Sunday, July 13, 2025
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लक्षद्वीप के ‘शरिया कानून’ का खात्मा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हाथों, गाँधी की प्रतिमा को मुस्लिमों ने कहा था – पुतला मजहब के खिलाफ

पीतल की 6 फुट लंबी प्रतिमा का अनावरण कवरत्ती द्वीप पर किया जाएगा। प्रशासन ने इसके लिए गाँधी जयंती के अवसर पर 3 दिवसीय कार्यक्रम का भी किया है।

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लक्षद्वीप में महात्मा गाँधी की पहली प्रतिमा का अनावरण करेंगे। इसके लिए वो शुक्रवार (2 अक्टूबर, 2021) को बापू की जयंती पर राजधानी कवरत्ती पहुँच रहे हैं। केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में ये कोई पहली सार्वजनिक प्रतिमा होगी। कलक्टर एस अस्कर अली ने जानकारी दी है कि पीतल की 6 फुट लंबी प्रतिमा का अनावरण कवरत्ती द्वीप पर किया जाएगा। प्रशासन ने इसके लिए गाँधी जयंती के अवसर पर 3 दिवसीय कार्यक्रम का भी किया है।

ये कार्यक्रम शनिवार तक चलेंगे, जब प्रतिमा का अनावरण कर के इसे जनता को समर्पित किया जाएगा। वैसे ये प्रयास पहली बार नहीं हो रहा है। 2010 में भी महात्मा गाँधी की एक अर्ध-प्रतिमा के अनावरण का सरकार ने फैसला लिया था और इसके लिए केरल की एक कंपनी को ठेका भी दे दिया गया था। लेकिन, स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन के कारण प्रतिमा द्वीप समूह पर लाए जाने का बावजूद लगाया नहीं जा सका।

लक्षद्वीप में मुस्लिम जनसंख्या की बहुलता है, इसीलिए वहाँ के नए प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल को द्वीप समूह को मालदीव की तरह पर्यटन स्थल बनाने के लिए योजना लाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। प्रशासन ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना सब कुछ देने वाले सेनानियों की ये यहाँ पहली प्रतिमा होगी। आंध्र प्रदेश की कंपनी ‘श्री साईं बाबा मेगा सिलपसला’ को दिया गया था, जिसने 2 सप्ताह में 8.2 लाख रुपए की लागत से इसका निर्माण किया है।

यहाँ चल रहे कार्यक्रम में सैकड़ों लोग आ रहे हैं। कलक्टर ने कहा कि भले ही इसे लगाए जाने से पहले खूब राजनीति हुई हो, लेकिन अब जब इसका अनावरण किया जा रहा है तब ऐसी कोई बात नहीं है। 2010 में आई प्रतिमा के बारे में उन्होंने कहा कि उसे ट्रेस करना मुश्किल है, क्योंकि अब उसका कोई रिकॉर्ड नहीं। प्रशासक के कई फैसलों का विरोध कर रही संस्था ‘सेव लक्षद्वीप’ ने भी इसके समर्थन का निर्णय लिया है

लक्षद्वीप में मुस्लिमों की बहुसंख्यक आबादी है, जो कि लक्षद्वीप की कुल आबादी का लगभग 98% है। महात्मा गाँधी के पुतले का विरोध मुस्लिमों ने इसलिए किया था क्योंकि उनका कहना था कि किसी भी पुतले या मूर्ति को स्थापित करने से समुदाय की मजहबी भावनाओं को ठेस पहुँचेगी। मुस्लिम यह मानते हैं कि यदि कोई पुतला स्थापित कर दिया गया तो मुस्लिमों को उसे सम्मान देना और फूलों से सजाना होगा जो कि हिन्दुत्व का एक हिस्सा है और शरिया कानून का उल्लंघन करता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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