Thursday, April 25, 2024
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सिर्फ हिजाब ही क्यों? हिन्दू लड़कियों के चूड़ी पहनने पर भी उठा सवाल: कर्नाटक बुर्का विवाद पर आज भी नहीं हुआ फैसला, कल फिर होगी सुनवाई

मुस्लिम लड़कियों के साथ भेदभाव विशुद्ध रूप से धर्म पर आधारित है। सरकार अकेले हिजाब क्यों चुन रही है… चूड़ी पहने हिंदू लड़कियों और क्रॉस पहनने वाली ईसाई लड़कियों को बाहर नहीं भेजा जाता है।

कर्नाटक हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Row) पर हाई कोर्ट ने आज 16 फरवरी 2022 को चौथे दिन फिर से सुनवाई की, हालाँकि आज भी फैसला नहीं आया और अब कल गुरुवार को फिर से सुनवाई होगी। मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ आज दोपहर 2:30 बजे से मामले की सुनवाई कर रही थी।

एडवोकेट कुमार ने बेंच के सामने कई दलीलें दी जिनमें से एक में यह भी था कि सरकार अकेले हिजाब का मुद्दा क्यों क्यों उठा रही है? हिन्दू लड़कियाँ चूड़ी पहनती हैं, क्या वे धार्मिक प्रतीक नहीं हैं। उन्हें बाहर क्यों नहीं निकाला जाता।

फ़िलहाल, बुधवार को भी कर्नाटक हाईकोर्ट में इस मामले पर कोई फैसला नहीं आ सका। सीनियर एडवोकेट आदिश अग्रवाल ने इंटरवेंशन एप्लिकेशन के बारे में बताया, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि केस में किसी भी इंटरवेंशन की सुनवाई तब तक नहीं होगी जब तक कि जरूरी न हो। मामले की सुनवाई गुरुवार 17 फरवरी दोपहर को भी होगी।

उडुपी के एक सरकारी कॉलेज से शुरू हुए हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट में चौथे दिन सुनवाई चल रही है। मुस्लिम छात्राओं के वकील आर्टिकल 25 का हवाला देते हुए इसे जरूरी इस्लामिक प्रथा बता रहे हैं। वहीं हाई कोर्ट में सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत (Devdutt Kamat) ने राज्य सरकार के नोटिफिकेशन को अवैध ठहराते हुए कहा है कि कर्नाटक एजुकेशन एक्ट में इस संबंध में प्रावधान नहीं है।

बता दें कि चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित और और जस्टिस जेएम खाजी की फुल बेंच के पास ये मामला है। सुनवाई शुरू होते ही वकील सुभाष झा ने कहा कि यह लगातार चौथा दिन है जब मामले की सुनवाई हो रही है। कोई भी वकील घंटों दलील देने में सक्षम है लेकिन जितनी जल्दी संभव हो उतनी जल्दी मामले पर फैसला होना चाहिए।

आज की सुनवाई की खास बातें

चीफ जस्टिस : याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कर रहे हैं। हस्तक्षेपों पर विचार करने का सवाल कहाँ है? इन आवेदनों से कोर्ट का समय बर्बाद होगा।

एडवोकेट जनरल: सबरीमाला के मामले में, न्यायमूर्ति इंदुआ मल्होत्रा ने कहा था कि धार्मिक मामलों में जनहित याचिका में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

वरिष्ठ वकील रवि वर्मा कुमार: कर्नाटक एजुकेशन रूल का नियम 11 कहता है कि शैक्षणिक संस्थान को माता-पिता को वर्दी बदलने के लिए एक साल का अग्रिम नोटिस देना चाहिए। 1995 के नियमों में किए गए ये प्रावधान सामान्य हैं। पीयू कॉलेज एक अलग नियम के तहत आते हैं। इस तथ्य पर ध्यान देना बहुत जरूरी है कि कॉलेज विकास परिषद (CDC) एक प्राधिकरण नहीं है जो नियमों के तहत स्थापित या मान्यता प्राप्त है। सरकारी आदेश में घोषित किया गया है कि पीयू कॉलेजों के लिए कोई तय यूनिफॉर्म नहीं है।

इस तथ्य पर ध्यान देना बहुत जरूरी है कि कॉलेज विकास परिषद (CDC) एक प्राधिकरण नहीं है जो नियमों के तहत स्थापित या मान्यता प्राप्त है। सरकारी आदेश में घोषित किया गया है कि पीयू कॉलेजों के लिए कोई तय यूनिफॉर्म नहीं है। न तो एजुकेशन ऐक्ट के प्रावधान और न ही नियम कोई ड्रेस निर्धारित करते हैं। न तो कानून के तहत और न ही नियमों के तहत हिजाब पहनने पर प्रतिबंध है।

चीफ जस्टिस: क्या शैक्षणिक मानकों को बनाए रखने के लिए ड्रेस निर्धारित नहीं की जा सकती है?

