Saturday, April 20, 2024
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तलवार, चाकू, बम लेकर हुआ जब मराड का हिंदू नरसंहार: कट्टरपंथी-वामपंथी मिलीभगत का एक नमूना, मस्जिदों में मिले थे हथियार

मराड बीच पर उस दिन कट्टरपंथियों की भीड़ अपने हाथ में तलवार, चाकू, लाठी, डंडे लेकर आई। निहत्थे हिंदू कुछ समझ पाते कि तब तक ये भीड़ पागलों की तरह हर दिशा में फैल गई। देखते ही देखते हिंदुओं को धारदार हथियारों से मारना शुरू कर दिया गया।

हिंदुओं के नरसंहारों की अंतहीन सूची में, एक कत्लेआम की बर्बर दास्तां 2 मई की तारीख में भी दर्ज है। 19 साल पहले आज ही केरल के मराड में 8 निर्दोष हिंदू मछुआरों को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) व इंडियन मुस्लिम लीग (IUML) के इस्लामी कट्टरपंथियों और सीपीआई (एम) जैसे वामपंथी संगठनों की मिलीभगत ने मौत के घाट उतारा था।

2003 में मराड का हिंदू नरसंहार

बताया जाता है कि 2 मई 2003 को मराड में उस घटना को अंजाम देने के लिए तलवार, चाकू, देसी बम पहले से मस्जिद में छिपाए गए थे। इन सब हथियारों का इस्तेमाल बाद में कट्टरपंथियों द्वारा हिंदुओं को मारने के लिए किया गया। हमले में 8 हिंदुओं की निर्मम मौत हुई थी जबकि 2 महिला समेत 16 हिंदू गंभीर रूप से घायल हुए थे।

शुक्रवार के दिन घटना को अंजाम उस समय दिया गया जब एक ओर हिंदू मछुआरे आने वाले खतरे से अनभिज्ञ मराड बीच के किनारे बैठ शांति से बात कर रहे थे और दूसरी ओर पास के मंदिर में पूजा पाठ करके श्रद्धालु घर लौट रहे थे। माहौल शांत था इसलिए किसी को कोई शक भी नहीं हुआ। मगर इसी बीच अचानक कट्टरपंथियों की भीड़ ने सामने से आकर उस शांत माहौल में दहशत फैला दी।

कट्टरपंथियों की इस भीड़ के हाथ में तलवार, चाकू, लाठी, डंडे सब थे। हिंदू कुछ समझ पाते कि तब तक ये भीड़ पागलों की तरह हर दिशा में फैल गई। देखते ही देखते हिंदुओं को धारदार हथियारों से मारना शुरू कर दिया गया। भीड़ के शोर और पीड़ितों की चीख धीरे-धीरे बढ़ती गई कि तभी हमलावरों में से किसी एक ने बम फेंक कर अपना डर कायम करना चाहा। शुक्र बस इतना था कि वो बम मौके पर फटा नहीं। वरना न जाने कितने हिंदुओं की जान उसमें चली जाती।

मस्जिद लौट गए हमलावर, औरतों ने बनाई ह्यूमन चेन

हिंदुओं को बर्बरता से मौत के घाट उतारने के बाद तमाम हमलावर वापस जुमा मस्जिद चले गए। वहाँ उन्होंने दोबारा अपने खून से सने कपड़े और हथियारों को छिपाया। इस पूरे प्रकरण दौरान मुस्लिम महिलाओं की भूमिका भी कुछ कम नहीं थी। जिस समय सारे आरोपित मस्जिद के भीतर सबूत मिटा रहे थे तब स्थानीय मुस्लिम औरतों ने ह्यूमन चेन बना ली थी और पुलिस को मस्जिदों में घुसने से रोका था। किसी तरह पुलिस ने इस चेन को तोड़कर एंट्री की तो पाया कि मस्जिद के अंदर 90 देसी बम और 40 चाकू थे।

मराड नरसंहार- एक पूर्वनियोजित साजिश

2003 का ये हिंदू नरसंहार कोई अचानक घटित घटना नहीं थी। ये एक पूर्व नियोजित साजिश थी। जिसे पीएफआई, पीडीपी, मुस्लिम लीग के कट्टरपंथियों ने रचा था। घटना के बाद इसकी जाँच के लिए एक आयोग गठित हुआ और घटना की जाँच हुई। पड़ताल के दौरान हैरान करने वाले तथ्य सामने आए और पता चल पाया कि इस हमले को अंजाम देने की फिराक में तो कट्टरपंथी 1 साल पहले से थे। वो 2002 से कुछ मुस्लिमों की मौतों का बदला लेना चाहते थे जिनकी जान एक पानी विवाद के कारण दो पक्षों के बीच हुई झड़प में गई थी। इसी घटना का बदला लेने के लिए इन्होंने मस्जिद में बम, पेट्रोल बम, तलवार, चाकू, लोहे की रॉड, डंडे आदि छिपाए थे और 2 मई की शाम अचानक मराड बीच पर बैठे हिंदुओं पर हमला किया था।

वामपंथी-कट्टरपंथी की मिलीभगत और हिंदू नरसंहार

इस जाँच में मुस्लिम लीग के लोगों को भी समन भेजा गया जिन्होंने स्वीकार किया था कि ये हमला उन मुस्लिमों की मौत का बदला लेने के नीयत से हुआ जो हिंदुओं के साथ झड़प में मारे गए थे। अपना पल्ला झाड़ने के लिए मुस्लिम लीग ने  सारा इल्जाम भाजपा और आरएसएस पर डालना चाहा। हालाँकि हमलावरों को पकड़कर जब पूछताछ हुईं तो ये सामने आया कि ये घटना एक साजिश के तहत अंजाम दी गई। इसे रचने वाले मुस्लिम संगठन के अलावा कॉन्ग्रेस और एनडीएफ संगठन के भी थे।

इसके अलावा केरल की वामपंथी सरकार पर इस घटना के बाद आरोप लगा कि उनके दबाव के कारण पुलिस इस घटना को रोकने की जगह मूक दर्शक बनी रही जबकि उन्हें पहले से आने वाले खतरे की सूचना थी। रिपोर्ट दावा करती हैं कि पुलिस की मौजदूगी में उस दिन हिंदुओं के घरों को, मछुआरों की नावों को आगे के हवाले किया गया था, तब भी कोई चूँ नहीं निकली। स्थानीयों को भी शक रहा कि इतनी बड़ी हिंसा बिन प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत के कैसे अंजाम दे दी गई। लोग आरोप लगाते हैं कि ये पूरी घटना पाकिस्तान से फंड पाकर वामपंथियों-कट्टरपंथियों ने प्लॉन की थी ताकि मराड को हिंदूविहीन किया जा रहे थे।

मालूम हो कि मराड के नरसंहार को आज 19 साल हो गए हैं। साल 2009 में हिंसा को अंजाम देने वाले 148 आरोपितों में 62 को उम्र कैद की सजा गई और 1 पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगाकर 5 साल की सजा सुनाई गई। कुछ समय बाद केरल के हाई कोर्ट ने 24 अन्य और आरोपितों को आजीवन जेल की सजा मुकर्रर की और सुनवाई के दौरान पाया कि ये हिंसा हिंदुओं के विरुद्ध एक गहरी साजिश थी। 2021 में इसी मामले में 2 और लोग दोषी बनाए गए जो 2010-11 के बाद से फरार थे।

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