चीनी कोरोनोवायरस महामारी ने इस दुनिया को बदल कर रख दिया है। लगभग हर इंसान की जिंदगी इसके चलते प्रभावित हुई है। दुनिया भर में लाखों लोग संक्रमित हुए हैं, जिनमें कुछ लोग ठीक हुए तो हजारों लोगों की जान गई है। इस प्रकोप को मद्देनजर रखते हुए भारत ने भी कई अन्य देशों की तरह, वायरस के प्रसार को रोकने और लोगों के जीवन को बचाने के लिए लॉकडाउन की घोषणा की। मगर एक अरब से अधिक की आबादी वाले भारत के पास अनेक चुनौतियाँ थी।
जहाँ एक तरफ घर पर रहना कई लोगों के लिए एक लक्जरी था, तो वही दूसरी तरफ लगभग पूरे भारत में हजारों प्रवासियों ने अपने कर्म स्थल को छोड़ अपने गाँव वापस जाने के लिए निकल पड़े थे। गरीब मजदूरों की ऐसी हालत ने सभी का दिल दहला कर रख दिया। इस महामारी के दौर में सेफोलॉजिस्ट प्रदीप भंडारी ने प्रवासी मजदूरों की आपबीती और जमीनी हकीकत को समझने और जानने के लिए एक महीने तक यात्रा की। मजदूरों को लेकर भंडारी ने ऑपइंडिया के साथ बातचीत की और इस बारे में बताया कि सरकारों ने कैसे काम किया और सरकारें इस संकट की घड़ी को कम करने के लिए और क्या-क्या कर सकती हैं।
1. आपने 38 दिनों की यात्रा की है, ज़मीनी स्तर पर प्रवासियों की स्थिति के बारे में आपका क्या कहना है?
मैंने लगभग 8 राज्यों में 14000 कि.मी से अधिक की ज़मीनी यात्रा की थी। अपनी यात्रा के दौरान, मैं शायद ही किसी ऐसे व्यक्ति से मिला था जिसने लॉकडाउन का विरोध किया था, यहाँ तक कि प्रवासियों में भी सामान्य भावना लॉकडाउन के पक्ष में ही थी, हालाँकि उनमें निराशा की भावना भी थी, जो उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी। उनकी निराशा और क्रोध के बीच एक पतली रेखा है कि प्रवासी मजदूर थोड़ा धीरज रख कर ट्रेन से अपने घर वापस जा सकते थे।
हालाँकि, जिनके गाँव में उनका परिवार अकेला था, और अपने ठेकेदारों से भी मजदूरी प्राप्त होना बंद हो गया था, उनके पास पैदल या साइकिल से घर जाने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था। साथ ही लौटने वाले प्रवासियों को जिस तरह से अस्थायी रोजगार प्रदान किया जाएगा वह आने वाले महीनों में प्रवासियों की उस स्थिति को निर्धारित करेगा।
2. क्या प्रवासी मजदूर मोदी सरकार के खिलाफ हो गए है?
जहाँ-जहाँ मैंने यात्रा की ज्यादातर प्रवासी मजदूर हिन्दी बोलने वाले थे (जिसमें यूपी, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, चंडीगढ़ और बिहार शामिल है।) और उनमें से किसी में भी मोदी के विरोध जैसी कोई भावना नहीं थी। यहाँ तक कि कई लोगों की राय थी कि अगर मोदी पीएम नहीं होते तो देश की स्थिति और खराब हो सकती थी।
पैदल यात्रा करने वाले थोड़े परेशान थे, उन्होंने अपनी इस तरह की यात्रा पर असंतोष की भावना व्यक्त की, जबकि जिन लोगों ने ट्रेन से यात्रा की वे लोग संतोष की भावना के साथ घर लौटे। अब आने वाले 3 महीने ही यह निर्धारित करेंगे कि प्रवासी मोदी समर्थक रहेंगे या नहीं। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा कल्याणकारी सेवाओं के वितरण पर यह निर्भर करता है।
3. प्रवासियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए और क्या-क्या करने की आवयश्कता है?
