Friday, March 29, 2024
Homeराजनीतितब ब्रिटिश थे, अब कॉन्ग्रेस है: बंगाल विभाजन से दिल्ली दंगों तक यूँ समझें...

तब ब्रिटिश थे, अब कॉन्ग्रेस है: बंगाल विभाजन से दिल्ली दंगों तक यूँ समझें ‘मजहब’ वालों का किरदार

पहले ब्रिटिश सरकार ने समुदाय विशेष को भड़का सत्ता की चाबी बनाया। उसके बाद तुष्टिकरण से चुनावों में कॉन्ग्रेस ध्रुवीकरण करने लगी। इसी साल कर्नाटक की एक रैली में गुलाम नबी आजाद ने कहा था, “मुस्लिमों को बड़ी तादाद में एकजुट होकर कॉन्ग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करना चाहिए”।

साल 1905 में बंगाल विभाजन की योजना बनाई गई, तो हिन्दुओं और मुस्लिमों दोनों ने मिलकर इसका विरोध किया था। लेकिन गवर्नर जनरल एवं वायसराय कर्जन के बंगाल दौरे ने मुस्लिम समुदाय के दृष्टिकोण को बदल दिया। कर्जन ने मुस्लिम समुदाय को भड़काया कि बंगाल विभाजन उनकी राजनैतिक गतिविधियों के लिए फायदेमंद साबित होगा। इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने समुदाय विशेष के लोकप्रिय नेता ढाका के नवाब सलीमुल्लाह को भी राजी कर लिया था। इस घटना का जिक्र वर्तमान संदर्भों में महत्वपूर्ण है। ब्रिटिश सरकार ने पहले समुदाय विशेष को भड़काया और फिर धार्मिक तुष्टिकरण को अपनी सत्ता की चाबी बनाया था।

आज किरदारों में थोड़ा फेरबदल हो गया है लेकिन उद्देश्य वही है। ब्रिटिश सरकार की जगह कॉन्ग्रेस आ चुकी है। ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है, साल 2018 में कॉन्ग्रेस नेता शशि थरूर ने एक ट्वीट किया, “भारत में अल्पसंख्यकों के सारे अधिकार खत्म कर दिए जाएँगे।” ऐसे अनेक उदाहरण सार्वजनिक है जो कि कर्जन की नीतियों के समान है, जिसमें समुदाय विशेष को भड़काया जाता है। फिर धार्मिक तुष्टिकरण से चुनावों में ध्रुवीकरण किया जाता है। इसी साल कर्नाटक की एक चुनावी रैली में गुलाम नबी आजाद ने कहा था, “मुस्लिमों को बड़ी तादाद में एकजुट होकर कॉन्ग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करना चाहिए।”

यह संभव है कि समुदाय विशेष की व्यक्तिगत रुचि कॉन्ग्रेस में हो सकती है, इसमें चौकाने वाला ऐसा कोई तथ्य नहीं है! लोकतंत्र है, कोई भी व्यक्ति किसी भी दल अथवा प्रत्याशी को अपनी इच्छा के अनुसार वोट कर सकता है। वास्तव में, यह इतना भी आसान नहीं है जितना दिखाई दे रहा है। इसके जवाब के लिए इतिहास का फिर से रुख करते हैं।

