सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (28 नवंबर 2022) को जबरन धर्मांतरण के मुद्दे पर सुनवाई हुई। केंद्र सरकार ने इस मामले पर अपना पक्ष रखते हुए हलफनामा पेश किया। उन्होंने हलफनामे में कहा है कि यह एक गंभीर मामला है। वह याचिका में उठाए गए इस मुद्दे की गंभीरता से अवगत हैं। केंद्र ने अपने जवाब में कहा है कि धर्म की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में दूसरे लोगों को धोखे, जबरन, प्रलोभन या ऐसे अन्य माध्यमों से धर्मांतरित करने का अधिकार शामिल नहीं है।
Right to freedom of religion doesn’t include fundamental right to convert other people to a particular religion: Centre to SC
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रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए 9 राज्य ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा पहले से ही कानून बना चुके हैं। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि महिलाओं, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों सहित समाज के कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए इस तरह के कानून आवश्यक हैं।
Union govt, in affidavit dated November 27 states that it is cognizant of the gravity and seriousness of the issue raised in the plea.
— Live Law (@LiveLawIndia) November 28, 2022
Says public order is a state subject and that 9 states have already enacted legislations curbing forced religious conversions.#Supremecourt pic.twitter.com/2RkI8L2mm9
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर जस्टिस एमआर शाह और सीटी रवि कुमार ने सुनवाई की। भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने केंद्र और राज्य सरकारों से काला जादू, अंधविश्वास और जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए अलग से कानून बनाने के लिए यह याचिका दायर की थी।
Justices MR Shah and CT Ravikumar will hear the plea #SupremeCourtOfIndia
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याचिका में दावा किया गया है कि अगर जबरन धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई गई तो भारत में हिंदू जल्द ही अल्पसंख्यक हो जाएँगे। इससे पहले 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए जबरन धर्मांतरण को एक बहुत गंभीर मुद्दा बताया था। कोर्ट ने कहा था कि यह राष्ट्र की सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है और केंद्र से जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि धर्म की स्वतंत्रता है, लेकिन जबरन धर्मांतरण पर कोई स्वतंत्रता नहीं है।
बता दें कि उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 25 में धर्म की स्वतंत्रता दी गई है। इसमें सभी धर्म समान रूप से शामिल हैं। किसी को भी किसी अन्य का धर्म में बदलने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।