Tuesday, December 31, 2024
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पाकिस्तानी फौज से बचने के लिए 10 दिन पैदल चले, 20 दिन कैम्प में गुजारी: 53 साल बाद मोदी सरकार ने 10 बांग्लादेशी हिन्दू पर से मिटाया ‘घुसपैठिया’ का दाग, CAA के तहत मिली नागरिकता

1971 के दौरान जब पाकिस्तान की फ़ौज ने हिन्दू और बंगालियों पर अत्याचार चालू किया तो निरंजन मंडल को सब कुछ छोड़ कर भागना पड़ा। वह अपनी माँ के साथ 21 वर्ष की उम्र में यहाँ से भागे। वह अपने बाकी भाइयों को तक नहीं बता पाए कि उन्हें भारत आना पड़ा है।

उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में एक हिन्दू शख्स को पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आने के 53 साल बाद भारतीय पहचान हासिल हुई है। वह 1971 में पाक फ़ौज के अत्याचार के चलते अपनी माँ के साथ किसी तरह बच कर भारत भाग आए थे। उन्हें 1971 से लेकर 2024 तक का जीवन शरणार्थी के तौर पर गुजारना पड़ा। इस बीच उन्होंने कई बार नागरिकता के लिए प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हुए। अब मोदी सरकार द्वारा लाए गए CAA कानून के चलते उन्हें भारत का नागरिक मान लिया गया है।

53 साल कहलाए ‘घुसपैठिया’

अमृत विचार की एक रिपोर्ट के अनुसार, पीलीभीत जिले के न्यूरिया हुसैनपुर गाँव में रहने वाले निरंजन मंडल को अब भारतीय नागरिकता मिल पाई है। वह 74 वर्ष के हैं। निरंजन मंडल 1971 तक बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) के फरीदपुर मंडल में रहते थे। लेकिन 1971 के दौरान जब पाकिस्तान की फ़ौज ने हिन्दू और बंगालियों पर अत्याचार चालू किया तो उन्हें सब कुछ छोड़ कर भागना पड़ा। वह अपनी माँ के साथ 21 वर्ष की उम्र में यहाँ से भागे। वह अपने बाकी भाइयों को तक नहीं बता पाए कि उन्हें भारत भागना पड़ा है।

निरंजन मंडल ने बताया कि पाक फ़ौज के अत्याचार के चलते वह अपनी माँ के साथ 10 दिनों तक किसी तरह छिपते-छिपते भारतीय सीमा तक पहुँचे। यहाँ से वह कोलकाता में बनाए गए शरणार्थी कैम्प में 20 दिन तक कठिन हालात में रहे। यहाँ से वह नेपाल के रास्ते कैसे भी करके पीलीभीत पहुँचे। इसके बाद वह न्यूरिया हुसैनपुर में बस गए। पीलीभीत में बड़ी संख्या में बंगाली समुदाय रहता है। हालाँकि, भारत आने के बाद उनका जीवन कम कठिन नहीं रहा। भाषाई दिक्कत और रोजगार की समस्या उन्हें झेलनी पड़ी।

वह भारत में आकर यहाँ शरणार्थी की तरह रहने लगे। उन्हें भारतीय नागरिकता नहीं हासिल हो सकी। कानूनी अडचनों के चलते वह 53 वर्षों तक ‘घुसपैठिया’ कहलाए जाते रहे। हालाँकि, जब 2024 में CAA कानून लागू हो गया तब उन्होंने फिर से नागरिकता के लिए आवेदन किया। इसके बाद उन्हें दिसम्बर, 2024 में जाकर नागरिकता मिल पाई। इस बीच उन्होंने अपना जीवनयापन करने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाई। अब उनका पूरा परिवार भारत में ही है।

परिवार का पता तक नहीं लगा

निरंजन मंडल को कई सालों तक यह नहीं पता रहा कि बांग्लादेश में पीछे छूट गए परिवार के बाकी लोग कैसे हैं। उन्हें तीन दशक बाद बाद यह खबर मिली कि उनके भाई सुरक्षित बच गए हैं और बांग्लादेश में ही रह रहे हैं। हालाँकि, वह इन 53 वर्षों में दोबारा अपने भाइयों से दोबारा मिल नहीं सके। निरंजन मंडल की तीन बेटियों की शादी हो चुकी है। उनका एक बेटा भी है। यहाँ उनका परिवार अब प्रसन्नता से रह रहा है। उनका कहना है कि 53 वर्ष तक घुसपैठिया होने का जो दंश झेला, अब वह झेलना पड़ेगा। उन्हें CAA पोर्टल से नागरिकता की जानकारी मिली है।

न्यूरिया हुसैनपुर में ही एक और व्यक्ति गोपाल को भी भारतीय नागरिकता मिली है। गोपाल के पिता बांग्लादेश से भारत आए थे। गोपाल का जन्म भारत में हुआ था। भारत में नागरिकता जन्म के आधार पर नहीं मिलती, इसके चलते वह अभी तक बिना पहचाना के थे। हालाँकि, CAA के चलते उन्हें भी नागरिकता मिल पाई है। वह 24 वर्ष के हैं। इस इलाके की बड़ी जनसंख्या बंगाली है। इनमें से तमाम बांग्लादेश से भाग कर आए हैं। कई लोग आज भी बिना किसी वैध नागरिकता के जूझ रहे हैं।

पीलीभीत से 7500+ आवेदन

पीलीभीत जिले से CAA लागू होने के बाद 7990 आवेदन नागरिकता के लिए किए गए हैं। इनमें से 9 को नागरिकता मिल भी गई है। हजारों आवेदन कागज पूरे ना होने या फिर सत्यापन में समस्या आने के चलते रद्द भी कर दिए गए हैं। अधिकारियों ने बताया कि पीलीभीत से आवेदन कि बड़ी संख्या के पीछे की वजह इसकी खुली सीमा का नेपाल के साथ लगा होना है। यहाँ से बड़ी संख्या में शरणार्थी अलग-अलग समय पर आई हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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