Wednesday, November 27, 2024
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कॉन्ग्रेस पर सुप्रीम कोर्ट के ‘न्याय’ का हथौड़ा: 40 साल पहले किया था सरकारी संसाधन का FREE उपयोग, अब देना होगा 1 करोड़ रुपया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (19 जनवरी 2024) को एक महत्वपूर्ण फैसले में कॉन्ग्रेस को 1 करोड़ रुपए जमा कराने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि पार्टी ने 1981 से 1989 तक राज्य की सत्ता में रहने के दौरान राजनीतिक रैलियों उत्तर प्रदेश राज्य पथ परिवहन निगम की बसों का इस्तेमाल किया गया था, जिसका भुगतान नहीं किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (19 जनवरी 2024) को एक महत्वपूर्ण फैसले में कॉन्ग्रेस को 1 करोड़ रुपए जमा कराने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि पार्टी ने 1981 से 1989 तक राज्य की सत्ता में रहने के दौरान राजनीतिक रैलियों उत्तर प्रदेश राज्य पथ परिवहन निगम की बसों का इस्तेमाल किया गया था, जिसका भुगतान नहीं किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी (UPCC) की याचिका पर राज्य सरकार और उत्तर प्रदेश राज्य पथ परिवहन निगम (UPSRTC) को नोटिस जारी किए। कोर्ट ने कॉन्ग्रेस पार्टी को चार सप्ताह के भीतर एक करोड़ रुपए जमा करने का निर्देश दिया है।

वहीं, कॉन्ग्रेस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि यह तय होना चाहिए कि इस मामले में किस हद तक सरकार की जिम्मेदारी बनेगी और किस हद तक राजनैतिक दल की। अगर राजनैतिक दल ने कॉन्ट्रैक्ट किया है तो उसे उस करार के आधार पर भुगतान करना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि कुल 2.68 करोड़ रुपए की राशि विवादित है।

इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “राशि का विरोध करने के लिए यदि आप दीवानी मुकदमा दायर करते हैं तो निर्णय आने में 20-30 साल लगेंगे। उसके बाद पहली अपील, दूसरी अपील और अन्य कार्यवाही होगी। इसके बजाय, हम याचिकाकर्ता की वास्तविक देनदारी निर्धारित करने के लिए एक मध्यस्थ नियुक्त करने के बारे में सोच रहे हैं।”

पीठ ने कहा कि प्रामाणिकता स्थापित करने के लिए वह प्रदेश कॉन्ग्रेस को कुल बकाया की एक निश्चित राशि जमा करने का निर्देश देगी। पीठ ने कहा, “शुरुआत में हम आधी राशि जमा करने का आदेश देने के बारे में सोच रहे थे, लेकिन फिर हमने सोचा कि एक करोड़ रुपए प्रामाणिकता स्थापित करने के लिए पर्याप्त होंगे।”

दरअसल, उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस ने साल 1998 में दायर एक रिट याचिका के सिलसिले में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 5 अक्टूबर 2023 को दिए गए आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसमें प्रदेश कॉन्ग्रेस ने लखनऊ सदर के तहसीलदार द्वारा जारी वसूली नोटिस को चुनौती दी थी।

यह कार्यवाही उत्तर प्रदेश राज्य पथ परिवहन निगम (UPSRTC) के प्रबंध निदेशक के कहने पर शुरू की गई थी। इसमें दावा किया गया था कि प्रदेश कॉन्ग्रेस पर 2.68 करोड़ रुपए (2,68,29,879.78 रुपए) की राशि बकाया है और वह इसे वसूलने का हकदार है।

हाईकोर्ट ने इसमें विभिन्न बिलों तथा UPSRTC के 2 अप्रैल 1981 के एक पत्र का संज्ञान लिया है। इस पत्र में कहा गया है कि 16 फरवरी 1981 को उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस ने किसान रैली आयोजित की थी, जिसके लिए उसके बसों का इस्तेमाल किया गया था। इन बसों का किराया 6.21 लाख रुपए से अधिक का बकाया है।

इसी तरह 16 दिसंबर 1984 के एक अन्य पत्र में कहा गया था कि 19 नवंबर 1984 को दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की अस्थियों को श्रद्धांजलि देने के लिए आने-जाने लोगों को वाहन उपलब्ध कराया गया था, जिसका किराया 8.69 लाख रुपए बाकी है। इस तरह इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन महीने के भीतर 2.66 करोड़ रुपए भुगतान का निर्देश दिया था।

हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया था कि वह UPSRTC को देय तिथि से 5 प्रतिशत ब्याज के साथ तीन महीने की अवधि के भीतर 2.66 करोड़ रुपए का पूरा भुगतान करे। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस मनीष कुमार और जस्टिस विवेक चौधरी की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि कॉन्ग्रेस ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सरकारी बसों का इस्तेमाल किया था।

इस पर कॉन्ग्रेस ने अपनी याचिका में कहा था कि यह रकम राजनीतिक प्रतिशोध के तौर पर और याचिकाकर्ता को राजनीतिक दबाव में लाने के इरादे से वसूली जा रही है। इस पर अदालत ने कहा था कि परिवहन निगम ने उन्हें बिल दिए थे, लेकिन 25-30 सालों से भुगतान लंबित रखा गया। अदालत ने फटकार लगाते हुए कहा था कि यह कहते हुए बिल का भुगतान करने से नहीं बचा जा सकता है कि ये राजनीतिक बदला है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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