Wednesday, April 24, 2024
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CM योगी के TTTT ने कोरोना महामारी में किया कमाल: यूपी मॉडल को IIT कानपुर ने सराहा, जारी की विस्तृत स्टडी रिपोर्ट

देश में सबसे अधिक आबादी वाला राज्य होने के बावजूद, यूपी मार्च 2020 से जुलाई 2021 तक महामारी के दौरान भी बेरोजगारी दर को 11% से 4% तक कम करने में कामयाब रहा। यूपी की बेरोजगारी दर वर्तमान में राष्ट्रीय औसत से कम है।

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल (Prof Manindra Aggarwal) के नेतृत्व में प्रोफेसरों की एक टीम ने 11 अक्टूबर, 2021 को कोविड-19 के प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के सफल मॉडल पर एक स्टडी रिपोर्ट जारी किया। इसमें बताया गया कि कैसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार ने आर्थिक गतिविधियों को सुनिश्चित किया और टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट एंड टैकल (TTTT) के स्ट्रॅटजी के साथ संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित किया। देश में सबसे अधिक आबादी वाला राज्य होने के बावजूद, यूपी मार्च 2020 से जुलाई 2021 तक महामारी के दौरान भी बेरोजगारी दर को 11% से 4% तक कम करने में कामयाब रहा। बता दें कि, यूपी की बेरोजगारी दर वर्तमान में राष्ट्रीय औसत से कम है।

भारत ने अब तक कोरोनावायरस महामारी की दो लहरें देखी हैं। ऐसे में 11 सितंबर, 2020 को एक दिन में 97,655 नए मामलों के साथ पहली लहर अपने चरम पर पहुँच गई थी। तो वहीं दूसरी लहर, अभूतपूर्व संख्या में संक्रमण के नए मामले लेकर आई और 6 मई, 2021 को 414,280 मामलों के एक दिन के उच्च स्तर के साथ अपने चरम पर पहुँच गई। देश में इतनी बड़ी संख्या में आए कोविड के मामलों में उत्तर प्रदेश का भी अपना हिस्सा था। जहाँ पहली लहर के दौरान, यूपी में एक दिन में सर्वाधिक 7,016 मामले आए वहीं दूसरी लहर में, यह संख्या पाँच गुना अधिक थी। 24 अप्रैल, 2021 को यूपी में कोरोना अपने चरम पर पहुँच गई, जिसमें एक ही दिन में 37,944 मामले सामने आए।

संख्या के मामले में यूपी ने कैसा प्रदर्शन किया है, इसका निर्धारण करते समय, यह ध्यान रखना होगा कि जनसंख्या के मामले में, यह भारत में सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। पिछले डेढ़ वर्षों के दौरान, राज्य प्रशासन ने राज्य में व्यावसायिक गतिविधियों को नहीं रोकना सुनिश्चित करते हुए संख्याओं पर अंकुश लगाने के लिए युद्ध स्तर पर कोविड प्रबंधन रणनीति को आगे बढ़ाया। वास्तव में, अध्ययन में बताया गया है कि यूपी ने पिछले डेढ़ साल के दौरान 2.67 लाख अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) जारी किए थे, जो दर्शाता है कि सरकार आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध थी।

राज्य सरकार के मुख्य उद्देश्य

कोविड प्रबंधन रणनीतियों की योजना बनाते समय, आम जनता पर कम से कम तनाव हो यह सुनिश्चित करने के लिए यूपी सरकार के कुछ उद्देश्य थे।

  • पहला उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि नागरिकों, विशेष रूप से वंचित और प्रवासी श्रमिकों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
  • राज्य सरकार के लिए, आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखना सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण था।
  • वायरस के प्रसार को रोकने और इसे राज्य के कोने-कोने में फैलने से रोकने के लिए यह आवश्यक था।
  • अंत में, सरकार ने संक्रमण के बढ़ते भार को प्रबंधित करने के लिए स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने पर बड़े पैमाने पर काम किया।

