केरल में कॉन्ग्रेस की गठबंधन वाली पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने मुनम्बम जमीन का मालिक वक्फ बोर्ड को बताया है। मुस्लिम लीग ने कहा है कि सारे कागज इस बात की पुष्टि करते हैं। वहीं कॉन्ग्रेस लगातार इस जमीन पर वक्फ के कब्जे का विरोध कर रही है। मुस्लिम लीग के जड़ता के रवैये के चलते अब कॉन्ग्रेस पर विश्वसनीयता का संकट पैदा हो गया है।
मुस्लिम लीग के नेता KM शाजी ने कहा, “मुनम्बम एक गंभीर मुद्दा है। नेता प्रतिपक्ष (कॉन्ग्रेस नेता सतीशन) ने कहा कि यह वक्फ की जमीन नहीं है। मुस्लिम लीग इस राय से इत्तेफाक नहीं रखती। हम यह नहीं कह सकते कि मुनम्बम वक्फ की संपत्ति नहीं है। फारूक कॉलेज ने कहा है कि यह वक्फ की जमीन नहीं है। उन्हें यह कहने का कोई अधिकार नहीं है।”
मुस्लिम लीग के ही नेता MK मुनीर ने कहा कि उनकी पार्टी ने मुनम्बम के वक्फ जमीन ना होने का दावा कभी नहीं किया है। वहीं मलप्पुरम से मुस्लिम लीग के सांसद ET मुहम्मद बशीर ने भी इस मुद्दे पर वक्फ बोर्ड का ही समर्थन किया है। उन्होंने मुस्लिम लीग का स्टैंड दिल्ली में आकर स्पष्ट किया है।
ET मुहम्मद बशीर ने कहा, “कुछ लोग कह रहे हैं कि यह वक्फ की जमीन नहीं है। मैं पहली बार इस पर जवाब दे रहा हूँ, यह वक्फ की ही जमीन है। इसके वक्फ की जमीन ना होने के तर्क गलत हैं। इसको सिद्ध करने के लिए कागजी सबूत मौजूद हैं।”
मुस्लिम लीग का मुनम्बम जमीन मुद्दे पर यह रवैया अब कॉन्ग्रेस के लिए मुश्किल बन रहा है। केरल में कॉन्ग्रेस के बड़े नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष वीडी सतीशन ने हाल ही में मुनम्बम में वक्फ के कब्जे के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों से मुलाक़ात की थी। सतीशन ने तब स्पष्ट किया था कि मुनम्बम में जमीन पर वक्फ का मालिकाना हक़ नहीं हो सकता।
2 दिसम्बर, 2024 को मुनम्बम में प्रदर्शनकारियों से मिलने के बाद सतीशन ने कहा, “उन्होंने कहा, “राज्य सरकार का वक्फ बोर्ड ही सिर्फ दावा कर रहा है कि जमीन वक्फ की है। जिस जमीन पर लोग रह रहे हैं, इस पर कई शर्तें लागू होती हैं। इस जमीन को बेचे जाने के बाद वक्फ सम्पत्ति नहीं बताया जा सकता। ऐसे में, मुनाम्बम की जमीन वक्फ के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है।”
सतीशन ने कहा था कि इस जमीन पर यहाँ के रहने वालों का पूरा हक़ है। उनके इस स्टैंड का ही बाद में मुस्लिम लीग ने विरोध कर दिया। मुस्लिम लीग ने साफ़ कर दिया कि वह इस जमीन पर वक्फ का ही मालिकाना हक़ मानते हैं और कॉन्ग्रेस के रवैये से ताल्लुक नहीं रखते। बीते कुछ माह से मुनम्बम में 600 परिवारों की जमीन पर वक्फ के दावे को लेकर विवाद चल रहा है।
साल 1902 तक जाती है विवाद की जड़
1341 ईस्वी में केरल में भयानक बाढ़ आई थी। इस दौरान वाइपिन आईलैंड के ऊतरी हिस्से पर मुनम्बम बना। साल 1503 में पुर्तगालियों ने यहाँ हमला किया और 1663 में डचों ने इस पर कब्जा कर लिया। यह डचों के अधिकार में लंबे समय तक रहा। इसके बाद 1789 ईस्वी में डचों ने मुनम्बम को त्रावणकोर के महाराजा को बेच दिया। इसके बाद विवाद की शुरुआत होती है।
साल 1902 में त्रावणकोर के महाराजा ने गुजरात से आए एक किसान अब्दुल सत्तार मूसा हाजी सैत को यहाँ की 404 एकड़ जमीन और 60 एकड़ जल क्षेत्र पट्टे पर दिया था। उस समय, यह जमीन मछुआरों के लिए अलग रखी गई थी, जो वहाँ कई वर्षों से रह रहे थे। 1948 में सेठ के उत्तराधिकारी एवं दामाद सिद्दीक सैत ने यह जमीन अपने नाम पर पंजीकृत करवा ली।
इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा समुद्री कटाव के कारण खो गया और साल 1934 की भारी बारिश ने पांडरा समुद्र किनारे की जमीन को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। हालाँकि, सिद्दीक सैत द्वारा पंजीकृत जमीन में मछुआरों के रहने वाले इलाके भी शामिल हो गए। साल 1950 में सिद्दीक सैत ने यह जमीन फारूक कॉलेज को उपहार में दे दी, जो मुस्लिमों को शिक्षित करने के लिए 1948 में बनाया गया था।
