Saturday, July 12, 2025
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महिला नहीं, न्याय का सशक्तिकरण है जरूरी… जेंडर न्यूट्रल क़ानून है आज के समय की माँग: पुरुष बन चुका है सबसे कमजोर कड़ी

जब महिलाएँ अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हों, तब क्या पुरुषों की पीड़ा को नजरअंदाज करना न्याय है? ये घटनाएँ केवल व्यक्तिगत धोखे की नहीं, बल्कि सामाजिक असंतुलन की प्रतीक हैं।

हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक ऐसी घटना सामने आई हैं, जो न केवल विवाह संस्था को हिला रही हैं। बल्कि पुरुषों की सुरक्षा और सामाजिक नैतिकता पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। ये घटनाएँ केवल वैवाहिक असफलता के प्रतीक के साथ उस सामाजिक और कानूनी असंतुलन की ओर इशारा करती हैं, जो पुरुषों को अदृश्य पीड़ित बना रहा है।

बदायूं में एक नवविवाहिता शादी के 8 दिन बाद प्रेमी संग कोतवाली पहुँच जाती है और पति संग रहने से इनकार कर देती है। बागपत में एक शादीशुदा महिला अपने प्रेमी के साथ OYO होटल में पकड़ी जाती है और खिड़की से कूदकर भाग निकलती है। लखनऊ के अंबेडकर नगर में महिला ने पति को पीटकर घर से निकाला और फिर प्रेमी से शादी कर ली।

औरैया में पत्नी ने शादी के 15 दिन बाद ही पति की हत्या की साजिश रच दी। कन्नौज में महिला ने प्रेमी संग मिलकर पति का गला घोंटकर हत्या की। गोरखपुर में पत्नी ने पति पर दहेज का झूठा केस किया और प्रेमी संग मंदिर में शादी कर ली। जौनपुर में पत्नी की बेवफाई के बाद प्रेमी से उसका विवाह करवा दिया।

इन घटनाओं से स्पष्ट है कि विवाह अब कई बार भावनात्मक धोखा, आर्थिक शोषण और यहाँ तक कि जानलेवा षडयंत्र का माध्यम बन चुका है। दुख की बात यह है कि इन सब मामलों में पुरुष सबसे कमजोर कड़ी बनकर रह गया है, जिसकी न कहीं सुनवाई है और न कोई सरकारी सुरक्षा।

यह तो आगरा में टीसीएस मैनेजर मानव शर्मा ने भी आत्महत्या करने से पहले कहा था। मानव शर्मा का वो आखिरी वीडियो देख हर व्यक्ति की आँखे नम हुई थी। उन्होंने कहा था, “कोई मर्दों के बारे में भी सोचे…बेचारे बहुत अकेले होते हैं।” मानव अपनी पत्नी निकिता और उसके घरवालों की प्रताड़ना से परेशान था।

क्या यही महिला सशक्तिकरण है?

जब महिलाएँ अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हों, तब क्या पुरुषों की पीड़ा को नजरअंदाज करना न्याय है? ये घटनाएँ केवल व्यक्तिगत धोखे की नहीं, बल्कि सामाजिक असंतुलन की प्रतीक हैं। दुख की बात यह है कि इन सब मामलों में पुरुष सबसे कमजोर कड़ी बनकर रह गया है जिसकी न कहीं सुनवाई है, न कोई सरकारी सुरक्षा।

आज जरूरत है कि इस असंतुलन को संवैधानिक और सामाजिक स्तर पर समझा जाए। ‘जेंडर न्यूट्रल कानून’ समय की माँग है। महिलाओं की तरह पुरुषों को भी संवैधानिक संरक्षण मिले, इसके लिए ‘पुरुष आयोग’ की स्थापना अनिवार्य है। साथ ही, विवाह पूर्व काउंसलिंग और नैतिक शिक्षा को भी सामाजिक मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए।

एक समाज तभी संतुलित होता है जब वह दोनों पक्षों की पीड़ा को समझे। केवल महिला-सशक्तिकरण नहीं, ‘न्याय-सशक्तिकरण’ जरूरी है। चाहे वह पुरुष के लिए हो या महिला के लिए।

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Barkha Trehan
Barkha Trehan
Activist | Voice Of Men | President, Purush Aayog | TEDx Speaker | Hindu Entrepreneur | Director of Documentary #TheCURSEOfManhood http://youtu.be/tOBrjL1VI6A

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