SC/ST Act के प्रावधानों के अंतर्गत शिकायत होते ही बिना जाँच गिरफ़्तारी का प्रावधान वापस आ गया है। पुरानी व्यवस्था की तरह एक बार फिर इस कानून के तहत अनुसूचित जाति/जनजाति के शिकायतकर्ता के FIR अधिकारी को आरोपित को तुरंत हिरासत में लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए राह प्रशस्त करते हुए अपने ही मार्च, 2018 के उस फैसले को पलट दिया जिसमें उनकी दो जजों की बेंच ने बड़ी संख्या में कानून के दुरुपयोग और झूठे केसों से बेगुनाहों की प्रताड़ना देखते हुए उसे रोकने के लिए बिना जाँच गिरफ़्तारी पर रोक लगाकर अग्रिम जमानत का प्रावधान, आम जनता की गिरफ़्तारी के लिए एसएसपी और लोकसेवक की गिरफ़्तारी के लिए नियोक्ता की अनुमति लेना आवश्यक करने जैसे निर्देश जारी किए थे। मोदी सरकार ने इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिस पर तीन-सदस्यीय बेंच सुनवाई कर रही थी।
कानून का दुरुपयोग जाति नहीं, “मानवीय विफ़लता” से होता है
जस्टिस अरुण मिश्रा, एम आर शाह और बीआर गवई की पीठ के अनुसार अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों का संघर्ष अभी भी जारी है। वे आज भी जातिगत आधार पर अस्पृश्यता, दुर्व्यवहार और सामाजिक परित्यक्तता का शिकार होते हैं। उन्हें संविधान के अनुच्छेद 15 में सुरक्षा मिलने के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट बेंच के अनुसार, सामाजिक दुर्व्यवहार और भेदभाव झेलना पड़ता है।
18 सितंबर को इस मामले की पहली सुनवाई में ही अदालत ने अपने संभावित फैसले की दिशा को लेकर संकेत दिए थे, जब तीन-सदस्यीय पीठ ने अपनी ही अदालत के दो-सदस्यीय बेंच के फैसले की आलोचना की थी। 20 मार्च, 2018 को दिए गए इस फैसले को संविधान की भावना के प्रतिकूल बताते हुए कहा था, “क्या विधान और संविधान के खिलाफ कोई फैसला केवल इसलिए दिया जा सकता है क्योंकि कानून का दुरुपयोग हो रहा है। क्या किसी व्यक्ति पर केवल उसकी जाति के चलते शक किया जा सकता है? कोई जनरल कैटेगरी का आदमी भी झूठी FIR कर सकता है।”
वहीं कानून के दुरुपयोग और झूठे मुकदमों से बेहाल लोगों के बारे में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बताया कि यह “मानवीय असफलता” (“human failure”) के चलते होता है न कि जातिवाद या जाति व्यवस्था के चलते।
Supreme Court partly allows the review petition filed by the Centre against Court’s judgement of ‘diluting’ various stringent provisions of SC/ST (Prevention of Atrocities) Act. pic.twitter.com/VLFOlxKAnr
— ANI (@ANI) October 1, 2019
पीठ ने कानून के प्रावधानों के अनुरूप ‘समानता लाने’ के लिए कुछ दिशा-निर्देश देने का संकेत देते हुए कहा था कि आजादी के 70 साल बाद भी देश में अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों के साथ ‘भेदभाव’ और ‘छुआछूत’ बरता जा रहा है। यही नहीं, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, न्यायालय ने हाथ से मलबा उठाने की कुप्रथा और सीवर तथा नालों की सफाई करने वाले SC/ST समुदाय के लोगों की मृत्यु पर गंभीर रुख अपनाते हुए कहा था कि दुनिया में कहीं भी लोगों को ‘मरने के लिये गैस चैंबर’ में नहीं भेजा जाता है।