Saturday, April 20, 2024
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सूरत की सोसाइटी में खड़ी हो गई ‘मस्जिद’, होने लगा नमाज: ‘वक्फ’ के नाम पर संपत्ति ट्रांसफर का खेल, किसी की अनुमति की ज़रूरत नहीं

"कल को आपका मुस्लिम पड़ोसी अपने घर को वक्फ से रजिस्टर कर के इसे मस्जिद घोषित कर दे और वहाँ नमाज के लिए जमावड़ा लगने लगे, तो आप कुछ नहीं कर सकते।"

सोशल मीडिया पर शनिवार (22 जनवरी, 2022) को एक वीडियो खासा वायरल हुआ, जिसके आधार पर आरोप लगाया गया कि ‘बजरंग दल’ के कार्यकर्ताओं ने गुजरात के सूरत के मोरा गाँव स्थित एक ‘मस्जिद’ में नमाज को रोक दिया और हंगामा किया। इसके बाद सूरत के कॉन्ग्रेस पार्षद असलम साइकिलवाला का एक फेसबुक पोस्ट आया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उक्त ‘शिव शक्ति सोसाइटी’ के भीतर बनी संरचना जिसमें नमाज हो रही थी, वो वक्फ बोर्ड की संपत्ति है।

उन्होंने उसे एक मस्जिद/मदरसा भी बताया। जिस जगह पर नमाज हो रही थी, वो चारुयसी तालुका के कंथा क्षेत्र में हजीरा के पास स्थित है। असलम ने दावा किया कि ‘गुजरात वक्फ बोर्ड’ की संपत्ति होने के कारण ये मस्जिद/मदरसा है। उन्होंने कहा कि इसी कारण ये मुस्लिमों के लिए एक पवित्र स्थल है। उन्होंने दावा किया कि इच्छापुर पुलिस थाने में ये सहमति बनी थी कि कोरोना दिशानिर्देशों के कारण इस जगह पर मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति मिलेगी।

अब इस सोसाइटी में रहने वाले और आपसास के सभी मुस्लिम यहाँ आकर नमाज पढ़ते हैं। इस फेसबुक पोस्ट में बताया गया है कि शनिवार को ही PI और PSI की मौजूदगी में एक बैठक हुई, जिसमें मोरा गाँव् के कई प्रतिष्ठित लोग मौजूद थे। इसमें मौलाना फैयाज लटूरी, असलम साइकिलवाला, खुर्शीद सैयद और मकदूर रँगूनी जैसे कई मुस्लिम नेता भी मौजूद थे। एक वीडियो में एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि कोविड-19 के खतरे से उबरने के बाद लोगों की एक बैठक होगी, जिसमें ये तय किया जाएगा कि बाहरियों को यहाँ नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए या नहीं।

जनवरी 2022 की शुरुआत में गाँधीनगर की संस्था ‘एकता एज लक्ष्य’ ने 33 जिलों के कलक्टरों एवं प्रमुखों को एक पत्र लिख कर आग्रह किया कि वक्फ बोर्ड को भंग किया जाए। संस्था ने आरोप लगाया था कि वक्फ बोर्ड अवध रूप से सरकारी, अर्ध सरकारी और प्राइवेट संपत्तियों को अपने कब्जे में ले रहा है। इसके लिए ‘वक्फ एक्ट, 1995’ के नियम-कानूनों का उल्लंघन किया जाता है। पत्र में लिखा था कि भारतीय सशस्त्र बलों और रेलवे के आल्वा वक्फ बोर्ड के पास ही सबसे ज्यादा संपत्ति है।

इस एक्ट में हिन्दुओं के लिए कोई प्रस्ताव नहीं है। इसमें आरोप लगाया गया था कि इसमें सिर्फ एक ही समुदाय के लिए सारे प्रावधान हैं, इसीलिए ये देश के संविधान की सेक्युलर विचारधारा के विरुद्ध है। इसमें लिखा गया था कि संविधान के खिलाफ कोई नियम-कानून नहीं हो सकता और वक्फ बोर्ड को गैर-इस्लामी समुदायों की भावनाओं की कोई फ़िक्र नहीं है। इसमें भेदभाव वाली नीति है। इसमें आरोप लगाया गया था कि वक्फ बोर्ड के पास असीमित शक्तियाँ हैं, जिनका दुरुपयोग कर के आम आदमी को परेशान किया जाता है।

इसमें बताया गया था कि जुलाई 2020 तक वक्फ बोर्ड के पास 6,59,877 अचल संपत्तियाँ हैं। इनका क्षेत्रफल 8 लाख हेक्टेयर है, जिन पर बोर्ड का रजिस्ट्रेशन है। इसमें लिखा था, “इस तरह अवैध तरीके से संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेना ‘लैंड जिहाद’ का हिस्सा है। ये देशव्यापी साजिश है, इसीलिए भेदभाव वाले नियम-कानून को बदला जाना चाहिए। सेक्युलर राष्ट्र में इसकी कोई जरूरत नहीं।” सूरत और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्तियों को वक्फ बोर्ड्स को ट्रांसफर किए जाने की कई घटनाएँ सामने आई हैं।

‘वक्फ’ का अर्थ ही है कि किसी मुस्लिम व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति को इस्लामी कार्यों के लिए दान करना इस्लाम के कानून के हिसाब से पुण्य का कार्य माना जाता है। ये एक प्रकार की ‘इस्लामी चैरिटी’ है। इसके अनुसार बोर्ड के साथ रजिस्टर्ड संपत्ति ‘वक्फ’ हो जाती है, अगर व्यक्ति की मौत भी हो जाए तो। इसी तरह ताज़ा मामले में भी ‘शिव शक्ति सोसाइटी’ के कुछ प्लॉट्स मुस्लिमों को बेचे गए थे। इनमें से एक प्लॉट पर एक संरचना खड़ी कर दी गई और उस पर नमाज होने लगी।

2020 में कोरोना संक्रमण आपदा की पहली लहर के दौरान ही एक मुस्लिम व्यक्ति ने अपनी संपत्ति को वक्फ के नाम रजिस्टर कर दिया। इसे मस्जिद/मदरसा के रूप में रजिस्टर कर के यहाँ नमाज पढ़ा जाने लगा। लोगों ने वक्फ के नियमों को एकतरफा बताया है। कोई भी अपनी संपत्ति को ‘वक्फ’ बता कर इसे इस रूप में रजिस्टर कर सकता है। कोई पड़ोसी इसमें कुछ नहीं कर सकता। शहरी क्षेत्रों में ‘डिस्टर्ब एरिया एक्ट’ के कारण जागरूकता भी है, लेकिन गाँवों में लोग कुछ समझ नहीं पाते।

इस सम्बन्ध में एक वकील ने ऑपइंडिया से बातचीत करते हुए बताया, “वक्फ में संपत्ति को रजिस्टर करने के लिए किसी की अनुमति की ज़रूरत नहीं है। ये एकतरफा फैसला होता है। सामान्यतः सोसाइटी के अध्यक्ष या कमिटी की अनुमति चाहिए होती है,अगर आप अपनी संपत्ति ट्रांसफर कर रहे हैं तो। इससे अवैध करारों से बचा जा सकता है। लेकिन, कल को आपका मुस्लिम पड़ोसी अपने घर को वक्फ से रजिस्टर कर के इसे मस्जिद घोषित कर दे और वहाँ नमाज के लिए जमावड़ा लगने लगे, तो आप कुछ नहीं कर सकते।”

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Nirwa Mehta
Nirwa Mehtahttps://medium.com/@nirwamehta
Politically incorrect. Author, Flawed But Fabulous.

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