Sunday, April 28, 2024
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अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आकर G20 से पहले पादरी के साथ करते हैं प्रार्थना-भोज… चुप हैं वामपंथी-सेक्युलर क्योंकि निशाना सिर्फ हिंदू धर्म को है बनाना 

विश्व के एक सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के मुखिया द्वारा, जिसने एक वैश्विक शिखर सम्मलेन से पहले भी अपनी ईसाई पहचान और धर्म के अनुकूल आचरण को विदेशी धरती पर भी नहीं छोड़ा। लेकिन, इस पर न कहीं कोई बवाल हुआ और न सोशल मीडिया पर ही कोई चर्चा देखने को मिली।

देश के राजधानी दिल्ली में G-20 शिखर सम्मलेन से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक मजहबी अनुष्ठान किया लेकिन उस पर किसी ने कोई बवाल नहीं किया। वहीं भारत में प्रधानमंत्री मोदी या मुख्यमंत्री योगी जैसे राजनेता जब भी कोई राजनीतिक कार्य से पहले पूजा-पाठ या धार्मिक अनुष्ठान करते हैं तो वामपंथियों से लेकर खुद को सेक्युलर कहने वाले सभी धड़े पीछे पड़ जाते हैं क्योंकि मूल में हिन्दू धर्म होता है। और हिन्दू धर्म का विरोध ही लेफ्ट-लिबरल गैंग का मुख्य एजेंडा है। 

अब चाहे वह संसद में सेंगोल की स्थापना हो, राम मंदिर का शिलान्यास, काशी विश्वनाथ या महाकाल कॉरिडोर का उद्घाटन या प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किसी मंदिर में पूजा-पाठ, तब-तब यही सेक्युलर गैंग यह सिखाने जरूर आता है कि राष्ट्र का कोई धर्म नहीं होता, राष्ट्र सेक्युलर होता है। जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति के ईसाई पादरी को बुलाकर विशेष प्रार्थना और भोज के आयोजन से उन्हें कोई समस्या नहीं क्योंकि विरोध तो केवल सनातन हिन्दू धर्म का करना है, उसको नीचा दिखाना है, उसके अलावा बाकी सब सेक्युलर है। 

अमेरिकी राष्ट्रपति ने शिखर सम्मलेन से पहले किया विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन 

नई दिल्ली में G-20 शिखर सम्मलेन के दो दिवसीय (9-10 सितम्बर, 2023) बैठक से पहले भारत में अमेरिकी दूतावास के अधिकारी यह सुनिश्चित करने में लगे रहे कि बैठक से पहले जो बाइडेन की इच्छानुसार हॉली कम्यूनियन सर्विस (एक पवित्र भोज सेवा) का आयोजन कराया जा सके। इसके लिए दिल्ली के ईसाई मजहबी आयोजन के प्रमुख फादर निकोलस डायस से एक सप्ताह पहले ही संपर्क कर सब कुछ तय कर दिया गया था।

बता दें कि फादर निकोलस डायस, जो बेनौलीम, गोवा के रहने वाले हैं और तीन दशकों से अधिक समय से विभिन्न ईसाई मजहबी आयोजनों और उपदेशों के लिए काम कर रहे हैं, उन्होंने शिखर सम्मेलन शुरू होने से पहले ही प्रार्थना सेवा के लिए राष्ट्रपति बाइडेन के अनुरोध को पूरा करने में लग गए। इसी के लिए शनिवार (9 सितम्बर, 2023) सुबह लगभग 9 बजे, फादर डायस होटल आईटीसी मौर्य में थे, जहाँ, राष्ट्रपति बाइडेन के साथ, एक छोटे अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने 30 मिनट की पवित्र भोज सेवा में भाग लिया।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जो जानकारी निकलकर सामने आई है उसके मुताबिक यह कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति बाइडेन इस मामले में बिलकुल स्पष्ट थे कि वह अपने दो दिवसीय जी-20 कार्यक्रम की शुरुआत भारत मंडपम में पवित्र यूचरिस्ट और प्रार्थना के साथ शुरू करना चाहते हैं। वहीं फादर निकोलस डायस ने भी द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमने मिलकर प्रतिभागियों के साथ-साथ शिखर सम्मेलन की सफलता और उन वैश्विक मुद्दों के लिए प्रार्थना की, जिन पर G-20 शिखर सम्मलेन में चर्चा होनी थी।”

