Friday, February 14, 2025
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महिला डॉक्टर के रेप-मर्डर को ‘सुसाइड’ साबित करने की कोशिश, संजय रॉय को ‘VIP ट्रीटमेंट’: अदालत ने बंगाल पुलिस को किया नंगा, पीड़ित पिता बोले- अब कुछ न करें ममता बनर्जी

सियालदाह की कोर्ट ने दोषी संजय रॉय को सजा सुनाते समय बंगाल पुलिस की जाँच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने पुलिस की कार्यशैली को 'बेहद उदासीन' करार दिया और कई गड़बड़ियों पर कड़ी आपत्ति जताई।

कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉक्टर के साथ हुए रेप और हत्या मामले में अभियुक्त संजय रॉय को फाँसी की जगह उम्रकैद की सजा दी गई है। इस फैसले पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि यदि इस मामले की जाँच सीबीआई के बजाय राज्य पुलिस ने की होती, तो दोषी को फाँसी की सजा मिल सकती थी। इस मामले में अब ममता सरकार ने हाई कोर्ट में अपील कर संजय रॉय के लिए फाँसी की सजा माँगी है।

हालाँकि इस केस में सियालदाह की कोर्ट ने दोषी संजय रॉय को सजा सुनाते समय बंगाल पुलिस की जाँच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने पुलिस की कार्यशैली को ‘बेहद उदासीन’ करार दिया और कई गड़बड़ियों पर कड़ी आपत्ति जताई।

बंगाल पुलिस को लेकर कोर्ट ने क्या कहा? विस्तार से पढ़ें

जज अनिर्बाण दास ने फैसले में कहा कि ताला पुलिस स्टेशन ने इस मामले की शुरुआत से ही लापरवाह रवैया अपनाया। उन्होंने सब-इंस्पेक्टर सुब्रत चटर्जी की गवाही का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने झूठे दस्तावेज तैयार किए और इसे अदालत में स्वीकार करने में भी कोई झिझक नहीं दिखाई। जज ने कहा, “यह पुलिस अधिकारियों की गंभीर लापरवाही को दिखाता है। मैंने पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर से इस तरह की गवाही की उम्मीद नहीं की थी। यह साबित करता है कि इस संवेदनशील मामले को कितनी लापरवाही से संभाला गया।”

जज अनिर्बाण दास ने सब-इंस्पेक्टर सुब्रत चटर्जी के गवाही में दिए गए बयानों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने झूठे दस्तावेज तैयार किए। उन्होंने घटना के दिन का एक फर्जी जनरल डायरी (जीडी) एंट्री बनाया, जिसका समय सुबह 10:10 बजे का था। लेकिन यह साबित हुआ कि सुब्रत चटर्जी उस समय पुलिस स्टेशन में मौजूद ही नहीं थे।

कोर्ट ने कहा, “उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें ऐसा करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन यह नहीं बताया कि यह आदेश किसने दिया।” जज ने कहा कि मैं सब-इंस्पेक्टर सुब्रत चटर्जी के इस कृत्य की निंदा करता हूँ। कोर्ट ने कहा, “पीड़िता के परिवार को शिकायत दर्ज कराने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा।”

असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर अनुप दत्ता (Anup Dutta) को लेकर भी कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, “असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर अनुप दत्ता ने आरोपित के साथ नरमी बरती। यह काम बिल्कुल गलत था।” वहीं, इंस्पेक्टर रूपाली मुखर्जी (Rupali Mukherjee) को लेकर भी कोर्ट ने निराशा जताई। कोर्ट ने कहा, “इंस्पेक्टर रूपाली मुखर्जी द्वारा 9 अगस्त 2024 को आरोपित से मोबाइल फोन लेकर उसे ताला पुलिस स्टेशन में बिना निगरानी के छोड़ना भी बेहद संदिग्ध था। हालाँकि फोन से छेड़छाड़ नहीं हुई, लेकिन यह लापरवाही स्पष्ट रूप से एक गंभीर चूक है।”

कोर्ट ने कोलकाता पुलिस के आयुक्त से अपील की कि वे इस तरह की लापरवाही और अवैध कृत्यों को सख्ती से रोकें। उन्होंने सुझाव दिया कि पुलिस अधिकारियों को ऐसे मामलों में जाँच के लिए ट्रेनिंग देने की जरूरत है, खासकर जब मामला परिस्थितिजन्य, इलेक्ट्रॉनिक और वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित हो।