वरिष्ठ वकील रविवर्मा कुमार: बहुत सम्मान के साथ मैं कहना चाहता हूँ कि शैक्षणिक मानकों का ड्रेस से कोई संबंध नहीं है। अकादमिक मानक छात्र-शिक्षक, पाठ्यक्रम आदि से संबंधित हैं। सीडीसी के पास छात्रों के खिलाफ पुलिस जैसे अधिकार नहीं हो सकते हैं।

जस्टिस कृष्ण दीक्षित: यह सही सवाल नहीं हो सकता है। यदि उस दृष्टिकोण को लिया जाता है, तो कोई कह सकता है कि कक्षा में हथियार ले जाने के लिए किसी लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है क्योंकि कोई निषेध नहीं है। मैं तार्किक रूप से विश्लेषण कर रहा हूँ कि आपका प्रस्ताव हमें किस ओर ले जा सकता है। यदि यह निर्धारित नहीं है तो कृपाण ले जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। हालाँकि, नियम 9 के तहत निर्धारित करने की शक्ति है। इस पर स्वतंत्र रूप से तर्क देने की जरूरत है।

वरिष्ठ अधिवक्ता रविवर्मा: एक विधायक (जो समिति का अध्यक्ष भी है) एक राजनीतिक दल और विचारधारा का प्रतिनिधित्व भी करता है। क्या आप छात्रों के कल्याण को किसी राजनीतिक दल या राजनीतिक विचारधारा को सौंप सकते हैं? इस तरह की समिति का गठन हमारे लोकतंत्र को मौत का झटका देता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रोफेसर रविवर्मा– शासनादेश में किसी अन्य धार्मिक चिन्ह पर विचार नहीं किया गया है। सिर्फ हिजाब ही क्यों? क्या यह उनके धर्म के कारण नहीं है? मुस्लिम लड़कियों के साथ भेदभाव विशुद्ध रूप से धर्म पर आधारित है। सरकार अकेले हिजाब क्यों चुन रही है… चूड़ी पहने हिंदू लड़कियों और क्रॉस पहनने वाली ईसाई लड़कियों को बाहर नहीं भेजा जाता है।

हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई से पहले हुबली के एक स्कूल में मुस्लिम छात्राओं द्वारा हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश का पालन नहीं किया गया। जिसके बाद हुबली के एसजेएमवी महिला कालेज में छुट्टी कर दी गई है। एएनआइ की रिपोर्ट के अनुसार, एसजेएमवी महिला कालेज के प्राचार्य लिंगराज अंगड़ी ने बताया कि, आज हमने हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश का पालन करने के लिए कुछ छात्रों से कहा था, लेकिन उन्होंने ड्रेस कोड का पालन नहीं किया और हिजाब पहनकर स्कूल में आने की बात कही। जिसके बाद हमने छुट्टी घोषित कर दी।

वरिष्ठ वकील यूसुफ मुच्छल भी मुंबई से जुड़े। मुच्छल ने कहा, मेरे साथी काउंसल ने जो तर्क दिया, उसका मैं समर्थन करता हूँ। श्री हेगड़े, श्री कामत और प्रोफेसर रविवर्मा कुमार। मैं दो-तीन बिंदुओं पर विस्तार से बताने के लिए इजाजात चाहता हूँ, जिन पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया है।

वरिष्ठ वकील यूसुफ मुच्छल: कर्नाटक सरकार का जीओ स्पष्ट रूप से मनमानी है। मैं शायरा बानो (ट्रिपल तालक केस) से तीन पैराग्राफ का उल्लेख करूँगा और दिखाऊंगा कि कैसे लड़कियों को हेडस्कार्फ पहनने से रोकने वाला यह जीओ स्पष्ट रूप से मनमाना है।

मुख्य न्यायाधीश: आप किस उद्देश्य से इस फैसले का हवाला देना चाहते हैं? मनमानापन दिखाने के लिए।

मुख्य न्यायाधीश: ठीक है।

वरिष्ठ वकील यूसुफ मुच्छल: अगर कोई लड़की चश्मा पहने हुए है, तो क्या इस पर जोर दिया जा सकता है कि वह यूनिफॉर्म का हिस्सा नहीं है? आप इसे इतनी सख्ती से नहीं ले सकते।

मुख्य न्यायाधीश: क्या यह यूनिफॉर्म का हिस्सा है?

वरिष्ठ वकील यूसुफ मुच्छल: यहाँ इस मामले में स्कूल में दाखिला लेने के बाद से ही बच्चियों ने सिर पर दुपट्टा ओढ़ रखा था।

वरिष्ठ वकील यूसुफ मुच्छल: वे सिर पर सिर्फ एक एप्रन लगा रहे हैं। जब हम यूनिफॉर्म कहते हैं, तो हम कड़ाई से ड्रेस कोड तक ही सीमित नहीं रह सकते। स्कूल में क्या प्रथा अपनाई गई थी, यह देखना होगा। इसे बिना सूचना के बदल दिया गया।

मुख्य न्यायाधीश: क्या कोई हेडगियर यूनिफॉर्म का हिस्सा था?

