Thursday, April 25, 2024
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ता चढ़ि मुल्ला (फर्जी) बाँग दे: ‘जय श्री राम’ न कहने पर मारा, हम अदरक करेंगे, लहसुन करेंगे

हिन्दू न तो सड़कों पर तलवार लिए दौड़ रहा है, न दंगे हो रहे हैं, तो इनके विचारावलंबियों ने नई तरकीब निकाली: खुद को थप्पड़ मारो और कहो कि हिन्दू ने मारा। फिर क्विंट, स्क्रॉल, एनडीटीवी आदि है ही बताने के लिए कि शांतिप्रिय को हिन्दू ने थप्पड़ मारा क्योंकि वो ‘जय श्री राम’ नहीं बोल रहा था।

चार लौंडे क्रिकेट खेलते हुए भिड़ गए, मार-पीट हुई, एक-दो बूँद खून निकला, बच्चे घर गए। फिर आया लम्पट इमाम जिसने जानबूझकर एक सामान्य झगड़े को सीधा जय श्री राम तक जोड़ दिया और कहा कि उसने पुलिस को सारी बातें बता दी हैं, शिनाख्त दे दी है, चेहरे और नाम दे दिए हैं। आगे इमाम ने फरमाया कि अगर जुमे की नमाज तक ये लोग गिरफ्तार नहीं किए जाएँगे तो वो होगा, जो आज तक न हुआ। जाहिर सी बात है कि इमाम साहब का आशय सड़क पर नमाज पढ़ने का तो बिलकुल नहीं था, उनका आशय दंगा और हिंसा का ही था क्योंकि जिस हिसाब से वो बोल रहे थे, लग रहा था खड़े हो कर सूरज को खींच लेंगे और कहेंगे कि जुमेरात को ही जुमा करो, और इन्हें बता दो कि आखिर वो क्या होने की बात कर रहे हैं!

खबर सुबह आ गई थी, और हमें पूरी तरह से संदेह था कि ये खबर फर्जी साबित होनी है। टाइम्स नाव, क्विंट, फेक्ट चेकर डॉट इन, एनडीटीवी सरीखे सारे मीडिया वालों ने तुरंत ‘मजहबी टोपी’ वाली इमेज लगा कर, कान के नीचे एक लाल जगह को लाल घेरे में घेरा और बताया कि इन्हें तो ‘जय श्री राम’ कहलवाने के कारण पीटा गया। एक चोरकट मीडिया वाले ने तो यह भी गिनाया कि मोदी के शपथ ग्रहण के बाद यह कितने नंबर की घटना हुई है। उसने बाद में फर्जी साबित हुई घटनाओं को नहीं गिनाया क्योंकि वो तो नैरेटिव को सूट नहीं करता ना!

शाम में पता चला कि इमाम साहब बस दंगे कराना चाहते थे क्योंकि ऐसी ही एक अफवाह पर चाँदनी चौक में कट्टरपंथियों की वही भीड़ पत्थरबाजी करते हुए दुर्गा मंदिर और उसकी मूर्तियों को तोड़ा जो हाल ही में बिरयानी बाँटते नजर आ रहे थे। ऐसे दंगाई इमाम को क्या सजा मिली कोई नहीं जानता, न ही किसी को ये जानने में कोई रुचि है।

अब आप सोचिए कि जिन बच्चों के बीच लड़ाई हुई थी, उसमें जो हिन्दू बच्चे थे (जी हाँ, हमारे समय के इमामों ने बच्चों को अब हिन्दू और मुस्लिम में बाँट दिया है, पहले वो बस खेलने वाले बच्चे हुआ करते थे), वो हिन्दू बच्चे घर जाते और उनके इलाके के किसी पुजारी को पता चलता है कि ऐसा हुआ है, और वो कैमरे पर बोलता, “मुस्लिम बच्चों ने हमारे लड़कों को मारा और उनसे जबरन ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे लगवाए। हमने पुलिस को नाम और फोटो दे दिए हैं। अगर कल शाम तक भगवान की आरती से पहले वो गिरफ्तार नहीं हुए, तो हम वो करेंगे जो कभी नहीं हुआ।”

