तमिलनाडु में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एमके स्टालिन इस नीति के खिलाफ जोर-शोर से आवाज उठा रहे हैं। उनका कहना है कि ये नीति तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की साजिश है।
एमके स्टालिन ने कड्डालोर में आयोजित एक सभा में कहा कि केंद्र सरकार भले ही 10,000 करोड़ रुपये का लालच दे, लेकिन वो इस नीति को राज्य में लागू नहीं होने देंगे। उनका दावा है कि इससे राज्य 2000 साल पीछे चला जाएगा। दूसरी तरफ, बीजेपी नेता के अन्नामलाई ने डीएमके की इस नाराजगी को ढोंग करार दिया और उनकी पाखंडी हरकतों पर सवाल उठाए।
डीएमके कार्यकर्ताओं ने हिंदी के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए चेन्नई और आसपास के इलाकों में कई जगहों पर हिंदी नाम वाली पट्टियों को काले रंग से पोत दिया। सेंट थॉमस माउंट पोस्ट ऑफिस, बीएसएनएल ऑफिस और कई रेलवे स्टेशनों के बोर्ड पर हिंदी अक्षरों को मिटा दिया गया।
Stop disregarding the sentiments of our HINDI-speaking brothers and sisters.
— Amar Prasad Reddy (@amarprasadreddy) February 24, 2025
Sh @RahulGandhi, it's clear that the INDI alliance is opposed to Hindi.
The DMK Morons need to stop this ugly activiy. The governor must take decisive action, @rajbhavan_tn.
pic.twitter.com/j3wYIrvJWh
तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष अन्नामलाई ने इसे बेकार की शरारत बताया और कहा कि डीएमके नेता अपने बच्चों को तो उन स्कूलों में पढ़ाते हैं जहाँ तीन भाषाएँ सिखाई जाती हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों के बच्चों को इससे वंचित रखना चाहते हैं। उन्होंने स्टालिन से सवाल किया कि अगर हिंदी वैकल्पिक है तो इसमें इतना हंगामा क्यों?
अन्नामलाई ने डीएमके की दोहरी नीति पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि डीएमके नेता अपने बच्चों को महँगे स्कूलों में पढ़ाते हैं जहाँ हिंदी, अंग्रेजी और तमिल सिखाई जाती है, लेकिन सरकारी स्कूलों के बच्चों को ये मौका नहीं देना चाहते। उन्होंने पूछा कि क्या भाषा सीखने का हक सिर्फ अमीरों के लिए है? अन्नामलाई ने ये भी याद दिलाया कि डीएमके के संस्थापक अन्नादुराई ने तीन भाषा नीति का समर्थन किया था, तो अब ये विरोध क्यों?
Had seen a few misguided individuals roaming around with a can of black paint, striking Hindi Letters in opposition to the three-language formula in the New National Education Policy. We would humbly suggest that they visit the Enforcement Directorate and Income Tax Office with…
— K.Annamalai (@annamalai_k) February 24, 2025
एनईपी 2020 में त्रिभाषा नीति की बात है, जिसमें कहा गया है कि बच्चे तीन भाषाएँ सीखेंगे-दो भारतीय और एक विदेशी। इसमें हिंदी को अनिवार्य नहीं बल्कि एक विकल्प बताया गया है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी स्टालिन को चिट्ठी लिखकर साफ किया कि कोई भाषा थोपने का सवाल ही नहीं है। नीति में ये भी कहा गया है कि राज्य और बच्चे अपनी पसंद की भाषा चुन सकते हैं। फिर भी डीएमके इसे हिंदी थोपने का बहाना बनाकर विरोध कर रही है।
Highly inappropriate for a State to view NEP 2020 with a myopic vision and use threats to sustain political narratives.
— Dharmendra Pradhan (@dpradhanbjp) February 21, 2025
Hon’ble PM @narendramodi ji’s govt. is fully committed to promote and popularise the eternal Tamil culture and language globally. I humbly appeal to not… pic.twitter.com/aw06cVCyAP
दूसरी तरफ, डीएमके हिंदी से इतना परहेज करती है, लेकिन तमिलनाडु में अरबी भाषा के बढ़ते प्रभाव पर चुप है। राज्य में कई जगह अरबी में पढ़ाई होती है और नामों वाली पट्टियाँ (नेम प्लेट) भी अरबी में हैं, लेकिन इसके खिलाफ कोई हंगामा नहीं। जानकारों का कहना है कि डीएमके का ये रवैया वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है। पार्टी तमिल संस्कृति को खतरे में बताकर लोगों को भड़काती है और केंद्र के खिलाफ माहौल बनाती है।
इस बीच, स्टालिन के बेटे और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि ने भी दिल्ली में यूजीसी के खिलाफ प्रदर्शन किया और कहा कि एनईपी तमिल भाषा और शिक्षा को बर्बाद कर देगी। डीएमके का कहना है कि वो हिंदी और संस्कृत को राज्य में नहीं आने देगी। लेकिन बीजेपी का आरोप है कि ये सब राजनीतिक ड्रामा है और डीएमके सिर्फ तमिलनाडु में अपनी सत्ता बचाने के लिए ऐसा कर रही है।
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