Wednesday, February 26, 2025
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साइन बोर्ड पर लिखी हिंदी को नहीं पोत रहे DMK के वर्कर, CM स्टालिन की राजनीति पर पोत रहे कालिख: अन्नामलाई ने पाखंड की खोली पोल, बताया- NEP में अनिवार्य नहीं है हिंदी

अन्नामलाई ने कहा कि डीएमके नेता अपने बच्चों को तो उन स्कूलों में पढ़ाते हैं जहाँ तीन भाषाएँ सिखाई जाती हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों के बच्चों को इससे वंचित रखना चाहते हैं।

तमिलनाडु में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एमके स्टालिन इस नीति के खिलाफ जोर-शोर से आवाज उठा रहे हैं। उनका कहना है कि ये नीति तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की साजिश है।

एमके स्टालिन ने कड्डालोर में आयोजित एक सभा में कहा कि केंद्र सरकार भले ही 10,000 करोड़ रुपये का लालच दे, लेकिन वो इस नीति को राज्य में लागू नहीं होने देंगे। उनका दावा है कि इससे राज्य 2000 साल पीछे चला जाएगा। दूसरी तरफ, बीजेपी नेता के अन्नामलाई ने डीएमके की इस नाराजगी को ढोंग करार दिया और उनकी पाखंडी हरकतों पर सवाल उठाए।

डीएमके कार्यकर्ताओं ने हिंदी के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए चेन्नई और आसपास के इलाकों में कई जगहों पर हिंदी नाम वाली पट्टियों को काले रंग से पोत दिया। सेंट थॉमस माउंट पोस्ट ऑफिस, बीएसएनएल ऑफिस और कई रेलवे स्टेशनों के बोर्ड पर हिंदी अक्षरों को मिटा दिया गया।

तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष अन्नामलाई ने इसे बेकार की शरारत बताया और कहा कि डीएमके नेता अपने बच्चों को तो उन स्कूलों में पढ़ाते हैं जहाँ तीन भाषाएँ सिखाई जाती हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों के बच्चों को इससे वंचित रखना चाहते हैं। उन्होंने स्टालिन से सवाल किया कि अगर हिंदी वैकल्पिक है तो इसमें इतना हंगामा क्यों?

अन्नामलाई ने डीएमके की दोहरी नीति पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि डीएमके नेता अपने बच्चों को महँगे स्कूलों में पढ़ाते हैं जहाँ हिंदी, अंग्रेजी और तमिल सिखाई जाती है, लेकिन सरकारी स्कूलों के बच्चों को ये मौका नहीं देना चाहते। उन्होंने पूछा कि क्या भाषा सीखने का हक सिर्फ अमीरों के लिए है? अन्नामलाई ने ये भी याद दिलाया कि डीएमके के संस्थापक अन्नादुराई ने तीन भाषा नीति का समर्थन किया था, तो अब ये विरोध क्यों?

एनईपी 2020 में त्रिभाषा नीति की बात है, जिसमें कहा गया है कि बच्चे तीन भाषाएँ सीखेंगे-दो भारतीय और एक विदेशी। इसमें हिंदी को अनिवार्य नहीं बल्कि एक विकल्प बताया गया है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी स्टालिन को चिट्ठी लिखकर साफ किया कि कोई भाषा थोपने का सवाल ही नहीं है। नीति में ये भी कहा गया है कि राज्य और बच्चे अपनी पसंद की भाषा चुन सकते हैं। फिर भी डीएमके इसे हिंदी थोपने का बहाना बनाकर विरोध कर रही है।

दूसरी तरफ, डीएमके हिंदी से इतना परहेज करती है, लेकिन तमिलनाडु में अरबी भाषा के बढ़ते प्रभाव पर चुप है। राज्य में कई जगह अरबी में पढ़ाई होती है और नामों वाली पट्टियाँ (नेम प्लेट) भी अरबी में हैं, लेकिन इसके खिलाफ कोई हंगामा नहीं। जानकारों का कहना है कि डीएमके का ये रवैया वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है। पार्टी तमिल संस्कृति को खतरे में बताकर लोगों को भड़काती है और केंद्र के खिलाफ माहौल बनाती है।

इस बीच, स्टालिन के बेटे और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि ने भी दिल्ली में यूजीसी के खिलाफ प्रदर्शन किया और कहा कि एनईपी तमिल भाषा और शिक्षा को बर्बाद कर देगी। डीएमके का कहना है कि वो हिंदी और संस्कृत को राज्य में नहीं आने देगी। लेकिन बीजेपी का आरोप है कि ये सब राजनीतिक ड्रामा है और डीएमके सिर्फ तमिलनाडु में अपनी सत्ता बचाने के लिए ऐसा कर रही है।

मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई इस रिपोर्ट को विस्तार से पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

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