सन 1526 ईस्वी में बाबर के साथ हुई पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी की हार ने दिल्ली पर लोदी वंश का सफाया कर दिया। लोदी खानदान दिल्ली सल्तनत का अंतिम शाही घराना था। उसके बाद दिल्ली पर मुगलों का अधिकार हो गया। इब्राहिम लोदी की सनक और हमेशा की तरह उसके दरबारियों की साजिश ने और मेवाड़ जैसा ताकतवर दुश्मन के सैन्य अभियानों से कमजोर लोदी वंश खत्म हो गया।
लोदी वंश की स्थापना बहलोल लोदी ने 1451 ईस्वी में की थी। बहलोल की 1489 में मौत के बाद उसका बेटा निजाम खान दिल्ली की गद्दी पर सुल्तान सिकंदर लोदी के नाम से बैठा। वह बेरहम शासक था। उसने कई प्रसिद्ध मंदिरों को नष्ट करवा दिया। ये वही सिकंदर लोदी था, जिसने नगरकोट के ज्वालादेवी मंदिर को विग्रह को टुकड़े-टुकड़े करवाकर उसे कसाइयों को मांस तोलने के लिए दे दिया।
उसने ग्वालियर किले पर 5 बार हमला किया, लेकिन वहाँ के क्षत्रिय शासक राजा मान सिंह ने उसे हर बार हराया। सिकंदर लोदी हिंदुओं और मूर्तिपूजा से सख्त नफरत करता था। उसने बोधन नाम के एक हिंदू की इसलिए हत्या करवा दी, उसने कहा था कि हिंदू भी इस्लाम की तरह ही सच्चा धर्म है। सिकंदर के शासनकाल में हिंदुओं पर फिर से जजिया लगाया गया और जबरन धर्मांतरण हुआ।
उसने हिंदुओं को थानेश्वर के पवित्र तालाब और यमुना में स्नान करने पर रोक लगा दी। आखिरकार सन 1517 ईस्वी में सिकंदर लोदी की मौत हो गई। सिकंदर लोदी की मौत के बाद उसका सबसे छोटा बेटा इब्राहिम लोदी दिल्ली की गद्दी पर बैठा। हालाँकि, इब्राहिम लोदी अच्छा प्रशासक साबित नहीं हुआ और सत्ता सँभाल नहीं पाया। वह सरदारों और गवर्नरों के प्रति ज्यादा कठोरता दिखाने लगा।
सत्ता संभालते ही इब्राहिम लोदी ने अपने अब्बू सिकंदर लोदी के वजीर रहे मियाँ भुआ को सबसे पहले जेल में डाला। इसके बाद शराब में जहर देकर मरवा दिया। आजम हुमायूँ, दरिया खान और हुसैन खान फरमूली जैसे नामी दरबारियों की उसने हत्या करवा दी। बाद में दरिया खान के बेटे बहादुर खान ने मुहम्मद शाह के नाम से बगावत कर दिया।
बहादुर शाह ने पूरे ऊपरी गंगा क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। यह इलाका बिहार से लेकर दिल्ली से लगभग 80 मील दूर संभल तक के क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया। समय के साथ उसने सुल्तान मुहम्मद शाह की उपाधि धारण करके राज किया। उसने दिल्ली की सेनाओं के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं, जिनमें वह हमेशा विजयी हुआ।
इब्राहिम लोदी दरबारियों का खुलेआम अपमान करता था। जिस पर शक होता, उसे कैद कर लेता या फिर मरवा दिया। इससे दरबारियों में यह बात बैठ गई कि उनमें से किसी का जीवन सुरक्षित नहीं है। इससे उसके दरबार में असंतोष पैदा हो गया। इन सब में उसका भाई और चाचा भी था। भाई जलाल की हत्या के बाद उसका जमींदार चाचा आलम खान काबुल भाग गया।
बड़े भाई जलाल खान की बगावत
सिकंदर लोदी की मौत के बाद उसके दरबार के कुलीन लोगों ने जौनपुर से ग्वालियर होते हुए लाहौर तक फैले लोदी साम्राज्य को दो हिस्सों में बाँटने के प्रयास किया। इसके पीछे उद्देश्य यह था कि सिकंदर लोदी के दो बेटों- जलाल खान और इब्राहिम खान के बीच खूनी जंग में सल्तनत का खात्मा ना हो। दरबारियों ने जलाल खान को जौनपुर ले जाकर उसे वहाँ का राजा बना दिया।
