सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया तो नए उदाहरण हैं। कॉन्ग्रेस में ओल्ड गार्ड की मदद से शीर्ष परिवार युवा नेतृत्व को कुचलने के जतन हमेशा से करता रहा है। ताकि ‘युवराज’ के लिए पार्टी के भीतर कोई चुनौती नहीं पैदा हो।
यह कहानी जगन मोहन रेड्डी की है। आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री जगन और उनका पूरा परिवार एक वक्त कॉन्ग्रेस नेतृत्व के निशाने पर था। उन पर यह कहर तब टूटा जब एक दुर्घटना में उनके पिता वाई एस राजशेखर रेड्डी की मौत हो गई। राजशेखर उस वक्त अविभाजित आंध्र प्रदेश के सीएम थे और प्रदेश में कॉन्ग्रेस की वापसी का श्रेय उनको ही जाता है।
लेकिन, उनकी मौत के बाद कॉन्ग्रेस के नेतृत्व ने उनका मान नहीं रखा। उनकी पत्नी और बेटी तक को नीचा दिखाया गया। आखिरकार जगन को वो पार्टी छोड़नी पड़ी जो उनके पिता ने सींचा था। इस तरह कॉन्ग्रेस ने युवराज की राह का कॉंटा तो खत्म कर दिया, पर आंध्र में अपनी ही कब्र खोद ली।
साल था 2010। उस समय केंद्र में कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी। सरकार और संगठन की सर्वेसर्वा सोनिया थीं। एक दिन दो महिलाएँ उनसे मिलने पहुँचती हैं। पहले तो उन्हें 15 मिनट इंतजार कराया गया, फिर ड्राइंग रूम में रूखे-सूखे चेहरे के साथ सोनिया ने उनसे मुलाक़ात की।
इस मुलाकात में और क्या-क्या हुआ वह जानने से पहले जगन की ‘ओडारपु यात्रा’ पर लौटते हैं। यह जानने की कोशिश करते हैं आखिर 37 साल के एक नेता को कॉन्ग्रेस क्यों घर में कैद रखना चाहती थी? कॉन्ग्रेस क्यों चाहती थी कि यह युवा नेता अपने घर से निकले ही ना?
‘ओडारपु यात्रा’ को जगन मोहन रेड्डी ने अपने पिता और आंध्र प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे राजशेखर रेड्डी को सच्ची श्रद्धांजलि बता कर पेश किया था। सितम्बर 2, 2009 को सीएम राजशेखर रेड्डी की एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई थी। मौसम खराब था। हेलीकॉप्टर एक पेड़ से टकराया और गिर कर ब्लास्ट हो गया। इसके 1 दिन बाद 60 वर्षीय रेड्डी सहित 4 अन्य की जली हुई लाशें मिलीं।
Congress divided AP to save the party at least in Telangana after Jagan was forced to quit. Dead in AP. Wiped out in Telangana after mass defection of MLAs. Decimated in most parts of India. They say curse of Andhra continues to haunt Congress.
— DP SATISH (@dp_satish) June 9, 2019
राजशेखर रेड्डी कॉन्ग्रेस के वो नेता थे, जिन्होंने अपने बलबूते आंध्र प्रदेश में कॉन्ग्रेस का झंडा गाड़ा था। उनकी मौत के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक तक को कैंसल कर दिया गया था। उस उस समय तो कॉन्ग्रेस ने उनके परिवार के प्रति बहुत सहानुभूति दिखाई, लेकिन पार्टी ने मन बना लिया था कि अब आंध्र में सोनिया गाँधी के किसी वफादार को ही पद दिया जाएगा। के रोसैया और फिर किरण रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाया गया।
लेकिन, यहाँ सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात ये है कि राजशेखर रेड्डी की मौत के बाद आंध्र प्रदेश में कई लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। वो इतने लोकप्रिय थे कि ये लोग अपने प्रिय नेता की मौत को बर्दाश्त नहीं कर पाए। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 100 से भी अधिक लोगों ने रेड्डी की मौत के बाद खुद की जान ले ली थी। ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने तब 122 का आँकड़ा दिया था। उनके बेटे जगन रेड्डी ने तुरंत बयान जारी कर शांति की अपील की थी।
आंध्र प्रदेश के लोगों में राजशेखर रेड्डी की अलग पहचान थी, कॉन्ग्रेस चाहती तो उस समय उनसे अपने जुड़ाव को भुना कर लोकप्रिय बन सकती थी लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया। जगन रेड्डी ने तब अपने बयान में कहा था कि उनके पिता राजशेखर रेड्डी कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी मुस्कुराया करते थे और इन आत्महत्याओं से उन्हें दुःख ही होगा, इसीलिए लोग ऐसा न करें। उन्होंने जनता से कहा कि इससे उन्हें शांति नहीं मिलेगी।
आंध्र प्रदेश के हर टीवी चैनल पर उनका बयान चला। लोग उन्हें लगभग अगला मुख्यमंत्री मान चुके थे। हर एक आत्महत्या की कहानी दर्दनाक थी। जहाँ एक युवक ने सुसाइड नोट में लिखा था कि रेड्डी ने जनता के लिए अपना जीवन दिया और मैं उनके लिए अपना जीवन दे रहा। एक विकलांग व्यक्ति को सरकारी योजना के तहत पेंशन मिल रहा था, उसने आत्महत्या कर ली। एक व्यक्ति का ये खबर सुन कर ही हार्ट अटैक हो गया।
जगन मोहन रेड्डी ने उन सभी लोगों की जानकारियाँ जुटाई, जिन्होंने उनकी पिता की मौत के बाद अपनी जान दे दी थी। उन्होंने एक ‘यात्रा’ के जरिए इन सभी लोगों के परिवारों से मिलने की योजना बनाई। नीतीश कुमार हों या लालकृष्ण आडवाणी, भारत की राजनीति में समय-समय पर नेताओं ने ऐतिहासिक यात्राओं के जरिए राजनीति का रुख ही बदल दिया है। कुछ ऐसा ही जगन रेड्डी की ‘ओडारपु यात्रा’ से हुआ।
My advice to @SachinPilot , end this impasse. One way or the other. If you r not getting what you want , then show the confidence and go @ysjagan way.
