Saturday, April 20, 2024
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PM मोदी की तरकश के 4 तीर, वामपंथी सोशल प्लेटफॉर्म्स के पास नहीं है जिनकी काट: जानिए क्यों नहीं चलेगा अमेरिका वाला तिकड़म

सोशल मीडिया और मीडिया, दोनों को ही हटा दीजिए। पीएम मोदी के तरकश में 4 ऐसे तीर हैं, जो ट्विटर-फेसबुक के मोहताज नहीं हैं। जानिए क्यों जो ट्रम्प के साथ हुआ, मोदी के साथ कभी नहीं हो सकता।

“देखो ट्रम्प ने ट्विटर पर फलाँ चीज लिख दी, हमारे मोदीजी तो ऐसे बेबाक बोल ही नहीं पाते”- आपने पिछले 4 वर्षों में इस तरह के कमेंट्स खूब देखे होंगे, जहाँ नरेंद्र मोदी के समर्थक ही इस बात से नाराज दिखे कि आखिर वो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तरह सोशल मीडिया में मुखर क्यों नहीं रहते। खासकर आज डोनाल्ड ट्रम्प के साथ विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने जो किया है, उसके बाद ये चर्चा हो रही है कि क्या भारत में पीएम मोदी के साथ भी ऐसा हो सकता है?

ये चर्चा राष्ट्रवादियों से पहले दुनिया भर के वामपंथियों ने ही शुरू कर दी थी। उनका कहना है कि पीएम मोदी ने गुजरात और दिल्ली में ‘2000 +50 से अधिक मुस्लिमों की हत्याएँ’ करवाई हैं, इसीलिए उन्हें सोशल मीडिया पर प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। इसके लिए ‘मोदी नेक्स्ट’ का ट्रेंड भी चलाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ क्यों ऐसा नहीं किया जा सकता है, इससे पहले जानते हैं कि ट्रम्प के साथ क्या हुआ।

सत्ता जाते ही सोशल मीडिया में मुश्किलों में पड़े डोनाल्ड ट्रम्प

डोनाल्ड ट्रम्प शुरू से ट्विटर पर मुखर रहे हैं और अमेरिका की जनता तक अपनी पहुँच का माध्यम भी इसे बनाया। विभिन्न अवसरों पर, चाहे वह उत्तर कोरिया के किम जोंग उन की बात हो या जो बायडेन की, ट्रम्प सभी को सोशल मीडिया के माध्यम से जवाब देने के लिए मशहूर हैं। उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि भी इसी किस्म की बन गई है। कैपिटल लेटर्स और बोल्ड में किए गए उनके ट्वीट्स अक्सर ख़बरों का हिस्सा बनते रहे हैं।

लेकिन राष्ट्रपति के रूप में लगातार दूसरी बार पद सँभालने का उनका सपना जो बायडेन की जीत के साथ ही टूट गया और उनकी मुश्किलें शुरू हो गईं। उनके समर्थक तो ट्विटर से प्रतिबंधित होकर पहले ही ‘Parler’ एप पर जा चुके थे। अब ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम ने डोनाल्ड ट्रम्प के हैंडल्स को सस्पेंड/ब्लॉक कर दिया। वो ‘Parler’ पर गए तो उस एप को ही गूगल ने प्ले स्टोर से हटा दिया। एप्पल ने भी नोटिस थमा दिया।

इस तरह से कई बड़ी तकनीकी कंपनियों ने ऐसा घेरा डाला कि डोनाल्ड ट्रम्प के बयानों और उनके ही फैंस तक उनकी पहुँच पर विराम लग गया। मीडिया का एक बड़ा धड़ा पहले ही उनका अप्रत्यक्ष बहिष्कार करता रहा है, ऐसे में उनके बयानों को वो किस रूप में प्रकाशित करेगा- ये भी अलग सवाल है। तकनीक के इस युग में सिलिकन वैली ने राजनीति में ऐसा दखल दिया है कि दुनिया का सबसे ताकतवर पद कहे जाने वाली कुर्सी पर बैठा व्यक्ति भी लाचार हो गया है।

मोदी के साथ यही तिकड़म आजमा सकती हैं सोशल मीडिया कंपनियाँ?

