गोवा के मशहूर लेखक और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता दत्ता दामोदर नाइक ने विवादित बयान देकर हलचल पैदा कर दी है। खुद को कट्टर नास्तिक बताने वाले दत्ता दामोदर नाइक ने एक व्याख्यान के दौरान हिंदू मंदिरों के पुजारियों और पंडों को ‘डकैत’ और ‘लुटेरा’ कहकर संबोधित किया। उनके इस बयान को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला बताते हुए उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, दत्ता दामोदर नाइक (Datta Damodar Naik) के खिलाफ पहली शिकायत सतीश भाट नामक व्यक्ति ने काणकोण पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई। उन्होंने आरोप लगाया कि नाइक ने श्री संस्थान गोकर्ण पार्तगाली जीवोत्तम मठ और हिंदू पुजारियों को अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया। सतीश भाट ने कहा, “हमारी संस्कृति में हर किसी के विचारों का सम्मान होता है, चाहे वह नास्तिक ही क्यों न हो। लेकिन इस तरह का बयान देकर उन्होंने जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई है।”
दूसरी शिकायत पणजी पुलिस स्टेशन में गोमंतक मंदिर महासंघ और धार्मिक संस्थान फेडरेशन के सदस्य जयेश थाली ने की। शिकायत में कहा गया, “पुजारियों और मंदिरों को ‘लुटेरा’ कहना केवल निंदनीय ही नहीं, बल्कि यह एक गंभीर अपराध है, जिसने समाज में अशांति फैलाई है।”
पुलिस ने नाइक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295 (ए) के तहत मामला दर्ज किया है। यह धारा उन कृत्यों पर लागू होती है, जो जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से किए जाते हैं। इस मामले की जाँच जारी है।
इस बीच, दत्ता दामोदर नाइक ने इस पूरे विवाद पर कहा कि वे अपने बयान पर कायम हैं और किसी भी कार्रवाई से डरते नहीं। उन्होंने कहा, “मैंने सिर्फ इतना कहा कि मंदिरों के पुजारी लोगों से पैसे वसूलते हैं। बाद में मैंने स्पष्ट किया कि मेरा मतलब था कि वे पैसे ‘वसूलते’ हैं, लूटते नहीं। यह सवाल उठाना गलत नहीं है कि इन पैसों का उपयोग कहाँ होता है। क्या इनसे स्कूल, अस्पताल या समाज के लिए कुछ और किया गया है?”
नाइक ने खुद को कट्टर नास्तिक बताते हुए कहा कि वे वर्षों से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हैं और हमेशा तर्कवादी विचारधारा के समर्थक रहे हैं। उन्होंने कहा, “मुझे अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। अगर मेरी भावनाओं का सम्मान नहीं होता, तो दूसरों की भावनाओं का इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है?”
बता दें कि दत्ता दामोदर नाइक को साहित्य अकादमी पुरस्कार 2006 में उनके कोकणी निबंध संग्रह ‘जय काई जुई’ के लिए दिया गया था। वे कोकणी, मराठी और अंग्रेजी में कई किताबें लिख चुके हैं। 1990 के दशक में उन्होंने ‘समता आंदोलन’ नामक तर्कवादियों के एक समूह की स्थापना की थी, जो गोवा में तर्क और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।