Friday, April 26, 2024
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दरगाह का पानी, ताबीज, वशीकरण और धर्मांतरण: जानिए गुजरात में कितना फैला है ‘लव जिहाद’ का जाल, कैसे बनाते ​हैं शिकार

लव जिहाद पर अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग की दूसरी किश्त में हम आपके लिए लेकर आए हैं, उन सामाजिक कार्यकर्ताओं का मत जो आए दिन ग्रूमिंग जिहाद से निपटते हैं। पढ़िए धर्मांतरण के तौर-तरीकों, फंडिंग और ट्रेनिंग के बारे में वे क्या कहते हैं।

लव जिहाद (Love Jihad) या ग्रूमिंग जिहाद (Grooming Jihad) की शिकार दो तरह की लड़कियाँ होती हैं। एक गरीब दलित हिंदू या निम्न आय वर्ग की उच्च जाति की हिंदू लड़कियाँ और दूसरी महाराष्ट्र की ब्राह्मण लड़कियाँ या फिर उच्च जाति के संपन्न परिवार की लड़कियाँ। ये खुलासा सूरत की सामाजिक कार्यकर्ता कविता दुबे ने किया जो लंबे समय से इस विषय पर काम कर रही हैं। वह उत्तरप्रदेश के जौनपुर की रहने वाली हैं और अब सूरत को अपना घर कहती हैं। 

ग्रूमिंग जिहाद मामले में हमने पहले आपको सूरत के औद्योगिक इलाके सचिन की रहने वाली पूजा की कहानी बताई थी जो कम उम्र में इसका शिकार हो गई थी। मगर अब वह अपने माता-पिता के पास है।

एक कार्यकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर हमें बताया, “सोनी समुदाय की एक लड़की जो एमएससी में गोल्ड मेडलिस्ट थी, आगे की पढ़ाई नहीं कर पाई क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़के के प्रेम में पड़ गई थी जो पास के होटल में वेटर था। उस समय वह बस यही जानती थी कि उसका नाम समीर है। उसे ये नहीं मालूम था कि वो लड़का हिंदू नहीं है। वो उसके साथ मुंबई भागी और वहाँ शादी की। मगर दो साल बाद उसने वापस आने का मन बना लिया। लड़की ने अपनी माँ से संपर्क किया जो बाद में पुलिस, सरकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से उसे वापस लेकर आई।”

कार्यकर्ता ने कहा, “लड़की ने वापस आकर अपने साथ हुई बर्बरता की कहानी सुनाई। लड़की का डेढ़ साल शोषण हुआ। उसे समीर के अन्य दोस्तों के साथ सेक्स करने पर मजबूर किया गया और उसे जबरन इस्लाम कबूल करवाया गया। ये सारी प्रताड़ना समीर की असली पहचान उजागर होने के बाद शुरू हुई।”

लड़की ने खुलासा किया कि उसे मारा जाता था, बुर्का पहनाया जाता था, कुरान पढ़वाई जाती थी, शराब पीने को और दूसरे आदमियों से सेक्स करने को मजबूर किया जाता था, लेकिन वह इसके लिए नहीं मानती थी। कार्यकर्ता ने बताया, “वो लड़की लौट आई है, लेकिन कई लड़कियाँ हैं जो गायब भी हुई हैं।”

सालों से ऑपइंडिया आपके सामने कई केसों की रिपोर्ट करता रहा है, जहाँ अपनी मुस्लिम पहचान छिपाकर लड़कों ने हिंदू लड़कियों को प्रेमजाल में फँसाया और फिर उन्हें प्रताड़ित कर इस्लाम कबूल करवाया। साल 2020 के नवंबर में उत्तर प्रदेश प्रशासन ने ग्रूमिंग जिहाद की घटनाओं पर जाँच के लिए SIT गठित की थी। इस मामले में 14 में से 11 केसों में आपराधिकता पाई गई थी। सितंबर 2020 में हमने आपके सामने ग्रूमिंग जिहाद के 20 केसों को रिपोर्ट किया था जो उत्तरप्रदेश में सिर्फ 2 महीनों में हुए थे।

