Saturday, September 28, 2024
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जातिगत आरक्षण: जरूरतमंदों को लाभ पहुँचाना उद्देश्य या फिर राजनीतिक हथियार? विभाजनकारी एजेंडे का शिकार बनने से बचना जरूरी

समाज की भलाई के लिए हमें जागरूक रहना होगा और अपनी आवाज उठानी होगी। हिंदुत्व का असली मतलब एकता, समानता और सामाजिक न्याय है। क्या हम इस दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं या फिर जातिगत आरक्षण के बहाने केवल विभाजन का खेल खेलते रहेंगे? यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस रास्ते का चयन करते हैं।

जब हमारे नेता जातिगत आरक्षण की बात करते हैं तो यह जरूरी हो जाता है कि हम उन्हें हिंदुत्व की सच्चाई याद दिलाई जाए। क्या ये नहीं सही है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था, जो अपने आप को भारतीय संस्कृति का रक्षक बताती है, वास्तव में वो जातिवाद को बढ़ावा दे रही है? इतिहास से छेड़छाड़ और पूर्वजों की उपाधियों को ध्वस्त करना केवल एक राजनीतिक खेल है।

हमारी सांस्कृतिक धरोहर में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ हमारे पूर्वजों ने समानता एवं सामाजिक न्याय के लिए लड़ाई लड़ी। आज जब हम जातिगत आरक्षण पर बहस करते हैं तो हमें यह समझना होगा कि असली शोषण कौन कर रहा है। असली शोषित कौन कौन है? ये सब कुछ स्पष्ट होना बेहद जरूरी है, ताकि आम जनता इसके पीछे की सच्चाई समझ सके।

आज देश में जिस जातिगत आरक्षण की बात हो रही है, उसे भी समझना आवश्यक होगा कि क्या यह हमारे समाज के कमजोर वर्गों से जुड़ा मसला है, जो केवल जातिगत पहचान के आधार पर विभाजित हो गए हैं या फिर यह उन नेताओं के हित से जुड़ा मामला है, जो अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए समाज को बाँटने का काम कर रहे हैं?

यह सच है कि आरक्षण की आवश्यकता है, लेकिन क्या यह सही तरीके से लागू हो रहा है? क्या इसके जरिए हम वास्तव में उन लोगों की मदद कर रहे हैं, जिनके लिए इसे हम आवश्यक मानते हैं या फिर हम एक नई जातिगत विभाजन की नींव रख रहे हैं? हमें यह सोचना होगा कि क्या हम अपने पूर्वजों के मूल्यों को भूल रहे हैं?

हमें सोचना होगा कि कहीं हम अपनी पहचान को एक नए राजनीतिक एजेंडे का शिकार तो नहीं बन रहे हैं। इन बातों को ध्यान रखते हुए हमें चुप नहीं रहना चाहिए। अगर हम इतिहास को भूलेंगे और अपने पूर्वजों की छत्रियों को ध्वस्त होने देंगे तो हमारा समाज किस दिशा में बढ़ेगा? यह केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है। यह मुद्दा हमारी पहचान, हमारी संस्कृति और हमारे मूल्यों का मामला है।

इनके बिना हम कुछ भी नहीं है। इसलिए, साहस के साथ हमें यह प्रश्न उठाने चाहिए कि क्या यह समय नहीं है कि हम अपने नेताओं को उनकी ज़िम्मेदारियों का अहसास कराएँ? हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जातिगत आरक्षण की बहस केवल राजनीतिक हथियार न बने। जातिगत आरक्षण सकारात्मक बदलाव की ओर ले जाने वाला एक माध्यम बनना चाहिए।

समाज की भलाई के लिए हमें जागरूक रहना होगा और अपनी आवाज उठानी होगी। हिंदुत्व का असली मतलब एकता, समानता और सामाजिक न्याय है। क्या हम इस दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं या फिर जातिगत आरक्षण के बहाने केवल विभाजन का खेल खेलते रहेंगे? यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस रास्ते का चयन करते हैं।

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Reena Singh
Reena Singhhttp://www.reenansingh.com/
Advocate, Supreme Court. Specialises in Finance, Taxation & Corporate Matters. Interested in Religious & Social issues.

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