यह बेहद महत्वपूर्ण होगा कि विभिन्न राज्य सरकार आने वाले महीनों में प्रवासियों से कैसे काम कराएँगी। लगातार प्रवासियों की आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य के लिहाज से देखभाल करना होगा। साथ ही अपने गृह राज्य वापस लौटने पर पहले उन्हें क्वारंटाइन किया जाना चाहिए। मुझे याद है कि नोएडा से महोबा (यूपी) के लिए साइकिल पर प्रवासियों का एक समूह मिला था। जब मैंने इस बारे में पूछताछ की कि वे घर पहुँचते ही क्या करेंगे, तो पहली बात उन्होंने कहा- “14 दिनों के लिए क्वारंटाइन।” जागरूकता और स्वैच्छिक जिम्मेदारी के स्तर, प्रवासियों में लचीलापन ने भारत को अब तक इस महामारी से निपटने में काफ़ी मदद की है।
यह अत्यंत आवश्यक है कि आने वाले दिनों में भोजन, और आश्रय का ध्यान रखा जाए। गृह राज्यों को एक राज्य प्रवासी डेटाबेस बनाने की आवश्यकता है, और केंद्र के पास भी एक सिंगल डेटाबेस में प्रवासियों का विवरण होना चाहिए। सरकार को समय के साथ उनके प्रत्यक्ष वित्तीय लाभ को देखना चाहिए। मनरेगा बढ़ने से उन्हें फायदा होगा। इसके साथ ही उन्हें अधिक सार्वजनिक कार्यों में लगे रहने की भी आवश्यकता है। इससे पहले यह कभी नहीं हुआ है कि इतने सारे प्रवासी मजदूर एक साथ वापस अपने गृहराज्य आएँ हो। राज्यों को इस अवसर का उपयोग अपने राज्य केंद्रित मॉडल के विकास के लिए करना चाहिए।
4. आपके हिसाब से कौन से राज्य इस वक़्त अच्छा और कौन खराब प्रदर्शन कर रहे हैं?
ओडिशा, तेलंगाना, केरल, यूपी इस महामारी से अच्छी तरह से लड़ रहें है। इसके अलावा बंगाल, बिहार और महाराष्ट्र में सुधार करने की आवश्यकता है। गुजरात और एमपी को भी कोरोना वायरस के प्रसार पर नज़र रखने की आवश्यकता है। बाकी लोगों ने प्रतिक्रिया के लिए सार्वजनिक धारणा में औसत से ऊपर प्रदर्शन किया है।
5. जमीन स्तर पर 20 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक पैकेज किस प्रकार दिया जाएगा?
सरकार ने एमएसएमई, किसानों और सुधारों पर केंद्रित एक बड़े पैकेज की घोषणा की है। आने वाले दिनों में इस पैकेज की बारीकियों के बारे में ज़मीनी स्तर पर लोगों को बताना होगा। लोगों को यह तो पता है कि सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा की है, लेकिन इस पैकेज से किस प्रकार लाभ हासिल किया जाएगा इसकी जानकारी अभी उनके पास नहीं है।
6. बंगाल से क्या खबरें आ रही हैं?
बंगाल की रिपोर्ट चिंताजनक है। वहाँ के लोगों से बात करने पर इस बात का पता लगा कि वहाँ के निवासी कोविड-19 को लेकर काफ़ी परेशान है। उन्हें इस महामारी के प्रसार के बारे में बहुत ही कम जानकारी है। ग्राउंड रिपोर्ट्स के अनुसार, बंगाल में सही तरह से लॉकडाउन लागू नहीं किया गया था। केंद्र को बंगाल में कोविड-19 की स्थिति का सूक्ष्मता से पता लगाने की आवश्यकता है क्योंकि वहाँ के निवासियों को राज्य सरकार पर पूरी तरह से विश्वास नहीं है कि वे अपने दम पर इस महामारी को रोकने का प्रयास कर रही है।
7. प्रवासी संकट के बीच उनकी जमीनी यात्रा कैसे हुई है? उनमें जागरूकता का स्तर कैसा है? क्या सोशल डिस्टेंसिग का पालन किया जाता है?