जहाँ तक भारत की बात है, समस्या यहाँ भी है। राष्ट्रवादियों को ‘शैडो बैन’ किया जाता है, अर्थात उनकी रीच कम कर दी जाती है। उनके हैंडल्स सस्पेंड कर दिए जाते हैं। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख पर पाकिस्तानी और चीनी एजेंडा फैलाने की ख़बरें आई हैं। दंगों की घटनाओं में हिन्दुओं को दोषी ठहराया जाता है। वामपंथियों का बोलबाला यहाँ भी सोशल मीडिया पर है। लेकिन, जहाँ तक नरेंद्र मोदी की बात है, वे इससे अछूते हैं।

फेसबुक या ट्विटर या गूगल, इनमें से कोई भी नरेंद्र मोदी पर उस तरह हाथ नहीं डाल सकता या ट्रम्प के साथ जो हुआ उसका 1% भी नहीं कर सकता, क्योंकि वे पूरे भारत के नेता हैं और ये देश USA की तरह कुछ टुकड़ों को दिया गया नाम नहीं है, बल्कि 130 करोड़ लोगों का एक अखंड राष्ट्र है। भाजपा की संगठन क्षमता और संघ का अनुशासित कैडर कभी इसे बर्दाश्त नहीं करेगा और लोकतांत्रिक तरीके से ही इन कंपनियों को पस्त कर देगा।

अब आते हैं इसके सबसे बड़े पहलू पर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी सोशल मीडिया पर इसीलिए आक्रामक नहीं दिखते, क्योंकि उनके पास जनता तक अपनी बात पहुँचाने के लिए कई माध्यम हैं। 2013-14 में जब उन्हें सोशल मीडिया की ज़रूरत थी, तभी उन्होंने इसका भरपूर इस्तेमाल कर लिया है और अब वो जानते हैं कि सोशल मीडिया अकेले कोई चुनाव नहीं जिता सकता।

विपक्षी दल अब तक इसी ग़लतफ़हमी में जी रहे हैं कि 2014 में केवल सोशल मीडिया ने ही भाजपा को चुनाव जिता दिया था और वो अपने आईटी सेल्स को मजबूत करने के चक्कर में जमीन पर लगातार भाजपा से मात खा रहे हैं। मोदी अब 3D रैलियों से बूथ प्रबंधन तक पहुँच गए हैं, जबकि विपक्षी ट्वीट्स के लाइक्स और रिट्वीटस गिनने में लगे हुए हैं। मोदी के तरकश में एक नहीं, आज हजार तीर हैं।

मोदी के तरकश के 4 तीर, जिन्हें किसी सोशल मीडिया की ज़रूरत नहीं

प्रधानमंत्री का देश की जनता के सब गरीब, निचले और सुदूर इलाकों के तबकों तक पहुँचने का सबसे बड़ा माध्यम है, रेडियो। वे ‘मन की बात’ के जरिए रविवार को जनता को सम्बोधित करते रहते हैं। इस दिन सभी की छुट्टियाँ होती हैं और लोग उन्हें इत्मीनान से सुनते हैं। जलवा ऐसा है कि रेडियो सम्बोधन का सभी टीवी न्यूज़ चैनल लाइव प्रसारण करते हैं और सैकड़ों न्यूज़ पोर्टल और दर्जनों अख़बार उनके सम्बोधन को प्रकाशित करते हैं।

देश की जनता से वे ‘मन की बात’ ऐसे बात करते हैं, जैसे वे घर के ही कोई बुजुर्ग हों। कोरोना काल में हमने इसका उदाहरण देखा, जब लोगों ने सतर्कता को लेकर उनकी हर बात मानी। ‘मन की बात’ एक ऐसा माध्यम है, जिसे उनसे कोई छीन नहीं सकता। फेसबुक और ट्विटर पर इसका टेक्स्ट और ऑडियो ग्राफिक्स के साथ आ जाता है, जिससे सोशल मीडिया पे भी लोग इसे सुन लेते हैं। ये सोशल मीडिया जायंट्स इसमें कुछ नहीं कर सकते।

नरेंद्र मोदी की खुद की वेबसाइट भी है और खुद का एप्लिकेशन भी है। ‘नरेंद्र मोदी डॉट इन (NarendraModi.In)’ और नमो एप ऐसे माध्यम हैं, जिनके बारे में आपको लग सकता है कि इनकी क्या ज़रूरत है? लेकिन, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प प्रकरण के बाद लोग अब इन माध्यमों की सार्थकता को पहचानने लगे हैं। यहाँ पीएम मोदी के हर सम्बोधन का वीडियो और टेक्स्ट उपलब्ध करा दिया जाता है। मीडिया के लिए तमाम संसाधन डाल दिए जाते हैं।

