Saturday, April 20, 2024
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माँ को मुखाग्नि दे राजधर्म निभाने निकल पड़े PM मोदी, कभी पत्नी की मौत की खबर मिलने के बाद भी कर्मपथ पर डटे रहे थे सरदार पटेल

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जब अपने पिता के निधन की जानकारी मिली थी तब वे कोरोना नियंत्रण को लेकर अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे। जैसे ही यह जानकारी उन्हें मिली वे कुछ समय के लिए स्तब्ध रह गए और उनकी आँखें छलछला आईं। इसके बावजूद भी वे अधिकारियों के साथ बैठक करते रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की माँ हीराबेन (Heera Ben) का 100 साल की उम्र में निधन हो गया। इस दौरान प्रधानमंत्री अपनी माँ को लेकर भावुक रहे। हालाँकि, एक बेटे के रूप में इतने बड़े दुख के बावजूद वे प्रधानमंत्री के रूप में अपने कर्म को नहीं भूले। माँ की अंत्येष्टि करने के कुछ देर बाद वे अपने काम पर काम लग गए।

पीएम मोदी अपनी माँ के पार्थिव शरीर को शुक्रवार (30 दिसंबर 2022) को सुबह 9:40 बजे अहमदाबाद में मुखाग्नि दी। इसके बाद वे अहमदाबाद से ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़कर बंगाल में आयोजित कार्यक्रम में जुड़कर हावड़ा-न्यू जलपाईगुड़ी वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाई और इसका शुभारंभ किया।

इस कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (West Bengal CM Mamata Banerjee) भी शामिल थीं। पीएम मोदी को देखकर उन्होंने कहा, “यह दिन आपके लिए दुख भरा है। आपकी माँ यानी हमारी भी माँ। ईश्वर आपको अपना काम जारी रखने की शक्ति दें। मेरा अनुरोध है कि आप कुछ समय आराम भी करें।”

कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने कहा, “निजी कारणों की वजह से आपके बीच बंगाल नहीं आ पाया। इसके लिए क्षमा माँगता हूँ। वंदे भारत ट्रेन के लिए आप सबको बधाई। कुछ देर बाद गंगाजी की स्वच्छता और पीने के पानी से जुड़ी परियोजनाएँ पश्चिम बंगाल को सौंपने का अवसर मिलेगा।”

भारत की भूमि ऐसे कर्मयोगियों से भरी रही है, जिनके लिए व्यक्तिगत दुख मायने नहीं रखता, बल्कि देश का दुख ही उनका अपना दुख और देश का सुख ही उनके लिए अपना सुख होता है। वो हर अपने देश के लिए जीते हैं। उनकी हर साँस देश की जनता की जनता की भलाई के लिए होता है।

हमें याद करना होगा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) की पिता के निधन को। अप्रैल 2020 में सीएम योगी के पिता आनंद सिंह बिष्ट का निधन हो गया था। यह वह दौर था, जब देश में कोरोना के कारण हर तरफ निराशा और अफतरा-तफरी का माहौल था। पूरे देश में लॉकडाउन लगा था।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जब अपने पिता के निधन की जानकारी मिली थी तब वे कोरोना नियंत्रण को लेकर अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे। जैसे ही यह जानकारी उन्हें मिली वे कुछ समय के लिए स्तब्ध रह गए और उनकी आँखें छलछला आईं। इसके बावजूद भी वे अधिकारियों के साथ बैठक करते रहे। लॉकडाउन के कारण सीएम योगी अपने पिता की अंतिम यात्रा में शामिल भी नहीं हुए और मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करते रहे।

उस दौरान उन्होंने अपनी माँ को एक पत्र भी लिखा था। पत्र में सीएम योगी ने लिखा था, “अपने पूज्य पिताजी के कैलाशवासी होने पर मैं अत्यंत शोकाकुल हूँ। वे मेरे पूर्वाश्रम के जन्मदाता थे। अंतिम क्षणों में उनके दर्शन की हार्दिक इच्छा थी, लेकिन कोरोना के खिलाफ लड़ाई में यूपी की 23 करोड़ जनता के हित के कर्तव्यबोध के कारण मैं नहीं पहुँच सका। लॉकडाउन को सफल बनाने और कोरोना को परास्त करने की रणनीति के कारण उनके अंतिम संस्कार में मैं भाग नहीं ले पा रहा हूँ। लॉकडाउन के बाद दर्शनार्थ जाऊँगा।”

इस तरह सीएम योगी आदित्यनाथ अंतिम क्षणों में ना ही अपने पिता का दर्शन कर पाए और ना ही उनकी अंत्येष्टि में शामिल हो पाए। भारत की इस पवित्र धरा पर इस तरह के कर्तव्यनिष्ठ और जनसेवक बेहद कम देखने को मिलते हैं। कुछ ऐसा ही क्षण लौह पुरुष कहलाने वाले देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवनकाल में भी देखने को मिला।

सरदार पटेल के कर्तव्यबोध, समर्पण और ईमानदारी की झलक उनके जीवन से मिलती है। सरदार पटेल एक नामी वकील थे। जनवरी 1909 में जब वे कोर्ट में हत्या के आरोपित अपने मुवक्किल का केस लड़ रहे थे, उसी दौरान उन्हें अपनी पत्नी झावेरबा की मृत्यु का तार मिला। इस आपातकालीन पत्र को पढ़कर उसे साधारण भाव से सरदार पटेल ने अपनी जेब में रख लिया और कोर्ट में बहस करते रहे।

बहस के बाद जब इस घटना की जानकारी उनके साथियों और न्यायाधीश को उनकी पत्नी के निधन की जानकारी मिली तो उन्होंने सरदार पटेल पूछा। तब सरदार पटेल ने कहा, “उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था। मेरे मुवक्किल को झूठे मामले में फँसाया गया है। मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था।”

सरदार पटेल भी ऐसे ही सिद्धांतवादी, निडर और कर्तव्यनिष्ठ जननायक थे। वे अक्सर कहा करते थे कि जो भी व्यक्ति सुख और दुःख का समान रूप से स्वागत करता है, वास्तव में वही सबसे अच्छा जीवन जीता है। वे कहते थे कि जो व्यक्ति अपने जीवन को बहुत गंभीरता से लेता है, उसे एक तुच्छ जीवन के लिए तैयार रहना चाहिए। 

देश व्यक्तिवादी और मौकापरस्त राजनीति के बीच इस तरह के चेहरे भारत की संस्कृति और इसके कर्तव्यबोधता पर निष्ठा रखने वालों के लिए एक विश्वास के रूप में उभरते हैं। समय-समय पर ऐसे लोगों के दिखाए मार्ग देश के लोगों और नेतृत्व का मार्गदर्शन करने का भी काम करते हैं।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
इतिहास प्रेमी

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