भारत में तेज गति से बढ़ रहे संक्रमण के बीच मीडिया समूहों द्वारा की जा रही ‘गिद्ध रिपोर्टिंग’ पर संज्ञान लेते हुए मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित चिकित्सकों के एक समूह ने न्यूज मीडिया आउटलेट्स को ओपन लेटर लिखा है। इसमें चिकित्सकों ने मीडिया समूहों से अपील की है कि वह नकारात्मक रिपोर्टिंग छोड़कर लोगों पर बेहतर प्रभाव डालने वाली रिपोर्टिंग करें। उन्होंने मीडिया आउटलेट्स से अपील की है कि वे सकरात्मकता की कहानियाँ लोगों के सामने लेकर आएँ।
ओपन लेटर लिखने वाले इस समूह में नई दिल्ली के नेशनल मेडिकल कमीशन के एथिक्स एण्ड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. बीएन गंगाधर, बैंगलोर की NIMHANS में मनश्चिकित्सा (Psychiatry) की HOD एवं प्रोफेसर प्रतिमा मूर्ति, भारतीय मनश्चिकित्सा सोसायटी के अध्यक्ष गौतम साहा और दिल्ली एम्स में मनश्चिकित्सा के प्रोफेसर राजेश सागर शामिल हैं।
An open letter released by Dr. BN Gangadhar and other mental health professionals pic.twitter.com/C1lGhWbgu8
— ANI (@ANI) April 28, 2021
मीडिया की संवेदनशीलता मुद्दों पर रिपोर्टिंग :
इस ओपन लेटर में कहा गया है कि मीडिया एक समय में कई करोड़ों लोगों के साथ संपर्क स्थापित करने की क्षमता रखता है। मीडिया के द्वारा पेश की गई रिपोर्ट टेलीविजन, मोबाईल और समाचारपत्रों के माध्यम से लगातार लोगों तक पहुँचती रहती है। ऐसे में श्मशानों में जलती हुई लाशों को दिखाकर, रोते-बिलखते लोगों की तस्वीरों और वीडियो दिखाकर, संवेदनशील क्षणों को कैमरा में कैद करके कुछ समय के लिए सनसनी पैदा की जा सकती है और इससे लोगों का ध्यान भी खींचा जा सकता है लेकिन ऐसी रिपोर्टिंग की कीमत भारी हो सकती है।
लेटर में यह भी कहा गया है कि जबकि देश के अधिकांश लोग विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों के कारण अपने घरों में है ऐसे में वो टेलीविजन और अपने मोबाईल के माध्यम से बाहरी दुनिया की खबरों से जुड़े हैं। लोग इस समय पहले से ही अवसाद और महामारी की कठिनाईयों से जूझ रहे हैं लेकिन संवेदनशील मुद्दों पर सनसनीखेज रिपोर्टिंग और निराशा एवं भय के विजुअल देखने से लोग और भी अवसाद में जा सकते हैं।
लेटर में उदाहरण दिया गया है कि यदि कोई Covid-19 संक्रमित मरीज ऐसी रिपोर्टिंग के माध्यम से निराशा भरी खबरों को देखेगा तो उसके भीतर से सकरात्मकता जाती रहेगी और जलती चिताओं को देखकर उसके मन में चिंता का भाव ही उत्पन्न होगा।
तर्क, तथ्य और उचित परिस्थितियों पर आधारित रिपोर्टिंग की सलाह :
इस ओपन लेटर में डॉक्टरों के समूह द्वारा यह बताया गया है कि किसी भी वस्तु की कमी को उजागर करना सही है ताकि उस पर कार्रवाई हो सके किन्तु यह बताना कि उस वस्तु की कमी हर जगह है, गलत है। जिस स्थान पर वस्तु की कमी है उसे दिखाना चाहिए लेकिन जहाँ कमी नहीं है उसे भी बराबर महत्व देते हुए दिखाना चाहिए।
लेटर में माँग तथा आपूर्ति के चक्र का उदाहरण दिया गया है और उसे मानवीय व्यवहार से जोड़ा गया है। मनोचिकित्सकों ने बताया कि मानव की प्रवृत्ति ही यही है कि वो जिस वस्तु की कमी के बारे में जितना सुनता है उतना ही उस वस्तु को संग्रहित करना शुरू कर देता है भले ही वह वस्तु उसके काम की हो या न हो। इसी प्रवृत्ति के कारण एक चक्र बन जाता है और अधिक संग्रह करने के कारण वस्तु की कमी बढ़ती जाती है।
क्या दिखाना है क्या नहीं :
डॉक्टरों के समूह द्वारा लिखे गए इस ओपन लेटर में कहा गया है कि मीडिया को यह दिखाना चाहिए कि मरीज को किस प्रकार से दवाई लेनी है, अस्पताल की जरूरत कब है, ऑक्सीजन की जरूरत कब है, कितने लोग Covid-19 से संक्रमण के बाद भी घर में ही ठीक हुए, संस्थाएँ किस प्रकार से महामारी के इस दौर में लोगों की मदद कर रही हैं। ऐसा करने से लोग सकारात्मक व्यवहार करेंगे और महामारी का यह पहलू भी सबके सामने आएगा।
मीडिया आउटलेट्स से निवेदन करते हुए इस लेटर में मनोचिकित्सकों द्वारा कहा गया है कि पत्रकारों को यह महसूस करना चाहिए कि जब रिपोर्टिंग करते समय उन पर ही नकारात्मकता हावी हो सकती है तो आम आदमी जो दिन भर यही खबरें देखता है उसके जीवन पर इन खबरों का कैसा प्रभाव होगा।
लेटर में अंत में मीडिया कर्मियों और न्यूज समूहों से प्रार्थना की गई है कि मीडिया इस महामारी में एक महत्वपूर्ण किरदार निभा सकता है लेकिन डर और लाशों की रिपोर्टिंग करके नहीं बल्कि सकरात्मक और विश्वसनीय खबरों को दिखाकर।
हाल ही में कई ऐसी खबरें आई थीं जहाँ मीडिया समूहों ने जलती लाशों और श्मशान की रिपोर्टिंग की, फेक खबरें चलाईं। इस पर ही संज्ञान लेते हुए डॉ. बीएन गंगाधर एवं अन्य ने मीडिया समूहों को अपनी रिपोर्टिंग पर ध्यान देने और सकारात्मक व्यवहार करने की सलाह दी है।