गुजरात में इसी मसले के बारे में बताते हुए कार्यकर्ता ने कहा, “एक अन्य कहानी जैन समुदाय की लड़की है। उसका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था और बहुत पढ़ा-लिखा था। जाहिर है कि ऐसे मामले में जल्दी धर्मांतरण नहीं होता। उसकी शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत हुई। लेकिन शादी के कुछ माह बाद ही उस पर इस्लाम कबूलने का दबाव बनाया जाने लगा। कई केसों में हमने देखा है कि लड़की को दरगाह और मौलवी के पास ले जाते हैं ताकि उन्हें कोई धागा बाँधा जाए और उन्हें कोई पानी पिलाया जाए। इसके बाद वह इस्लाम की ओर आकर्षित होने लगती हैं।”

कार्यकर्ता ने समझाया, “जब लड़की ने इस्लाम कबूला तो परिवार के हर सदस्य ने उससे नाता तोड़ लिया और बचाने तब गए जब उन्हें पता चलता है कि आदमी अगली बीवी ला रहा है। लड़की को उसके परिवार ने उसके तीन बच्चों के साथ बचाया। लेकिन धर्म परिवर्तन के बाद वह इस्लामिक पर्सनल लॉ द्वारा शासित है, इसलिए उसके पास बहुत कम कानूनी विकल्प हैं।”

कार्यकर्ता ने कहा कि अगर जोड़ा सौराष्ट्र क्षेत्र से है तो ज्यादातर मामलों में वह जूनागढ़ भागता है और अगर दक्षिण गुजरात से है तो वह मुंबई जाता है। मुंबई, नवपुर, मालेगँव चुनी हुई जगह हैं। वहाँ धर्मांतरण संबंधी कानून इतने सख्त नहीं है। इसलिए वह उसे सुरक्षित मानकर जाते हैं। कार्यकर्ता ने कहा, “आप विश्वास नहीं करेंगी। हमें एक मामला मिला जहाँ निकाहनामा दिल्ली में पंजीकृत हुआ था, लेकिन लड़की दिल्ली कभी नहीं गई थी।”

ग्रूमिंग जिहाद का तंत्र

कार्यकर्ता ने कहा कि शहर के बाहर स्थित कई मस्जिदों और दरगाह में मौलवी इस काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सूरत के नजदीक लिंबायत में एक दरगाह है। जहाँ अच्छे दिखने वाले लड़कों को ट्रेनिंग दी जाती हैं कि लड़कियों से कैसे फ्लर्ट करें और उन्हें कैसे फँसाएँ। ट्रेनिंग अन्य गैर सामाजिक कार्यों की भी होती हैं। लड़कों की अमीर लाइफस्टाइल दिखाने के लिए फंड दिया जाता है। आखिर कैसे इस बात को साबित किया जा सकता है कि 10X10 खोली में रहने वाला बुलेट चलाता है, जबकि उसकी आमदनी तो सिर्फ 2 से 5 हजार की है।

कार्यकर्ता बताते हैं कि शहरों के बाहरी हिस्से में स्थित दरगाह और मदरसे ऐसी गतिविधियों के केंद्र हैं। बता दें कि मदरसे इस्लामी शिक्षा के लिए बनाए गए शिक्षण संस्थान हैं, जबकि दरगाह सूफी-संतों के मकबरे हैं जहाँ की यात्रा को जियारत कहा जाता है। कुछ मुसलमान इन्हें पाक द्वार मानते हैं और मृत सूफी संतों से दुआ माँगने के लिए यहाँ आते हैं। हैरानी इस बात की है कि जो समुदाय बुत पूजन को सबसे बड़ा गुनाह मानता है वो मकबरों को पाक स्थल समझता है।

