Friday, April 26, 2024
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सभी धर्मों, उत्पीड़ितों और शरणार्थियों वाला स्वामी विवेकानंद का संदेश… अफगानिस्तान और US दोनों पर लागू

पहले जो मुस्लिम गैर-मुस्लिम के प्रति घृणा रखता था, आज वह अपने साथी मुस्लिम के प्रति रखता है। आज एक मुस्लिम दूसरे मुस्लिम को ही मार रहा है। स्वामी विवेकानंद की सार्वभौम स्वीकृति का संदेश...

19वीं शताब्दी के महायोगी स्वामी विवेकानंद को आम जनमानस अनेकों कारणों से याद रखता है, जैसे- उनके ओजस्वी वक्तव्यों से, तेजस्वी चित्रों से, उनकी ‘विवेक वाणी’ से या फिर कठोपनिषद का यह मंत्र, जो उनके ध्येय वाक्य के तौर पर बोला जाता है- “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।” अर्थात “उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”

इन सबके अतरिक्त अगर विवेकानंद की स्मृतियाँ लोगों के मन में किसी कारण से रहती हैं, तो वह है उनका 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शहर शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा के उद्घाटन सत्र में दिया हुआ भाषण, जिसकी शुरूआत उन्होंने ‘अमेरिकावासी बहनों तथा भाइयों’ से की थी और सामने बैठे हुए सम्पूर्ण विश्व से आए हुए लगभग 7 हजार लोगों ने ढाई मिनट से ज्यादा समय तक तालियाँ बजाई थीं।

यह दिनांक साक्षी बना था, भारत से आए हुए एक गुमनाम युवा हिन्दू संन्यासी विवेकानंद के विश्व विजयी स्वामी विवेकानंद बनने का। जिन स्वामी विवेकानंद ने पिछले 5 वर्ष से भर पेट भोजन नहीं किया था, जिनको यह नहीं पता था कि अगली रात उनका निवास कहाँ होगा, जो वर्षों तक भारत की मिट्टी को ही बिस्तर और आसमान को चादर समझकर ओढ़ते आए थे, जिनको अमेरिका में पिछले 3 महीने से मात्र भूख और ठंड ही नहीं बल्कि रंग भेद के कारण अनेकों वार और प्रहारों का भी सामना करना पड़ा था, वह स्वामी विवेकानंद 11 सितम्बर 1893 को विश्व प्रसिद्ध हो गए थे।

अमेरिका के विभिन्न प्रांतों में उनके बड़े-बड़े पोस्टर लगने लगे थे, अखबार उनकी तारीफों से भरे हुए थे। वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने पश्चिम जगत के सामने भारतीय संस्कृति, सभ्यता और दर्शन को प्रस्तुत किया था। वह स्वामी विवेकानंद ही थे, जिन्होंने प्राचीनकालीन योग दर्शन को पश्चिम के सामने रखा और विश्व प्रसिद्धि दिलाई थी।

11 सितम्बर, 1893 तो 17 दिनों (11 से 27 सितम्बर, 1893) तक चलने वाले विश्व धर्म महासभा का प्रथम दिवस था, जहाँ विवेकानंद ने स्वागत का उत्तर देते हुए ही सबका हृदय जीत लिया था। विवेकानंद ने पहली बार विश्व के सामने पंथ, सम्प्रदाय, जाति, रंग, प्रान्त जैसे संकीर्ण और संकुचित बंधुत्व से भिन्न एक नवीन बंधुत्व ‘विश्व बंधुत्व’ का सन्देश दिया था, जो सनातन धर्म के ग्रंथों का सार है।

स्वामी विवेकानंद अपने भाषण में कहते है, “मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी है। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं।”

जहाँ एक तरफ दुनिया भर से आए हुए यहूदी, इस्लाम, बौद्ध, ताओ कनफ्यूशियम, शिन्तो, पारसी, कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट इत्यादि धर्मों के अनेकों प्रतिनिधि अपने धर्म को श्रेष्ठ स्थापित करने के लिए यहाँ आए थे, वहीं दूसरी तरफ विवेकानंद के सबको स्वीकार करने वाले संदेश ने वहाँ उपस्थित सभी मनुष्यों को चिंतन में डाल दिया था।

विवेकानंद आगे कहते हैं, “मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूँ जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को अपने यहाँ शरण दी। मुझे आपको यह बताते हुए गर्व होता है कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट अंश को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत में आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ, जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है।”

