Saturday, April 27, 2024
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‘मुलायम सरकार ने हिन्दुओं को श्रृंगार गौरी मंदिर से बाहर निकाला, हमने कभी नहीं की कार्बन डेटिंग की माँग’: ज्ञानवापी में हिन्दू पक्ष के वकील से EXCLUSIVE बातचीत

"इस साल 5 मई को हमने वाराणसी में सभी पाँचों याचिकाकर्ताओं से मुलाकात की और सर्वेक्षण के लिए रूट मैप तय किया गया। हालाँकि, 8 मई को राखी सिंह के एक प्रतिनिधि (पाँच में से एक याचिकाकर्ता) ने अदालत में एक आवेदन दायर किया कि वह मामला वापस लेना चाहती हैं। फिर, अन्य चार याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे किसी भी कीमत पर केस वापस नहीं लेंगे और अगर राखी सिंह चाहें तो वह अपने पक्ष से हट सकती हैं।"

वाराणसी कोर्ट द्वारा ज्ञानवापी ढाँचे में वैज्ञानिक जाँच की माँग वाली याचिका को खारिज करने के बाद यह मामला गरमा गया है। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और वरिष्ठ अधिवक्ता हरि शंकर जैन याचिका दायर करने वाली पाँचों महिला याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इनकी मंशा हिंदुओं को उनका पूजा करने का अधिकार दिलाना है। इस सिलसिले में ऑपइंडिया ने एडवोकेट विष्णु शंकर जैन का साक्षात्कार लिया है। बातचीत में उन्होंने ज्ञानवापी से जुड़े कई रहस्यों का खुलासा किया है।

मामले की योजना कैसे बनी? चूँकि यह एक विवाद था जो लंबे समय तक बना रहा, लेकिन याचिकाकर्ता इसके लिए अब क्यों खड़े हुए?

विष्णु शंकर जैन ने कहा, “सबसे पहले, हमें यह समझने की जरूरत है कि एक देवता स्थायी है। यदि किसी स्थान पर किसी देवता को स्थापित किया जाता है, तो वह उसी स्थान पर रहता है। इसलिए इस प्रश्न के बजाए, मैं यह पूछना चाहूँगा कि 1991 में पूजास्थल अधिनियम क्यों बनाया गया था और अब इसे विरोध का सामना क्यों करना पड़ रहा है। देश लगातार 30 साल क्यों सो रहा था?”

उन्होंने बताया, “ऐसी बहुत सी बातें हैं जो समय के साथ जानी जाती हैं। मैं 2010 में जब अपने पेशे में आया। तब मैंने इस मामले का अध्ययन किया। दरअसल, मुझे राम मंदिर मामले में शामिल होने का अवसर मिला। मैंने हिंदू देवताओं के अधिकारों का अध्ययन किया, तो मुझे पता चला कि इस देश में हिंदुओं पर बहुत अन्याय किया गया है। उनमें से एक काशी विश्वनाथ में श्रृंगार गौरी मंदिर से संबंधित मामला है, जहाँ भक्तों को नवंबर 1993 तक पूजा करने की अनुमति थी, लेकिन उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी सरकार ने उन्हें रोक दिया और उनके अधिकारों का हनन किया गया।”

वह अपनी बात को जारी रखते हुए कहते हैं, “इसलिए, जब मुझे इन सबके बारे में पता चला तो मैंने हिंदुओं को न्याय दिलाने का फैसला किया। अगर कानून मुझे ऐसा करने की इजाजत देता है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं इस मुद्दे को कब और कैसे उठाता हूँ। समय बिल्कुल भी अहम नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंदू जाग गए और उन्होंने अपने साथ हुए अन्याय को न्याय की अदालतों के माध्यम से सुधारने का फैसला किया, न कि सड़कों पर।”

जैसा कि आपने पूजा स्थल अधिनियम 1991 का उल्लेख किया है, आप उसके बारे में क्या कहना चाहते हैं? क्या आपको लगता है कि इसे निरस्त किया जाना चाहिए?

