Sunday, April 28, 2024
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जहाँ मुस्लिमों ने किया काफिरों का कत्लेआम, करोड़ों खर्च कर उसी नाम का कॉन्ग्रेस CM ने किया उद्घाटन: मैसूर का अल-बद्र चौराहा

चूँकि, इस्लाम में मूर्ति पूजा हराम है। इसलिए यह स्पष्ट है कि मैसूर के बद्र चौराहे में कोई प्रतिमा नहीं लगाई गई है, बल्कि अरबी मध्यकालीन शैली की 13 मीटर ऊँची केतली लगाई गई है। इस केतली और अल-बद्र चौक को लेकर यह कहना गलत नहीं होगा कि सिद्धारमैया ने मोमिनों द्वारा काफिरों को मारने की घटना को ही याद दिलाने वाले स्थान का उद्घाटन किया है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 30 अगस्त 2023 को मैसूर में अल-बद्र सर्कल का उद्घाटन किया। मैसूर के राजीव नगर स्थित अल-बद्र मस्जिद के बिल्कुल पास वाले चौराहे का हाल ही में पुनर्निर्माण किया गया है और इसे अल-बद्र नाम दिया गया है। इसे दुबई के आइकॉनिक लैंडमार्क से प्रेरणा लेकर बनाया गया है।

कर्नाटक की कुछ मीडिया भले ही इसे मैसूर शहर का एक नया आकर्षण बता रही है, लेकिन अल-बद्र शब्द का इस्लामी अर्थ समझने के साथ ही यह जानना भी जरूरी है कि इसके जरिए हिंदुओं की भावनाओं को भड़काने की कोशिश की गई है।

मैसूर चामराजेंद्र वाडियार सर्कल, कृष्णराज वाडियार सर्कल और जयचामराजा वाडियार सर्कल सहित कई चौक-चौराहों को लेकर प्रसिद्ध है। इन आकर्षक चौराहों का निर्माण वाडियार महाराजाओं द्वारा करवाया गया था। इसके अलावा हाल ही में सरस्वतीपुरम, कुवेम्पुनगर, विवेकानंदनगर, रामकृष्णनगर और शारदादेवीनगर जैसे इलाकों में कई चौराहों का पुनर्निर्माण कराया गया है।

2.47 करोड़ रुपए की लागत से अल-बद्र सर्कल में बनी एक बड़ी केतली ही इसका मुख्य आकर्षण है। यह केतली 8.25 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसके चारों ओर फव्वारा बनाया गया है। बेंगलुरु स्थित टीमवर्क आर्किटेक्ट्स के आर्किटेक हसीब-उर-रहमान ने यह डिजाइन तैयार की है। अल-बद्र सर्कल के आसपास से गुजरने वाले लोगों को (हिंदुओं को भी) अच्छा दिखाई देता है, लेकिन अधिकांश हिंदू इसके पीछे की सच्चाई नहीं जानते हैं।

क्या है अल-बद्र

अल-बद्र का सीधा मतलब ‘बद्र’ है। बद्र, सऊदी अरब के अल-हिजाज में अल मदीना प्रांत में स्थित एक शहर है। यह इस्लामी पाक शहर मदीना से करीब 130 किलोमीटर दूर स्थित है। इस शहर को ‘बद्र की लड़ाई’ के लिए जाना जाता है। बद्र की लड़ाई मक्का के कुरैश कबीले और मुस्लिमों के बीच हुई थी। कुरैश कबीले कई देवताओं को मानते थे। ऐसे में मुस्लिमों ने उनके खिलाफ जंग छेड़ दी थी। इस लड़ाई में इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद ने मुस्लिमों का नेतृत्व किया था।

बद्र की लड़ाई 13 मार्च साल 624 (इस्लामी कैलेंडर में 17 रमजान) में हुई थी। इस लड़ाई में कुरैश कबीले के 313 लोगों का एक ग्रुप पैगंबर मुहम्मद के नेतृत्व वाली एक बड़ी मुस्लिम सेना के खिलाफ खड़ा था। बद्र की लड़ाई इस्लामी पैगंबर मुहम्मद के साथियों और अनुयायियों द्वारा लड़ी गई पहली लड़ाई है। इस लड़ाई में काफिरों की हत्या की गई थी। इसलिए मुस्लिम इस लड़ाई पर गर्व करते हैं और इस बारे में बढ़-चढ़कर बातें करते हैं।

चूँकि, इस्लाम में मूर्ति पूजा हराम है। इसलिए यह स्पष्ट है कि मैसूर के बद्र चौराहे में कोई प्रतिमा नहीं लगाई गई है, बल्कि अरबी मध्यकालीन शैली की 13 मीटर ऊँची केतली लगाई गई है। इस केतली और अल-बद्र चौक को लेकर यह कहना गलत नहीं होगा कि सिद्धारमैया ने मोमिनों द्वारा काफिरों को मारने की घटना को ही याद दिलाने वाले स्थान का उद्घाटन किया है।

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