Tuesday, October 8, 2024
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बिहार के इस सूर्य मंदिर को नहीं तोड़ पाया था औरंगजेब: इस्लामी आक्रांता ‘काला पहाड़’ ने हमला कर लूट ली संपत्ति

काला पहाड़ का वास्तविक नाम कालाचंद राय था और वह ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ था। उसने बाद में इस्लाम धर्म अपना लिया था और बंगाल के शासक 'सुलेमान कर्रानी' का सेनापति बन गया था।

भारत मंदिरों का देश है। यहाँ कदम-कदम पर हिंदू संस्कृति के धरोहर और विरासत भरे पड़े हैं। हिंदू धर्म की एक ऐसी ही विरासत है देव का सूर्य मंदिर। कहा जाता है कि इस मंदिर को स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था। स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में किया गया बताया जाता है। इस मंदिर को इस्लामिक आक्रांता औरंगजेब और काला पहाड़ ने ध्वस्त करने की कोशिश की थी।

बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देव में भगवान सूर्य का यह मंदिर अति प्राचीन मंदिरों में से एक है। एक भारत का संभवत: अकेला मंदिर है, जिसका मुख्य द्वार पूरब की दिशा में ना होकर पश्चिम की दिशा में स्थित है। हालाँकि, इसको लेकर भी एक कहानी प्रचलित है, जिसकी चर्चा इस लेख में आगे करेंगे।

सम्राट ऐल ने त्रेतायुग में किया था मंदिर का शिलान्यास

कहा जाता है कि इस मंंदिर का निर्माण देवों के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं एक रात में की थी। मंदिर में स्थित एक शिलालेख में इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में 12 लाख 16 हजार वर्ष बीत जाने के बाद किए जाने का जिक्र है।

शिलालेख पर अंकित जानकारी के अनुसार मंदिर के शिलान्यास की तिथि माघ मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि गुरुवार के दिन प्रतापी राजा इलापुत्र यानी इला के पुत्र ‘पुरुरवा ऐल’ ने करवाया था। मंदिर परिसर में मिले शिलालेख ब्राह्मी लिपि एवं प्राकृत भाषा में लिखित हैं। इनमें कुछ श्लोक संस्कृत में भी अनुवादित किए गए हैं।

शास्त्र के जानकारों के अनुसार, त्रेता युग का काल 12 लाख 96 हजार वर्ष का होता है। त्रेतायुग के बाद द्वापर युग आया, जिसका काल 8 लाख 64 हजार वर्ष का था। वर्तमान समय कलियुग का चल रहा है, जिसका काल 4 लाख 32 हजार वर्ष बताया गया है। कलियुग में 6,128 वर्ष बीत चुके हैं। स्थानीय मान्यताओं के अलावे सरकारी आँकड़ों में भी यह मंदिर नया नहीं है।

औरंगाबाद जिले की आधिकारिक वेबसाइट पर इस सूर्य मंदिर को 15वीं शताब्दी का बताया गया है। इसमें कहा गया है कि उमगा के राजा भैरेन्द्र सिंह ने इस मंदिर को बनवाया था। वहीं, बिहार पर्यटन की वेबसाइट कहा गया है कि यह मंदिर की 6वीं से 8वीं सदी के के बीच की हो संभावना है।

जो भी हो धार्मिक ग्रंथ इसे त्रेता युग में शिलान्यास करने के बात कहते हैं। वहीं, बिहार पर्यटन की आधिकारिक वेबसाइट भी कहता है कि अलग-अलग पौराणिक विवरणों पर आधारित मान्यताओं और जनश्रुतियों में इसे त्रेता युग अथवा द्वापर युग के मध्यकाल में निर्मित बताया जाता है।

मंदिर निर्माण की कहानी

कहा जाता है कि त्रेता युग में एक बार महाराजा ऐल देव स्थित जंगलों में शिकार खेलने गए थे। शिकार खेलते-खेलते उन्हें प्यास लगी और अपने आदेशपाल को आसपास से पानी लाने के लिए कहा। आदेशपाल घुमता हुआ एक गड्ढ़े के पास पहुँचा और उसमें से पानी भरकर उसने राजा को दे दिया।

उस गड्ढे का पानी जैसे ही राजा के हाथ से स्पर्श हुआ, उनके हाथ का कुष्ठ रोग ठीक हो गया। इसके बाद राजा उस गड्ढे के पास पहुँचे और वहाँ स्नान किया। स्नान के बाद वह कुष्ठ रोग से पूरी तरह ठीक हो गए। उसके बाद राजा वापस राजमहल लौट आए।

उसी रात उन्हें एक सपना आया। सपने में राजा ऐल ने देखा कि जिस गड्ढे में उन्होंने स्नान किया था, उसमें तीन मूर्तियाँ हैं। इसके बाद राजा अपने सहयोगियों के साथ उस स्थान पर पहुँचे और वहाँ से उन मूर्तियों को निकालकर उन्हें वहीं स्थापित किया और एक भव्य मंदिर का शिलान्यास किया। भगवान सूर्य के तीन रूपों- पूर्वाभिमुख, मध्याभिमुख और पश्चिमाभिमुख मूर्तियाँ मंदिर में स्थापित हैं। उस गड्ढे को सूर्यकुंड कहा जाता है।

सम्राट हर्षवर्धन के कवि मयूर भट्ट को मिला कुष्ठ से छुटकारा

बिहार और उत्तर प्रदेश का प्रमुख पर्व छठ भगवान सूर्य का पर्व है। इस दिन देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु छठ व्रत के लिए देव पहुँचते हैं। राजा हर्ष के दरबार में राजकवि बाण भट्ट के साथ उनके साले मयूर भट्ट भी रहते थे। मयूर भट्ट को सर्प विद्या में महारत हासिल थी। उन्होंने सूर्यशतकम नाम से एक प्रसिद्ध ग्रंथ लिखा है।