अधिवक्ता के शब्दों में, “मेरे अनुसार, पूजास्थल अधिनियम एक खराब मसौदा और अस्पष्ट रूप से तैयार किया गया कानून है, जो कई व्याख्याओं के लिए अतिसंवेदनशील है और एक ऐसी गड़बड़ी है, जिसका हिंदुओं के कानूनी अधिकारों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। चाहे वह देवताओं का अधिकार हो, या हिंदुओं के अपने धार्मिक स्थलों को पुनः प्राप्त करने और पुनर्स्थापित करने का अधिकार हो। इस अधिनियम के खराब प्रारूप ने हिंदुओं के अधिकारों में बाधा डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मुझे लगता है कि केंद्र सरकार को इस अधिनियम को निरस्त कर देना चाहिए।”

क्या पूजा स्थल अधिनियम में कोई खामियाँ हैं, जिनका उपयोग हिंदुओं के लिए किया जा सकता है?

वह कहते हैं, “ऐसा पहले ही किया जा चुका है। अधिनियम किसी जगह के धार्मिक प्रतीक को तय करने की अनुमति देता है। हमने इसे काशी और मथुरा दोनों मामलों में ट्रायल कोर्ट में लागू किया है और हमारे पक्ष में फैसले आए हैं।”

जैसा कि श्रृंगार गौरी मामले की खूबियों को भी सभी जानते हैं, जिसमें भारतीय विरासत और विशेष रूप से हिंदू मंदिरों को नष्ट करने वाले इस्लामी अत्याचारियों का इतिहास भी शामिल है, इस मामले में आप क्या कहना चाहते हैं?

एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने कहा, “मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि सभी इस्लामी संगठन पूजास्थल अधिनियम के कानून के दौरान बनाए गए नरैटिव के साथ जा रहे हैं। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि अधिनियम का प्रारूप बहुत खराब है और यदि हम अधिनियम के प्रारूप को देखते हैं तो सभी वादे और चर्चाएँ अप्रासंगिक हैं। वे खोखले वादे हैं। अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है कि किसी धार्मिक स्थान का कोई प्रतीक नहीं बदला जाएगा, लेकिन कानून बनने के बाद भी इसका उल्लंघन किया गया है। जैसे 1993 में जब हिंदुओं को श्रृंगार गौरी मंदिर से बाहर निकाल दिया गया था , जहाँ वे सदियों से पूजा कर रहे थे। यह धारा 3 का उल्लंघन था और धारा 6 में सजा का प्रावधान है, लेकिन एक भी व्यक्ति को आज तक दंडित नहीं किया गया है।

जैन ने कहा, “दूसरे, कश्मीर में 15 अगस्त 1947 के बाद, या भारत के लगभग हर राज्य में, कई हिंदू मंदिरों को तोड़कर इस्लामी स्थलों में बदल दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप धारा 3 और 6 के तहत कोई कार्रवाई और सजा नहीं हुई है। साथ ही, यह स्पष्ट रूप से समझने की जरूरत है कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि हम किसी स्थल के धार्मिक स्वरूप को परिवर्तित करना चाहते हैं, हम यह भी नहीं कह रहे हैं कि यदि उचित कानूनी तरीकों से किसी स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया जाता है और हम उस पर अतिक्रमण करना चाहते हैं या उसे मंदिर में परिवर्तित करना चाहते हैं। यही कारण है कि मैंने धारा 4 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है, धारा 3 को नहीं। हम सिर्फ यह चाहते हैं कि यदि कोई स्थान या मस्जिद, जो पहले एक हिंदू मंदिर था, तो उसे पुनर्स्थापित और पुनः प्राप्त किया जाना चाहिए ताकि हिंदू अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें और कुछ नहीं है जिसकी हमें आवश्यकता है। पूजास्थल अधिनियम 1991 इसमें बाधा नहीं डालता है, लेकिन फिर भी, अधिनियम विभिन्न व्याख्याओं के लिए खुला है और इसे विभिन्न तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है। मुझे लगता है कि केंद्र सरकार को इस अधिनियम को पूरी तरह से निरस्त कर देना चाहिए ताकि हिंदू अपने अधिकारों का ठीक से प्रयोग कर सकें। यदि यह अधिनियम अस्तित्व में नहीं है, तो भी लोग अपने मामलों को दीवानी अदालतों में कानूनी मुकदमे और दीवानी वाद के रूप में दर्ज करेंगे और गुण व तथ्यों के आधार पर निर्णय प्राप्त करेंगे।”

शिवलिंग के बारे में, वज़ूखाना के बारे में ….