हालाँकि, रापरी के गवर्नर खान जहान लोहानी ने इस रणनीति की निंदा की थी। उन्हें डर था कि पड़ोस के राजपूताना से मिल रही टक्कर में लोदी वंश खत्म हो जाएगा। सोच-विचार कर दरबारियों ने जलाल खान को जौनपुर छोड़ने के लिए मनाने के लिए हैबत खान को भेजा। ‘भेड़िया-हत्यारा’ के नाम से कुख्यात हैबत खान ने से जलाल खान ने साफ कह दिया कि वह जौनपुर नहीं छोड़ेगा।
इसके बाद इब्राहिम ने एक फ़रमान पेश किया जिसमें उन्होंने अमीरों को जलाल खान का अनुसरण न करने की चेतावनी दी। इब्राहिम का विरोधी आजम हुमायूँ खुलकर जलाल खान के पक्ष में आ गया। आखिरकार ने इब्राहिम लोदी ने अपने सभी भाई-बहनों को हाँसी के किले में कैद करवा दिया। इसके बाद उसने जलाल खान पर हमला कर दिया। कालपी की घेराबंदी कर किले को नष्ट कर दिया।
इसकी जानकारी जैसे ही जलाल खान को लगी, वह आगरा की ओर भाग गया। उसे जब पता चला कि इब्राहिम ने उसकी हत्या का आदेश दिया है तो वह ग्वालियर के राजा पहुँचा और सुरक्षा की माँग की।ग्वालियर किले पर कब्जा होने पर वह मालवा वापस चला गया। गोंडवाना में उसे पकड़ लिया गया और आखिरकार हाँसी ले जाने के जाने के दौरान रास्ते में ही जलाल खान की हत्या कर दी गई।
जलाल के सहयोगी के खिलाफ जंग का ऐलान
इब्राहिम लोदी को शक था कि वह जलाल खान का सहयोगी है। इसके बाद उसने ग्वालियर के आजम हुमायूँ को बुलाया। आजम अपने बेटे फ़तेह खान के साथ इब्राहिम से मिलने के लिए आया । इब्राहिम लोदी ने दोनों को कैद करवा लिया। इसके साथ ही आजम हुमायूँ के दूसरे बेटे इस्लाम खान को कड़ा-मानिकपुर के गवर्नर पद से हटा दिया। आजम हुमायूँ के साथ जो कुछ हुआ, उससे दरबारियों में गुस्सा था।
इसके बाद बगावत करने वालों ने 40,000 घुड़सवार और 500 हाथी वाले सहित बड़ी संख्या में पैदल सैनिकों वाले एक बड़ी सेना तैयार की। इसकी जानकारी मिलते ही इस्लामी मौलाना शेख रजा बुखारी ने दोनों के बीच समझौता कराने की कोशिश की। हालाँकि, इब्राहिम ने उनकी माँग को ठुकरा दिया कि आजम हुमायूँ को रिहा किया जाए। इसे लड़ाई में इब्राहिम खान जीत गया।
दौलत खान का बगावत
हालात देखकर उधर दौलत खान भी बगावत की तैयारी करने लगा। उसने इब्राहिम लोदी को कर का भुगतान करना बंद कर दिया। दौलत खान तातार खान का बेटा था, जो सिकंदर लोदी के अधीन 20 से अधिक वर्षों तक पंजाब का गवर्नर रहा था और उसने सल्तनत के लिए उत्तर-पश्चिमी सीमा को प्रभावी ढंग से सुरक्षित रखा था। आखिरकार, इब्राहिम लोदी ने दौलत खान को बुलवाया लिया।
दौलत खान जानता था कि कई दरबारियों की हत्या की जा चुकी है। इसलिए उसे लगा कि इब्राहिम लोदी उसको लेकर ठीक खरादे नहीं रखता। इसके बाद उसने अपने बेटे दिलावर खान को उसकी जगह आगरा भेज दिया। उस समय दिल्ली सल्तनत की राजधानी दिल्ली से आगरा आ गई थी। जब इब्राहिम ने देखा कि दौलत खान की जगह उसका बेटा आया है तो वह क्रोधित हो गया।