वरिष्ठ वकील यूसुफ मुच्छल: निष्पक्षता यही है कि पहले नोटिस दिया जाए। निष्पक्षता को सुनने की आवश्यकता है। स्कूल में किसी तरह की परेशानी से बचने के लिए पीटीए कमेटी का गठन किया गया, उनसे सलाह नहीं ली गई। निष्पक्षता के लिए जरूरी है कि नोटिस दिया जाना चाहिए। पीटीए कमेटी से परामर्श क्यों नहीं लिया गया? ऐसी क्या जल्दी थी? जब से उन्होंने स्कूलों में प्रवेश लिया तब से पहनने की प्रथा थी। बदलने की क्या जल्दी थी? छात्र इसी जल्दबाजी का विरोध कर रहे हैं। वे किसी भी धार्मिक अधिकार का दावा नहीं कर रहे, मगर सिर्फ लड़कियों का विरोध हो रहा है। क्या यह निष्पक्षता है? दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए था और समाधान निकाला जाना चाहिए था। यह जाहिर तौर पर मनमानी का आधार है।

वरिष्ठ वकील यूसुफ मुच्छल: धर्म के अभिन्न अंग के बारे में सवाल तब उठता है जब अनुच्छेद 26 के तहत एक संप्रदाय की ओर से अधिकार का दावा किया जाता है, न कि तब जब कोई व्यक्ति अनुच्छेद 25 के तहत अंतरात्मा की स्वतंत्रता का दावा कर रहा हो। तथ्य यह है कि ऐसा अन्य छात्रों (दूसरे धर्म) के विरोध के कारण किया जा रहा है, यह शासनादेश में भी कहा गया है। इसलिए यह पूरी तरह पक्षपातपूर्ण है। यह पूरी तरह से अनुचित है। जब अनुच्छेद 25(1) और 19(1)(ए) के तहत अधिकार का दावा किया जाता है, तो व्यक्ति की ओर से एक ईमानदार फेथ का सम्मान रखना मायने रखता है। जब अधिकार को अंतःकरण के विषय के रूप में दावा किया जाता है, तो इस सवाल की गहराई में जाने की जरूरत ही नहीं है कि क्या यह धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं।

वहीं जब मुच्छल ने बहस के लिए और समय माँगा मगर बेंच ने इनकार कर दिया। मुच्छल से बाकी के आर्गुमेंट लिखित में देने के लिए कहा। मुच्छल ने अगले दिन जिरह के लिए 10 मिनट का समय माँगा। हाई कोर्ट में बुधवार की सुनवाई पूरी हुई। गुरुवार को दोपहर ढाई बजे आगे की सुनवाई जारी रहेगी।

गौरतलब है कि मंगलवार को सुनवाई के दौरान मुस्लिम याचिकाकर्ताओं के वकील ने दक्षिण अफ्रीका से लेकर तुर्की तक का हवाला देते हुए स्कूलों में बुर्का पर बैन हटाने की अपील की। कहा कि हमारा सेक्युलरिज्म सकारात्मक है, न कि इन देशों की तरह नकारात्मक।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि, हिजाब धार्मिक कट्टरता नहीं, बल्कि आस्था और सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है। इस दौरान उन्होंने विदेशी अदालतों के फैसलों का भी उल्लेख किया। मुख्य न्यायाधीश रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की 3 जजों की बेंच राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

बता दें कि मंगलवार को हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता देव दत्त कामत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील पेश की। हिजाब विवाद पर दक्षिण अफ्रीका की एक अदालत के फैसले का हवाला देते हुए कामत ने तर्क दिया, “यह मामला वर्दी के बारे में नहीं है, बल्कि मौजूदा वर्दी को छूट का है।”

वहीं याचिकाकर्ता रेशम की ओर से अधिवक्ता रविवर्मा कुमार ने भी कोर्ट में अपनी दलील शुरू की। हालाँकि, इस बीच कर्नाटक हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई कल दोपहर ढाई बजे तक के लिए स्थगित कर दी है। आज याचिकाकर्ता रेशम की ओर से अधिवक्ता रविवर्मा कुमार की दलील से सुनवाई शुरू की जाएगी।

देवदत्त कामत ने सुनवाई के दौरान कहा कि दक्षिण अफ्रीका के फैसले में यह भी कहा गया है कि अगर अन्य छात्र हैं जो अब तक अपने धर्मों या संस्कृतियों को व्यक्त करने से डरते थे और जिन्हें अब ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, तो यह जश्न मनाने की बात है, डरने की नहीं। कामत ने आगे कहा कि हमारा संविधान सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता का पालन करता है, न कि तुर्की धर्मनिरपेक्षता की तरह जो नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता है। हमारी धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करती है कि सभी के धार्मिक अधिकार सुरक्षित रहें।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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