तब कहा जाता कि देश का माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है। बच्चों को मजहब के आधार पर चिह्नित करके कट्टर बनाया जा रहा है। ये वही लोग कहते जिनके आवाज निकाल सकने वाले सारे छिद्र बंद हैं क्योंकि सारे छिद्र सेकुलर हो रखे हैं।

ये पहली घटना नहीं है जब ये इमाम, मौलवी और कठमुल्ले मजहब की आड़ में भीड़ को दंगा करने के लिए तैयार करते हैं। लगातार ऐसी घटनाएँ फर्जी साबित होती जा रही हैं। दो मुस्लिम लौंडों ने आपस में ही ‘जय श्री राम’ बोलने की बात पर विडियो बना कर वायरल करने के लिए ऐसी ही बेहूदगी की और बाद में पकड़े गए। ऐसी ही एक घटना सामने आई जब दारू पीकर मारपीट करने वासे आतिब ने ‘जय श्री राम’ वाला विक्टिम कार्ड खेला।

कुछ समय पहले गुड़गाँव में हवा से ‘शान्तिप्रियों’ की टोपी उड़ी और मीडिया नाचने लगा कि उसकी टोपी हिन्दू आदमी ने उतार कर फेंक दी। ये बेशर्म और निकम्मे माडिया वाले माफी भी नहीं माँगते। वस्तुतः ये लोग दंगाई हैं जो अपना काम हर बार कर जाते हैं। इन्हीं के चैनलों के एंकर ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ की बातें करते नजर आते हैं, और इन्हीं के चैनलों की फर्जी बातों को आधार बना कर, अफवाह फैलाई जाती है और मंदिर तोड़ा जाता है।

अब तो हर ऐसी घटना पर लगता है कि जरूर फर्जी होगा क्योंकि आपसी रंजिश के नाम की गई हत्या में मणिपुर की खबर में ये लोग तुरंत हिन्दू और गाय घुसा देते हैं, जबकि पता चलता है कि बात कुछ और ही थी। जिस जुनैद की हत्या को लेकर रवीश कुमार आज भी माला फेर लेते हैं, वो सीट के विवाद में मारा गया था। बरकत अली ने शराब पीकर मारपीट की, पुलिस से कहा उसे ‘जय श्री राम’ बोलने कहा गया, टोपी निकाल कर फेंक दी।

हर घटना के केन्द्र में शांतिप्रिय और जय श्री राम। जब लग रहा था कि मोदी के खिलाफ बहत्तर प्रधानमंत्री उम्मीदवार आएँगे, और चोरों की मंडली एक साथ खड़ी हो कर मोदी को हरा देंगे, तो ये सारी बातें आधे साल तक नहीं हुई। मोदी के जीतते ही ऐसी खबरों में अचानक से इजाफा कैसे हो गया? आखिर आधी खबरें झूठी क्यों साबित हो रही हैं? दर्जन भर मंदिर तोड़े गए, मूर्तियाँ विखंडित हुईं, और हर बार आरोपित या तो शांतिप्रिय है, या अज्ञात।

मंदिरों को तोड़ने को लिए भीड़ बुलाने के लिए अफवाह फैलाई जाती है कि ‘अरे हिन्दुओं ने शांतिप्रिय को मार दिया, क्योंकि उसने जय श्री राम नहीं बोला’। फिर अचानक से डरे हुए लोगों के हाथों में पत्थर आ जाते हैं, तलवारें आ जाती हैं और हौज़ काज़ी का दुर्गा मंदिर तोड़ दिया जाता है। उसके बाद उन्हीं हिन्दुओं का, और सारे धर्म पर एक भद्दा सा मजाक फेंका जाता है कि ‘अरे, हम मंदिर बना देंगे’। अरे दंगाइयो! तुम मंदिर क्यों बनाओगे? तुम्हारा तो मजहबी इतिहास रहा है मंदिर और मूर्तियों को तोड़ने का, चौदह सौ साल से यही तो हो रहा है। आज कानून है तो थोड़ा कम करते हो, लेकिन शिवलिंग पर पेशाब करने से लेकर, हनुमान की मूर्ति का सर तोड़ने वाले तुम्हारे ही भाई-बंधु हैं।