फादर ने आगे बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक संक्षिप्त बातचीत में उनको बताया कि कैसे उनकी दादी का उनके जीवन और कैथोलिक पालन-पोषण का बहुत बड़ा योगदान है। फादर ने अमेरिकी राष्ट्रपति को उपहार में बेबिनका (गोवा का एक पुर्तगाली व्यंजन) भी भेंट किया जो भारत में ईसाई मजहब की जड़ों, प्रभाव और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। साथ ही उन्होंने भारत के तटीय राज्यों तक पहली बार सेंट फ्रांसिस जेवियर द्वारा कैसे ईसाई धर्म पहुँचा इसकी भी चर्चा की। 

भारत और हिन्दू धर्म की हर पहचान से है सेक्युलरों को नफरत 

इतना सब कुछ हुआ वह भी विश्व के एक सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के मुखिया द्वारा, जिसने एक वैश्विक शिखर सम्मलेन से पहले भी अपनी ईसाई पहचान और मज़हब के अनुकूल आचरण को विदेशी धरती पर भी नहीं छोड़ा। लेकिन, इस पर न कहीं कोई बवाल हुआ और न सोशल मीडिया पर ही कोई चर्चा देखने को मिली। क्योंकि, लेफ्ट-लिबरलों की दृष्टि में यहाँ डेमोक्रेसी और राष्ट्र का धर्म जैसी बातें नहीं आती। वहीं आपको याद होगा यह गैंग कब-कब बवाल नहीं किया है। चाहे वह संसद भवन में पहली बार प्रवेश से पहले मंगलाचरण हो, राम मंदिर का शिलान्यास, काशी विश्वनाथ या महाकाल कॉरिडोर का उद्घाटन हो, अयोध्या में दिवाली सहित कई मंदिरों के जीर्णोद्धार के बाद उद्घाटन भी शामिल है। 

असली बवाल तो लेफ्ट-लिबरल गैंग ने तब काटा था हाल ही में नए संसद भवन के उद्घाटन के पहले सेंगोल की स्थापना की बात आई। बता दें कि चोल राजवंश के प्रतीक ‘सेंगोल’ को राजदंड के रूप में देखा जाता है, जो शासक को न्याय और धर्म की याद दिलाता रहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के बगल में इसे स्थापित किया और इस दौरान तमिल पुरोहितों का समूह, जिन्हें ‘अधीनम’ कहा जाता है, वो मौजूद रहे। उनकी ही निगरानी में ये पूरा का पूरा कार्यक्रम संपन्न हुआ। तब भी इस लेफ्ट लिबरल गिरोह ने न सिर्फ उसका विरोध किया बल्कि हिन्दू धर्म को जड़ से उखाड़ने जैसी बातें की थी। 

और हाल ही में इन्हें विदेशी गुलामी का प्रतीक ‘इंडिया’ इतना भा गया है कि ये अब ‘भारत’ के विरोध में भी हाथ धो कर पड़ गए हैं। क्योंकि भारत में इन्हें हिन्दुओं का वर्चस्व दिखाई दे रहा है जबकि इंडिया इनके लिए सेक्युलर शब्द है।  

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रवि अग्रहरि
रवि अग्रहरि
अपने बारे में का बताएँ गुरु, बस बनारसी हूँ, इसी में महादेव की कृपा है! बाकी राजनीति, कला, इतिहास, संस्कृति, फ़िल्म, मनोविज्ञान से लेकर ज्ञान-विज्ञान की किसी भी नामचीन परम्परा का विशेषज्ञ नहीं हूँ!

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