— bhupendra chaubey (@bhupendrachaube) July 14, 2020
उनके इस फैसले ने कॉन्ग्रेस को नाराज कर दिया। आलाकमान उनकी बढ़ती लोकप्रियता से नाराज था। सोनिया गाँधी और उनके सिपहसालारों में असुरक्षा की भावना घर कर गई। कॉन्ग्रेस ने अपने नेताओं को उनकी यात्रा में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया, फिर भी जगन रेड्डी की यात्राओं में कॉन्ग्रेस के विधायकों सहित कई नेताओं ने शिरकत की। उन्हें अभूतपूर्व समर्थन मिलता चला गया। कॉन्ग्रेस हाइकमान की नाराजगी धरी रह गई।
अब वापस आते हैं सोनिया गाँधी की उन महिलाओं के साथ मुलाकात पर, जहाँ से ये कहानी हमने शुरू की थी। इसका वर्णन सीएनएन-न्यूज़ 18 के वरिष्ठ एडिटर डीपी सतीश ने विस्तृत रूप से किया है। दोनों महिलाओं में से एक दिवंगत राजशेखर रेड्डी की पत्नी विजयलक्ष्मी थीं, जिन्हें राज्य के लोग प्यार से विजयम्मा कहते थे। दूसरी उनकी बेटी शर्मिला रेड्डी थी। दोनों हैदराबाद से नई दिल्ली सोनिया से मिलने पहुँची थी। 10, जनपथ में हुए इस तनावपूर्ण मुलाकात के दौरान इन दोनों को उम्मीद थी कि राजीव गाँधी के साथ उनके पति के मधुर संबंधों को देखते हुए सोनिया उनका खुले दिल से स्वागत करेंगी।
सोनिया गाँधी ने राजशेखर रेड्डी या उनकी मौत को लेकर सहानुभूति जताना या उनकी यादों की बात करना तो दूर, उन्होंने सीधा ‘मुद्दे की बात’ शुरू कर दी। वो मुद्दे की बात थी- जगन मोहन रेड्डी जितनी जल्दी हो सके अपनी ‘ओडारपु यात्रा’ को बंद करें। जब ये बैठक हुई थी, तब ये यात्रा अपने मध्य में थी। जब विजयलक्ष्मी ने इस यात्रा के पीछे की सोच को समझाना शुरू किया तो सोनिया गाँधी गुस्सा हो गईं।
तमतमाई सोनिया कुर्सी से उठ खड़ी हुई और उन्हें चुप रहने को कहा। इसके बाद वो चली गईं। रेड्डी परिवार की दोनों महिलाओं को इस अपमान के बाद हैदराबाद लौटना पड़ा। बाद में विधायक विजयम्मा और उनके सांसद बेटे जगन ने अपने पदों से इस्तीफा देकर ‘वाइएसआर कॉन्ग्रेस’ का गठन किया और अपनी-अपनी सीटों से दोबारा चुने गए। कहते हैं, इसी अपमान के बाद जगन ने बदले की कसम खा ली थी।
जगन रेड्डी ने तभी आंध्र प्रदेश में कॉन्ग्रेस को खत्म करने की शपथ ले ली थी, ऐसा उनके कारीबियों का कहना है। परिवार के अपमान की आग में जल रहे जगन को अपने पिता की मौत के बाद मुख्यमंत्री बनाए जाने की उम्मीद थी लेकिन सोनिया के करीबियों ने उनकी राह रोक दी। उसने एक ऐसे नेता को सीएम बना दिया जिसका कोई जनाधार ही नहीं था।
आखिर क्या कारण था कि जगन अपने पिता की विरासत को संभालना चाहते थे? दरअसल, जगन को अपने पिता की लोकप्रियता और जनता के बीच उनके मान-सम्मान को लेकर अंदाज था। उन्हें पता था कि आंध्र में कॉन्ग्रेस की कमान किसने थाम कर रखी है। राजशेखर की मौत के बाद हुई आत्महत्याओं ने उन्हें बता दिया था कि उनके पिता कितने बड़े जननेता थे। ऐसे में उन्हें आलाकमान द्वारा नजरंदाज किया जानया रास नहीं आया।