कर्जन की उपरोक्त साजिश ने भारत विभाजन का पहला अध्याय ही लिखा था। कर्जन के बाद मिंटो को भारत का गवर्नर जनरल एवं वायसराय बनाया गया। उसने इस चिंगारी को आग में बदल दिया और भारत विभाजन की नींव रख दी। दरअसल, 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में कई मुस्लिम नेता इकट्ठे हुए। उन्होंने प्रस्ताव पारित किया कि बंगाल विभाजन योजना का पूरा ‘फायदा’ उठाया जाएगा। समुदाय विशेष को भड़काना और धार्मिक तुष्टिकरण से वोट हासिल करने का खेल पिछले 7 दशकों से हमारे सामने है। यह स्थिति तब खतरनाक होने लगती है, जब इन मौकों को महत्वाकांक्षाओं के लिए भुनाया जाने लगता है।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग का भी इस्तेमाल विरोध-प्रदर्शन के बजाय देश-विरोधी बयानों एवं योजनाओं के लिए किया गया था। यहाँ कट्टरपंथी छात्र शरजील इमाम ने कहा था कि हमारा लक्ष्य असम और उत्तर-पूर्व को शेष भारत से अलग करना है। एक शताब्दी पहले भी बंगाल से असम और उत्तर-पूर्व के हिस्सों को अलग करने के लिए साम्प्रदायिक हिंसा फैलाई, तनाव का माहौल बनाया और कट्टर भाषण दिए गए थे। इसलिए दिल्ली सहित उत्तर-पूर्व भारत में हिंसा, दंगे और तनाव को मात्र संयोग समझकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस प्रारूप को समझने के लिए एक बार उसी इतिहास में जाना होगा।

शिमला में वायसराय मिंटो से 1 अक्टूबर, 1906 को आगा खान के नेतृत्व में समुदाय विशेष के 36 लोगों का एक दल मुलाकात करने पहुँचा। यहाँ इन लोगों ने शरीयत की माँगों के साथ अपने लिए अलग संवैधानिक प्रतिनिधित्व की माँग रखी। मिंटो ने भी समुदाय विशेष के प्रति अपनी सहमति जताई। मिंटो पाँच सालों तक भारत का वायसराय रहा। इस दौरान दुसरे मजहब वालों को अलग एक राष्ट्र के तौर पर देखा जाने लगा। हिन्दुओं के खिलाफ दंगे और हिंसा ने विकराल रूप ले लिया। मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना का अस्तित्व सामने आया। आखिरकार, 1947 में भारत का साम्प्रदायिक विभाजन स्वीकार कर लिया गया।

यही क्रम आज फिर से स्थापित किया जा रहा है। कॉन्ग्रेस जैसे राजनैतिक दल पहले समुदाय विशेष को भड़काते हैं, फिर तुष्टिकरण को सत्ता का जरिया बनाते हैं। इसके बाद मुस्लिम नेता ऐसे मौके का नाजायज ‘फायदा’ उठाने के लिए पहले अलग संविधान, फिर अलग देश की माँग करने लगते हैं। इस सौदेबाज़ी में सांप्रदायिक दंगे एवं हिंसा के साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) की भूमिका भी जुड़ जाती है। इतिहासकार आरसी मजूमदार अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट इन इंडिया’ में लिखते हैं कि यूनिवर्सिटी के संस्थापक सैयद अहमद ने मुस्लिम राजनीति को हिंदू विरोधी बना दिया था।

सैयद का असर बेहद तीव्र था। इसका एक उदाहरण साल 1908 में मिलता है। उस वक्त के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर जियाउद्दीन अहमद ने अब्दुल्ला शुहरावर्दी को एक पत्र लिखा, “मैं जानता हूँ कि मिस्टर कृष्ण वर्मा ने इंडियन होम रूल सोसायटी की स्थापना की है और आप भी उसके उपाध्यक्षों में से एक है। आपको वाकई में लगता है कि भारत में होम रूल से मुस्लिमों को कोई फायदा होगा? इसमें कोई संदेह नहीं है कि होम रूल एकदम अलीगढ़ योजना के विरुद्ध है। मुझे लगता है कि अलीगढ़ योजना ही मुस्लिमों की योजना है।”

