Sunday, October 13, 2024
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महारानी की रानी भारती ‘काटती’ है, बिहार की राबड़ी देवी ‘कागजी’ थी… फिर हंगामा क्यों बरपा

सर्वर्णों को विलेन दिखाने की परंपरा का महारानी ने ईमानदारी से निर्वाह किया है। वित्त सचिव परवेज आलम के तौर पर 'ईमानदार मुस्लिम' को पेश करने की परंपरा का भी ख्याल रखा है।

फिल्म/सीरियल/वेब सीरिज में खासी रूचि नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कभी ये सब देखी नहीं। कुछ ने तो अजीब छाप भी छोड़ी जो समय के थपेड़ों के साथ मिट गईं। पटना के वीणा टॉकीज में धड़कन देखने के बाद ‘देव’ कुछ इस कदर चढ़ा कि बाहर निकलते ही काले रंग की जींस पैंट-शर्ट खरीद ली। बाटा का 99.99 रुपए वाला चमड़ा चप्पल खरीदा और उसमें मोची के पास जाकर कई कीलें ठुकवाई। उस मोची ने अजीब नजरों से देखा था। फिर कई महीनों तक उसी ड्रेस में घूमता रहा। इसके बाद कभी जींस पसंद नहीं आई। ऐसे ही जब नेटफ्लिक्स की वेब सीरिज हाउस आफ कार्ड्स (House of Cards) देखी तो कई दिनों तक ‘फ्रैंक अंडरवुड’ दिमाग से निकल ही नहीं पाया। बावजूद कभी इनका नियमित दर्शक नहीं रहा। ऐसे में पिछले दिनों पता चला कि एक वेब सीरिज महारानी नाम से बनी है। यह भी कि इसकी कहानी राबड़ी देवी से जोड़कर देखी जा रही है और इस पर विवाद शुरू हो गया है।

राजनीतिक विषयों को पढ़ने-समझने की रूचि है। लिहाजा साप्ताहिक अवकाश के दिन महारानी देखने का फैसला किया। पता चला कि यह सोनी लाइव (SonyLIV) पर आई है। सोनी लाइव पर गया तो पता चला कि देखने के लिए भगुतान करना होगा। सालाना वाला सबस्क्रिप्शन पैकेज लेकर महारानी के दसों एपिसोड एक ही बैठक में निपटा दिए।

यकीन मानिए यदि इसकी पृष्ठभूमि में बिहार और इससे जुड़ा ताजा विवाद नहीं होता तो मैं इस सीरिज का पहला एपिसोड भी पूरा नहीं कर पाता। बिहार की राजनीति, राजनीति में अपराध और जातिगत घालमेल जैसे विषय पर पहले भी फिल्में आईं हैं। इस लिहाज से महारानी बेहद छिछली कहानी है। दुखद यह है कि जॉली एलएलबी वाले सुभाष कपूर का नाम इस प्रोजेक्ट से जुड़े होने के बावजूद ऐसा है।

रचनाधर्मिता के नाम पर आजादी समझ में आती है। सीरिज में रानी भारती का किरदार निभाने वाली हुमा कुरैशी स​हित इससे जुड़े कई लोगों ने स्पष्ट भी किया है कि इसकी कहानी किसी के जीवन से प्रभावित नहीं है। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि रचनाधर्मिता और कल्पना की आजादी इतनी छिछली हो जाए कि ‘कठपुतली’ काटने लगे। ऐसा होने पर सब कुछ अपच हो जाता है।

कठपुतली का काटना पहले ही पहले ही एपिसोड से शुरू हो जाता है, जब वह मुख्यमंत्री भीमा शंकर के लिए घर के दरवाजे बच्चों की मनुहार के बाद खोलती है। उसे दूध दुहने और बाजार में बेचने को मजबूर करती है। वेटनरी कॉलेज सर्वेंट क्वार्टर में रहने वाली राबड़ी देवी भले रानी भारती की तरह अँगूठा छाप और भीमा के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नीरज कुमार (जिसे असल जीवन का नीतीश कुमार बताया जा रहा) के शब्दों में कहें तो अनपढ़-गँवार रही हों पर वे इतनी भी अनभिज्ञ न रही होंगी कि पति का मुख्यमंत्री होना या 1 अणे मार्ग (बिहार का मुख्यमंत्री आवास) में रहना क्या होता है, इसका अहसास नहीं रहा हो।

कठपुतली केवल पहले ही एपिसोड में ही नहीं काटती। आखिरी एपिसोड तक काटती है। अपने ही पति पूर्व मुख्यमंत्री भीमा भारती को गिरफ्तार तक करवा देती है। उससे पहले पति का नाम लेने की बजाए उन्हें ‘साहेब’ कहने के लिए पार्टी अध्यक्ष (जिसे सब पीठ पीछे काला नाग कहते हैं) से अस्पताल में भिड़ जाती है, गवर्नर के घर में एक तरह से देर रात रेड मारती है, घोटाले को उजागर करती है, वगैरह वगैरह।

यह सच है कि मुख्यमंत्री बनते समय राबड़ी देवी कुछ-कुछ रीना भारती जैसे ही अटकती थीं। राजकाज का आइडिया नहीं था। साहेब और साहेब के द्वारा तैनात अधिकारियों और मंत्रियों पर आश्रित थीं। तवलीन सिंह को दिए एक वीडियो इंटरव्यू में भी उनकी यह अक्षमता, असमर्थता और अटकना दिखता है। लेकिन, दूसरा सत्य यह भी है कि राबड़ी देवी में रानी भारती की तरह काटने का साहस होता तो बिहार की वो दुर्गति नहीं हुई होती जिसे हम अपनी विस्मृतियों से मिटा देना चाहते हैं। जंगलराज का वो टैग नहीं लगता जिससे बिहार आज भी सिहरता है।

