Saturday, January 4, 2025
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धार्मिक विवादों की समय से सुनवाई के लिए जरूरी है रिलीजियस ट्रिब्यूनल: कोर्ट और सरकार को अब इस दिशा में सोचने की क्यों है जरूरत, जानिए

समाज में शांति बनाए रखने के साथ-साथ ट्रिब्यूनल विवादों को निपटाने के लिए एक केंद्रीय मंच प्रदान करेगा, जिससे जगह-जगह विवाद और हिंसा से बचा जा सकेगा। क्षेत्राधिकार की बात करें तो ट्रिब्यूनल को केवल धार्मिक विवादों, धार्मिक स्थलों और संबंधित मामलों तक सीमित रखा जाए। धार्मिक विवादों का समाधान हिंसा से नहीं, संवाद और कानून के माध्यम से ही संभव है।

धर्म की रक्षा में न्याय का आधार ही समाज को एकता और शांति प्रदान करता है। सरकार को धार्मिक स्थलों से संबंधित विवादों के समाधान के लिए एक अलग ट्रिब्यूनल की स्थापना करनी चाहिए। यह ट्रिब्यूनल सामान्य अदालतों से अलग हो और इसमें विशेष रूप से धार्मिक विवादों का निपटारा किया जाए। इसके लिए एक अलग धार्मिक ट्रिब्यूनल का गठन एक प्रभावी कदम हो सकता है।

इससे न केवल इन विवादों का त्वरित समाधान सुनिश्चित होगा, बल्कि राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में भी मदद मिलेगी। भारत जैसे बहुधर्मी और बहुसांस्कृतिक देश में धार्मिक विवाद अक्सर समाज में तनाव और अस्थिरता का कारण बनते हैं। इन विवादों का त्वरित और न्यायपूर्ण समाधान आवश्यक है, ताकि देश में धार्मिक सौहार्द्र और कानून व्यवस्था बनी रहे।

धार्मिक विवाद संवेदनशील होते हैं और इनके कारण समाज में तनाव और अशांति का माहौल बन सकता है। एक विशेष ट्रिब्यूनल के माध्यम से इन विवादों को सुलझाने से विवादित पक्षों को निष्पक्ष और विशेषज्ञ समाधान मिलेगा। इसके अलावा, यह पहल सामान्य अदालतों के बोझ को भी कम करेगी और अन्य मामलों के निपटारे में तेजी लाएगी।

भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय की गारंटी देता है। अनुच्छेद 25-28 हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन, प्रचार और अभ्यास करने की स्वतंत्रता देता है। अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण सुनिश्चित करता है। वहीं, अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालय को विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है कि वह न्यायिक या अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा कर सके।

हालाँकि, संविधान धार्मिक विवादों के लिए अलग ट्रिब्यूनल का स्पष्ट उल्लेख नहीं करता, लेकिन संसद को विशेष कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है। अनुच्छेद 323B के तहत संसद और राज्य विधानसभाओं को विशेष ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार है। धार्मिक मुद्दों पर शीघ्र और प्रभावी न्याय के लिए धार्मिक विवादों को सिविल कोर्ट में सुलझाने में वर्षों लग सकते हैं।

ट्रिब्यूनल में धार्मिक और कानूनी विशेषज्ञों की नियुक्ति की जानी चाहिए, ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके। इसके साथ ही इन ट्रिब्यूनल के निर्णयों पर उच्च न्यायालय में अपील का प्रावधान होना चाहिए, ताकि संवैधानिक प्रक्रिया का पालन हो। धार्मिक विशेषज्ञता के कारण ट्रिब्यूनल में धार्मिक और कानूनी विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो जटिल धार्मिक मामलों को बेहतर तरीके से समझ कर उसे सुलझा सकते हैं।

समाज में शांति बनाए रखने के साथ-साथ ट्रिब्यूनल विवादों को निपटाने के लिए एक केंद्रीय मंच प्रदान करेगा, जिससे जगह-जगह विवाद और हिंसा से बचा जा सकेगा। क्षेत्राधिकार की बात करें तो ट्रिब्यूनल को केवल धार्मिक विवादों, धार्मिक स्थलों और संबंधित मामलों तक सीमित रखा जाए। धार्मिक विवादों का समाधान हिंसा से नहीं, संवाद और कानून के माध्यम से ही संभव है।

ट्रिब्यूनल का गठन इस दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। यह ट्रिब्यूनल सुनिश्चित करेगा कि हर धर्म को न्याय मिले और कोई भी निर्णय तटस्थता और संविधान के दायरे में रहे। भारत में धार्मिक विवादों के समाधान के लिए अलग ट्रिब्यूनल का गठन संविधान सम्मत और समय की आवश्यकता है। राज्य सरकारों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए ताकि भविष्य में धार्मिक विवाद राष्ट्रीय एकता और कानून व्यवस्था को बाधित न करें।

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Reena Singh
Reena Singhhttp://www.reenansingh.com/
Advocate, Supreme Court. Specialises in Finance, Taxation & Corporate Matters. Interested in Religious & Social issues.

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