कोर्ट ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने पीड़िता की मौत को आत्महत्या बताने की कोशिश की ताकि अस्पताल को किसी भी जिम्मेदारी से बचाया जा सके। जज ने कहा, “अस्पताल प्रशासन ने न केवल जाँच में देरी की, बल्कि पीड़िता के माता-पिता को भी उनकी बेटी को देखने से रोका। यह कर्तव्य से चूक और तथ्यों को छिपाने का प्रयास था।” कोर्ट ने साफ कहा कि अगर जूनियर डॉक्टर विरोध न करे, तो शायद मामला आगे बढ़ता ही नहीं।

हालाँकि जज ने कहा, “अपराध निर्मम और बर्बर था, यह मामला ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ की श्रेणी में नहीं आता। न्यायपालिका की प्राथमिक जिम्मेदारी साक्ष्यों के आधार पर कानून का पालन करना और न्याय सुनिश्चित करना है, न कि केवल जनभावनाओं से प्रभावित होना। हमें ‘आँख के बदले आँख’ जैसे पुराने विचारों से ऊपर उठकर मानवता को बुद्धिमत्ता, करुणा और न्याय की गहरी समझ के माध्यम से ऊँचा उठाना होगा।”

जज ने अपने फैसले में यह भी कहा कि पीड़िता के माता-पिता के असीम दुख और दर्द को कोई सजा कम नहीं कर सकती, लेकिन न्यायपालिका का कर्तव्य यह है कि वह कानून के दायरे में रहकर दोषियों को सजा दे। इस दौरान कोर्ट ने पीड़ित परिवार को 17 लाख रुपए मुआवजा देने के आदेश दिए गए थे, लेकिन परिवार ने कहा कि उन्हें मुआवजा नहीं बल्कि न्याय चाहिए।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भड़के पीड़ित के पिता

सियालदाह कोर्ट के फैसले के बाद पीड़िता के पिता ने कहा, “आदेश की कॉपी मिलने के बाद हम आगे का फैसला करेंगे। उन्हें (सीएम ममता बनर्जी) जल्दबाजी में कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। आज तक मुख्यमंत्री ने जो भी किया है, उन्हें आगे कुछ नहीं करना चाहिए।” यह कहते हुए कि उम्रकैद इसलिए दी गई, क्योंकि सीबीआई उचित सबूत नहीं दे सकी, पीड़िता के पिता ने कहा, “वह बहुत कुछ कह सकते हैं, लेकिन कहेंगे नहीं। तत्कालीन सीपी और अन्य लोगों ने सबूतों से छेड़छाड़ की, क्या ये सब उन्हें शुरुआत से नजर नहीं आया।”

बंगाल पुलिस पर शुरू से उठ रहे थे गंभीर सवाल

गौरतलब है कि 9 अगस्त 2024 की सुबह आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉक्टर क्षत-विक्षत हालत में मिली। उस समय वो बेहोश थी। उसे तुरंत इलाज देना शुरू किया गया, लेकिन उसने दम तोड़ दिया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न और हत्या की बात सामने आई। रिपोर्ट में कहा गया है, “उसकी दोनों आँखों और मुँह से खून बह रहा था, चेहरे और नाखून पर चोटें थीं। पीड़िता के निजी अंगों से भी खून बह रहा था। उसके पेट, बाएँ पैर…गर्दन, दाएँ हाथ और…होंठों पर भी चोटें थीं।” हालाँकि पुलिस ने पहले इसे आत्महत्या बताया था, लेकिन अर्धनग्न शरीर की हालत कुछ और ही बयाँ कर रही थी। जिसके बाद छात्रों ने जमकर हंगामा किया और फिर छात्रा के शव का पोस्टमार्टम किया गया।

इस मामले में पीड़ित के माता-पिता और परिजनों ने गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने बंगाल पुलिस पर मामले को दबाने, बेटी को उन्हें 3 घंटे तक न देखने देने जैसे आरोप लगाए। यही नहीं, आरजी कर प्रशासन पर भी उन्होंने मामले को दबाने के आरोप लगाए थे। इस मामले में कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने जाँच की, वहीं, पुलिस ने संजय रॉय को पकड़ा था और फिर उसे अब कोर्ट ने उम्रकैद की सजा दी है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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