कोरोना के प्रसार पर यूपी ने कैसे लगाई लगाम

यूपी सरकार राज्य में कारोबार सुचारू रूप से चलाना सुनिश्चित करना चाहती थी। दिलचस्प बात यह है कि वायरस की दूसरी विनाशकारी लहर के दौरान, छोटे नियंत्रण क्षेत्रों (containment zones) को बंद कर दिया गया था, लेकिन बाकी कारोबार हमेशा की तरह आगे बढ़ता रहा। यहाँ यह समझने योग्य है कि जब महामारी के दौरान व्यवसायिक गतिविधियाँ जारी रहती हैं, तो वायरस के तेजी से फैलने की संभावना हमेशा बनी रहती है। इस प्रकार, यूपी सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण था कि जिस समय या जहाँ से इसका प्रसार शुरू हो, उसी समय उसे वहीं पर रोका जाए।

अध्ययन से पता चला कि यूपी सरकार ने महामारी के दौरान आयुष मंत्रालय के सिफारिशों के आधार पर 33 लाख से अधिक प्रतिरक्षा बूस्टर किट वितरित किए। हल्के मामलों के लिए, सरकार ने घरेलू प्रबंधन रणनीतियों का गठन किया जिससे रोगियों को घर पर जल्दी और कुशलता से ठीक होने में मदद मिली, जिससे अस्पतालों पर दबाव कम हुआ। व्यापक परीक्षण और निगरानी ने संक्रमण के प्रसार का पता लगाने और हाथ से बाहर जाने से पहले इसे नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नियंत्रण क्षेत्र के स्मार्ट प्रबंधन ने यह सुनिश्चित करने में भी मदद की कि संक्रमण जल्दी से दूर हो जाए। साथ ही विपक्षी नेताओं द्वारा टीकाकरण के खिलाफ चलाए गए तमाम प्रोपेगेंडा के बावजूद टीकाकरण कार्यक्रम में तेजी लाने से राज्य में कोविड-19 को नियंत्रित करने में मदद मिली।

यूपी सरकार द्वारा किए गए प्रयासों ने सकारात्मक परिणाम दिखाए और अध्ययन से पता चला कि यूपी ने सबसे अधिक मामलों की संख्या के साथ शीर्ष दस राज्यों में 98.6% पर उच्चतम रिकवरी रेट दर्ज किया। इसी तरह, जैसा कि राज्य ने TTTT दृष्टिकोण पर जोर दिया, राज्य का पॉजिटिविटी अनुपात 0.0% से भी कम था। विशेष रूप से, राज्य ने 31 जुलाई 2021 तक महामारी के दौरान 6.6 करोड़ परीक्षण किए। यूपी में सबसे कम सक्रिय मामले प्रति मिलियन (3) और मृत्यु प्रति मिलियन (97) थे।

यूपी में अप्रवासी मजदूरों का संकट

मार्च-अप्रैल 2020 में पूरे भारत में जब लॉकडाउन की घोषणा के बाद, प्रवासी श्रमिक मौका मिलते ही अपने गृह राज्यों में वापस जाने लगे। अध्ययन में बताया गया है कि कोविड की पहली लहर के दौरान लगभग 35 लाख प्रवासी श्रमिक विभिन्न राज्यों से यूपी वापस आए। ऐसे में राज्य सरकार द्वारा कई रणनीतियों को अपनाया गया था। जिसमें प्रवासी श्रमिकों को आजीविका प्रदान करने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक समाधान दोनों शामिल थे। साथ ही, यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण था कि पहली लहर के बाद श्रमिक वापस यहीं रहें ताकि भविष्य में ऐसी किसी कठिनाई का सामना न करना पड़े।

स्रोत- IIT कानपुर

यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रवासी श्रमिकों को स्वास्थ्य सेवा का लाभ मिले और राज्य आगे ऐसे किसी भी प्रकोप को रोक पाए, राज्य भर में कई परीक्षण सुविधाएँ और परीक्षण कियोस्क स्थापित किए गए थे। प्रवासी श्रमिकों को यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह घर पर रहकर लॉकडाउन के नियमों का पालन करें उन्हें 1,000 रुपए की तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान किया गया था। जिससे वे केंद्रीय स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा अनिवार्य रूप से सुझाए गए क्वारंटाइन नियमों के तहत घर पर रहें। राज्य ने न केवल राष्ट्रीय और राज्य योजनाओं के तहत मुफ्त राशन वितरित किया, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए सामुदायिक रसोई भी स्थापित की कि कोई भी भूखा न रहे।

