कलकत्ता हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार को बंगाल में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा स्कीम 1अगस्त 2025 से लागू करने का आदेश दिया है। मार्च 2022 को पश्चिम बंगाल में इस योजना को रोक दिया गया था।
कोर्ट ने कहा है कि केन्द्र सरकार इसको लेकर कोई शर्त लगा सकती है ताकि पहले हुई अनियमितताएँ दोबारा न हों। उस वक्त केन्द्र सरकार ने राज्य को दिये जाने वाले आवंटन राशि को रद्द कर दिया था। ये फैसला 63 कार्यस्थलों के निरीक्षण के आधार पर किया था। इस दौरान 31 कार्यस्थलों पर गड़बड़ी पाई गई थी।
संसद के बजट सत्र के दौरान 25 मार्च 2025 केन्द्रीय मंत्री चंद्रशेखर पेम्मासानी ने मनरेगा को लेकर जानकारी के दौरान भी कहा था कि बंगाल में धन का दुरुपयोग हुआ और ऐसे मामले सामने आए जब काम के बंटवारे और ठेकों को लेकर गड़बड़ियाँ पाई गई। मंत्री के मुताबिक “हमने एक ऑडिट टीम भेजी। उन्होंने 44 ऐसे काम पाए जिनमें अनियमितताएं थीं। उन्होंने 34 मामलों में पूरी वसूली की। अभी भी 10 अन्य काम पूरे किए जाने बाकी हैं। वित्तीय गड़बड़ी 5.37 करोड़ रुपये की थी। इसमें से उन्होंने 2.39 करोड़ रुपये वसूल किए हैं। कुछ चीजों पर अभी भी ध्यान देने की जरूरत है।”
साल 2021-22 में मनरेगा के तहत राज्य को ₹7507.80 करोड़ दिए गए थे। इसके बाद तीन साल तक राज्य को धनराशि नहीं दिए गए। इस पर कोर्ट का कहना है कि मनरेगा योजना को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने केन्द्र से पूछा कि पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों, जैसे मालदा, दार्जिलिंग, पूर्वी बर्धमान, हुगली को छोड़कर इस योजना को फिर से क्यों नहीं शुरू किया गया?
चीफ जस्टिस टीएस शिवगनम और जस्टिस चैताली चटर्जी की खंडपीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। खंडपीठ ने कहा ” ये सभी आरोप 2022 से पहले के हैं, आप जो चाहें करें, लेकिन योजना को लागू करें “
कोर्ट ने कहा कि इस धनराशि को समेकित निधि में जमा करना होगा। साथ ही इस धनराशि का पहले जिसने दुरुपयोग किया, उससे कानूनी तरीके से निपटा जाना चाहिए।
खंडपीठ ने कहा, ” मनरेगा योजना को अनिश्चितकाल तक ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता। केन्द्र सरकार के पास इसकी अनियमितता की जाँच के लिए पर्याप्त साधन हैं। ये जिस उद्देश्य से बनाया गया है उस हित को पूरा करना होगा। इसलिए केन्द्र सरकार को अपनी जाँच को आगे बढ़ाने के साथ साथ योजना को 1 अगस्त 2025 से लागू किया जाए”
कोर्ट ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकारें धन के वितरण पर अपनी शर्ते रखने के लिए स्वतंत्र हैं ताकि पहले जो गड़बड़ी हुई है वह न हो।