ब्रिटिश भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय हिंदुओं के खिलाफ प्रचार का मुख्य केंद्र बन गया था। यहाँ से एक ‘अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट’ नाम का समाचार-पत्र प्रकाशित होता था। इसमें आमतौर पर हिन्दुओं के राजनैतिक एवं सामाजिक विचारों के खिलाफ जहर उगला जाता था। एक के बाद एक लेख प्रकाशित किए जिनके केंद्र में द्वि-राष्ट्रवाद का सिद्धांत शामिल था। धीरे-धीरे यहाँ के छात्रों के मन में भर दिया कि ‘उनके लिए भारतीय संसदीय व्यवस्था अनुपयुक्त है और इसके स्वीकृत होने की स्थिति में, बहुसंख्यक हिन्दूओं का वहाँ उस तरह राज होगा जो किसी मुस्लिम सम्राट का भी नहीं था’। अब इसमें कोई छुपा तथ्य नहीं है कि भारत विभाजन के जिम्मेदार जितने भी मुस्लिम नेता थे, उनकी शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई थी।

अभी पिछले दिनों देशभर में भी नागरिकता संशोधन कानून पर विरोध-प्रदर्शन हुए, जिसमें इस विश्वविद्यालय के छात्र भी शामिल थे। वास्तव में, यह विरोध कानून को लेकर नहीं बल्कि भारत की संप्रभुता के खिलाफ था। क्योंकि इस यूनिवर्सिटी का इतिहास ही ऐसा रहा है। कुछ दिनों पहले विश्वविद्यालय में नारे लगाए गए, “हिंदुत्व की कब्र खुदेगी-एएमयू की छाती पर, सावरकर की कब्र खुदेगी-एएमयू की छाती पर, बीजेपी की कब्र खुदेगी-एएमयू की छाती पर, ब्राहमणवाद की कब्र खुदेगी-एएमयू की छाती पर”। ख़बरें तो यह भी है कि वहाँ पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगाए जाते हैं, जम्मू-कश्मीर की आज़ादी की माँग होती है और मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीरों को संजो कर रखा जाता है।

एक सामान्य बात है कि यह कब्र खोदना क्या होता है? शिक्षा और कब्र खोदने का आपसी सम्बन्ध क्या है? विश्व में हजारों विश्वविद्यालय हैं, लेकिन ऐसी शिक्षा कही नहीं दी जाती। ब्रिटिश भारत में हिन्दुओं के खिलाफ सीधे नारे लगाए जाते थे, लेकिन आज मीडिया के दौर में यह संभव नहीं है। इसलिए यह एक आसान रास्ता निकाला गया कि हिंदुत्व, भाजपा, सावरकर और ब्राहमण की आड़ में उस सोच को फिर से प्रचारित किया जाए, जिसने एएमयू की छाती पर कब्र यानी पाकिस्तान के लिए जमीन खोदी थी।

दिल्ली दंगा ग्राउंड रिपोर्ट: छतों से एसिड बरसा रही थीं मुस्लिम औरतें, गुलेल से दाग रहे थे पेट्रोल बम

बहू-बेटियों की इज्जत बचाने के लिए हिन्दू खा रहे थे गोली और पत्थर: शिव विहार ग्राउंड रिपोर्ट

जो हिंदू लड़की करती थी दुआ सलाम, उसी की शादी को जला कर राख कर डाला: चाँद बाग ग्राउंड रिपोर्ट

न अमन की खोखली बातों से बुझेगी ये आग, न जीते-जी भरेंगे घाव: बारूद के ढेर को चिंगारी से बचाने की मुश्किल

