मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में तमिलनाडु हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग को मंदिर के अधिशेष कोष (Surplus Fund) से शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाने से रोक दिया है। यह शॉपिंग कॉम्प्लेक्स अरुलमिघु नंदीश्वरम थिरुकोइल की भूमि पर बनाया जा रहा था। कोर्ट ने यह भी कहा कि जहाँ तक हो सके मंदिरों को मुकदमेबाजी से दूर रखा जाना चाहिए।
मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केआर श्रीराम और न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की पीठ ने संभावित मुदकमेबाजी के कारण शॉपिंग कॉमप्लेक्स बनाने पर रोक लगाई। बेंच ने कहा कि यदि वाणिज्यिक परिसरों को अनुमति दी जाती है तो इससे निवेश पर लाभ, लाइसेंसधारियों/किराएदारों की बेदखली, बकाया किराए की वसूली और अतिक्रमण को रोकने जैसी जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं।
कोर्ट ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालत ने कहा कि एचआर एंड सीई अधिनियम के अनुसार, मंदिर के अधिशेष धन का उपयोग केवल धारा 66(1) या अधिनियम की धारा 36ए या धारा 36बी के तहत निर्दिष्ट उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है और किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं। शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण किसी भी श्रेणी में नहीं आता है। इसलिए निर्णय को रद्द कर दिया जाना चाहिए।
दरअसल, पी. भास्कर नाम के एक व्यक्ति ने याचिका दायर की थी और कहा था कि वे मंदिर के अनुयायी हैं। उन्होंने दावा किया कि वे अधिनियम की धारा 6(15)(बी) के तहत परिभाषित हितधारक व्यक्ति हैं। याचिकाकर्ता ने बंदोबस्ती विभाग के निर्णय को चुनौती दी थी। भास्कर ने दावा किया था कि बंदोबस्ती को केवल अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ही विनियोजित किया जा सकता है।
इस पर बंदोबस्ती विभाग ने दलील दी कि शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के निर्माण के लिए मंदिर से संबंधित अधिशेष निधि का उपयोग किया जा रहा है। हालाँकि, विशेष सरकारी वकील ने दलील दी कि अधिनियम की धारा 36 के पहले प्रावधान के अनुसार, ट्रस्टी निर्दिष्ट उद्देश्य को प्राथमिकता देंगे, लेकिन अधिशेष निधि का उपयोग किसी भी उद्देश्य के लिए कर सकते हैं, जिसे वे उचित समझते हैं, जिसमें शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण भी शामिल है।
हालाँकि, अदालत ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। अदालत ने कहा कि मंदिर के फंड का उपयोग करके शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण संस्था के धार्मिक सिद्धांतों के प्रचार को इंगित नहीं करता है। इन कानूनी प्रावधानों का उद्देश्य धार्मिक सिद्धांतों का प्रचार है। अतिरिक्त भूमि कि इस्तेमाल को लेकर कोर्ट ने सुझाव दिया कि पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए विभाग इस पर देशी पेड़ लगाने पर विचार कर सकता है।
चूँकि उसे बताया गया कि संपत्ति में निर्माण का एक हिस्सा पहले ही बनाया जा चुका है और वह बर्बाद हो सकता है, इसलिए न्यायालय ने फैसला सुनाया कि शेष निर्माण इस तरह से किया जा सकता है कि इसका उपयोग गरीबों को भोजन देने में किया जा सके।
न्यायालय ने यह भी कहा कि भवन का उपयोग गरीब और जरूरतमंद हिंदुओं के बीच विवाह आयोजित करने के लिए किया जा सकता है। हालाँकि, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि हर मामले में अधिशेष धन का उपयोग विवाह हॉल के निर्माण के लिए नहीं किया जा सकता है।