वह कहते हैं, “सबसे पहले, जब 14, 15, और 16 मई को परिसर का सर्वेक्षण हुआ, तो उस जगह से बहुत सारी चीजें खोजी गईं। मैं ऑपइंडिया को बताना चाहूँगा कि यही कारण है कि बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण का विरोध किया गया था। मस्जिद कमेटी के सचिव ने खुलेआम धमकी देते हुए कहा कि उनके शव पर ही सर्वे किया जा सकता है। ये सिर्फ सच छिपाने के लिए था। अब निष्कर्षों पर आते हैं, विवादित ढाँचे के अंदर हिंदू मंदिर होने के पर्याप्त सबूत हैं। मस्जिद के गुंबदों के नीचे हिंदू मंदिर का शिखर है। हमने उसे देखा है और इसे रिकॉर्ड भी किया है। साथ ही अदालत में भी जमा कराया है। हिंदू मंदिर के शिखर को क्षतिग्रस्त कर दिया गया है और इसे मस्जिद के गुंबदों से ढक दिया गया है। गुंबदों में छोटी-छोटी खिड़कियाँ हैं, जिनमें से हम अर्ध-टूटे हुए शिखर को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।”

उन्होंने बातचीत में आगे कहा, “इसके बाद विवादित ढाँचे की दीवारों पर हिंदू संस्कृति और परंपरा के कई चिह्न और प्रतीक मिले हैं। विवादित ढाँचे की सभी दीवारों पर त्रिशूल, डमरू, स्वास्तिक और कई अन्य चिन्ह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। गुंबद के नीचे एक ज्ञानवापी कैलेंडर भी है और उसके पीछे दीवार पर खुदा हुआ स्वास्तिक चिन्ह है। इससे पता चलता है कि किस तरह सच्चाई को छुपाने की कोशिश की गई। मस्जिद के खंभों और दीवारों पर भी संस्कृत के श्लोक लिखे हुए हैं।”

वह बताते हैं, “दीवारों पर देवताओं की तोड़ी गई मूर्तियाँ दिख रही हैं। तहखाने में, चारों ओर छोटे-छोटे मंदिर हैं। सर्वेक्षण के दौरान, हम वज़ूखाना में आए और वज़ू तालाब के केंद्र में एक संरचना मिली। मैंने परिसर के केयरटेकर ऐजाज़ भाई से कहा कि पानी निकाल दो ताकि हम जाँच सकें कि अंदर क्या है। वे विभिन्न कारण बताते हुए इनकार करते रहे लेकिन हमने अपनी बात जारी रखी। अंत में, उन्होंने इसका पानी निकाला। इसके बाद हमने जो पाया वह आश्चर्यजनक था। उस तालाब के केंद्र में एक विशाल शिवलिंग बना हुआ था, जिसे उन्होंने एक फव्वारा होने का दावा किया। इसलिए, हमने शिवलिंग का वैज्ञानिक परीक्षण कराने के लिए एक याचिका दायर की। वे इस कदम का विरोध भी कर रहे हैं। अगर वे कहते हैं कि यह एक फव्वारा है तो चिंता क्यों कर रहे हैं? सच को सामने आने दें।”

वह बताते हैं, “यह इतना घृणित है कि शिवलिंग को वज़ूखाना में छिपाया गया था, जहाँ मुस्लिम अपने पैर धोने और कुल्ला करने गए थे। इस तरह उन्होंने हिंदुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया। वे इस बात पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट भी गए कि उन्हें उसी तालाब में वुज़ू करने की अनुमति दी जानी चाहिए। मैं सॉलिसिटर जनरल और केंद्र सरकार का बहुत-बहुत आभारी हूँ, जिन्होंने अदालत में कहा कि अगर कोई शिवलिंग को भी छूता है, तो यह कानून का उल्लंघन होगा। यह हास्यास्पद है कि औरंगजेब ने अपने शासनकाल के दौरान एक भी मस्जिद नहीं बनाई। सिर्फ मंदिरों को तोड़कर उन्हें इस्लामिक स्थलों में बदल दिया। मुस्लिम पक्ष की ओर से केवल सच्चाई छुपाने के लिए धमकियाँ दी जा रही हैं। यह सच्चाई केवल वैज्ञानिक जाँच और विशेषज्ञों के माध्यम से सामने आ सकती है, न कि जनमत संग्रह के माध्यम से। यह न्याय का मामला है और इसका फैसला किसी भी संसद में नहीं किया जा सकता है। यह केवल न्याय की अदालत में, कानून की अदालत में तय किया जा सकता है। ये लोग अदालतों को धमका भी रहे हैं, जो कल्पना से बाहर है। मुझे लगता है कि प्रशासन को उन पर भारी पड़ना चाहिए।”

वैज्ञानिक जाँच की बात करें तो हिंदुओं की तरफ से कार्बन डेटिंग की माँग क्यों की गई है?

