Thursday, April 25, 2024
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जब इंदिरा गाँधी पहुँची थीं देवबंद, दूरदर्शन पर बाँधे गए थे दारुल उलूम की तारीफों के पुल: काशी-अयोध्या के विरोधी क्या कहेंगे इस पर?

इस्लामिक विद्वता की दुनिया में दारुल उलूम की जगह को बताने के लिए उसमें दुनिया भर के विद्वानों की उपस्थिति को भारत के लिए गर्व की बात बताते हुए कहा गया था कि स्वतंत्रता संग्राम में भी इसका योगदान था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन किया, जिसका दूरदर्शन समेत लगभग सभी खबरिया चैनलों पर सीधा प्रसारण हुआ। ये न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे भारत के लिए एक बड़ा मौका था क्योंकि भगवान शिव की नगरी हजारों वर्षों से भारत के सबसे बड़े आध्यात्मिक स्थलों में से एक रही है और आक्रांताओं ने यहाँ बार-बार तबाही मचाई। लेकिन, कुछ लोगों ने इसका भी विरोध किया। ये वही लोग हैं, जो 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के देवबंद दौरे पर चुप रहते हैं।

‘प्रसार भारती आर्काइव्स’ पर 21 मार्च, 1980 का वो वीडियो भी उपलब्ध है। इसमें देखा जा सकता है कि किस तरह देवबंद दौरे पर पहुँचीं इंदिरा गाँधी के दौरे को कवर किया गया था। दूरदर्शन ने इस वीडियो में बताया था कि कैसे उत्तर भारत का ये छोटा सा शहर ‘मजहब, इतिहास और विद्वता’ के विकास में बड़ा योगदान रखता है। इसमें बताया गया था कि इस्लामी विद्वता का एक दुनिया में सबसे बड़े केंद्रों में से एक है, लेकिन इसकी शुरुआत मौलाना मोहम्मद कासमी ने एक छोटे से मदरसे के रूप में की थी।

वीडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे बैकग्राउंड में नमाज की आवाज़ आती रहती है और प्रस्तोता बताता है कि कैसे इस्लाम पहली बार दुनिया में तब अवतरित हुआ तब एक पहाड़ पर एक फ़रिश्ते ने मुहम्मद को अल्लाह के बारे में लोगों को बताने के लिए कहा। साथ ही कई मौलानाओं का नाम बता कर बताया गया कि दारुल उलूम देवबंद में कितने विद्वान हुए हैं। बताया गया था कि कैसे कला से लेकर नैतिकता तक, यहाँ इस्लाम के तहत सब पढ़ाया गया।

उस समय तक दारुल उलूम देवबंद से 20,000 लोग स्नातक हुए थे, जिनमें से एक चौथाई बाहर से आए थे। सभी विद्यार्थियों को यहाँ मुफ्त में रहने की सुविधा है। बता दें कि उस समय दारुल उलूम देवबंद के 100 वर्ष पूरे हुए थे। साथ ही जुमे की नमाज और उसके बाद होने वाले ‘पवित्र कुरान’ के पाठ को भी दिखाया गया था। तब प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गाँधी ने देश-दुनिया से आए लोगों का स्वागत करते हुए इस पर ख़ुशी जताई थी कि कई धर्मों के विद्वान और कई देशों के प्रतिनिधि इस आयोजन में हिस्सा ले रहे हैं।

‘एक छोटे से शहर में इतनी बड़ी भीड़ के लिए उत्तम व्यवस्था’ करने के लिए इंदिरा गाँधी ने कार्यक्रम के आयोजकों को बधाई भी दी थी। इस्लामिक विद्वता की दुनिया में दारुल उलूम की जगह को बताने के लिए उसमें दुनिया भर के विद्वानों की उपस्थिति को भारत के लिए गर्व की बात बताते हुए कहा गया था कि स्वतंत्रता संग्राम में भी इसका योगदान था। इंदिरा गाँधी ने कहा था कि भारतीय संस्कृति में योगदान के लिए दारुल उलूम देवबंद की प्रशंसा कि वो इस संस्था के 100 वर्ष के मौके पर दुआ करती हैं कि ये आगे भी भारत और इस्लाम को आगे बढ़ाता रहे, क्योंकि ये इंसानियत की खिदमत करता है।

जब 2020 में अयोध्या में राम मंदिर का भूमि-पूजन हुआ था और उसका सीधा प्रसारण हुआ था, तब भी लिबरल जमात ने इसे ‘सरकारी पैसों से धार्मिक कार्य’ बताते हुए सेकुलरिज्म के खिलाफ करार दिया था। जबकि सच्चाई ये है कि राम और शिव इस देश के आराध्य हैं और उनका कार्य किसी खास धर्म नहीं, देश का कार्य है। विकास पूरे अयोध्या और काशी का हुआ है, किसी खास धर्म का नहीं। वहाँ हर धर्म-मजहब के लोग हैं, सभी को बराबर इसका लाभ मिलेगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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