उसने आदेश का पालन नहीं करने पर बेटे और उसके अब्बू को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। उस दौरान दिलावर खान को अत्याचार के भयानक दृश्य दिखाए गए, जो बगावत करने वालों पर ढाए जा रहे थे। इससे दिलावर डर गया। इब्राहिम ने दिलावर को कैद भी करा दिया। हालाँकि, किसी तरह दिलावर खान भागने में कामयाब रहा और अपने अब्बू दौलत खान को सारी बातें बताईं।
इसके बाद दौलत खान ने इब्राहिम लोदी से नाराज उसके चाचा आलम खान से संपर्क किया। इन लोगों ने लोग इब्राहिम लोदी के शासन को चुनौती देने के लिए उसकी मदद माँगी थी। इसके पहले बाबर ने 1503, फिर 1504, सन 1518 और 1519 में हमला किया था, लेकिन सफल नहीं हो पाया था। वह पंजाब के छोटे-मोटे हिस्से को ही लूटपाट कर लौट गया था।
इस बार उसे इब्राहिम के बेहद ताकतवर गवर्नर का ऑफर मिला तो वह खुश हो गया। आलम खान तो बाबर के दरबार में काबुल भी गया। वहाँ आलम खान ने बाबर से भारत में राजनीतिक अस्थिरता के बारे में बताया था। इसके बाद बाबर ने पंजाब में अपने दूत को भेजा। अपने दूत की रिपोर्ट आलम खान की बात को सही बताया। इसके बाद बाबर इब्राहिम लोदी पर हमला करने के लिए तैयार हो गया।
दौलत खान का असली लक्ष्य बाबर को मोहरे के रूप में इस्तेमाल करना था। उसे लगा था कि बाबर लुटेरा है और लूटकर वापस चला जाएगा। वह पंजाब और दिल्ली में अपने मोहरे को बैठाकर अपना प्रभुत्व जमा लेगा। इसमें तय हुआ था कि पंजाब दौलत खान के पास रहेगा और इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खान को दिल्ली दी जाएगी। आलम खान ने बिना गद्दी के ही अपना नाम सुल्तान अलाउद्दीन रख भी लिया।
निमंत्रण मिलने के बाद बाबर ने 1524 में खैबर दर्रे से होते हुए लाहौर तक मार्च किया। रास्ते में जीतने वाले सभी गाँवों-कस्बों को उसने जला दिया। लाहौर में तैनात इब्राहिम की सेना बाबर से हार गई। बाबर ने लाहौर को चार दिनों तक लूटा और फिर उसे जला दिया। इसके बाद वह देवपालपुर चला गया। वहाँ बाबर ने पूरी सेना को मौत के घाट उतार दिया।
बाबर से दौलत खान देवपालपुर में मिला। दौलत इस बात से निराश था कि बाबर ने लाहौर को लूटकर जला दिया। हालाँकि, बाबर ने उसकी एक नहीं सुनी। अब उसे अहसास हो रहा था कि क्या होने वाला है। उधर बाबर ने पंजाब जीतने के बाद उसे अपने राज्य में मिला लिया दौलत खान को बाबर ने जालंधर और सुल्तानपुर की ज़मीनें दीं।
हालाँकि, बाद में दौलत खान के बुरे व्यवहार के कारण ये जमीनें लेकर उसके सबसे बड़े बेटे दिलावर खान को सौंप दी। पंजाब में शासन की तैयारियाँ करने के बाद बाबर काबुल लौट गया। बाबर के जाते ही दौलत खान ने सुल्तानपुर से अपने बेटे की जागीर हटा ली और दीपालपुर से आलम खान को निकाल दिया।
बिना ताज और गद्दी के सुल्तान अलाउद्दीन बनकर घूम रहा आलम खान काबुल में बाबर के पास फिर गया और दौलत खान की शिकायत की। इसके बाद बाबर 1526 ईस्वी में भारत आया और पंजाब होते हुए इस बार सीधे दिल्ली पर हमला किया। पानीपत की इस पहली लड़ाई में इब्राहिम मारा गया। इस तरह मुगल वंश की शुरुआत हुई।
राणा सांगा से युद्ध