उन्होंने कहा, “मुझे इस बारे में बहुत कुछ समझाना है। कार्बन डेटिंग से जुड़े तथ्य को गलत रूप में पेश किया गया है। पूरे मामले को पटरी से उतारने की बहुत बड़ी साजिश रची गई है। इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले, मैं इस मामले की पृष्ठभूमि पर जोर देना चाहूँगा।”

वह बताते हैं, “इस साल 5 मई को हमने वाराणसी में सभी पाँचों याचिकाकर्ताओं से मुलाकात की और सर्वेक्षण के लिए रूट मैप तय किया गया। हालाँकि, 8 मई को राखी सिंह के एक प्रतिनिधि (पाँच में से एक याचिकाकर्ता) ने अदालत में एक आवेदन दायर किया कि वह मामला वापस लेना चाहती हैं। फिर, अन्य चार याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे किसी भी कीमत पर केस वापस नहीं लेंगे और अगर राखी सिंह चाहें तो वह अपने पक्ष से हट सकती हैं। बाद में चारों याचिकाकर्ताओं को राखी सिंह के प्रतिनिधि द्वारा एक होटल के कमरे में आमंत्रित किया गया और उनसे कहा गया कि यदि वे मामला वापस लेते हैं, तो उन्हें एक तरह से लाभ होगा। चारों याचिकाकर्ताओं ने उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और कहा कि अगर उन्हें जहर का सेवन करने के लिए मजबूर किया जाता है तो भी वे मामला वापस नहीं लेंगे। इसके बाद कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया और इसे 14, 15 और 16 मई 2022 को पूरा किया गया।”

उन्होंने आगे बताया, “इस सबके बाद मीडिया में तुच्छ अभियान चलाए गए कि मुझे और मेरे पिता को इस मामले से हिंदू पक्ष के वकील के रूप में हटा दिया गया। यह सब एक विवाद के तहत किया जा रहा था। मुस्लिम पक्ष अच्छी तरह से जानता है कि जब तक हम याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तब तक वे इस मामले को नहीं जीत सकते। मुझे और मेरे पिता को केस छोड़ने और अपनी जान बचाने के लिए कई बार जान से मारने की धमकियाँ मिलीं। लेकिन हम अड़े थे। हम अड़े हैं और महादेव के आशीर्वाद से हम इस केस को जरूर जीतेंगे। अब कार्बन डेटिंग की बात करें तो, हिंदू पक्ष के रूप में, हमने कभी इसके लिए नहीं कहा। हमने अदालत में इसके लिए कभी नहीं पूछा। हमने विवादित जगह की वैज्ञानिक जाँच के लिए कहा। लेकिन एक साजिश के तहत इसे सार्वजनिक किया गया कि हम कार्बन डेटिंग की माँग कर रहे हैं। हमने कभी कार्बन डेटिंग की माँग नहीं की और मैं चाहता हूँ कि यह ऑपइंडिया के माध्यम से जन-जन तक पहुँचे।”

उनके मुताबिक, “एक षडयंत्र के तहत सार्वजनिक रूप से यह संकेत दिया गया था कि हम शिवलिंग की कार्बन डेटिंग चाहते हैं और इससे शिवलिंग को शारीरिक रूप से नुकसान होगा। राखी सिंह और मुस्लिम पक्ष का हलफनामा पूरी तरह से एक ही था और दोनों ने साइट के वैज्ञानिक जाँच का विरोध किया था। राखी सिंह ने समझौता कर लिया है। हम केवल साइट का वैज्ञानिक जाँच चाहते हैं और यह अदालत को तय करना है कि शिवलिंग की उम्र की जाँच करने के लिए किस तरह के परीक्षण किए जाने की जरूरत है।”

(नोट: वकील विष्णु शंकर जैन का यह इंटरव्यू वज़ूखाना में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग पर कोर्ट के फैसले से पहले लिया गया था। अंग्रेजी में इंटरव्यू पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।)

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