Thursday, March 28, 2024
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सड़कों पर ही नहीं, मंदिर-गुरुद्वारे में भी नमाज पढ़ना है इस्लामी गिरोह का सपना: गणेश उत्सव से राना अयूब को लगी मिर्ची, हिंदू ही दें सेक्युलरिज्म की आहुति?

क्या केवल हिंदुओं के कंधे पर ऐसे भाईचारे को बढ़ाने का दबाव है। क्या केवल उन्हें सहिष्णु होने की सलाह दी जाएगी। ईदगाह ऐसी जगह है जहाँ बच्चे क्रिकेट से लेकर फुटबॉल खेलते हैं। समय-समय पर तरह-तरह के कार्यक्रम होते हैं। मगर हिंदू इसमें पंडाल लगाने की माँग कर दे तो केवल मुस्लिम ही नहीं पूरी लिबरल जमात उन पर टूट पड़ती है।

देश का सेक्युलरिज्म खतरे में हैं क्योंकि गणेश चतुर्थी के रूप में एक और हिंदू त्योहार आ गया है। कट्टरपंथियों को लग रहा है अभी तक तो इस मौके पर हिंदू केवल सरेआम मूर्ति पूजन से अल्पसंख्यकों की भावना आहत करते थे। लेकिन, इस बार इन लोगों ने हद्द ही कर दी। बेंगलुरु में सामने से आकर त्योहार मनाने के लिए धारवाड़ ईदगाह मैदान माँग लिया और कोर्ट ने भी अनुमति दे दी कि मनाओ अपना पर्व कोई कुछ नहीं कहेगा।

कपिल सिब्बल जैसे वरिष्ठ वकील की बहुत कोशिशों के बाद भी कोर्ट ने एक नहीं सुनी। बेंच ने बस इस बिंदु पर विचार किया कि अगर खाली पड़े मैदान जहाँ बाइक पार्क होती हैं और समय आने पर रमजान-बकरीद मनाया जाता है तो फिर वहाँ गणेश चतुर्थी मनाने से क्या गलत हो जाएगा।

कपिल सिब्बल समझाते रहे कि ऐसा नहीं होना चाहिए- उस जगह को ईदगाह कहते हैं- ईदगाह…। लेकिन कोर्ट ने कोई दलील नहीं सुनी। उलटा त्योहार मनाने की अनुमति के साथ कड़ी सुरक्षा के निर्देश भी दे दिए। अब पुलिस चप्पे-चप्पे पर तैनात है। अल्पसंख्यक समुदाय आहत है तो भी क्या करे! 

वह हमेशा से कहते रहे हैं कि इस देश में उनकी सुनवाई 2014 के बाद से ही नहीं हो रही। इसलिए राना अयूब जैसी पत्रकारों को विदेशी मीडिया में उनकी आवाज बनना पड़ता है। इस बार भी डूबती उम्मीदों को अयूब का सहारा मिला है।

राना अयूब हिंदुओं से हुईं नाराज

अयूब जैसा कि हर बार मुस्लिमों के हित में आवाज उठाती हैं। फिर चाहे वो सड़कों पर नमाज पढ़ने के अधिकार के लिए हो या फिर मंदिर-गुरुद्वारे में इबादत करके भाईचारे की मिसाल देने के लिए…इस बार भी अयूब ने अपना काम बखूबी किया।

सड़कों पर नमाज पढ़ने के अधिकार के लिए लड़तीं रानाअयूब

राना अयूब ने हिंदुओं पर बौखलाहट निकाली कि ये क्या घटियापना है- तुम्हारे पास दुनिया भर की जमीन पड़ी है लेकिन तुम ईदगाह आ रहे हो गणेश चतुर्थी मनाने।

हिंदुओं को फटकारा

बहुसंख्यक समुदाय पर प्रत्यक्ष नाराजगी न दिखे इसलिए उन्होंने अपने ट्वीट में कोई नाम नहीं लिया है, पर हिंदुओं को समझ जाना चाहिए कि ये बात उन्हीं लोगों के लिए है, क्योंकि वही लोग ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी मनाने आगे आए हैं। 

राना अयूब खुद से लिख कर जाहिर नहीं कर सकतीं कि वो चाहती हैं कि मुस्लिम भी मंदिर परिसर में नमाज पढ़ने की माँग उठाएँ, पर अगर किसी ने उनकी इस मन की बात को अपने ट्वीट में लिखा है तो वो उसे रीट्वीट करने से पीछे नहीं हैं। जैसे द वायर की तारूषी शर्मा का ट्वीट उन्होंने फौरन रीट्वीट किया क्योंकि इसमें यही बात थी जो राना खुले में कहना चाहती हैं।

मुस्लिम ही लेकर आगे बढ़ें ‘गंगा-जमुनी’ तहजीब

शायद अयूब चाहती हैं कि देश में ‘गंगा जमुना तहजीब ( जिसका अर्थ कट्टरपंथियों के लिए हिंदू स्थलों पर नमाज पढ़ने का अधिकार है)’ के वाहक जैसे अब तक मुस्लिम रहे हैं। वैसे ही वही लोग इस अभियान को आगे तक लेकर जाएँ। हिंदुओं पर ज्यादा भार न पड़े। 

आपने ये तस्वीरें देखी हैं क्या- किस तरह देश में सैंकड़ों मस्जिद होने के बाद भी मुस्लिम समुदाय के लोग खुली सड़क, सोसायटी के पार्क, शहर के मॉल में नमाज पढ़ लेते हैं। इतना ही खबरें देखें तो पता चलेगा समुदाय के लोग कई बार अपनी इबादत, हिंदुओं के पूजा स्थल के आस-पास और उसके अंदर घुसकर भी अदा कर देते हैं।

इसके अलावा गणपति पंडाल में जाकर भी समुदाय विशेष नमाज अदा कर चुका है। गुजरात के मंदिर समेत कई मंदिरों में इफ्तार की खबरें भी आती रहती हैं।

हिंदू अपने धार्मिक स्थल को लेकर लिबरल होता है। लेकिन जब ईदगाह में गणपति पंडाल लगाने की माँग करता है तो उसे कोर्ट में लड़ाई लड़नी पड़ती है। मजहबी भावनाएँ आहत करने का इल्जाम उस पर लगाया जाता है। ये भावना तब आहत नहीं होती क्या जब पूजा स्थल पर बकरीद के समय गोश्त फेंका जाता है।

हिंदुओं को क्या करना चाहिए (राना अयूब के अनुसार)

क्या केवल हिंदुओं के कंधे पर ऐसे भाईचारे को बढ़ाने का दबाव है। क्या केवल उन्हें सहिष्णु होने की सलाह दी जाएगी। ईदगाह ऐसी जगह है जहाँ बच्चे क्रिकेट से लेकर फुटबॉल खेलते हैं। समय-समय पर तरह-तरह के कार्यक्रम होते हैं। मगर हिंदू इसमें पंडाल लगाने की माँग कर दे तो केवल मुस्लिम ही नहीं पूरी लिबरल जमात उन पर टूट पड़ती है। उन्हें तब याद नहीं आता कि कैसे हिंदुओं के राम लीला मैदान का प्रयोग वो धरना आदि के लिए सालों से करते रहे हैं। लेकिन हिंदू कभी उन्हें कुछ कहने नहीं गया। क्या सेकुलरिज्म को बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ हिंदुओं पर है कि वो धर्म की आहुति देकर इसकी रक्षा करें। राम नवमी-हनुमान जयंती पर यात्रा निकलने पर पत्थर खाएँ और फिर ये सुनें कि उनके जवाब देने से माहौल बिगड़ा।

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