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

Searched termsअंग्रेज, ब्रिटिश, कांग्रेस मुस्लिम, एएमयू, लॉर्ड कर्जन, बंगाल विभाजन, बंगाल में दंगे, भारत में दंगे, हिंदू मुस्लिम दंगे, बंग भंग, अलग मुस्लिम देश की मांग, अब्दुल्ला शुहरावर्दी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट इन इंडिया, सर सैयद अहमद, पाकिस्तान की मांग, दिल्ली दंगा, दिल्ली दंगा लिबरल गैंग, दिल्ली दंगा लिबरल मीडिया, दिल्ली दंगा हिंदूफोबिया, दिल्ली दंगा प्राइम टाइम, रवीश कुमार प्राइम टाइम, दिल्ली दंगा एनडीटीवी, दिल्ली दंगा सेकुलर मीडिया, दिल्ली दंगा की खबरें, दिल्ली दंगों में कौन शामिल, दंगा, दिल्ली में दंगा, पीएम मोदी, नरेंद्र मोदी, दिल्ली दंगा मोदी, दिल्ली हिंसा मोदी, उत्तर पूर्वी दिल्ली हिंसा मोदी, आईबी कॉन्स्टेबल की हत्या, अंकित शर्मा की हत्या, चांदबाग अंकित शर्मा की हत्या, दिल्ली हिंसा विवेक, विवेक ड्रिल मशीन से छेद, विवेक जीटीबी अस्पताल, विवेक एक्सरे, दिल्ली हिंदू युवक की हत्या, दिल्ली विनोद की हत्या, दिल्ली ब्रहम्पुरी विनोद की हत्या, दिल्ली हिंसा अमित शाह, दिल्ली हिंसा केजरीवाल, दिल्ली हिंसा उपराज्यपाल, अमित शाह हाई लेवल मीटिंग, दिल्ली पुलिस, दिल्ली पुलिस रतनलाल, हेड कांस्टेबल रतनलाल, रतनलाल का परिवार, ट्रंप का भारत दौरा, ट्रंप मोदी, बिल क्लिंटन का भारत दौरा, छत्तीसिंह पुरा नरसंहार, दिल्ली हिंसा, नॉर्थ ईस्ट दिल्ली, दिल्ली पुलिस, करावल नगर, जाफराबाद, मौजपुर, गोकलपुरी, शाहरुख, कांस्टेबल रतनलाल की मौत, दिल्ली में पथराव, दिल्ली में आगजनी, दिल्ली में फायरिंग, भजनपुरा, दिल्ली सीएए हिंसा, शाहीन बाग, शाहीनबाग प्रदर्शन, शाहीन बाग वायरल वीडियो, CAA NRC शाहीन बाग, CAA NRC असम, शाहीन बाग मास्टरमाइंड, cab and nrc hindi, CAA, नागरिकता कानून, नागरिकता कानून हिंसा, भारत विरोधी नारे, हिंसा में शामिल pfi और सीमी, हिन्दुत्व के विरोध का भूत, हमें चाहिए आजादी ये कैसा नारा है, हिंदुओं से चाहिए आजादी, rambhakt gopal, ram bhakt gopal, jamia violence, जामिया हिंसा, राम भक्त गोपाल
Devesh Khandelwal
Devesh Khandelwal
Devesh Khandelwal is an alumnus of Indian Institute of Mass Communication. He has worked with various think-tanks such as Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation, Research & Development Foundation for Integral Humanism and Jammu-Kashmir Study Centre.

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

मुख़्तार अंसारी की मौत: हार्ट अटैक के बाद अस्पताल ले जाया गया था माफिया, पूर्वांचल के कई जिलों में बढ़ाई गई सुरक्षा व्यवस्था

माफिया मुख़्तार अंसारी को बाँदा जेल में आया हार्ट अटैक। अस्पताल में डॉक्टरों ने मृत घोषित किया। पूर्वांचल के कई जिलों में बढ़ी सुरक्षा व्यवस्था।

‘कॉन्ग्रेस सरकार ने रोक दिया हिन्दुओं का दाना-पानी, मैं राशन लेकर जा रहा था’: विधायक T राजा सिंह तेलंगाना में हाउस अरेस्ट, बोले –...

बकौल राजा सिंह, कॉन्ग्रेस सरकार ने चेंगीछेरला के हिन्दुओं का खाना और राशन तक बंद कर दिया है और जब वो राशन ले कर वहाँ जाने वाले थे तो उनको हाउस अरेस्ट कर लिया गया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
418,000SubscribersSubscribe