ये एक तय तरीके से, सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की राह चलते हुए राजनैतिक परिदृश्य को प्रभावित करने की एक मुहिम है। चूँकि दो बार सत्ता पाने के बावजूद, पहले से ज्यादा संख्याबल के बावजूद, हिन्दू न तो सड़कों पर दौड़ रहा है, न दंगे हो रहे हैं जो कॉन्ग्रेस और कामपंथी वामभक्त सरकारों का सिग्नेचर रहे हैं, तो इनके विचारावलंबियों ने नई तरकीब निकाली: खुद को थप्पड़ मारो और कहो कि हिन्दू ने मारा। फिर क्विंट, स्क्रॉल, एनडीटीवी आदि है ही बताने के लिए कि शांतिप्रिय को हिन्दू ने थप्पड़ मारा क्योंकि वो ‘जय श्री राम’ नहीं बोल रहा था।

उसके बाद, व्हाइट सुप्रीमैसिज्म से जूझता, बुनियादी तौर पर नस्लभेदी, साम्प्रदायिक घृणा से सना हुआ अमेरिका अपने संसद में बार-बार यह ज्ञान देता है कि भारत में शांतिप्रियों को सही तरीके से ट्रीट नहीं किया जा रहा! जहाँ भारतीय संविधान से परे जा कर, मज़हब के आधार पर सरकार छात्रवृतियाँ दे रही है, उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए तलाक़ जैसी कुप्रथाओं पर कानून ला रही है, अपने कोर वोटर का क्रोध झेल कर भी कट्टरपंथियों के लिए हाथ खोले तैयार है, उस पर यह आरोप! भारत के मुस्लिम हर जगह अल्पसंख्यक नहीं हैं। वस्तुतः वो दूसरे सबसे बड़े बहुसंख्यक हैं और कई राज्यों और जिलों में पूर्णरूपेण बहुसंख्यक हैं। लेकिन इन्हें राष्ट्र के स्तर पर अल्पसंख्यक मान कर योजनाएँ बनती हैं।

और ये अल्पसंख्यक क्या करता है? कश्मीर से हिन्दुओं को खदेड़ता है। फिर कैराना में वहाँ के परिवारों का वो हाल करता है कि वो एक के बाद एक पूरा इलाक़ा छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। ये शांतिप्रिय जहाँ बहुसंख्यक होते हैं वहाँ मेरठ के प्रह्लादनगर जैसी स्थिति पैदा होती है जहाँ शांतिप्रिय आबादी हिन्दुओं की बच्चियों को स्कूल और ट्यूशन जाते वक्त छेड़ती है, घरों के आगे गाड़ी लगाती है ताकि विवाद हो और ये अपना शक्ति प्रदर्शन कर सकें। अंततः, वो इलाक़ा भी खाली होने लगता है। ये घटनाएँ इक्की-दुक्की नहीं है, ये कहीं न कहीं होती ही रहती है। बस आप तक पहुँचती नहीं है।

इसीलिए इनकी लॉबी अब थप्पड़ मार कर विडियो बनाती है, उसमें ‘जय श्री राम’ बुलवाती है, और ख़बरें आने लगती हैं कि मोदी के शपथ ग्रहण के बाद कितने लोगों को राम के उद्घोष न करने पर हिन्दुओं ने मारा। कुछ घटनाएँ हुई हैं, सच भी हैं लेकिन वो अभी भी ‘पीटने’ तक ही सीमित हैं, लेकिन बिग बीसी जैसे मीडिया हाउस से लेकर ‘वायर’ तक अब यह प्रपंच बाँच रहा है कि ‘जय श्री राम’ तो हथियार बनता जा रहा है। सबा नकवी जैसे पत्रकार अचानक से ‘जय श्री राम’ मामलों के जानकार बन कर सामने आ रहे हैं और बता रहे हैं कि नारा तो ‘जय सिया राम’ हुआ करता था, ‘जय श्री राम’ तो ये है, और वो है!

