भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य नागालैंड के मशहूर पारंपरिक ‘हॉर्नबिल महोत्सव’ के 25वें संस्करण की शुरुआत हो चुकी है। ये उत्सव न केवल नागालैंड की अद्वितीय संस्कृति का अनुभव देता है बल्कि इसके जरिए नागालैंड की विभिन्न जनजातियों के रीति-रिवाजों, भोजन, गीतों और नृत्यों के बारे में भी लोगों को जानने का मौका मिलता है।
10+ दिवसीय चलने वाले इस महोत्सव में देश-विदेश से लाखों लोग पहुँचते हैं और यह राज्य का सबसे बड़ा सार्वजनिक कार्यक्रम भी माना जाता है। पूरे प्रदेश में इस महोत्सव को लेकर उत्साह रहता है लेकिन इस बार ये आयोजन कुछ ईसाई ताकतों के कारण काफी विवादों में हैं। ऐसा क्यों आइए बताएँ…
25th #HornbillFestival 2024 ||
— All India Radio News (@airnewsalerts) December 6, 2024
Meet Mr. Wenlao Konyak and Mr. Hokon Konyak, two remarkable men from ChenLoisho Wangto village in Mon district, both aged 85, and the last surviving tattooed headhunters of the Konyak tribe.
Their distinctive tattoos, a symbol of their warrior… pic.twitter.com/fVS4ga20JM
नागा संस्कृति में राइस बियर का महत्व
दरअसल, नागालैंड की संस्कृति में और हॉर्नबिल महोत्सव में ‘राइस बियर’ एक महत्वपूर्ण पेय पदार्थ माना जाता है। इसे नागालैंड के लोग पारंपरिक शराब के रूप में समारोहों में वितरित करते हैं। ये समारोह फिर चाहे सामाजिक हो या सांस्कृतिक, हर जगह ‘राइस बियर’ का महत्व होता है। कहीं इसे बांस से बने ग्लास में दिया जाता है तो कहीं किसी व्यंजन के साथ मिश्रित करके इसका सेवन होता है।
The energy at #HornbillFestival2023 was off the charts!
— Neelakshi Buragohain (@boowoo06) December 13, 2023
We kicked off the festivities by snagging fantastic mugs of “Thuthse”.
Cheers echoed through the celebration, embracing tradition and good times!#Nagaland #ricebeer #northeast #kisama pic.twitter.com/FKa3QdqXsS
नागालैंड की जनजातियों में और यहाँ बाहर से आने वाले लोगों में चूँकि इस पेय पदार्थ का क्रेज सबसे अधिक है। इसकी महत्वता को देखते हुए नागालैंड सरकार ने इस पर निर्णय लिया कि वो राज्य में पूर्ण रूप से प्रतिबंधित शराब के सख्त कानूनों में थोड़ी रियायत देंगे और इस महोत्सव में भारतीय निर्मित विदेशी शराब (IMFL) की बिक्री की अनुमति होगी। इस संबंध में पर्यटन मंत्री तेम्जेन इम्ना अलोंग ने भी बयान दिया कि यह कदम पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए उठाया गया है।
रंगों में रची हमारी परंपरा, त्योहारों में बसी हमारी संस्कृति!
— Temjen Imna Along (@AlongImna) December 1, 2024
The Hornbill Festival is back, grander than ever, with a celebration like no other! This 25th edition is not just a festival; it's a vibrant jubilee of tradition, culture, and unity.
Let’s come together and… pic.twitter.com/KkfLrYAKsi
अब ये भली-भाँति जानते हुए कि राज्य में ये छूट केवल राजस्व बढ़ाने के लिए नहीं दी गई बल्कि जनजातीयों की संस्कृति को देखते हुए दी गई है, चर्चों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने इस पूरी छूट को इस एंगल से बयान दिया कि सुनने वालों को लगे कि सरकार तो राज्य में शराब को बढ़ावा दे रही है। जबकि हकीकत यह है कि राइस बियर जैसे चीजें नागा संस्कृति का हिस्सा रही है इसलिए इसपर विचार किया जा रहा है और वहीं चर्च इस पर आपत्ति इसलिए जता रहा है क्योंकि उनके मुताबिक जनजातीयों का पारंपरिक पेय जल का सेवन सामाजिक और नैतिक रूप से गलत है।
#Explained | Nagaland’s Hornbill Festival, and why the Church has frowned at relaxing rules around ithttps://t.co/aXhJzYMIip
— The Indian Express (@IndianExpress) December 5, 2024
रिपोर्ट्स के अनुसार नागालैंड बैपटिस्ट चर्च काउंसिल (NBCC) ने कहा कि पर्यटक नागालैंड आने का मुख्य कारण उसकी संस्कृति और विरासत का अनुभव करना है, न कि शराब पीना। NBCC ने जनजातीय समुदाय के इस महोत्सव में पारंपरिक शराब का विरोध करने के क्रम में ये कहकर भी डराया है कि यदि राज्य में शराब की बिक्री को बढ़ावा दिया गया तो इसके दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।
"The Hornbill Festival is a vibrant celebration of Nagaland’s rich heritage, showcasing the North East’s unparalleled culture, traditions, and unity. It’s a testament to the spirit of #EkBharatShreshthaBharat, bringing together the essence of India’s diversity.
— Pratima Bhoumik (@PratimaBhoumik) December 6, 2024
National Anthem… pic.twitter.com/NX5d6PMhMS
नागा संस्कृति पर हावी ईसाई आबादी और उनके नियम
गौरतलब है कि नागालैंड में बहुसंख्य आबादी ईसाइयों की इसलिए ईसाई ताकतें चाहती हैं कि हर नियम उनके अनुसार बनें और अन्य जातियाँ भी उन्हीं के बनाए नियमों के अनुरूप रहें। इन्हीं ईसाई ताकतों के दबावों में करीबन 35 साल पहले राज्य में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था और आज भी वो ताकतें किसी तरह के बदलावों के लिए तैयार नहीं है। नागालैंड में चर्चों का आज भी यही सोचना है कि अन्य जनजातियाँ उनके हिसाब से चलें। भले ही इस दबाव में उनकी अपनी संस्कृति हमेशा के लिए खत्म कर दें मगर सुनें उनकी हीं।
Zutho – traditionally brewed rice beer of Naga's plays an integral role in the day-to-day life of the #Angami Nagas people and several other communities in the region.
— Wander Nagaland (@WanderNagaland) January 23, 2020
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The rice beer with lot many medicinal & therapeutic properties. #beer #ricebeer #naga #zutho #tribe #liquor pic.twitter.com/472p6mtJ1i
184 साल पहले आए अमेरिका से हुई थी बैप्टिस्टों की नागालैंड में एंट्री
केवल जानकारी के लिए बता दें कि भले ही चर्चा और महिला संगठनों के दबाव में आधिकारिक तौर पर राज्य में पूर्ण शराबबंदी 1989 में की गई थी। लेकिन नागालैंड में ईसाई ताकतों की घुसपैठ 1870 से शुरू हो गई थी। रिपोर्ट बनाती हैं कि 1870 में जब नागालैंड में अमेरिकी बैप्टिस्ट आए तो उन्होंने शराब को पाप बताया और धर्म परिवर्तन करने वालों के लिए सख्त दंड का प्रवाधान किया। इसके बाद जो कोई भी ऐसा करता वहाँ पकड़ा जाता था उसे समुदाय से निकालकर सजा दी जाती थी। आज उसी प्रभाव का नतीजा है कि राज्य की आबादी 87% ईसाई है।