हमने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली संस्था CARA के CEO रहे दीपक कुमार के बारे में कुछ अहम खुलासे किए थे। अब इसमें एक वैज्ञानिक एसके डे विश्वास को प्रताड़ित किए जाने का मामला सामने आया है, जिन्होंने तत्कालीन मंत्री मेनका गाँधी तक को पत्र लिख कर गुहार लगाई थी। जून 4, 2018 को लिखे गए पत्र में उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई थी। दीपक कुमार और CARA को लेकर उनकी पीड़ा के बारे में हम आपको इस लेख में बताएँगे।
वैज्ञानिक विश्वास ने CARA CEO दीपक के खिलाफ मेनका गाँधी को लिखा था पत्र
वैज्ञानिक एसके डे विश्वास ने बताया था कि संस्था में उनके पीठ पीछे अपमानजनक बातें कही जाती हैं। उन्होंने बताया था कि उनके वेतन में जानबूझ कर देरी की जाती है और बिना किसी कारण के वेतन में से रकम काट ली जाती है। साथ ही उन्होंने ये भी आरोप लगाया था कि सीसीटीवी कैमरों में से एक को उन पर ही केंद्रित रखा जाता है, ताकि उनकी सारी गतिविधियाँ रिकॉर्ड की जा सके। उन्होंने लिखा था:
“ऑफसेट में मैं वरिष्ठ सलाहकार के पद के लिए मुझे चुनने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। CARA और मुझे इंटर कंट्री डिवीजन में रखते हुए, मैं 6 अक्टूबर, 2017 को शामिल हुआ। मैं ICMR में एक वरिष्ठ पद पर एक वैज्ञानिक के रूप में सेवानिवृत्त हुआ। मैंने 40 से अधिक वर्षों तक मेहनत कर के देशसेवा की। मेरा वर्षों का एक सफल करियर रहा, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मान्यता शामिल थी। मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूँ कि मेरे शामिल होने के एक महीने के बाद मैं लगातार सीईओ दीपक कुमार द्वारा परेशान किया जा रहा हूँ।”
अक्टूबर 2017 की स्थिति के बारे में बताते हुए उन्होंने जानकारी दी थी कि नए काउन्सलेट्स को CARA के 732 केसों का बैकलॉग दे दिया गया है, जिनमें ‘स्पेशल नीड्स चिल्ड्रन’ का कोई जिर्क नहीं था। उन्होंने साथ ही जानकारी दी थी कि ये सूची अपूर्ण है और कई डुप्लिकेट्स होने के कारण इनकी वैधता पर शक है। उस समय तक कुल 100 NOC पेंडिंग थे। साथ ही सिस्टम में रिकार्ड्स रखे जाने की व्यवस्था काफी खराब थी।
उन्होंने इसके बाद पत्र में अप्रैल 2018 की स्थिति का जिक्र किया है। उस समय तक अधिकतर बैकलॉग क्लियर किए जा चुके थे और मात्र 20 ही बचे हुए थे। इन मामलों का फॉलो-अप भी किया जा रहा था और 715 केसों को क्लियर किया जा चुका था। साथ ही इस अवधि में 540 मामलों में NOC दी गई थी। इन सबकी एंट्री ICMR के वैज्ञानिक रहे विश्वास ने ही की थी। इसके बाद उन्होंने अपनी शिकायतों की सूची तैयार की थी।
उन्होंने शिकायत की थी कि 8 महीने में 970 मामलों का निपटारा किए जाने के बावजूद सारे काउन्सलेट्स को बार-बार कहा जाता है कि वो काम नहीं करते हैं पर ये कोई नहीं समझना चाहता है कि अगर ऐसा है तो इतने मामले कैसे निपटा दिए गए। उन्होंने बताया था कि ‘इंटर कंट्री डिवीजन’ में इतना काम होने के बावजूद माहौल को हतोत्साहपूर्ण बना कर रखा गया है, जहाँ मिसमैनेजमेंट का बोलबाला है।
निचले अधिकारियों के साथ असभ्यता से पेश आता था CARA CEO दीपक: वैज्ञानिक विश्वास
साथ ही CEO दीपक कुमार पर काउन्सलेट्स के साथ अभद्र व्यवहार करने, गाली-गलौज करने और किसी भी छोटी-बड़ी गलती के लिए उन्हें ही कटघरे में खड़ा करने का आरोप लगाया गया था। बकौल वैज्ञानिक विश्वास, उन्हें संस्था से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए उनके साथ साजिश की गई। सैलरी नहीं दी गई और महीनों बाद मिली भी तो काट-छाँट कर। साथ ही उन पर आरोप लगाने के लिए कई मामले प्लांट किए गए।
उन्होंने बताया था कि CARA के ‘इंटर कंट्री डिवीजन’ को कई प्रतिभाशाली युवा इन्हीं कारणों से छोड़ कर जा चुके हैं। उन्होंने जानकारी दी थी कि जो भी नए काउन्सलेट्स आते थे, वो CEO दीपक कुमार के व्यवहार के कारण छोड़ने की तैयारी में रहते थे या छोड़ देते थे। उन्हें भी चिट्ठी थमा दी गई कि जून 2018 के बाद संस्था को उनकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने इसके लिए CEO दीपक कुमार को जिम्मेदार ठहराया था।
दरअसल, दीपक कुमार बैठकों में कहते थे कि मैंने इतने सीनियर काउन्सलेट्स को निकाल बाहर किया है क्योंकि वो ठीक से काम नहीं कर रहे थे और साथ ही दीपक बाकियों को भी निकाल बाहर करने की धमकी दिया करते थे। वैज्ञानिक ने पूछा था कि क्या बैठकों में इस तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए? उन्होंने पूछा कि जब 8 महीने में इतने केसेज क्लियर हो गए, तो काम कैसे नहीं हो रहा था और उससे पहले के बैकलॉग के लिए कौन जिम्मेदार है?