मतलब, जिस नारे के नाम पर बम फोड़े जा रहे हैं, लोगों के ऊपर ट्रक चढ़ाया जा रहा है, मास शूटिंग हो रही हो, आत्मघाती हमले हो रहे हैं, उस ‘अल्लाहु अकबर’ नारे की व्याख्या कोई नहीं करता कि इसको चिल्लाते हुए कितने आतंकियों ने कितने बेगुनाहों की जान ली। तुलनात्मक रूप से चार लोगों को पीटना, हजारों लोगों को मौत की नींद सुला देने से ज्यादा खतरनाक है! इसी को विशुद्ध दोगलापन कहते हैं। यही कारण है कि इन लोगों को इनके हर आर्टिकल के नीचे गालियाँ ही पड़ती हैं। इनका सत्य सेलेक्टिव है, बनावटी है, और शाम तक झूठ साबित हो जाने वाला है। लेकिन शाम को ये माफी नहीं माँगते।

आख़िर इन दंगाई इमामों, मीडिया वालों और इन दंगाइयों के हिमायतियों पर कोई सही कार्रवाई क्यों नहीं होती? ये तो सीधे तौर पर देश की बुनियाद पर हमला कर रहे हैं। ये तो कैमरे के सामने टोपी पहन कर उकसाते हैं कि अगर पुलिस ने उनके बताए लोगों को गिरफ़्तार नहीं किया तो वो जुमे के दिन ऐसा करेंगे जो कभी हुआ नहीं! अबे तुम हो क्या? दो कौड़ी के दंगाई इमाम जो काली-पीली टोपी पहन कर अपने मज़हब का नाम लेकर दंगा करने की धमकी देता है? पुलिस अब इनके हिसाब से जाँच करे क्योंकि ये टोपी लगाते हैं? ये और कुछ नहीं है, यही है कि ये जो कहें वही हो वरना झारखंड की घटना पर सूरत के चौराहे पर ये निकल आएँगे और पत्थरबाज़ी से लेकर आगज़नी करते हुए पुलिस पर हमला कर देंगे।

ये सब काम नमाज के बाद होता है। आप ठहर कर सोचिए कि इतना पाक काम करने के बाद ये किस भावना से बाहर निकलते होंगे, कहाँ पड़े पत्थर उठाते होंगे, आग लगाने का सामान जुटाते होंगे और फिर पुलिस पर ही टूट पड़ते होंगे! लोग बताते थकते नहीं कि नमाज पढ़ते वक्त जो शारीरिक कार्य होते हैं, वो कितने वैज्ञानिक होते हैं और ये हिन्दुओं के योग के कितना करीब है। लोग बताते हैं कि इससे मानसिक शांति मिलती है। मैं सारी बातें मानता हूँ लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आता कि नमाज पढ़ने के बाद कोई भीड़ पुलिस पर हमला कैसे बोल देती है!

मेरा समझ में ये नहीं आता कि एक इमाम इतना क्रोधित हो कर झूठी बात के आधार पर पुलिस और प्रशासन को धमकी कैसे देता है? मेरी समझ में ये नहीं आता कि ऐसे इमामों को इमाम किस आधार पर बनाया जाता है? ये आदमी इतना गुस्से में क्यों है? ये मज़हबी पद पर बैठा व्यक्ति आतंकियों की भाषा कैसे बोल लेता है और वृहद् समाज इसे स्वीकार कैसे लेता है? इस पर चर्चा क्यों नहीं होती कि ऐसे इमाम आख़िर एक शांतिपूर्ण मज़हब का नाम क्यों खराब कर रहे हैं। मुझे तो निजी तौर पर कई बार इस अतिशांतिप्रिय मज़हब को लेकर आंतरिक दुःख होता है कि ऐसे इमाम और ऐसे बच्चे झूठ बोल कर नाम खराब कर रहे हैं। ऐसा बिलकुल ही निंदनीय है। ऐसे इमामों पर कार्रवाई होनी चाहिए ताकि इस्लाम अपने असली रूप में बचा रहे।

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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