भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज जलियाँवाला बाग स्मारक के नए स्वरुप को लेकर विपक्षी दलों के साथ-साथ वामपंथियों ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। पूरा विवाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शनिवार (28 अगस्त, 2021) को जलियाँवाला बाग़ के पुनर्निर्मित परिसर के उद्घाटन बाद सामने आया है। जबकि इस उद्घाटन सत्र में पंजाब के CM कैप्टेन अमरिंदर सिंह भी उपस्थित थे। उस दिन PM मोदी ने अमृतसर स्थित जलियाँवाला बाग स्मारक स्थल पर विकसित चार संग्रहालय दीर्घाओं का भी लोकार्पण किया।
जहाँ सरकार के इस कदम की बड़े पैमाने पर सराहना हो रही थी वहीं अब वामपंथी इतिहासकारों, विपक्षी नेताओं और कॉन्ग्रेस से जुड़े लोगों ने सोशल मीडिया पर मोदी सरकार के इस काम पर उन्हें घेरने की कोशिश की है और आरोप लगाया कि ऐतिहासिक धरोहरों से मोदी सरकार छेड़छाड़ कर रही है।
कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी ने भी एक ट्वीट में इसे शहीदों का अपमान बताया। इस पूरे मामले पर राहुल गाँधी ने खुद को ‘शहीद का बेटा’ बताते हुए एनडीटीवी इंडिया की खबर शेयर करते हुए लिखा है, “जलियाँवाला बाग के शहीदों का ऐसा अपमान वही कर सकता है जो शहादत का मतलब नहीं जानता। मैं एक शहीद का बेटा हूँ- शहीदों का अपमान किसी क़ीमत पर सहन नहीं करूँगा। हम इस अभद्र क्रूरता के खिलाफ हैं।”
जलियाँवाला बाग़ के शहीदों का ऐसा अपमान वही कर सकता है जो शहादत का मतलब नहीं जानता।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 31, 2021
मैं एक शहीद का बेटा हूँ- शहीदों का अपमान किसी क़ीमत पर सहन नहीं करूँगा।
हम इस अभद्र क्रूरता के ख़िलाफ़ हैं। pic.twitter.com/3tWgsqc7Lx
जबकि उनके इसी ट्वीट से इत्तेफाक न रखते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री ने जलियाँवाला बाग में हुए नए परिवर्तन को बहुत अच्छा बताया है। उन्होंने कहा, “मैं नहीं जानता क्या हटाया गया है मेरे लिए जो भी हुआ है अच्छा दिख रहा है।”
"I don't know what has been removed. To me it looks very nice," says Punjab CM Captain Amarinder Singh over the renovation of the Jallianwala Bagh pic.twitter.com/uM3aut0Opo
— ANI (@ANI) August 31, 2021
वहीं इस मामले में वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब ने लिखा- “यह स्मारकों का निगमीकरण है। आधुनिक संरचनाओं के नाम पर यह अपना असली मूल्य खो रहे हैं।” वहीं वामपंथी नेता सीताराम येचुरी ने भी ट्वीट करते हुए लिखा है, “केवल वे जो स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहे, वे ही इसी प्रकार का कांड कर सकते हैं।”
Insulting our martyrs.
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) August 30, 2021
Jallianwala Bagh massacre of Hindus Muslims Sikhs who gathered together for Baisakhi galvanised our freedom struggle.
Every brick here permeated the horror of British rule.
Only those who stayed away from the epic freedom struggle can scandalise thus. https://t.co/KvYbl840qE
वामपंथी इतिहासकार एस इरफान हबीब ने एक और वामपंथी जॉय दास के ट्वीट की रीट्वीट किया है। जॉय दास ने अपने ट्वीट में लिखा है, “पहली तस्वीर जलियाँवाला बाग का मूल प्रवेश द्वार है, जहाँ से जनरल डायर ने नरसंहार का आदेश देने से पहले प्रवेश किया था। यह उस भयानक दिन की याद दिलाती है। दूसरी तस्वीर नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा इसे ‘संरक्षण’ के नाम पर पुनर्निर्मित करने के बाद की है। देख लें ये कैसा दिखता है।”
This is corporatisation of monuments, where they end up as modern structures, losing the heritage value. Look after them without meddling with the flavours of the period these memorials represent. https://t.co/H1dXQMmft7
— S lrfan Habib (@irfhabib) August 30, 2021
बता दें कि जलियाँवाला बाग के इस नए अवतार से कॉन्ग्रेस के भड़कने को उनके परिवार के इस ट्रस्ट से बाहर होने को भी जोड़कर देखा जा रहा है। पंजाब के अमृतसर स्थित ऐतिहासिक जालियॉंवाला बाग के प्रबंधन से संबंधित ट्रस्ट से 2019 में ही कॉन्ग्रेस को मोदी सरकार ने बेदखल कर दिया गया था। राज्यसभा ने जैसे ही 20 नवम्वर, 2019 को जालियॉंवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक-2019 को मंजूरी दी थी उसके साथ ही यह काम पूरा हो गया था क्योंकि लोकसभा में यह बिल पहले ही पास हो चुका था।
इस संशोधन के बाद से ट्रस्ट में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के होने की अनिवार्यता समाप्त हो गई थी। अब इसकी जगह लोकसभा में विपक्ष के नेता या सबसे बड़े दल के नेता को सदस्य बनाया गया है। मोदी सरकार ने उसी समय बताया था कि 2023 में मौजूदा न्यास का कार्यकाल समाप्त होने पर नए सदस्यों में शहीदों के परिजन भी होंगे। संस्कृति मंत्रालय ने तब एक बयान जारी कर कहा था कि इस बिल का मकसद जालियाँवाला बाग़ प्रबंधक ट्रस्ट को राजनीति से दूर रखना है।
गौरतलब है कि अप्रैल 13, 1919 को जलियाँवाला बाग़ में जनरल डायर के आदेश पर निर्दोष लोगों पर ताबड़तोड़ गोलीबारी की गई थी। इस नृशंस नरसंहार में सैकड़ों लोग मारे गए थे। इनमें कई बच्चे भी थे। मारे जाने वालों में वृद्ध और महिलाएँ भी शामिल थीं। ख़ुद डायर ने स्वीकार किया था कि उनकी पलटन ने 1700 राउंड फायरिंग की थी। बलिदानियों की याद में बाग का प्रबंधन देखने के लिए ट्रस्ट की स्थापना 1921 में की गई थी। आजादी के बाद 1951 में नए ट्रस्ट का गठन किया गया था।