उन्होंने मेनका गाँधी को भेजे पत्र में कहा था कि ये परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि ऊपर के स्तर पर बदलाव किया जाए लेकिन निचले स्तर के कर्मचारियों को दोष दिया जाता है। उन्होंने मंत्रालय से अपील की थी कि एक स्वतंत्र कमिटी बना कर (जसिमें CARA के CEO दीपक कुमार न हों) बना कर मामले की जाँच की जाए और काउन्सलेट्स के परफॉर्मेंस की समीक्षा की जाए। उन्होंने दीपक कुमार को अयोग्य करार दिया था।
CARA के अयोग्य और अक्षम CEO दीपक को एडॉप्शन का अनुभव नहीं: वैज्ञानिक विश्वास
साथ ही वैज्ञानिक एसके डे विश्वास ने साफ़ कर दिया था कि जून 2018 के बाद उनका संस्था में बने रहने की कोई इच्छा नहीं है और एक अयोग्य जूनियर के अंतर्गत काम करने के इच्छुक नहीं हैं। उनका सबसे बड़ा आरोप था कि दीपक कुमार के पास एडॉप्शन या उसकी प्रक्रिया का कोई अनुभव नहीं है जबकि वो इसी से सम्बंधित संस्था के CEO बन कर बैठे हैं। उन्होंने पूछा था कि एडॉप्शन से सम्बंधित ज्ञान न होने के बावजूद इस तरह के व्यवहार के पीछे क्या मंत्रालय के अधिकारियों का समर्थन है?
बकौल वैज्ञानिक विश्वास, CEO दीपक कुमार के पास प्रबंधन के लिए क्षमता का भी पूर्ण अभाव था। उनका ध्यान बस इसी बात पे केंद्रित रहता था कि अपने निचले स्तर के अधिकारियों को सीसीटीवी कैमरे में बैठ कर देखते रहें और उन्हें बिना मतलब का प्रताड़ित करें। इसीलिए, उनकी माँग थी कि स्वतंत्र कमिटी द्वारा CARA सीईओ दीपक कुमार के कार्यों और परफॉरमेंस की भी समीक्षा की जाए।
भारतीयों को कारा से बच्चा गोद लेने के लिए तीन से सात साल तक प्रतीक्षा सूची में रहना पड़ता है लेकिन विदेशी ईसाई परिवारों को बहुत कम समय में बच्चा मिल जाता है। ईसाई मिशनरियों के प्रभाव का आलम यह है कि कारा के सीईओ दीपक कुमार ने कोरोना संकट और लॉकडाउन के समय भी बच्चों को विदेश भेजा। अप्रैल माह में भी विशेष विमान से ये बच्चे इटली, अमेरिका, माल्टा और जॉर्डन भेजे गए।
उनके दो भतीजे हैं अमन और शिशिर। इन दोनों को पहले तीन महीने तक एमटीएस के पद पर 10 हजार रुपए के मासिक वेतन के साथ रखा गया, उसके बाद यंग प्रोफेशनल्स के पद पर बिठा कर वेतन तीन गुना बढ़ा दिया गया। 9 महीने बाद तो इन दोनों को सलाहकार का पद थमा दिया गया और 60 हज़ार रुपए प्रतिमाह दिए जाने लगे। इस तरह की उन्होंने एक-दो नहीं बल्कि कई नियुक्तियाँ की हैं।