कविता थी- कश्मीरी पंडितों के घर
खूबसूरत डल झील से बस 4-5 किलोमीटर दूर
केसर की महक से लबरेज
बाजारों से पास ही पशमीना शॉल की दुकान के पीछे
पुराने शहर की तंग गलियों में
झेलम नदी के बूढ़े गले किनारों पर
याद और यादश्त की तारों में उलझेअधजली चिताओं से घर
जो पोस्टकार्ड पर नहीं बिकते
न फिल्मों में दिखते हैं
ये भी तो कश्मीर ही है नखिड़कियों के टूटे हुए चुभते शीशे
पुश्तैनी छतों से रिसते हुए पानी की छीटों से नम बूढ़ी यादें
आँगन पर कब्जा किए हुए
दीमक लगे मौसम, खुद से टकराती धूप
ऐसे गुजरती हैं यहाँ से जैसे रातों के सन्नाटों को चीर
मौत सूँघ का निकली हो यहाँ से
कभी गुजरना कश्मीरी पंडितों के मुहल्लों से भी
बिलखती हुई कहानी पैर पकड़ लेगी
यतीमखानों में फँसे बच्चे की तरह
जिसे न कोई अपनाता है न इंसाफ दिलाता है
19th January, 1990. #KashmirHindus Exodus Day! It has been 35 Years since more than 500000 Hindus were brutally thrown out of their homes. Those homes are still there. But haunted and forgotten! #SunayanaKachrooBhide a victim of this tragedy has written heartbreaking poem about… pic.twitter.com/4U5OPXQxyK
— Anupam Kher (@AnupamPKher) January 19, 2025
इस कविता पाठ को करते हुए अनुपम खेर ने कैप्शन में लिखा- “19 जनवरी, 1990 कश्मीरी हिंदुओं का पलायन दिवस। 35 साल हो गए हैं, जब 5,00,000 से ज्यादा हिंदुओं को उनके घरों से बेरहमी से निकाल दिया गया था। वे घर अभी भी वहीं हैं, लेकिन उन्हें भुला दिया गया है। वे खंडहर हैं। इस त्रासदी की शिकार सुनयना काचरू भिडे ने उन घरों की यादों के बारे में दिल छूने वाली एक कविता लिखी। कविता की ये पंक्तियाँ उन सभी कश्मीरी पंडितों को वह मंजर याद दिला देंगी, जो इस भीषण त्रासदी के शिकार हुए थे। यह दुखद और सत्य दोनों है।”
बता दें कि अनुपम खेर ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर बनी ‘द कश्मीर फाइल्स’ में भी अहम रोल निभाया था। फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे इस्लामी आतंकियों के कारण लाखों कश्मीरी हिंदू परिवारों को अपनी जमीन और संपत्ति छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। वहीं सैंकड़ों कश्मीरी पंडित मारे गए थे।