इसके साथ ही सिद्दीकी सैत ने शर्त रखी थी। शर्त यह थी कि कॉलेज केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए ही इसका उपयोग करेगा। अगर कभी कॉलेज बंद हो जाता है तो जमीन वापस सिद्दीकी सैत के वंशजों को लौटा दी जाएगी। हालाँकि, दस्तावेजों में गलती से या जानबूझकर ‘वक्फ’ शब्द लिख दिया गया, जिससे अब यह विवाद खड़ा हो गया है। कहा जाता है कि 1 नवंबर 1950 को कोच्चि के एडापल्ली में उप-पंजीयक कार्यालय में एक वक्फ पंजीकृत किया गया था। इसमें सैत ने फारूक कॉलेज के अध्यक्ष के पक्ष में पंजीकृत कराया था।
विवाद की शुरुआत और आयोग का गठन
फारूख कॉलेज के प्रबंधन को करीब एक दशक बाद जमीन का मालिकाना हक मिल गया। साल 1960 के दशक के आखिर में जमीन पर कब्जा करने वालों के बीच कानूनी लड़ाई शुरू हो गई। कॉलेज प्रबंधन यहाँ रहने वाले लोगों को बेदखल करना चाहता था। कैथोलिक ईसाई और दलित हिंदू समुदाय के ये लोग पीढ़ियों से वहाँ रह रहे थे, लेकिन उनके पास स्वामित्व साबित करने के लिए कानूनी दस्तावेज नहीं थे।
आखिरकार, अदालत के बाहर समझौते में कॉलेज प्रबंधन ने बाजार दर पर जमीन को अपने कब्जेदारों को बेचने का फैसला किया। दस्तावेजों से पता चलता है कि बिक्री के कामों में कॉलेज प्रबंधन ने यह उल्लेख नहीं किया कि विचाराधीन भूमि वक्फ संपत्ति थी, जिसे शिक्षा के उद्देश्य से कॉलेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को दिया गया था। इसके बजाय उन्होंने कहा कि यह संपत्ति 1950 में गिफ्ट डीड में मिली थी।
निसार आयोग और नया विवाद: केरल राज्य वक्फ बोर्ड के खिलाफ कई शिकायतों मिलने के बाद वीएस अच्युतानंदन के नेतृत्व वाली सीपीआई (एम) सरकार ने 2008 में एक आयोग गठित किया। यह आयोग सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश एमए निसार के नेतृत्व में नियुक्त किया गया। आयोग का काम बोर्ड द्वारा परिसंपत्तियों के नुकसान के लिए जिम्मेदारी तय करना था।
इसके अलावा, अयोग को इन परिसंपत्तियों की वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश करना भी शामिल था। आयोग ने साल 2009 में अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में आयोग ने मुनम्बम में जमीन को वक्फ संपत्ति माना और कहा कि कॉलेज प्रबंधन ने बोर्ड की सहमति के बिना इसकी बिक्री को मंजूरी दे दी थी। इसने इसकी वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश की थी।
वक्फ बोर्ड ने घोषित कर दी वक्फ संपत्ति: इसके बाद साल 2019 में वक्फ बोर्ड ने खुद ही मुनम्बम भूमि को वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 और 41 के अनुसार वक्फ संपत्ति घोषित कर दी। बोर्ड ने राजस्व विभाग को निर्देश दिया कि वह भूमि के वर्तमान कब्जेदारों (जो कई वर्षों से कर का भुगतान कर रहे थे) से भूमि कर स्वीकार ना करे।
राजस्व विभाग को दिए गए इस निर्देश को राज्य सरकार ने साल 2022 में खारिज कर दिया। इसके बाद बोर्ड ने राज्य सरकार के फैसले को केरल हाई कोर्ट में उसी साल चुनौती दी। न्यायालय ने फिलहाल राज्य सरकार के फैसलों पर रोक लगा दी है। वर्तमान में, इस विवाद को लेकर भूमि के कब्जेदारों के साथ-साथ वक्फ संरक्षण समिति की ओर से एक दर्जन से अधिक अपीलें न्यायालय में लंबित हैं।
हालात को लेकर असमंजस में लोग
मुनम्बम में 610 परिवारों रहते हैं, जिनमें 510 कैथोलिक ईसाई और 100 हिंदू परिवार हैं। इन लोगों कहना है कि इन लोगों ने फारूक कॉलेज के मैनेजमेंट से यह जमीन खरीदी थी। इसको लेकर वे पिछले 60 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं, साल 2019 में वक्फ ने इसे अपनी संपत्ति घोषित कर दी।
भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, मुनम्बम में रहने वाले समर समिति (एक्शन काउंसिल) के संयोजक जोसेफ बेनी ने बताया कि यहाँ पर अधिकतर मछुआरा समुदाय के लोग रहते हैं। वे पीढ़ियों से यहाँ रह रहे हैं और सालों से टैक्स भर रहे हैं। बेनी का कहना है कि साल 2022 में उन्हें बताया गया था कि वे टैक्स नहीं भर पाएँगे और ना ही जमीन बेच या गिरवी रख सकते हैं।
लगभग 68 साल की ओमाना यायी का कहना है कि वह पिछले 50 साल से मुनम्बम में रह रही हैं। उनकी शादी यहीं से हुई थी। उन्होंने कहा कि जब कॉलेज वालों से जमीन खरीदी गई थी, तब यहाँ पानी भरा हुआ था। उन्होंने कहा, “हम आधी रात को मछली पकड़ने जाते थे और लौटते समय सिर पर रेत लेकर आते थे। रेत भर-भरकर जमीन ऊँचा किया, तब यह जमीन रहने लायक हुई। इसमें वक्फ कहाँ से आ गया?”