वहीं राज्य ने प्रवासी श्रमिकों के लिए एक अभिनव कौशल मैपिंग की पहल भी की। इसने उन्हें विभिन्न योजनाओं के तहत उनके कौशल के अनुसार रोजगार प्रदान करने में मदद की। अध्ययन से पता चलता है कि राज्य ने लगभग 16 लाख प्रवासी श्रमिकों का कौशल मैपिंग किया। यूपी ने एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी बनाया ताकि श्रमिक मंडियों में जाने के बजाय वे अपने स्मार्टफोन पर नौकरी ढूँढ सकें। जबकि कोविड की दोनों लहरों के दौरान श्रमिकों को सबसे अधिक नौकरियाँ निर्माण क्षेत्र में प्रदान की गईं, अन्य नौकरियों में पेंटिंग, बढ़ई, ड्राइवर, प्लंबर, रसोइया, चाइल्ड केयरटेकर, इलेक्ट्रीशियन और ऐसे ही कई अन्य रोजगार शामिल थे।

स्रोत- IIT कानपुर

मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रवासी कामगारों द्वारा किए गए कुछ काम सूखे से बचाव, मत्स्य पालन, सूक्ष्म सिंचाई कार्य, भूमि विकास, ग्रामीण बुनियादी ढाँचा निर्माण जैसे कई दूसरे काम भी थे। अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 18 जिलों में, मनरेगा के तहत महिला प्रवासी श्रमिकों को 40-95% काम दिया गया।

स्रोत- IIT कानपुर

कोविड -19 की दोनों लहरों के दौरान दिहाड़ी मजदूरों, रेहड़ी-पटरी वालों, कुलियों, रिक्शा चालकों, प्रवासी कामगारों सहित गरीब लोगों को डीबीटी के माध्यम से खाद्यान्न और मौद्रिक लाभ के रूप में वित्तीय सहायता भी प्रदान की गई। पीएमजीकेएवाई योजना के तहत मूल आवंटन के अलावा, दूसरी लहर के दौरान मई और जून में ऐसे परिवारों के प्रत्येक सदस्य को अतिरिक्त खाद्यान्न भी मुफ्त प्रदान किया गया।

सीमित संसाधनों से कोविड मैनेजमेंट में राज्य सरकार का बड़ा कमाल

इस साल अप्रैल और मई के दौरान एक ऐसा समय भी आया जब यूपी में प्रतिदिन 30,000 से अधिक मामले सामने आए थे। स्वास्थ्य ढाँचा चरमरा गया था। ऐसे में राज्य ने अस्पताल के बिस्तरों और चिकित्सा ऑक्सीजन की बढ़ी माँगों को पूरा करने के लिए युद्धस्तर पर काम किया। राज्य ने तेजी से स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे में वृद्धि की, स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या में वृद्धि की, ऑक्सीजन की कमी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर तेजी से काम किया, महत्वपूर्ण दवाओं की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की, पॉजिटिव मामलों की पहचान करने के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण किया और राज्यव्यापी लॉकडाउन के बजाय सूक्ष्म नियंत्रण क्षेत्र (कन्टेनमेंट जोन) बनाए।

स्वास्थ्य कर्मियों ने वायरस के प्रसार का पता लगाने और उसे रोकने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में, इन श्रमिकों ने संक्रमित लोगों का परीक्षण और उपचार करके कोरोना के प्रसार की शृंखला को तोड़ने में मदद की। उन्होंने ठीक होने के साथ-साथ स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना में भी मदद की। TTTT मॉडल के तहत, राज्य ने प्रति 1000 लोगों पर दो आशा कार्यकर्ता, एक आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और एक आँगनवाड़ी सहायिका को नियुक्त किया।

राज्य ने इन श्रमिकों को वॉयसओवर के साथ ऑडियो और वीडियो के माध्यम से प्रशिक्षित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित किए हैं। विशेषज्ञों ने क्षेत्र में काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए कैस्केड मॉडल भी बनाए। बेहतर प्रबंधन के लिए जिला स्तर और प्रखंड स्तर के अधिकारी केंद्रीय नीतियों से तालमेल में थे। तो वहीं केंद्र, यूपीटीएसयू, डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ से तकनीकी सहायता ने भी यूपी को कोविड प्रबंधन में मदद की।

