ALTNews से जुड़े संदिग्ध फैक्ट-चेकर मोहम्मद जुबैर एक बार फिर दुष्प्रचार के अपने उस काम में जुट गया है, जिसमें उसे महारत हासिल है। अक्सर देखने में आया है कि इस्लाम से जुड़ी बातों की तार्किक व्याख्या करने वालों को जुबैर ने निशाना बनाकर उन्हें खारिज करने काम किया है। उसकी ऐसी गतिविधियों में एक स्पष्ट रुझान यह भी देखने को मिला है कि इस्लाम को असहज करने वाले पहलू उसे बहुत चुभते हैं और ऐसा करने वालों के खिलाफ अभियान चलाने में उसकी तरफ से कोई देरी नहीं होती।
हाल का मामला एहसान नाम के एक व्यक्ति से जुड़ा है। एहसान जैसे लोग जिन समस्याओं को उजागर करते हैं, जुबैर सरीखे लोग उन समस्याओं का समाधान करने के बजाय उलटे झुंड बनाकर मुद्दा उठाने वाले व्यक्ति के पीछे पड़ जाते हैं। जुबैर ने 21 अप्रैल को अपने ट्वीट के जरिए अपनी इसी आदत का परिचय दिया।
कुरान कंठस्थ करने वाले एहसान ने एक वीडियो बाइट में यह बताया कि इस्लाम में मूर्ति पूजा को बलात्कार से भी बड़ा अपराध माना गया है। उसने कहा कि अल्लाह की नजर में बलात्कार को माफ किया जा सकता है, लेकिन शिर्क यानी मूर्ति पूजा को कतई नहीं।
एहसान ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “अगर एक तरफ मूर्ति पूजा हो रही है और दूसरी तरह बलात्कार हो रहा हो तो इस्लाम के अनुसार इसमें मूर्ति पूजा कहीं बड़ा पाप है। इसका कारण यही है कि अल्लाह हर किसी बात को माफ कर सकते हैं, लेकिन शिर्क को नहीं।’

एहसान ने इस सोच के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई। उनकी यह आवाज इस्लाम से जुड़े असहज पहलुओं के प्रति व्यापक जागरूकता का प्रसार करते हुए उसकी वास्तविक तस्वीर सामने रखती है जो पहलू 21वीं सदी वाले समाज के साथ ताल नहीं मिलाते। ऐसे में जुबैर सरीखे लोगों को ऐसी व्याख्या का नागवार गुजरना बहुत स्वाभाविक है और उनके भीतर का कट्टर इस्लामी सक्रिय हो जाता है।
इसे मद्देनजर रखते हुए जुबैर ने एहसान और उनकी आस्था को खारिज करने में जरा भी देरी नहीं की। उन्हें खारिज करने के लिए इस संदिग्ध फैक्ट-चेकर ने एहसान और उनके साथी सलीम की मंशा पर सवाल उठाते हुए उन्हें ‘एक्स-मुस्लिम’ तक करार दे दिया। हालाँकि, इस कवायद में उन्होंने इस्लाम में मूर्ति पूजा और बलात्कार से जुड़े तथ्यों की पड़ताल करना गवारा नहीं समझा।
जुबैर ने एहसान के बयान की फैक्ट-चेकिंग करने के बजाय उन्हें व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाया। जबकि यह स्पष्ट है कि एहसान ने वही बात कही, जिसका इस्लामिक मान्यताओं में उल्लेख है।
‘इस्लाम में रेप माफी के लायक, मूर्ति पूजा इससे बड़ा गुनाहः’ उलेमा
इस्लामिक कट्टरपंथी जाकिर नाइक भी अतीत में यह कह चुका है कि अल्लाह की निगाह में बलात्कार और हत्या को माफ किया जा सकता है। उसका यही कहना था, “अगर किसी ने बलात्कार किया है जो कि एक बड़ा अपराध है और किसी ने हत्या की है जो खुद एक बड़ा पाप है, लेकिन अगर किसी ने उसके लिए दिल से तौबा कर ली तो अल्लाह उसे माफ कर सकते हैं।” नाइक ने आगे यही कहा, “ऐसे मामलों को लेकर अल्लाह बहुत दयालु हैं। इस्लामिक दीनी तालीम के अनुसार, इसका दारोमदार लड़की पर है कि वह शालीन कपड़े पहने अन्यथा बलात्कार का दोषी उसे ही ठहराया जाएगा।”
जाकिर नाइक ने स्पष्ट कहा था, “अगर उसने भड़काऊ कपड़े पहने तो बलात्कार होने पर वही जिम्मेदार मानी जाएगी। लेकिन यदि उसने सामान्य कपड़े पहने हैं और फिर भी कोई व्यक्ति बलात्कार करता है तो यह लड़की के लिए परीक्षा की घड़ी है।”
वहीं, शिकागो में रहने वाले एक इस्लामी कट्टरपंथी यासिर नदीम अल वजीदी ने भी पिछले महीने अपने यूट्यूब चैनल पर स्पष्ट किया है कि शिर्क बलात्कार से भी घिनौना पाप है। उसके 3.5 लाख फॉलोअर्स हैं और वो ‘एक्स-मुस्लिम’ नहीं हैं। यही तर्क मोहम्मद जुबैर ने एहसान के बयानों को गलत साबित करने के लिए इस्तेमाल किया। यह फिर से दिखाता है कि जुबैर ने एहसान की ‘फैक्ट-चेक’ क्यों नहीं की, क्योंकि एहसान सही थे।
मौलवियों के अनुसार, ये एक अलग बहस का मुद्दा है कि एक महिला का बलात्कार हुआ है या नहीं , इस बात को साबित करने की जिम्मेदारी भी पीड़िता पर ही होती है। उसे कई गवाहों की जरूरत होती है। इससे पुरुषों के लिए इस गुनाह से बच निकलना आसान हो जाता है।
मौलवी ये भी कहते हैं कि इस बात को भूलना नहीं चाहिए कि इस तरह के जघन्य अपराधों के लिए दिल से तौबा करने पर माफी भी मिल सकती है क्योंकि रेपिस्ट और रेप पीड़ित दोनों के लिए जीवन एक ‘इम्तेहान’ है।
इस्लाम में मूर्ति की पूजा को जघन्य अपराधों से भी बड़ा गुनाह मानने वाले तथ्य को कुरान की आयत 4:48 में बताया गया है- “वास्तव में, अल्लाह अपनी इबादत में किसी और के साथ जोड़ने की माफी नहीं देता, लेकिन वह जिसे चाहे उसे माफ कर सकता है। और अल्लाह के साथ किसी और की इबादत करना वास्तव में सबसे बड़ा गुनाह करना है।”
इस्लाम की खामियों को छुपाने के लिए व्यक्तिगत हमले करने वाला जुबैर और उसके कुतर्क
ये पहली दफा नहीं है जब ‘ऑल्ट न्यूज’ वाले मोहम्मद जुबैर ने इस्लाम की आलोचना करने पर किसी व्यक्ति विशेष को निशाना बनाया हो और अपना इस्लामोफोबिया वाला कार्ड खेला हो। ये अब उसके काम करने का तरीका हो चुका है। जुबैर तथ्यों पर बात नहीं करता। वो लोगों के चरित्र हनन करने का प्रयास करता है।
नुपूर शर्मा का मामला यदि याद हो तो वहाँ भी जुबैर ने यही किया था। ‘टाइम्स नाऊ’ पर डिबेट के दौरान पूर्व भाजपा प्रवक्ता ने जो कुछ भी कहा था उसे पहले कई इस्लामी स्कॉलर्स अपनी बातों में दोहरा चुके थे। मगर, जुबैर ने जानकर निशाना नुपूर शर्मा को बताया। अब वो यही हथकंडे एहसान पर आजमा रहा है।
ये उनलोगों को चुन-चुनकर निशाना बनाता है जो उसके मजहब की खामियों को पहचानते हैं और उनकी आलोचना करते हैं। उसे उन मुस्लिमों को निशाना बनाना भी अच्छा लगता है जो कट्टरपंथी विचारधारा के नहीं हैं। कई बार अपने मजहब पर सवाल उठाने वालों को वो ‘सरकारी मुसलमान’ कह देता है।
चिंताजनक बात ये है कि जुबैर ने इस बार एहसान की जान को खतरे में डालने का प्रयास किया है। उसने एहसान को कट्टपंथियों की फितरत जानते हुए ‘एक्स मुस्लिम’ लिखा है, जो मजहब छोड़ने वाले के लिए सिर्फ मौत ही सही सजा समझते हैं।
(इस खबर को मूल रूप में अंग्रेजी में लिखा गया था, जिसे इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।)