हालाँकि, जगन रेड्डी को अगले चुनावों में सत्ता तो नहीं मिली लेकिन उनका अभियान भविष्य के लिए था, उनकी सोच दूरदर्शी थी। कॉन्ग्रेस ने ऐसी गलती कर दी कि उसका फायदा सबसे पहले चंद्रबाबू नायडू और फिर जगन ने उठाया। वनवास में चल रहे नायडू प्रकट हुए और अपने बने-बनाए संगठन के जारी कॉन्ग्रेस के नकारे नेतृत्व के खिलाफ अभियान शुरू किया। पार्टी ने आंध्र विभाजन कर के पहले ही सब गुड़-गोबर कर रखा था।
No mass leader can co-exist with Gandhis in Congress
— Rishi Bagree 🇮🇳 (@rishibagree) July 12, 2020
Mamata left & Congress wiped out in Bengal
Pawar left & Congress never able to recoup lost ground in MH
N D Tiwari Left and UP gone forever
YS Jagan Reddy & AP gone Forver
Hemant Sharma took NE away
Now Scindia & Pilot
प्रदेश को बाँटने के लिए रेड्डी परिवार तो दूर, पार्टी ने आंध्र में अपने संगठन तक से विचार-विमर्श नहीं किया था। लेकिन, जगन रेड्डी के पीछे पड़ी कॉन्ग्रेस ने इससे भी बड़ी गलती कर दी। मई 2012 में एक बेनामी संपत्ति मामले में जूडिशल रिमान्ड पर जेल भेज दिया गया। उनकी माँ ने सीधा सोनिया को इसके लिए जिम्मेदार बताया। सीबीआई को मामले की जाँच दी गई। ये सब कुछ 18 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए किया गया।
कॉन्ग्रेस ने मेगास्टार चिरंजीवी को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की लेकिन वो भी पार्टी को बचा नहीं पाए। जगन अपने पिता के राजनीति के दिनों मे उद्योगपति रहे थे और सीमेंट से लेकर मीडिया इंडस्ट्री तक मे सफलता के झण्डे गाड़े थे, ऐसे में उनके खिलाफ संपत्ति और अवैध लेन-देन के मामले बनाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी। कम से कम उनके समर्थकों का तो यही आरोप था।
विजयम्मा ने स्पष्ट कहा था कि उपचुनाव से उनके बेटे को दूर रखने के लिए कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने ये सारा ड्रामा रचा था। लगभग डेढ़ साल तक उन्हें हैदराबाद के जेल में कैद रखा गया। लेकिन, रेड्डी परिवार की महिलाएँ किसी और मिट्टी की बनी थीं। उनकी माँ और बेटी ने सोनिया के हाथों हुए अपमान को याद रखते हुए न सिर्फ़ राजनीति में वाइएसआर को जिंदा रखा, बल्कि जगन के उद्योगों को भी सफलतापूर्वक चलाया।
चंद्रबाबू नायडू ने जैसे ही 2019 लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरू की, जगन ने पूरा ध्यान घर में लगाया। आज स्थिति ये है कि कॉन्ग्रेस के पास राज्य में एक अदद विधानसभा सीट तक नहीं है। लोकसभा चुनाव के साथ आंध्र में हुए विधानसभा चुनावों में जगन ने 86% सीटें जीत कर अपना सीएम बनने का सपना या मिशन पूरा किया। लोकसभा में भी उनके 22 सांसद जीते। राज्यसभा में उनके पास 6 सांसद हैं।
70 साल के नायडू की ढलती उम्र और आंध्र प्रदेश में कॉन्ग्रेस के खात्मे के बाद लगता नहीं कि जगन रेड्डी इतनी जल्दी जाएँगे। वो लम्बी पारी खेलने आए हैं। अन्य विपक्षी नेताओं की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके रिश्ते तल्ख़ भी नहीं हैं। जगन रेड्डी, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट तो इस दशक के उदाहरण हैं, पीछे जाएँ तो हम पाएँगे कि कॉन्ग्रेस हमेशा युवा नेताओं से भयभीत रही है। हालाँकि, इसका खामियाजा अंततः उसे भी भुगतना पड़ा है।