स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा राज्य की प्राथमिकता थी। सरकार ने न केवल उन्हें पर्याप्त व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण जैसे पीपीई किट, मास्क, दस्ताने, सैनिटाइज़र आदि प्रदान किए, बल्कि उन्हें पीएमजेजेबीवाई, पीएमएसबीवाई और एकेबीवाई जैसी विभिन्न योजनाओं के तहत नामांकित भी किया।

हॉस्पिटल इंफ्रास्ट्रक्चर

न केवल योगी सरकार ने राज्य में आईसीयू बेड की उपलब्धता में वृद्धि की, बल्कि सबसे अधिक वेंटिलेटर लगाने की भी सूचना दी। कोविड रोगियों के लिए बेड, आईसीयू और वेंटिलेटर उपलब्ध कराते हुए, राज्य ने गैर-कोविड सेवाओं को बनाए रखना भी सुनिश्चित किया। जबकि सरकार ने होम आइसोलेशन के लिए सभी सहायता प्रदान की, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि एचआईवी, प्रत्यारोपण प्राप्तकर्ताओं, कैंसर चिकित्सा आदि जैसी समस्याओं से पीड़ित रोगियों के लिए इसकी अनुमति नहीं थी। 60 वर्ष से अधिक आयु के रोगियों या सह-रुग्ण स्थितियों वाले रोगियों के लिए उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि की तरह, होम आइसोलेशन की अनुमति देने से पहले उचित मूल्यांकन किया गया था।

गौरतलब है कि राज्य महामारी की संभावित तीसरी लहर के लिए बाल चिकित्सा सुविधाओं में तेजी ला रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बीमारी से पीड़ित बच्चों के लिए पर्याप्त चिकित्सा बुनियादी ढाँचा है।

इम्युनिटी बूस्टर किट्स

होम्योपैथिक किट राज्य में सबसे प्रसिद्ध थे, आयुष किट, आयुष 64, आयुष काढ़ा आदि जैसे आयुर्वेदिक किट राज्य भर में बड़े पैमाने पर वितरित किए गए थे।

ऑक्सीजन वितरण प्रणाली

अप्रैल के अंत से मई के मध्य तक 2021 में, सकारात्मक मामलों की अधिक संख्या के कारण, राज्य में ऑक्सीजन की माँग अपने चरम पर थी। इस अवधि के दौरान, उत्तर प्रदेश सहित भारत भर के कई अस्पतालों ने मेडिकल ऑक्सीजन की कमी की सूचना दी। हालाँकि ऑक्सीजन उपलब्ध थी, लेकिन आपूर्ति शृंखला पर्याप्त नहीं थी। भारत सरकार ने पूरे भारत के राज्यों में ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करने के लिए धन उपलब्ध कराया था, लेकिन अध्ययन से पता चलता है कि केवल यूपी और असम ने उन संयंत्रों को स्थापित करने में आगे कदम बढ़ाया। उत्तर प्रदेश ने ऑक्सीजन ट्रकों के लिए जीपीएस ट्रैकर्स का उपयोग करके एक व्यापक आपूर्ति शृंखला तैयार की ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह समय पर सभी अस्पतालों तक पहुँचे।

स्रोत- IIT कानपुर

78 सदस्यीय मजबूत टीम के साथ, यूपी की आपूर्ति शृंखला प्रबंधन के एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र ने 133 ऑक्सीजन टैंकरों के साथ 15 ऑक्सीजन संयंत्रों की निगरानी की, जो इन संयंत्रों से लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) को राज्य भर में विभिन्न स्थानों पर ले गए। भारतीय रेलवे ने भी यूपी तक ऑक्सीजन ले जाने के लिए ट्रेनों के माध्यम से सहायता प्रदान की। एलएमओ की आपूर्ति में लगने वाले समय को कम करने के लिए भारतीय वायु सेना ने खाली टैंकरों को ऑक्सीजन संयंत्रों तक पहुँचाया।

गौरतलब है कि विभिन्न योजनाओं के तहत, यूपी के लिए 549 ऑक्सीजन संयंत्र आवंटित किए गए थे। जिसमें से 31 जुलाई 2021 तक, 238 संयंत्र स्थापित किए जा चुके थे।

