Friday, May 3, 2024
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अलीगढ़ में कम हुए बकरा-बकरी, AMU करेगा स्टडी: मेनका गाँधी गधों की कम होती संख्या से चिंतित, कहा- औरत के शरीर को सुंदर रखता है गधी के दूध से बना साबुन

मेनका गाँधी ने आगे कहा, "ऐसा माना जाता है कि गधी के दूध का साबुन औरत के शरीर को हमेशा सुंदर रखता है। एक बहुत मशहूर विदेशी रानी होती थी, 'क्लियोपैट्रा' वो गधी के दूध से नहाती थी।"

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में बकरे-बकरियों की तादाद में करीब 36 हजार की गिरावट दर्ज की गई है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के भूगोल विभाग के प्रो. निजामुद्दीन खान को जिले में बकरे-बकरियों की संख्या कम होने के कारणों का पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई है। इस शोध के लिए भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली से उन्हें 10 लाख रुपए मिले हैं। इस बीच बीजेपी सांसद मेनका गाँधी (Maneka Gandhi) का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। इसमें वह किसानों और ग्रामीण लोगों को गधी और बकरियों के दूध से साबुन बनाने की सलाह देते हुए नजर आ रही हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने सुल्तानपुर के बल्दीराय में 2 अप्रैल 2023 को एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, “लद्दाख में लोगों का एक समूह है। उन्होंने देखा कि गधों की संख्या कम हो रही है।” इसके बाद उन्होंने वहाँ मौजूद लोगों से पूछा कि बताओ कितने दिन हो गए आप लोगों को गधे देखे हुए? फिर वह बोलीं, “उनकी संख्या कम हो गई है। धोबी ने भी गधों का उपयोग करना बंद कर दिया है। लेकिन लद्दाख में इन लोगों ने गधी से दूध निकालना शुरू किया और उसके दूध से साबुन बनाया।”

मेनका गाँधी ने आगे कहा, “ऐसा माना जाता है कि गधी के दूध का साबुन औरत के शरीर को हमेशा सुंदर रखता है। एक बहुत मशहूर विदेशी रानी होती थी, ‘क्लियोपैट्रा’ वो गधी के दूध से नहाती थी। इसलिए गधी के दूध से बने साबुन दिल्ली में 500 रुपए (एक साबुन) में एक बिक रहे हैं। क्यों न हम लोग बकरी और गधी के दूध का साबुन बनाए।”

इसके आलवा मेनका गाँधी ने लोगों को उपले बनाने और बेचने की सलाह भी दी। उन्होंने कहा, “पेड़ गायब हो रहे हैं। लकड़ी इतनी महँगी हो गई है कि आदमी मरते वक्त भी अपने पूरे परिवार को कंगाल करता है। दाह संस्कार में 15-20 हजार रुपए की लकड़ी लगती है। इससे अच्छा है कि हम गोबर के लंबे कंडे बनाए। उसमें खुशबूदार सामग्री लगा दें। एक ऑर्डर बना दें कि जो भी मरता है, उसको गोबर के कंडों से हम लोग जला दें। इसमें 1500 से 2000 रुपए में सारे रस्म रिवाज पूरे हो जाएँगे। आप लोग कंडे बेचोगे तो एक महीने में लाखों रुपए के कंडे बिक जाएँगे।”

सांसद ने अंत में कहा, “मैं नहीं चाहती कि आप जानवरों से पैसे कमाएँ। आज तक कोई भी बकरी-गाय पालकर अमीर नहीं हुआ है। हमारे पास इतने डॉक्टर नहीं हैं। पूरे सुल्तानपुर में 25 लाख लोगों में मुश्किल से 3 डॉक्टर होंगे। या कभी-कभी वह भी नहीं। गाय बीमार होगी, भैंस बीमार होगी, बकरा बीमार हो गया तो वहीं आपके लाखों रुपए लग जाते हैं। इसलिए मैं बकरी पालने या गाय पालने वाले किसी भी व्यक्ति के सख्त खिलाफ हूँ। पशु चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने में कई साल लग जाते हैं। आप 10 साल कमाओगे और एक रात में मर जाएगा जानवर। फिर खत्म हो गई बात।”

बता दें कि अलीगढ़ में अभी 136507 में बकरे-बकरियाँ हैं। 19वीं पशुगणना के आधार पर एक लाख 73 हजार 119 बकरे-बकरियाँ थीं, जबकि 20वीं पशुगणना के आधार पर एक लाख 36 हजार 507 बकरे-बकरियाँ हैं। यानी यहाँ बकरे-बकरियों की संख्या में काफी गिरावट आई है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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