सारे प्रमुख मीडिया चैनलों की भी मज़बूरी है कि जो कभी नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू तक लेने से हिचकते रहते थे, अब उन्हें उनका पूरा भाषण चलाना पड़ता है। देश की जनता प्रधानमंत्री को सुनती है और ये न्यूज़ चैनल्स इसे बखूबी समझते हैं। नमो एप, नरेंद्र मोदी डॉट इन और ‘मन की बात’- पीएम मोदी की तरकश के ये 3 ऐसे तीर हैं, जो यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर हैंडल्स के बिना भी चलते रहेंगे।

हाँ, नरेंद्र मोदी विपक्षी नेताओं पर आक्रोशित होते हैं और अपना आक्रोश बखूबी जताते हैं। विरोधियों के आक्षेपों पर पलटवार करते हैं और खूब करते हैं। हिन्दुओं के लिए ‘श्मशान’ की बात भी उठाते हैं और तमाम वादे भी करते हैं। लेकिन, उनके पास इसके लिए बहुत बड़ा माध्यम है। वो है उनकी रैलियाँ। नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में आक्रामक तरीके से विपक्ष को जवाब देते हैं और आमने-सामने लाखों जनता से संवाद करते हैं।

कहने की ज़रूरत नहीं है कि इन रैलियों का सीधा प्रसारण हर टीवी न्यूज़ चैनलों पर होता है और पीएम मोदी के हर सोशल मीडिया एकाउंट्स पर इसके क्लिप्स डाले जाते हैं। लाखों-करोड़ों लोग इन्हें शेयर करते हैं। बाकी भाजपा आईटी सेल को लेकर किंवदंतियाँ विपक्षी नेताओं में मशहूर हैं ही। आज की तारीख़ में मोदी सोशल मीडिया और मीडिया के कारण नहीं हैं, बल्कि मोदी से इन्हें फायदा है क्योंकि जनता मोदी के साथ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोशल मीडिया पर इसी सौम्यता का नतीजा है कि डोनाल्ड ट्रम्प को लेकर जहाँ दुनिया भर के कई कूटनीतिज्ञों तक में नकारात्मकता का भाव है, वो विभिन्न योजनाओं को लेकर मोदी की प्रशंसा करते नहीं अघाते। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया को अपने सरकार की योजनाओं की सफलता और आँकड़ों को दुनिया भर में पहुँचाने का माध्यम बनाया है। जैसे, वो बताते हैं कि जितनी कनाडा की जनसंख्या है, उतनों के भारत में जन-धन बैंक खाते खुल गए हैं।

भारत में अमेरिका वाली तरकीब नहीं भिड़ा सकते हैं SM जायंट्स

निष्कर्ष ये कि भारत में प्रधानमंत्री के पद को को देश ने और संविधान ने इतनी शक्तियाँ दी हैं कि अगर भारत के खिलाफ साजिश में या प्रोपेगेंडा फैलाने में अगर कोई सोशल मीडिया कंपनी शामिल भी है तो उस पर शिकंजा कसा जा सके। भारत की जनता इस काबिल है कि वो देशविरोधी गतिविधियों पर सरकार से शिकायत दर्ज करा सके, कोर्ट जा सके और जन-आंदोलन शुरू कर सके। दुनिया को बता सके कि क्या गलत है और क्या सही।

भारत, अमेरिका नहीं है और ना ही मोदी, ट्रम्प हैं। दूसरा निष्कर्ष ये है कि भारत में जिस तरह से स्टार्टअप्स को बढ़ावा दिया जा रहा है और तकनीकी प्रतिभाओं को निखारा जा रहा है, उससे आने वाले दिनों में यहाँ ही कई सोशल मीडिया के लोकप्रिय माध्यम खड़े हो जाएँ तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। और सबसे बड़ी बात ये है कि दुनिया भर की गतिविधियों पर पीएम मोदी की पैनी नजर रहती है और वो हर चुनौती के लिए पहले से तैयार रहते हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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