भरूच में कुछ नर्सिंग कॉलेज और अस्पताल हैं जो कुछ ट्रस्ट द्वारा चलाए जाते हैं ताकि आदिवासी महिलाओं को इस्लाम में परिवर्तित किया जा सके। ऑपइंडिया से बात करते हुए भरूच की कार्यकर्ता ने बताया कि कई आदिवासी महिलाएँ हैं जिन्हें नर्स बनने की ट्रेनिंग दी गई और फिर उन्हें वहीं नौकरी दे दी गई जिसके ट्रस्टी मुसलमान हैं। यहाँ ज्यादातर डॉक्टर अहल-अल-हदीस से जुड़े हैं जिसके अनुयायी ‘परंपरावादी’ के रूप में जाने जाते हैं और कुरान व प्रमाणिक हदीस को ही कानून मानते हैं।

इस कॉलेज का ज्यादातर स्टाफ जबरन धर्मांतरण का पीड़ित है। कार्यकर्ता कहते हैं, “उन्हें जॉब का, खाने का, बेहतर भविष्य का लालच दिया गया। आप जानते हैं कि भरूच के रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर एक दरगाह है। ये सब अतिक्रमण है। लेकिन कोई कुछ नहीं कर सकता।” कथित तौर पर भरूच की यह दरगाह रेलवे स्टेशन पर लंबे समय से है। मेरी दादी का जन्म और पालन भरूच में ही हुआ था। बचपन में मैं वहाँ कई बार गई, लेकिन मैंने इसे कभी नोटिस नहीं किया।

भरूच रेलवे स्टेशन की दरगाह

अन्य दरगाह जहाँ अक्सर हिंदू जाते हैं, वो किम, परयेज और पालेज में है। भरूच और सूरत में लगभग 7-8 दरगाह ऐसी गतिविधियों में शामिल हैं। भरूच में एक गाँव टंकरिया है, जहाँ की आबादी 12-13 हजार है। इसमें 4 हजार हिंदू हैं, लेकिन वहाँ कोई मंदिर नहीं है। जब हिंदुओं के पास उनकी आस्था के लिए कोई ठिकाना ही नहीं होगा तो वो धीरे-धीरे मिट जाएँगे।

हंसोट में एक दरगाह है जहाँ 95 फीसद लोग जो जाते हैं वो हिंदू हैं । 20 साल से इन मुद्दों पर काम करने वाले कार्यकर्ता ने बताया, “उनके (हिंदुओं के) लिए यही आस्था का ठिकाना है। हिंदुओं ने इन मौलवी को अपना गुरु मानना शुरू कर दिया है। जबकि जब इन दरगाहों पर जाने वाले हिंदू खुद को हिंदू मानते हैं, वहीं उनकी आस्था कमजोर होती है। इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि वे जबरन धर्म परिवर्तन के शिकार हैं, उसका कारण वास्तव में आस्था का कमजोर पड़ना है।”

ट्रेनिंग

कार्यकर्ता ने कहा, “मैंने इनके एक ट्रेनिंग सत्र को अटेंड किया है। उन्हें बताया जाता है कि किन हिंदुओं को निशाना बनाया जाए। उन्हें बाइक, पेट्रोल और उन लड़कियों के लिए पैसे मिलते हैं जो उनका सॉफ्ट टारगेट होती हैं। वे लड़कियों से फ्लर्ट करते हैं, उन्हें कॉलेज तक लिफ्ट देने को कहते हैं और उनसे नजदीकियाँ बढ़ाते हैं। कूड़े बीनने वाले लड़के उन लड़कियों से जुड़ी जानकारी लड़कों को देते हैं।”

कार्यकर्ता के अनुसार, “जिम, डांस क्लास और सैलून भी ऐसी जगह हैं जहाँ ये लड़के उन लड़कियों को निशाना बनाते हैं जो संपन्न परिवारों से हैं और कुछ की तो शादी भी हो रखी होती है। वह उन्हें तवज्जो देते हैं। कई बार मुस्लिम लड़कियाँ भी उनका साथ देती हैं। वह लड़की से दोस्ती करती हैं और फिर मुस्लिम लड़कों को उनका नंबर देती हैं। दोस्ती-दोस्ती में हिंदू लड़कियाँ उनके साथ दरगाह भी चली जाती हैं। ”

