Thursday, January 23, 2025
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जातिवाद का इल्जाम, झूठी जानकारी… UP के जिस अधिकारी ने CM योगी पर आपत्तिजनक संदेश किया फॉर्वर्ड, उसकी बर्खास्तगी का ऑर्डर HC ने रद्द किया

न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने कहा कि अनजाने में फॉर्वर्ड किए गए मैसेज के लिए बर्खास्तगी की सजा बहुत ज्यादा है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने यह स्वीकार कर लिया है कि संदेश को अनजाने में आगे बढ़ा दिया गया। इसलिए मेरी राय में सजा नरम होनी चाहिए।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आपत्तिजनक मैसेज फॉर्वर्ड करने के आरोप में राज्य सचिवालय में कार्यरत अतिरिक्त निजी सचिव अमर सिंह की सेवाएँ साल 2020 में बर्खास्त की गई थी। अब इसी मामले में खबर है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने आरोपों के पुख्ता सबूत न मिलने पर उस आदेश को रद्द कर दिया।

क्या था मैसेज में

साल 2018 में एक व्हॉट्सएप संदेश शेयर किया गया जिसमें लिखा था:

“यूजीसी के नियमों के अनुसार, ओबीसी और अनुसूचित जाति समुदायों के लिए अवसर प्रभावी रूप से बंद कर दिए गए हैं। रामराज्य के इस युग में, मुख्यमंत्री ठाकुर अजय सिंह योगी और उपमुख्यमंत्री पंडित दिनेश शर्मा ने जातिवाद को खत्म करते हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय में कुल 71 पदों में से 52 पदों पर अपनी ही जाति के लोगों को सहायक प्रोफेसर नियुक्त किया है।”

इस संदेश को ही अमर सिंह ने दूसरे ग्रुप में शेयर किया था। हालाँकि जाँच हुई तो पता था कि पहले ये संदेश उस ग्रुप में आया था जिसके वो एडमिन थे, उन्होंने इसे हटाने का प्रयास किया, लेकिन उसी चक्कर में उनसे ये संदेश फॉर्वर्ड हो गया।

उन्होंने बाद में इसे लेकर मुख्य सचिव को पत्र लिखकर माफी भी माँगी लेकिन संदेश फॉर्वर्ड करने के लिए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक जाँच शुरू की गई और पाया गया कि इस संदेश के आगे बढ़ने से सरकार की छवि धूमिक होती। इसके बाद साल 2020 में उनकी सेवाएँ बर्खास्त कर दी गईं।

कोर्ट ने क्या कहा

अमर सिंह इसके बाद हाई कोर्ट पहुँचे। कोर्ट ने मामले में सुनवाई की। पक्षों को सुना। उसके बाद जस्टिस आलोक माथुर ने कहा कि अनजाने में फॉर्वर्ड किए गए मैसेज के लिए बर्खास्तगी की सजा बहुत ही ज्यादा है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने यह स्वीकार कर लिया है कि संदेश को अनजाने में आगे बढ़ा दिया गया। इसलिए जस्टिस ने राय दी कि सजा बेहद नरम होनी चाहिए। जैसे उनकी सेवा रिकॉर्ड में इसका उल्लेख या निंदा आदि।

जस्टिस ने कहा कि निस्संदेह ही एक सरकारी कर्मचारी के रूप में याचिकाकर्ता को ऐसी आपत्तिजनक सामग्री से निपटने में सावधानी बरतनी चाहिए थी, लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने ये कार्य दुर्भावना से किया।

कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर वो संदेश प्रसारित नहीं किया और चूँकि इस बात के सबूत भी नहीं मिलते कि आगे वो संदेश बढ़ाया गया इसलिए ये सिर्फ अटकलें होंगीं कि संदेश के प्रसारित होने से सरकार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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