विशेष निगरानी अभियान

विशेष निगरानी अभियान पहल (वीएसएआई) यूपी सरकार द्वारा शुरू किया गया एक घर-घर निगरानी कार्यक्रम है। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू स्तर पर मामलों का पता लगाना और उन्हें ट्रैक करना था। दो सदस्यीय वीएसएआई टीम ने घरों का दौरा किया और उन्हें संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण के बारे में शिक्षित किया, रोगसूचक रोगियों (लक्षणों वाले) का पता लगाया और सह-रुग्णता (co-morbiditie) (जिनमें लक्षण साफ नहीं थे) वाले लोगों की पहचान की। उन्होंने जरूरत पड़ने पर सैंपल लिए और जाँच के लिए भेज दिए। इस कार्यक्रम ने ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसार को नियंत्रित करने में मदद की। अध्ययन से पता चला कि यूपी सरकार ने सभी ग्रामीण क्षेत्रों में 21,242 पर्यवेक्षकों के साथ ऐसी 141,610 टीमों को तैनात किया था।

टीकाकरण अभियान

राज्य ने प्रसार को रोकने के लिए टीकाकरण अभियान चलाया। 31 जुलाई तक 4.06 करोड़ लोगों को टीके की कम से कम एक खुराक मिल चुकी थी, जबकि 86 लाख लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया जा चुका था। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए मौजूदा आँकड़ों के अनुसार, राज्य में 9.16 करोड़ लोगों को कम से कम एक खुराक मिली है, जबकि 2.48 करोड़ लोगों का पूरी तरह से टीकाकरण हो चुका है।

सहायता पैकेज

अध्ययन से पता चला है कि यूपी सरकार ने कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान 3876962.97 मीट्रिक टन राशन वितरित किया। प्रति व्यक्ति औसत वितरण 16.29 किलोग्राम है। वितरण पीएमजीकेवाई के तहत किया गया था जिसे नवंबर 2021 तक बढ़ा दिया गया है। राज्य सरकार द्वारा 3.6 करोड़ परिवारों को पाँच किलोग्राम गेहूँ / चावल मुफ्त में वितरित किया जा रहा है।

स्रोत- IIT कानपुर

दूसरी लहर के दौरान, महिला लाभार्थियों के जन धन खातों में अप्रैल, मई और जून के महीनों के लिए 500 रुपए प्रति माह भेजे गए। इसके अलावा, 1000 रुपए बीपीएल व्यक्तियों, वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं और विकलांग व्यक्तियों को प्रदान किए गए। राज्य सरकार ने कंटेनमेंट जोन में काम बंद होने के कारण अपनी नौकरी गँवाने वाले निर्माण श्रमिकों को भी 1000 रुपए की सहायता प्रदान की।

टास्क टीम-9

सीएम योगी आदित्यनाथ की देखरेख में चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना और स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह की अध्यक्षता में टास्क टीम-9 का मुख्य कार्य राज्य भर में कोविड बेड का प्रबंधन मानव स्वास्थ्य संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना और टीकाकरण अभियान को जारी रखना था। अध्ययन में बताया गया है कि टीम के तहत 73,000 निगरानी समितियों ने लगभग 97,000 गाँवों में घर-घर जाकर स्क्रीनिंग की। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन लगभग 1,00,000 परीक्षण किए गए।

तीसरी लहर की सम्भावना?

इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि यूपी में मामलों में बहुत धीमी वृद्धि देखी जा सकती है, फरवरी 2022 में इसकी चरम सीमा प्रति दिन 1,200 संक्रमणों के साथ होगी। यदि कोई नया संस्करण दिखाई देता है, तो राज्य में नवंबर में प्रति दिन लगभग 10,000 संक्रमणों के साथ तेजी से वृद्धि देखी जा सकती है। किसी भी परिदृश्य में, बेड की माँग 10,000 से अधिक नहीं होगी; इस प्रकार, यह स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे पर दबाव नहीं डालेगा जैसा कि उसने दूसरी लहर में किया था। साथ ही, टीकाकरण पूरे जोरों पर चल रहा है, जिससे दूसरी लहर की तुलना में गंभीर मामलों की संख्या कम होगी।

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Anurag
Anurag
B.Sc. Multimedia, a journalist by profession.

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