Friday, April 19, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्देजो बिहार में सब जानते हैं वह नीतीश कुमार ने खुद क्यों कहा, PM...

जो बिहार में सब जानते हैं वह नीतीश कुमार ने खुद क्यों कहा, PM मोदी ने उन्हें ‘जरूरत’ क्यों बताया?

'अंतिम चुनाव' वाली अपील काम कर गई तो न केवल यह बिखराव रुकेगा, बल्कि एनडीए का बहुमत भी मजबूत होगा। यह भी संभव है कि इस अपील की बदौलत जदयू खुद उस आँकड़े तक पहुँच जाए, जहाँ फिलहाल उसके पहुँचने की कोई सूरत नहीं दिखती है।

“आज चुनाव का आखिरी दिन है और परसों चुनाव है। ये मेरा अंतिम चुनाव है। अंत भला तो सब भला। अब आप बताइए कि वोट दीजिएगा न इनको? हाथ उठाकर बताइए। हम इनको (उम्मीदवार को) जीत की माला समर्पित कर दें?”

नीतीश कुमार ने 5 नवंबर को पूर्णिया के धमदाहा की रैली में उपरोक्त बातें कही। ऐसा नहीं है कि बिहार के लोगों को यह पता नहीं है कि 69 साल के नीतीश कुमार अगले विधानसभा चुनावों तक 74 साल के होंगे और नेतृत्व की भूमिका में नहीं रहेंगे। बहुत सारे लोगों को यह भी लगता है कि वे शायद 10 नवंबर को चुनाव के नतीजे आने के बाद भी राज्य की राजनीति में केंद्रीय भूमिका में न हों।

बावजूद अब तक ‘लालू-राबड़ी के 15 साल बनाम अपने 15 साल’ के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे नीतीश कुमार की इस ‘भावुक अपील’ के गहरे मायने हैं। अपने तरकश का यह आखिरी तीर उन्होंने बहुत सोच-समझकर इस्तेमाल किया है।

इसे समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि बिहार विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में 7 नवंबर को किन इलाकों में वोट डलने हैं। आखिरी चरण में सीमांचल, कोसी के अलावा तिरहुत और मिथिलांचल की बची हुई सीटों पर वोट डलेंगे। कुल 78 सीटों पर इस चरण में मतदान होना है।

आखिरी चरण की 37 सीटों पर जदयू के उम्मीदवार हैं। मधेपुरा, सुपौल, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज की 20 सीटों पर जदयू लड़ रही है। इनमें से करीब एक दर्जन सीटों पर पिछली बार भी उसे जीत मिली थी। 9 सीटें ऐसी हैं जहाँ लगातार दो बार से वह जीत रही है।

इन सीटों पर अल्पसंख्यक, अतिपिछड़े, महिलाएँ और प्रवासी वोटर निर्णायक हैं। 35 सीटों पर अति पिछड़ी जातियाँ असरदार हैं। 30 सीटों पर अल्पसंख्यक मतदाता प्रभावशाली स्थिति में हैं। सीमांचल की कई सीटों पर 50 से 60 फीसदी तक अल्पसंख्यक वोटर हैं।

महिलाएँ, अति पिछड़े और अल्पसंख्यकों के एक हिस्से को जदयू अपना वोट बेस मानता है। महिलाओं को छोड़ दे तो नीतीश कुमार का आधार इस चुनाव में खिसकता नजर आया है। ऐसे में उनकी ‘अंतिम चुनाव’ वाली अपील काम कर गई तो न केवल यह बिखराव रुकेगा, बल्कि एनडीए का बहुमत भी मजबूत होगा। यह भी संभव है कि इस अपील की बदौलत जदयू खुद उस आँकड़े तक पहुँच जाए, जहाँ फिलहाल उसके पहुँचने की कोई सूरत नहीं दिखती है।

नीतीश कुमार की इस भावुक अपील के बीच जिस बात की कम चर्चा हुई, वह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार के लोगों के नाम लिखी चिट्ठी। इसमें प्रधानमंत्री ने बिहार के विकास के लिए नीतीश सरकार को अपनी जरूरत बताया है। लिखा है, “मैं बिहार के विकास को लेकर बहुत आश्वस्त हूँ। बिहार के विकास में कोई कमी न आए, विकास की योजनाएँ अटके नहीं, भटके नहीं, इसलिए मुझे बिहार में नीतीश जी की सरकार की जरूरत है।”

आखिर प्रधानमंत्री मोदी ने भी पत्र लिखने के लिए वही दिन क्यों चुना जिस दिन नीतीश कुमार ने भावुक अपील की?

जैसा कि हमने अपनी पिछली रिपोर्ट में बताया है कि बिहार चुनाव के पहले चरण के बाद बीजेपी को जो फीडबैक मिले थे, वे बेहद निराशाजनक थे। हालाँकि दूसरे चरण में एनडीए ने इसकी भरपाई की है और वह सरकार बनाने की स्थिति में दिख रही है। ऐसे में तीसरे चरण में वोटों का बिखराव रोकने के लिए और जमीन पर चल रही उन तमाम चर्चा को विराम देने के लिए इस रणनीति पर अमल किया गया है, जो चुनाव बाद बीजेपी और जदयू में अलगाव की बात करते हैं।

असल में यही चरण तय करेगा कि एनडीए बस बहुमत के पास आकर ठहर जाएगी या फिर वह मजबूत स्थिति में होगी। इस चरण में अकेले जदयू की प्रतिष्ठा ही दॉंव पर नहीं लगी है। बीजेपी का भी काफी कुछ दॉंव पर लगा हुआ है। यही चरण तय करेगा कि बीजेपी अकेले राजद से कितना आगे होगी।