मेवाड़ उस समय का सबसे शक्तिशाली देश था। महाराणा संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा अपनी बहादुरी, नेतृत्व कौशल और अपनी रणनीतिक चतुराई के लिए पूरे उपमहाद्वीप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने पूर्वज बप्पा रावल के बाद दूसरी बार सभी हिंदू राजाओं को एक छत्र के नीचे लाने का काम किया था। मालवा, गुजरात और दिल्ली जैसे शक्तिशाली मुस्लिम सुल्तानों से घिरे होने के बावजूद राणा सांगा मेवाड़ के अलावा अन्य राजपूत क्षेत्रों को बचाने में कामयाब रहे थे।
राणा सांगा इब्राहिम लोदी के अब्बू सिकंदर लोदी को भी हरा चुके थे। मालवा में गृह युद्ध हुआ तो राणा सांगा मेदिनी राय के पक्ष लिया। वहीं, सिकंदर लोदी ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय का समर्थन किया। युद्ध की नौबत आई तो मालवा के सुल्तान खिलजी ने गुजरात से मदद माँगी। राणा सांगा ने तीनों सुल्तानों की संयुक्त सेना को हराया और मेदिनी राय को मालवा की गद्दी पर बैठाया।
इसके बाद सिकंदर लोदी की इब्राहिम लोदी को मेवाड़ से दुश्मनी विरासत में मिली थी। राणा सांगा ने दिल्ली के कई इलाकों को अपने राज्य में मिला लिया था। इसके बाद इब्राहिम ने मेवाड़ के खिलाफ़ चढ़ाई की। सन 1517 में ग्वालियर के पास खतौली में हुई लड़ाई में राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को बुरी तरह हराया। इसी युद्ध में राणा सांगा ने अपना बायाँ हाथ और एक पैर खो दिया।
इस दौरान राजपूत सेना ने लोदी घराने के एक राजकुमार ग़ियासुद्दीन को पकड़ लिया। इसके बाद 1518-19 में इब्राहिम ने फिर से मेवाड़ पर हमला करने का दुस्साहस किया। उसने मेवाड़ पर हमले के लिए एक बड़ी सेना भेजी। धौलपुर में दोनों सेनाएँ आमने-सामने आईं। राजपूत सेना से हुआ। इसमें भी लोदी सेना को करारी हार का सामना करना पड़ा। राणा सांगा की सेना ने बयाना तक उसका पीछा किया।
बाद में राणा सांगा ने इब्राहिम के अंतर्गत आने वाले चंदेरी को अपने राज्य में मिला लिया, लेकिन इब्राहिम इसका विरोध करने का भी साहस नहीं जुटा सका। चंदेरी के नुकसान के साथ ही इब्राहिम लोदी की सबसे दक्षिणी चौकी चली गई। इतिहासकार टॉड के अनुसार, गुजरात के सुल्तान महमूद बेगड़ा, मालवा के सुल्तान महमूद और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के खिलाफ राणा सांगा ने 18 युद्ध लड़े और जीता।
इसमें बकरोल और घाटोली और खतौली का युद्ध प्रमुख है। मेवाड़ के साथ इस लंबे युद्ध में इब्राहिम लोदी भारी हानि हुई। कहा जाता है कि महाराणा सांगा ने अपने जीवन में 100 से अधिक लड़ाइयाँ लड़ी थीं और खानवा के युद्ध को छोड़कर उन्होंने सारी जीती थीं। राणा सांगा ने दिल्ली सल्तनत के साथ मालवा के बड़े हिस्से को मेवाड़ में मिला लिया था।
मेवाड़ के साथ युद्ध में इब्राहिम को ना सिर्फ भूभाग, बल्कि संसाधन और मान-सम्मान भी खोना पड़ा। बार-बार के युद्ध में इब्राहिम लोदी कमजोर हो चुका था। उधर, मौके की तलाश में बैठा बाबर तुरंत आया 1526 में पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर उसे मारकर मुगल वंश की नींव रख दी। बता दें कि राणा सांगा बयाना के युद्ध में बाबर को भी बुरी तरह हरा चुके थे।