मेरी 14 हजार किमी की यात्रा में मेरा दृष्टिकोण सिर्फ लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करना या उनके बीच पैनिक क्रिएट करना नहीं था। मेरा उद्देश्य पीड़ित प्रवासियों की मदद करना था। इसलिए यदि राजमार्ग पर एक प्रवासी नंगे पैर था, तो उसके दर्द को समझने के अलावा उस प्रवासी की बात को मदद के लिए संबंधित अधिकारियों तक पहुँचाना भी था। यदि रास्ते में सैनिटेशन की जरूरत पड़ी तो हमने सैनिटेशन किट भी वितरित किए।
इस तरह सड़कों पर कई लोगों की मदद कर हमने अपने आपको बहुत भाग्यशाली महसूस किया। मुझे याद है कि कुछ लोग यूपी जाने वाले थे लेकिन अपना रास्ता भटक चुके थे और लुधियाना पंजाब से उत्तराखण्ड के रुड़की पहुँच गए थे। इस स्थिति में हम कोशिश करते थे कि उन लोगों को आसपास से गुजरने वाली गाड़ियों से मेरठ तक छोड़ दिया जाए ताकि वे आसानी से पूर्वी यूपी अपने घर तक पहुँच जाएँ।
साथ ही हम उन्हें अधिकारियों के फ़ोन नंबर भी उपलब्ध कराते थे जिससे कि कोई दिक्कत आने पर वे उनसे मदद ले सकें। मैंने अपने विवेक के साथ अन्याय किया होता तो अगर मैं सिर्फ प्रवासियों के दर्द तक खुद को केंद्रित रखता, लेकिन दर्द को कम करने का प्रयास नहीं करता तो।
अंतत:, हर भारतीय इस मुश्किल घड़ी में एक साथ है। गाँवों में आत्मविश्वास की भावना है कि वे अधिक इस कोरोना महामारी प्रतिरोधी हैं। उन्होंने बाहरी लोगों को गाँव में प्रवेश करने पर रोक लगा दी थी, यहाँ तक कि उत्पादन भी गाँव में स्थानीय रूप से किया जाता था। वे चेहरे को ढकने के लिए गमछे का इस्तेमाल करते थे।
बता दूँ कि सभी स्थानों पर समाजिक दूरी का कड़ाई से पालन नहीं किया गया। सड़क पर प्रवासी सिर्फ़ वापस घर पहुँचने के लिए उत्सुक थे। सैकड़ों किमी की यात्रा ने उन्हें अधीर बना दिया था और उनकी पहली प्राथमिकता सामाजिक दूरी नहीं थी, बल्कि जल्द से जल्द घर पहुँचना था। हालाँकि, वे स्वेच्छा से वापस पहुँचने पर क्वारंटाइन के बारे में जानते थे।
मुझे लगता है कि प्रवासी इस हालात में भी सबसे अच्छा कर रहे हैं। सौभाग्य से हर दिन स्थिति में सुधार हो रहा है क्योंकि प्रवासियों की संख्या पहले की तुलना में कम हो रही है। 15 लाख से अधिक प्रवासी वापस अपने गृहराज्य पहुँच चुके हैं और आने वालें दिनों में श्रमिक ट्रेनों में वृद्धि और नियम में बदलाव के कारण अब राज्य सरकार की अनुमति की भी जरूरत नहीं है ताकि जल्द से जल्द स्थिति फिर से सामान्य हो सके।