2015 के विधानसभा चुनावों में आखिरी चरण की 78 सीटों में से 54 महागठबंधन ने जीती थी। इन 54 में से 23 सीटें अकेले जदयू की थी। राजद को 20 और कॉन्ग्रेस 11 सीटें मिली थी। पिछले चुनाव में जदयू के बिना लड़ी बीजेपी ने भी इन सीटों में से 20 पर जीत हासिल की थी। निर्दलीय को दो और भाकपा-माले तथा रालोसपा को एक-एक सीटें मिली थी।

यानी, 43 सीटें ऐसी हैं जो पिछली बार जदयू और भाजपा को मिली थी। इन सीटों को कायम रखना दो कारणों से मुश्किल लग रहा था। पहला, नीतीश कुमार को लेकर नाराजगी और अति पिछड़े और महादलितों के बीच उनका खिसकता आधार। दूसरा, हमने इस पूरे चुनाव के दौरान पाया है कि जो उम्मीदवार पिछले 10-15 साल से लगातार विधायक हैं, उनके खिलाफ लोगों में काफी नाराजगी है। चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें जगह-जगह विरोध भी झेलना पड़ा था। इसके अलावा बीजेपी के कोर वोटरों में नीतीश को समर्थन को लेकर भ्रम की स्थिति भी दिख रही थी।

लिहाजा, नीतीश और मोदी दोनों ने आखिरी दिन यह पासा फेंका है। यदि जमीन पर इसका असर होता है और नतीजे पिछले चुनाव के तरह ही दोनों दल दोहराने में कामयाब रहे तो एनडीए उस स्थिति में पहुँच सकती है, जिसका अनुमान फिलहाल कोई राजनीतिक विश्लेषक लगाने को तैयार नहीं हैं।

2015 के चुनाव में आखिरी चरण में 18 सीटें ऐसी थी जहाँ बीजेपी और जदयू के बीच पिछली बार सीधी टक्कर हुई थी। इनमें से 7 पर जदयू, 10 पर बीजेपी को सफलता मिली थी। एक सीट भाकपा-माले ने दोनों दलों को पछाड़कर हासिल की थी। इसके अलावा 10 सीटें ऐसी थी, जहाँ जदयू और लोजपा की टक्कर हुई थी। सारी सीटें जदयू के खाते में गई थी। इस बार समीकरण बदले हुए हैं और जदयू को लोजपा नुकसान पहुँचाती दिख रही है। लिहाजा मोदी ने भी मतदाताओं में भ्रम दूर करने की कोशिश की है। इसका मकसद लोजपा को अपने कोर वोटरों तक ही सीमित रखना है जो एक खास वर्ग में ही सीमित है। यदि ऐसा होता है तो पिछले दो चरणों में लोजपा ने जिस तरह से जदयू को नुकसान पहुँचाया है, वह अब नहीं दिखेगा। इसी तरह दो सीटों पर जदयू और हम के बीच टक्कर थी। दोनों सीटों पर जदयू भारी पड़ी थी और इस बार हम एनडीए में ही है।

दिलचस्प यह है कि आखिरी चरण की 78 सीटों में 58 ऐसी हैं, जिस पर पिछली बार पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने ज्यादा वोट डाले थे। नीतीश कुमार के लिए सुकून की बात यह है कि महिलाओं के बीच कमोबेश उनकी लोकप्रियता पहले जैसी ही बनी हुई है। लिहाजा उनका इमोशनल कार्ड चला तो इस आखिरी चरण में चमत्कार भी संभव है और 10 नवंबर को आने वाले नतीजे बेहद चौंकाने वाले हो सकते हैं।

यही कारण है कि नीतीश कुमार के अंतिम चुनाव वाले बयान पर पलटवार करने में तेजस्वी यादव और चिराग पासवान ने देरी नहीं की। तेजस्वी ने कहा कि हम पहले ही कहे थे नीतीश जी थक गए हैं। उन्होंने अब इसे मान भी लिया है। वहीं, चिराग पासवान ने कहा कि नीतीश कुमार ने जेल जाने के डर से संन्यास की घोषणा की है।

एक सच यह भी है कि नीतीश कुमार (113 सभा) से दोगुने से भी ज्यादा इन चुनावों में सभा करने वाले 30 साल के तेजस्वी यादव (251 सभा) और करीब-करीब नीतीश के बराबर सभा करने वाले 38 साल के चिराग पासवान (110 सभा) उस राज्य में नीतीश कुमार का विकल्प बनने में नाकामायब रहे हैं, जहाँ 50.27 फीसदी वोटर 20 से 39 वर्ष के हैं।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

कौन थी वो राष्ट्रभक्त तिकड़ी, जो अंग्रेज कलक्टर ‘पंडित जैक्सन’ का वध कर फाँसी पर झूल गई: नासिक का वो केस, जिसने सावरकर भाइयों...

अनंत लक्ष्मण कन्हेरे, कृष्णाजी गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देशपांडे को आज ही की तारीख यानी 19 अप्रैल 1910 को फाँसी पर लटका दिया गया था। इन तीनों ही क्रांतिकारियों की उम्र उस समय 18 से 20 वर्ष के बीच थी।

भारत विरोधी और इस्लामी प्रोपगेंडा से भरी है पाकिस्तानी ‘पत्रकार’ की डॉक्यूमेंट्री… मोहम्मद जुबैर और कॉन्ग्रेसी इकोसिस्टम प्रचार में जुटा

फेसबुक पर शहजाद हमीद अहमद भारतीय क्रिकेट टीम को 'Pussy Cat) कहते हुए देखा जा चुका है, तो साल 2022 में ब्रिटेन के लीचेस्टर में हुए हिंदू विरोधी दंगों को ये इस्लामिक नजरिए से आगे बढ़ाते हुए भी दिख चुका है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe