Saturday, April 20, 2024
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राजदीप गिरोह का वैचारिक दोगलापन: संसद हमले को ‘महान दिन’ कहने वाले कैपिटल हिल हंगामे से हलकान

सबसे अजीब बात इन लिबरलों के तर्कों में यह है कि इनकी बयानबाजी में सिर्फ़ कुंठा है न कि कोई तथ्य। अगर होता तो सोचिए कैपिटल हिल और बाबरी के बीच कोई तुलना होती? जाहिर है कैपिटल हिल हिंदू मंदिर के मलबे के ऊपर नहीं बनाया गया। अगर कंपैरिजन होना चाहिए तो कैपिटल हिल का भारतीय संसद से होना चाहिए, जहाँ...

अमेरिका के कैपिटल हिल में सैंकड़ों ट्रंप समर्थकों के हंगामे के बाद भारतीय लिबरल सदमे में हैं। यूएस की संसद परिसर में हुए हमले को देखकर लिब्रांडु गिरोह का कहना है कि ये अमेरिका में हुआ हमला भारत जैसे लोकतंत्र के लिए चेतावनी है। 

सोशल मीडिया पर इस गिरोह के नामी गिरामी सदस्य यूएस में हुई घटना को आतंकी हमला जैसा बताकर भारत के प्रति अपनी चिंता जाहिर कर रहे हैं। इस्लामी एजेंडे की सबसे बड़ी वाहक राणा अयूब लिखती हैं, 

“ये एक रिमाइंडर है भारत जैसे लोकतंत्र के लिए। वो दिन दूर नहीं जब हम अपनी मिट्टी पर इस आतंक के गवाह बनेंगे। ऐसे घटिया वर्चस्व को सोशल मीडिया और कॉन्सिपिरेसी थ्योरी के जरिए हमारे पीछे फैलाया जा रहा है। हम इसे दिन पर दिन तैयार होते देख रहे हैं।”

स्वघोषित नेहरू प्रशंसक सागरिका घोष व राजदीप सरदेसाई की पत्नी इस हमले को भारतीय लोकतंत्र से जोड़ती हैं और हमारी डेमोक्रेसी को बेहद नाजुक करार देती हैं। वह लिखती हैं,

”जब ऐसे दृश्य विश्व की सबसे पुराने लोकतंत्र में नजर आ रहे हैं तो उन देशों के लिए यह पूर्वसूचना है जहाँ लोकतंत्र भयावह रूप से कमजोर है। जैसे भारत।”

आरफा खान्नुम शेरवानी ने तो यूएस संसद परिसर में ट्रंप समर्थकों की नाराजगी को बाबरी विध्वंस से जोड़ दिया। शेरवानी ने लिखा, “हाँ, ये अमेरिका का ‘बाबरी मस्जिद विध्वंस’ का क्षण है।” वह भारतीय न्यायव्यवस्था पर तंज कसते हुए कहती हैं कि उन्हें विश्वास है कि अमेरिका के कोर्ट इसके बावजूद कैपिटल हिल को सफेद वर्चस्ववादी आतंकियों को नहीं सौंपेंगे।

सबसे अजीब बात इन लिबरलों के तर्कों में यह है कि इनकी बयानबाजी में सिर्फ़ कुंठा है न कि कोई तथ्य। अगर होता तो सोचिए कैपिटल हिल और बाबरी के बीच कोई तुलना होती? जाहिर है कैपिटल हिल हिंदू मंदिर के मलबे के ऊपर नहीं बनाया गया। अगर कंपैरिजन होना चाहिए तो कैपिटल हिल का भारतीय संसद से होना चाहिए, जहाँ सदस्य इकट्ठा होकर नीति निर्माण आदि करते हैं।

याद करिए, सबसे सटीक तुलना इस हमले की यदि भारतीय परिप्रेक्ष्य में की जाए तो यहाँ 2001 में भारतीय संसद पर हुआ हमला है। लेकिन, ये लिब्रांडु उस पर बात नहीं करेंगे। क्योंकि ये जानते हैं कि इनके गिरोह के सदस्यों ने उस समय कैसी प्रतिक्रियाएँ दी थी। 

राजदीप सरदेसाई एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने भारतीय संसद पर हुए हमले को ‘अ ग्रेट डे (एक महान दिन)’ कहा था। सरदेसाई ने देश की संसद पर हुए हमले पर बात करते हुए कहा था कि कैसे वह संसद के बगीचे में पिकनिक मना रहे थे जब आतंकी पार्लियामेंट पर हमला कर रहे थे।

सरदेसाई ने अपने कैमरामैन से कहा था कि वह बंद गेट को देखें ताकि कोई दूसरा चैनल न घुस पाए। ये वो समय था जब न्यूज पहुँचाने के लिए चैनल बहुत कम थे और सरदेसाई इस बात को लेकर उत्साहित थे कि उन्हें आतंकी हमला कवर करने के लिए एक बड़ी स्टोरी मिल गई।

इसी प्रकार, अफजल गुरु की मौत याद है? भारतीय संसद पर हमला करने के लिए उसे 9 फरवरी 2013 को फाँसी पर लटकाया गया था। राणा ने इसी घटना को आधार बना कर कहा था कि अफजल के साथ जो भारत ने किया वहीं पाकिस्तान सरबजीत के साथ कर रहा है। उन्होंने अफजल की मौत को ‘कट्टरपंथियों का तुष्टिकरण’ और ‘न्यायिक प्रक्रिया पर धब्बा’ कहा था।

अफजल की मौत पर जेएनयू से आवाज उठी थी- अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं। उस समय उसी उमर खालिद के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला चला था जिसे हाल ही में 2020 के दंगों के लिए भी आरोपित बनाया गया है।

मगर, भारतीय लिबरल क्या कर रहे हैं? खालिद जैसों का समर्थन और उसे जेल से छुड़ाने की माँग। इसलिए जब ऐसे दो चेहरे वाले लोग यूएस की संसद के बाहर हुए हंगामे पर सदमे में जाने का नाटक करते हैं, तो यह सिर्फ़ उनके पाखंडी चेहरे की हकीकत दिखाता है।

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Nirwa Mehta
Nirwa Mehtahttps://medium.com/@nirwamehta
Politically incorrect. Author, Flawed But Fabulous.

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