कहा जाता है कि एक बार महाकवि बाण भट्ट अपनी पत्नी से प्रणय निवेदन कर रहे थे, लेकिन सूर्योदय होने तक वह नहीं मानी। तब बाम भट्ट ने कहा ‘गतप्राया रात्रि: कृशतनु शशी शीर्यत इवप्रदीपोऽयं निद्रा वशमुपगतो घूर्णन इव। प्रणामांतो मानस्त्यजसि न तथापि क्रुधमहो…’। पद पूरा होने से पहले ही उनके साले मयूर भट्ट आ गए और कवि हृदय होने के कारण उस पद यह कहते हुए पूरा किया कि ‘कुंचप्रत्यासत्त्या हृदयमपि ते चंडि कठिनतम्।’

बीच में भाई के हस्तक्षेप और मर्यादाहीन आचरण को देखकर उनकी बहन नाराज हो गईं और उन्होंने मयूर भट्ट को कोढ़ी हो जाने के शाप दे दिया। कुष्ठ से ग्रसित मयूर भट्ट देव पहुँचे और यहाँ भगवान भास्कर की घोर आराधना की। उसके बाद वह कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए।

मंदिर का वास्तु एवं कलाकृतियाँ

मंदिर की वर्तमान संरचना नागर वास्तु शैली में बनी है। यह ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर की संरचना से बहुत मिलता जुलता-जुलता है। इस मंदिर को काले पत्थरों को तराश कर बनाया गया है। इसके हर पत्थर पर अद्भुत नक्काशी की गई है और कलाकृतियाँ उकेरी गई हैं।

लगभग 100 फीट ऊँचे इस प्राचीन मंदिर के शीर्ष पर कमल के आकार का गुंबद बना है। इस पर सोने का एक कलश भी स्थापित किया गया है। मंदिर को बेहद भव्य तरीके से बनाया गया है। इसने भूकंप जैसी कई प्राकृतिक आपदाओं को झेला है। मंदिर परिसर में जगह-जगह मूर्तियों के अवशेष भी हैं। इन्हें इस्लामिक आक्रांताओं का विध्वंस बताया जाता है।

जब औरंगजेब ने मंदिर का विध्वंस करने की कोशिश की

कहा जाता है कि मुगल आक्रांता औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ और मथुरा के केशवदेव जैसे मंदिरों का विध्वंस करने के बाद देव के इस सूर्य मंदिर को भी ध्वस्त करने का आदेश दे दिया। इसकी प्राचीनता और महिमा के बारे में सुनकर औरंगजेब खुद अपने सैनिकों के साथ यहाँ पहुँचा।

औरंगजेब को मंदिर को तोड़ने का आदेश देता देखकर स्थानीय लोगों और पुजारियों ने उससे ऐसा ना करने का आग्रह किया। इस पर औरंगजेब ने कहा कि इस मंदिर को इतना महिमा वाला बता रहे हो। अगर इसका द्वार आज रात पूरब दिशा से पश्चिम की ओर हो जाएगा तो वह इस मंदिर को छोड़ देगा। लेकिन, अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह इसे तोड़ देगा। 

ऐसा कहकर औरंगजेब वहाँ से चला गया। स्थानीय लोगों और मान्यताओं के अनुसार, अगले दिन औरंगजेब आया तो उसने देखा मंदिर का मुख्यद्वार पश्चिम की तरफ हो गया है। इसके बाद डर से औरंगजेब ने इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया और वहाँ से चला गया।

हालाँकि, औरंगजेब मंदिर को बिना नुकसान पहुँचाए वहाँ से चला गया, लेकिन एक अन्य इस्लामी आक्रमणकारी काला पहाड़ ने इसे भारी नुकसान पहुँचाया। मंदिर में रखे सूर्य देव की मूर्ति के अलावा उसने सभी प्रतिमाओं को खंडित कर दिया।

मुस्लिम में धर्मांतरित हुआ था हमलावर ‘काला पहाड़’

स्थानीय लोगों का मानना है कि देश के सूर्य मंदिर के आसपास बिखरी मूर्तियों के अवशेष काला पहाड़ नाम के क्रूर शासक ने अंजाम दिया था। काला पहाड़ का वास्तविक नाम कालाचंद राय था और वह ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ था। उसने बाद में इस्लाम धर्म अपना लिया था और इस्लामी शासकों का सेनापति बन गया था।

काला पहाड़ 16वीं सदी में बंगाल के शासक ‘सुलेमान कर्रानी’ का सेनापति था। उसने ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर, कोणार्क मंदिर और असम के कामाख्या मंदिर पर हमला किया था। उसने जगन्नाथ मंदिर में पूजा भी बंद करा दिया था। काला पहाड़ को हिंदू का उत्पीड़न करने वाले एक क्रूर अत्याचारी के रूप में जाना जाता है।

इतिहासकारों के अनुसार, काला पहाड़ ने देव के सूर्य मंदिर पर हमला किया था। कहा जाता है कि काला पहाड़ ने यहाँ भारी लूटपाट की थी और मंदिर से कीमती आभूषण और हीरे-जवाहरात आदि को लूटकर ले गया था। कहा जाता है कि भगवान सूर्य की तीन मूर्तियों को खंडित नहीं कर पाया था।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
प्रकृति प्रेमी

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