वह कहते हैं, “कुछ दरगाह में उन्हें धागा पहनाया जाता है या कुछ ताबीज जैसा। उन्हें दरगाह का पानी पिलाया जाता है। ये एक तरह का वशीकरण होता है जिसके बाद वे दरगाह जाती रहती हैं और धीरे-धीरे हिंदू धर्म में आस्था खत्म होती है और वो इस्लाम की ओर खिंचने लगती हैं।” कार्यकर्ता का कहना है कि एमटीबी कॉलेज और नवयुग कॉलेग की लड़कियाँ इनका प्राइमरी टारगेट होती हैं, जिन्हें ये लड़के बाहर खड़े होकर फँसाते हैं।

कई बार हिंदू दलित लड़कियाँ और कम आय वर्ग की लड़कियाँ निशाना होती हैं। सूरत के अन्य कार्यकर्ता कहते हैं, “यह हमारे समय का एक दुर्भाग्यपूर्ण सच है। ये लड़कियाँ बेहद गरीब तबके से आती हैं। उनके पिता, भाई आमतौर पर शराब के आदी हैं और उन्होंने बचपन से ही घरेलू शोषण देखा है। फिर यह लड़का आता है जो उसे उपहार देता है, उन्हें बताता है कि वह तो बिलकुल नहीं पीता, क्योंकि शराब उनके धर्म में हराम है और अपनी सहानुभूति दिखाता है। लड़की फिर उसकी ओर आकर्षित होने लगती है और अंततः वे भाग जाते हैं, शादी कर लेते हैं। वह इस्लाम में परिवर्तित हो जाती है। इनमें से ज्यादातर मामलों में, लड़कियों को यह विश्वास दिलाया जाता है कि लड़का उसके पिता, भाई के विपरीत उसकी देखभाल करने के लिए आर्थिक रूप से काफी मजबूत है। बाद में जब उन्हें सच्चाई का पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।”

भरूच के एक कार्यकर्ता ने ऑपइंडिया से बात करते हुए बताया कि ये लोग पुराने समय से सवर्ण और दलित के बीच के अंतर का फायदा उठाते आ रहे हैं। ये उनके निशाने हैं। ऐसे में मामलों में कोई खुलकर बोलने भी नहीं आता। 

कानून से बच जाते हैं ऐसे लोग- कारण है कमियाँ और समर्थन

धर्मांतरण में शामिल वकील पहले से दस्तावेजों, हलफनामों को तैयार रखते हैं। कार्यकर्ता के अनुसार, “ऐसे लोगों को फंडिंग होती है। आर्थिक समर्थन होता है। उन्हें हाई प्रोफाइल वकील डिफेंड करते हैं। अथावा लाइन्स पर एक ज्वेलरी स्टोर का मालिक ऐसे लोगों की बहुत मदद करता है।”

दिलचस्प बात ये है कि इन गतिविधियों में शामिल कई लड़के अलग राज्य के होते हैं। उनके पास प्रमाण के नाम पर सिर्फ रेंट एग्रीमेंट होता है, जिसमें यह फर्जी नाम इस्तेमाल करते हैं। इसलिए जब मामलों को आगे बढ़ाया जाता है तो वो जल्द ही निपट जाते हैं। कार्यकर्ता कहते हैं, “हम प्रेम और विवाह के ख़िलाफ़ नहीं है। बल्कि मंशा के खिलाफ़ हैं जिसके साथ वो ये करते हैं। विशेष विवाह अधिनियम, जो दोनों पक्षों के हितों की रक्षा करने वाला माना जाता है, का दुरुपयोग किया जा रहा है। इसमें संशोधन किया जाना चाहिए और प्रावधान किया जाना चाहिए कि पंजीकरण के समय दोनों पक्षों के कम से कम एक रक्त संबंधी रिश्तेदार मौजूद होना चाहिए।”

हकीकत में कई बार धर्मांतरण का खेल दरगाह के बाहरी परिसर में होता है। कार्यकर्ता कहते हैं कि इस तरह दावा किया जाता है कि दरगाह में धर्मांतरण नहीं होता। लेकिन सिर्फ इसलिए कि वो धर्मांतरण के लिए बाहर आ जाते हैं, इससे उन्हें क्लीनचिट नहीं मिलती। दरगाह, आपराधिक गतिविधियों और खासकर धर्मांतरण के केंद्र बन गए हैं।

