद हुमायूँ उसी ममता के पास छिपने के लिए पहुँचा। ममता जानती थी कि वह कोई मुगल है, लेकिन आश्रय देना धर्म समझकर उसे आश्रय दे दिया। बाद में जब हुमायूँ बादशाह बना तो उसने वृद्ध ममता की झोपड़ी की जगह घर बनवाने का आदेश दिया। मुगल सैनिकों ने घर बनवाकर टाँग दिया कि यहाँ कभी बादशाह ठहरे थे।

शेरशाह इस किले से बेहद प्रभावित हुआ। इसने इसकी पहरेदारी में 10,000 सैनिक तैनात किए गया था। कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि किले की चारदीवारी का निर्माण शेरशाह ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से कराया था, ताकि कोई किले पर हमला न कर सके।

रोहतासगढ़ के शेरशाह इतना प्रभावित था कि उसने अपने शासनकाल में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में ‘रोहतास किला’ से एक विशाल किला बनवाया। रोहतास किला दरअसल रोहतासगढ़ का नकल ही था।

मुगल शासन के अधीन रोहतासगढ़ दुर्ग

कालांतर में यह दुर्ग शेरशाह के हाथ से निकल कर फिर से मुगलों के हाथ में आ गया। साल 1588 में इस किले पर राजा मान सिंह ने अधिकार कर लिया। राजा मान सिंह ने इस किले में एक शानदार महल बनवाया, जो आज भी मौजूद है।

इसके साथ ही उन्होंने किला परिसर में आइना महल और किले के द्वार के रूप में हथिया पोल का निर्माण करवाया था। अकबर के समय में राजा मानसिंह बिहार-बंगाल का शासन यहीं से चलाते थे और यही उस समय के संयुक्त प्रदेश की राजधानी थी।

कहा जाता है कि अकबर के पोते और जहाँगीर के बेटे मुगल बादशाह शाहजहाँ इस किले में अपनी बेगम सहित इस किले में कुछ समय तक रहे थे। शाहजहाँ और अरजुमंद बानो (मुमताज़ महल) के छोटे बेटे मुराद का जन्म इसी किले में हुआ था। मुराद औरंगजेब का भाई था।

शाहजहाँ जब सम्राट शाहजहाँ बना तो उसने औरंगज़ेब के अधीन इख़लास ख़ान की कमान में इस किले को रखा। इस बाद में जब औरंगजेब बादशाह बना तो उसने देशभर में हिंदू मंदिरों के ध्वस्त करने के आदेश के दौरान इस दुर्ग के अंदर निर्मित अति प्राचीन मंदिरों को भी ध्वस्त करवा दिया था। औरंगजेब इस किले का उपयोग शाही परिवार के लोगों को नजरबंद करने के रूप में करता था।

अंग्रेजी शासन के कब्जे में दुर्ग का विध्वंस

सन 1764 में बक्सर की लड़ाई में मीर कासिम को हराकर अंग्रेजों ने किले को अपने कब्जे में ले लिया। उसके बाद 1774 ईस्वी में अंग्रेज कप्तान थॉमस गोडार्ड ने रोहतासगढ़ को अपने कब्जे में ले लिया और उसने किले के कई हिस्सों को तबाह कर दिया।

इसके बाद सन 1957 में स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई के समय वीर कुँवर सिंह के छोटे भाई अमर सिंह ने इस पर अधिकार कर लिया और यही अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था। कालांतर में देश की आजादी के बाद यह किला अपनी वैभव के गर्त को ढो रहा है।

दुर्ग के दीवारों से निकलती है खून और रात में सुनाई देती हैं चीखें

सन 1807 में इस किले के सर्वेक्षण का दायित्व फ्रांसिस बुकानन को सौंपा गया। वह सन 1812 में रोहतास आया और कई शिलालेख और पुरातात्विक जानकारियाँ हासिल कीं। सन 1881-82 में बीडब्ल्यू गैरिक ने इस क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया। उस दौरान भी कई शिलालेख और ताम्रपत्र आदि प्राप्त हासिल हुए।

फ्रांसिस बुकानन ने लगभग 200 साल पहले इस दुर्ग की यात्रा की थी। इसके बारे में उसने अपने दस्तावेजों में जिक्र किया है। उसने लिखा है कि इस दुर्ग के दीवारों से खून निकलते हैं। किले के आसपास रहने वाले लोग भी इसे सच बताते हैं।

लोगों का कहना है कि बहुत पहले रात में इस किले से आवाजें भी आती थीं। लोगों का मानना है कि वो संभवत: राजा रोहिताश्व के आत्मा की आवाज थी। हालाँकि, यह रहस्य आज भी बरकरार है और लोगों के मन छिपा हुआ है।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
इतिहास प्रेमी

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

रामजन्मभूमि के बाद अब जानकी प्राकट्य स्थल की बारी, ‘भव्य मंदिर’ के लिए 50 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करेगी बिहार सरकार: अयोध्या की तरह...

सीतामढ़ी में अब अयोध्या की तरह ही एक नए भव्य मंदिर का निर्माण किया जाएगा। इसके लिए पुराने मंदिर के आसपास की 50 एकड़ से अधिक जमीन अधिग्रहित की जाएगी। यह निर्णय हाल ही में बिहार कैबिनेट की एक बैठक में लिया गया है।

केजरीवाल-सिसोदिया के साथ मिलकर K कविता ने रची थी साजिश, AAP को दिए थे ₹100 करोड़: दिल्ली शराब घोटाले पर ED का बड़ा खुलासा

बीआरएस नेता के कविता और अन्य लोगों ने AAP के शीर्ष नेताओं के साथ मिलकर शराब नीति कार्यान्वयन मामले में साजिश रची थी।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
418,000SubscribersSubscribe