Friday, November 15, 2024
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‘जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए कानून जरूरी’: सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार का हलफनामा, कहा- महिला-पिछड़े वर्गों की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक

केंद्र सरकार ने कोर्ट में जमा किए अपने हलफनामे में कहा कि वह जबरन धर्मांतरण के मामलों से अवगत हैं। महिलाओं के लिए, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों सहित समाज के कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए इसके लिए कानून होने आवश्यक हैं।

सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (28 नवंबर 2022) को जबरन धर्मांतरण के मुद्दे पर सुनवाई हुई। केंद्र सरकार ने इस मामले पर अपना पक्ष रखते हुए हलफनामा पेश किया। उन्होंने हलफनामे में कहा है कि यह एक गंभीर मामला है। वह याचिका में उठाए गए इस मुद्दे की गंभीरता से अवगत हैं। केंद्र ने अपने जवाब में कहा है कि धर्म की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में दूसरे लोगों को धोखे, जबरन, प्रलोभन या ऐसे अन्य माध्यमों से धर्मांतरित करने का अधिकार शामिल नहीं है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए 9 राज्य ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा पहले से ही कानून बना चुके हैं। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि महिलाओं, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों सहित समाज के कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए इस तरह के कानून आवश्यक हैं।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर जस्टिस एमआर शाह और सीटी रवि कुमार ने सुनवाई की। भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने केंद्र और राज्य सरकारों से काला जादू, अंधविश्वास और जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए अलग से कानून बनाने के लिए यह याचिका दायर की थी।

याचिका में दावा किया गया है कि अगर जबरन धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई गई तो भारत में हिंदू जल्द ही अल्पसंख्यक हो जाएँगे। इससे पहले 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए जबरन धर्मांतरण को एक बहुत गंभीर मुद्दा बताया था। कोर्ट ने कहा था कि यह राष्ट्र की सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है और केंद्र से जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि धर्म की स्वतंत्रता है, लेकिन जबरन धर्मांतरण पर कोई स्वतंत्रता नहीं है।

बता दें कि उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 25 में धर्म की स्वतंत्रता दी गई है। इसमें सभी धर्म समान रूप से शामिल हैं। किसी को भी किसी अन्य का धर्म में बदलने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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