1992 में अजमेर में हिंदू लड़कियों का यौन शोषण

साल 1992 में राजस्थान के अजमेर से सुनने में आया था कि वहाँ सैंकड़ों हिंदू लड़कियों का शोषण हुआ। कई लड़कियाँ स्कूल में थी। स्थानीय अखबार ‘नवज्योति’ ने कुछ तस्वीरें और कहानी छापी थी जिसमें बताया गया था कि कैसे स्कूल की लड़कियों को स्थानीय गिरोह के लोग ब्लैकमेल करते हैं। बाद में पता चला कि समूह युवा लड़कियों को निशाना बना रहा था। जहाँ वे एक लड़की को फँसाते थे और फिर उसकी अश्लील तस्वीरें लेते थे, फिर लड़की को ब्लैकमेल करते थे कि वो अपनी क्लासमेट्स से उन्हें मिलवाए ताकि अन्य लड़कियों का रेप हो, उन्हें प्रताड़ित किया जाए और उनकी तस्वीरें ली जाए। ये क्रम चलता रहता था। गैंग अपना दायरा बढ़ा रहा था और शहर में पीड़िताओं की संख्या बढ़ रही थी।

मामला सार्वजनिक होने के बाद पता चला कि अधिकारियों को इस संबंध में एक साल पहले से पता था, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। अखबार के एडिटर दीनबंधु चौधरी ने कहा था कि उन्हें ये स्टोरी चलाने में संदेह था, क्योंकि एक आरोपित खादिमों के परिवार से था। खादिम अजमेर दरगाह के केयरटेकर्स का परिवार है, जो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के पहले अनुयायियों के प्रत्यक्ष वंशज होने का दावा करते हैं और स्थानीय समुदाय के बीच प्रभाव रखते हैं। इसी कारण से पुलिस ने भी इस मामले को रोका था, क्योकि स्थानीय राजनेताओं ने चेतावनी दी थी कि आरोपितों के ख़िलाफ़ कार्रवाई से बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक तनाव होगा।  

हालाँकि, अंत में, एक प्राथमिकी दर्ज की गई और जाँच में 18 लोगों को आरोपित बनाया गया। अधिकांश आरोपित मुस्लिम थे, कई खादिमों के परिवारों से थे। वहीं पीड़ितों में अधिकांश हिंदू लड़कियाँ थीं। मुख्य आरोपितों में से एक फारूक चिश्ती था, जो युवा कॉन्ग्रेस नेता भी था, उसको मानसिक रूप से अस्थिर घोषित कर दिया गया था। फारूक चिश्ती अजमेर युवा कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष था, जबकि दो अन्य आरोपित नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती शहर में कॉन्ग्रेस इकाई के उपाध्यक्ष और संयुक्त सचिव थे। इस मामले में एक दुर्भाग्यपूर्ण बात ये थी कि बहुत से पीड़ितों ने कमजोर वर्ग से होने की वजह से पहले ही आत्महत्या कर ली थी।

बता दें कि अजमेर शहर को अक्सर सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। अजमेर शरीफ दरगाह भारत की प्रमुख दरगाहों में से एक है। यह सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा है। इस दरगाह पर हिंदू और मुसलमान दोनों आते हैं। यहाँ तक ​​कि अमिताभ बच्चन, प्रियंका चोपड़ा, शशि थरूर और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जैसे अभिनेता और राजनेता भी दरगाह पर आ चुके हैं। उक्त बलात्कार और ब्लैकमेल मामले में कई आरोपित इसी अजमेर शरीफ दरगाह के कार्यवाहकों (केयरटेकर्स) के परिवारों के थे।

जारी है…

(नोट: निजता और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए कुछ व्यक्तियों और जगह के नाम रिपोर्ट में बदले गए हैं। यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में निरवा मेहता ने लिखी है, जिसका हिंदी अनुवाद जयंती मिश्रा ने किया है। मूल लेख आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।)

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Nirwa Mehta
Nirwa Mehtahttps://medium.com/@nirwamehta
Politically incorrect. Author, Flawed But Fabulous.

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