नेशनल अवॉर्ड विजेता फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने दैनिक भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि इस सीरिज में राबड़ी राज की इमेज बनाने के लिए सवर्णों को नीचा दिखाने की कोशिश की गई है। उनकी बातों में दम है। लेकिन हमारे मनोरंजन इंडस्ट्री की यह बीमारी पुरानी है। आर्टिकल 15 यूपी की एक सत्य घटना से प्रेरित बताई जाती है। लेकिन, असल घटना के आरोपित किसी और जाति के थे, जिन्हें फिल्म में सवर्ण दिखाया गया है। मनोरंजन इंडस्ट्री में रचनाधर्मिता के नाम पर सर्वर्णों को अत्याचारी, क्रूर, चोर, बेईमान, भ्रष्ट और न जाने क्या-क्या दिखाने का चलन पुराना है। महारानी ने ईमानदारी से उस परंपरा का निर्वाह किया है। वित्त सचिव परवेज आलम के तौर पर ‘ईमानदार मुस्लिम’ को पेश करने की परंपरा का भी ख्याल रखा गया है। यह भी अजीब संयोग है कि महारानी के रिलीज होने से चंद दिन पहले ही सेनारी में सवर्णों के हुए नरसंहार, जिसमें 18 मार्च 1999 की रात 34 लोगों का गला काटा और पेट चीरा गया था, हाई कोर्ट ने किसी को दोषी नहीं माना था।

इस वेब सीरीज की स्क्रिप्ट लिखने वाले उमाशंकर सिंह ने दैनिक भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि इसकी कहानी कट्टर जातिवादियों को ही नागवार गुजरी है। पर विवाद जातीय से ज्यादा इसकी कहानी को लेकर राजनीतिक है।

रानी भारती के किरदार को राबड़ी देवी से जोड़े जाने को लेकर उनकी बेटी रोहिणी आचार्य ने खासी नाराजगी दिखाई है। माँ का बचाव करते हुए उन्होंने कुछ ट्वीट किए हैं। इनमें से एक में उन्होंने राबड़ी देवी के शासनकाल में महिलाओं को पीरियड के समय दो दिन की छुट्टी देने को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि वे बिहार की पहली और इकलौती मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने कामकाजी महिलाओं की पीड़ा समझी। लेकिन ऐसा कर उन्होंने अपनी पूर्व मुख्यमंत्री माँ के लिए कई कठिन सवाल खड़े कर दिए हैं।

आखिर पीरियड का दर्द समझने वाली पहली और इकलौती मुख्यमंत्री जातीय नरसंहारों की विधवाओं का दर्द कैसे नहीं समझ पाईं? शहाबुद्दीन द्वारा तेजाब से नहलाकर मार दिए गए बेटों की माँ का दर्द कैसे नहीं समझ पाईं? फिरौती के लिए अगवा/मारे गए बच्चों के माँ के दर्द को समझकर कानून-व्यवस्था क्यों नहीं दुरुस्त कर पाईं? उन महिलाओं का दर्द कैसे नहीं समझ पाईं जिन्हें कुकृत्य झेलना पड़ा? जदयू के नेता और पूर्व मंत्री नीरज कुमार ने बालिका गृह कांड को लेकर किए गए रोहिणी के ट्वीट के जवाब में ऐसे महिलाओं की संख्या 5263 बताई है।

दरअसल बतौर मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की सबसे बड़ी उपलब्धि अपने कुनबा का विस्तार करना था। इसी विस्तार की वजह से बिहार ने साधु और सुभाष देखे। यह सब उस ​दौर में हुआ जब बिहार का हर परिवार उजड़ने को मजबूर था। राबड़ी के मुख्यमंत्री नहीं रहने के बाद ये कुनबा बिखर गया। बतौर पूर्व मुख्यमंत्री वह अपने बड़े बेटे का घर भी नहीं बचा पाईं। कुर्सी ने कठपुतली को परिवार को बाँधकर रखने की जो ताकत दी थी वह कुर्सी के साथ ही चली गई।

महारानी की खासियत यह है कि इसने तोड़-मरोड़कर ही सही चारा घोटाला जिसे इस सीरिज में अन्न घोटाला कहा गया है, में लालू प्रसाद, सॉरी भीमा भारती की संलिप्तता स्वीकार की है। माना है कि जातीय नरसंहार राज बचाने की सरकारी साजिश थी और इसके एक पक्ष को सरकार का संरक्षण हासिल था।

महारानी के आखिरी एपिसोड में भीमा भारती कहता है, स्वर्ग नहीं दे पाए तो क्या स्वर तो दिया। लालू यादव ने राबड़ी को मुख्यमंत्री बनाकर जो स्वर दिया वह बाद के वर्षों में एक सभा में नीतीश कुमार और ललन सिंह का रिश्ता बताने में प्रस्फुटित होते बिहार ने देखा था। शायद यह पहली चीज थी जो उन्होंने बिना लालू के इशारे पर की और इसकी सजा लालू को सार्वजनिक तौर पर माफी माँगकर भुगतनी पड़ी थी।

तमाम खूबियों के साथ लोकतंत्र की कुछ विसंगतियाँ भी हैं। राबड़ी देवी का मुख्यमंत्री बनना इन्हीं विसंगतियों की उपज थी। जो लोकतंत्र के लिए हमेशा एक स्याह धब्बा ही रहेगा और जिसे भोगा पूरे बिहार ने। काश राबड़ी देवी, महारानी की रानी भारती जैसे काटतीं।

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अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

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