पहलगाम नरसंहार के बाद भारत द्वारा की गई जवाबी कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत की बेटियाँ चर्चा में हैं। कारण – इतने बड़े ऑपेरशन के बारे में देश-दुनिया को जानकारी देने के लिए जो 2 महिलाएँ सामने आईं, वो साधारण नहीं थीं। कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह – इन्होंने प्रेस ब्रीफिंग में पाकिस्तान के हर प्रपंच को ध्वस्त किया। लेकिन, क्या आपको पता है इनसे पहले भी एक ‘भारत की बेटी’ थी जो भले ही इतिहास में गुमनाम रह गई लेकिन उसका योगदान ऐसा था जो आज बह प्रेरित करती है।
भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में 1971 का वर्ष एक निर्णायक मोड़ था। इसी दौरान भारत की एक बहादुर बेटी ने न केवल देश को न केवल अपने सीने से लगाया, बल्कि अपने जीवन, प्रेम और सपनों की कुर्बानी देकर मातृभूमि को सर्वोपरि रखा। यह कहानी है सहमत नाम की एक कश्मीरी लड़की की, जो पाकिस्तान में एक सैन्य अधिकारी की पत्नी बनकर गई, लेकिन असल में वह एक जासूस थी। भारत को जासूस, जिसने अपने देश के लिए ख़तरा मोल लिया।
सहमत का परिचय: एक आम लड़की, असाधारण संकल्प
सहमत एक शिक्षित, समझदार और संवेदनशील लड़की थी, जो श्रीनगर में एक राजनीतिक और सामाजिक रूप से सक्रिय मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखती थी। उसके पिता हिंदुस्तान से बेहद प्रेम करते थे। वे भारतीय खुफिया एजेंसियों से जुड़े हुए थे और सीमा पार पाकिस्तान में भी उनके कई संपर्क थे।
जब उन्हें पता चला कि वे कैंसर से ग्रसित हैं और अब जीवन के दिन गिने-चुने हैं, तो उन्होंने देश की सेवा का बीड़ा अपनी बेटी को सौंपा। यह कोई साधारण ज़िम्मेदारी नहीं थी बल्कि एक आत्मघाती मिशन जैसा था।
शादी, जो सिर्फ़ एक ‘कवर स्टोरी’ थी
सहमत की शादी एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर के बेटे से कर दी गई। वह ब्रिगेडियर पाकिस्तान की सेना में एक अहम पद पर था, जिससे देश की खुफिया जानकारियाँ निकल सकती थीं। यह शादी असल में एक रणनीतिक चाल थी, जिससे वह पाकिस्तान की सेना के घर के भीतर रहकर सूचनाएँ जुटा सके।
इससे पहले भारत में सहमत को ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ (R&AW) द्वारा गुप्त प्रशिक्षण दिया गया। इसमें गुप्तचरी, रेडियो संचार, छिपे तरीके से संदेश भेजना और मानसिक मजबूती की कड़ी ट्रेनिंग शामिल थी।
पाकिस्तान में जीवन: हर पल डर और कर्तव्य का संघर्ष
पाकिस्तान में सहमत को हर पल अपने अस्तित्व को छिपाना पड़ता था। एक जवान महिला, अनजाने देश में, जहाँ हर गलती मौत को न्योता दे सकती थी। फिर भी, उसने अपने देश के लिए हर जोखिम उठाया। उसे ब्रिगेडियर के दस्तावेज़ों, बैठकों, और बातचीत से भारतीय नौसेना पर होने वाले हमले की जानकारी मिली।
वह जानकारी भारत भेजी गई और इस आधार पर भारतीय नौसेना ने ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ और ‘ऑपरेशन पाइथन’ जैसी सफल कार्रवाइयाँ कीं, जिनसे कराची बंदरगाह को भारी नुकसान पहुँचा। इसमें सहमत की भूमिका निर्णायक थी। यह वही जंग थी, जिससे बांग्लादेश का जन्म हुआ। सहमत के लिए ये ऑपरेशन आसान नहीं था। उन्हें पाकिस्तान में हत्या तक करवानी पड़ी, एक शख्स को ट्रक से भी कुचलवाना पड़ा।
प्रेम जो अधूरा रह गया, एक बलिदान जो अमर हो गया
पाकिस्तानी पति ने सहमत से सच्चा प्रेम किया, लेकिन सहमत के लिए प्रेम से ऊपर उसका देश था। जब उसका मिशन लगभग उजागर होने लगा, तब उसे भारत लौटना पड़ा।
वह अपने पति को, उस जीवन को – सब कुछ पीछे छोड़ आई। इस दौरान वह गर्भवती भी थी। कुछ स्रोतों के अनुसार, उसने अपने बच्चे को भारत में जन्म दिया और अकेले उसका पालन-पोषण किया।
भारत लौटने के बाद: गुमनामी की ज़िंदगी
सहमत ने अपने देश लौटने के बाद कभी प्रचार नहीं चाहा। न पुरस्कार, न सम्मान, सिर्फ शांति और अपने अंदर सहेजे गए दर्द के साथ गुमनाम जीवन। लेखक हरींदर सिक्का, जो पहले भारतीय नौसेना में अधिकारी थे, उन्होंने जब उनकी कहानी सुनी, तो वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस पर ‘Calling Sehmat’ नामक उपन्यास लिखा।
बाद में इसी उपन्यास पर बनी फिल्म ‘राज़ी’ (2018) ने सहमत की कहानी को करोड़ों दिलों तक पहुँचाया। फिल्म में आलिया भट्ट ने सहमत का किरदार निभाया और इस वीर महिला की भूमिका को जीवंत कर दिया।
सहमत का संदेश: देश सबसे ऊपर
सहमत की कहानी केवल एक जासूसी मिशन नहीं है, यह उस नारी शक्ति का प्रतीक है जो चुपचाप देश की रक्षा के लिए अपने सारे सपनों को कुर्बान कर देती है। एक बेटी, जो दुश्मन की ज़मीन पर जाकर अपनी मातृभूमि की रक्षा करती है। देशभक्ति के इस तरह के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं।
आज भी भारतीय खुफिया एजेंसी में सहमत की कहानी एक मिसाल की तरह देखी जाती है। भले ही सरकार ने कभी आधिकारिक रूप से इसे स्वीकार नहीं किया, लेकिन वे सभी जो इस मिशन से जुड़े थे, जानते हैं कि एक लड़की ने अकेले दुश्मन देश में ऐसा कार्य किया जिसे करने के लिए फौजों को बरसों की तैयारी करनी पड़ती है। सहमत ने न केवल अपने कर्तव्यों का निर्वहन पाकिस्तान की धरती पर रहते हुए किया, बल्कि उसने अपने बेटे को भी वही संस्कार दिए, जो उसे अपने पिता से विरासत में मिले थे – देश के लिए जीना और मर मिटना।
यही कारण है कि उनके बाद उनके बेटे में भी वही देशभक्ति की भवन थी, जिसके बाद वो भी आगे चलकर भारतीय सेना में अधिकारी बना, और यह इस बात का प्रतीक है कि देशभक्ति उसके रक्त में रची-बसी थी। जैसे माँ ने परदे के पीछे रहकर राष्ट्र की रक्षा की, वैसे ही उसका बेटा वर्दी पहनकर सीमाओं की रक्षा करता रहा। यह सिलसिला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक देश के प्रति समर्पण की विरासत बन गया। एक ऐसी अमर गाथा, जहाँ माँ ने छाया बनकर राष्ट्र की सेवा की और बेटे ने सशरीर भारत माँ की गोद की रक्षा की।