इस ऐतिहासिक भाषण के अतिरिक्त विश्व धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद ने पाँच और व्याख्यान दिए थे, जिसमें 19 सितम्बर को ‘हिन्दू धर्म पर निबंध’ शीर्षक व्याख्यान भी अत्यंत चर्चित रहा था। उनको सुनने के लिए लोग घंटों पहले आकर सभागार में बैठ जाते थे।  

128 वर्ष बाद भी क्यों प्रासंगिक है विवेकानंद का भाषण 

जब कोई अभिभावक अपने बच्चे को बाल्यकाल में मोबाइल फोन पर झूठ बोलने को कहता है कि वह घर पर नहीं है, तब उसको यह आभास नहीं होता कि आने वाले समय में यही बच्चा जब युवावस्था में आएगा तो सबसे पहले अपने माता-पिता को ही मोबाइल से लेकर प्रतक्ष्य तौर पर झूठ बोलेगा, जो कि तब उनको ठेस पहुँचाएगा। लेकिन उनको भूलना नहीं चाहिए कि बीज तो उन्होंने ही डाला था कुछ वर्षों पहले।

इसी प्रकार जब महाभारतकालीन गांधार, जो आज का अफगानिस्तान है, वहाँ वर्षों से अपना जीवनयापन कर रहे हिन्दू ,बौद्ध और अन्य पंथो पर मुस्लिम आक्रांताओं ने प्रहार करना शुरू किया तो अन्य मुस्लिमों को लगा था कि यह तो मुस्लिमों और अन्य पंथो के बीच की लड़ाई है। इसमें वह सब सुरक्षित हैं।

हिन्दुओं को चुन-चुन कर मारा जाने लगा। उनकी जनसंख्या, जो कि कभी बहुसंख्या में थी, उसका प्रतिशत धीरे-धीरे हजार में आ पहुँचा। क्रूरता, हैवानियत और बर्बरता को उद्धरण के माध्यम से समझाना मुश्किल है लेकिन 1970 में इतने वर्षों की पीड़ा, दुःख, वेदना, संकट, कष्ट, यातना सहकर भी जो 7 लाख हिन्दू और सिख जनसंख्या वहाँ बची थी, वह आज 7 हजार के आँकड़े तक भी नहीं पहुँच पाएगी।

इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि गैर-मुस्लिम के लिए वहाँ कैसी स्थिति होगी। गैर-मुस्लिम जनसंख्या तो खत्म होने की कागार पर खड़ी है, लेकिन क्रूरता रुकी नहीं। पहले जो मुस्लिम गैर-मुस्लिम के प्रति घृणा रखता था, आज वह अपने साथी मुस्लिम के प्रति रखता है। इसका मूल कारण है कि अपने से अलग मत और पंथ को स्वीकार्यता नहीं है और उसके प्रति सिर्फ घृणा का भाव है।

आज एक मुस्लिम दूसरे मुस्लिम को ही मार रहा है। इसीलिए हमको यह समझना होगा कि वर्षों पहले जो नफ़रत और घृणा का बीज बोया था गैर-मुसलमानों के खिलाफ, आज वह बीज रोपने वालों को भी खोखला कर रहा है। जिसने उस समय आवाज़ नहीं उठाई उस अन्याय के खिलाफ, आज उसे भी उसका नुकसान झेलना पड़ रहा है।

मानवता खत्म हो गई है, एक दूसरे को स्वीकार करना तो दूर की बात, सहन करने का भी भाव खत्म हो गया है। आज हमें विवेकानंद के 128 वर्ष पूर्व दिए हुए उस संदेश को याद करने की आवश्यकता है, जो संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा देता है।

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nikhilyadav
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Nikhil Yadav is Presently Prant Yuva Pramukh, Vivekananda Kendra, Uttar Prant. He had obtained Graduation in History (Hons ) from Delhi College Of Arts and Commerce, University of Delhi and Maters in History from Department of History, University of Delhi. He had also obtained COP in Vedic Culture and Heritage from Jawaharlal Nehru University New Delhi.Presently he is a research scholar in School of Social Science JNU ,New Delhi . He coordinates a youth program Young India: Know Thyself which is organized across educational institutions of Delhi, especially Delhi University, Jawaharlal Nehru University (JNU ), and Ambedkar University. He had delivered lectures and given presentations at South Asian University, New Delhi, Various colleges of Delhi University, and Jawaharlal Nehru University among others.

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