कॉन्ग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज की गई एक एफआईआर पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं। प्रतापगढ़ी के खिलाफ यह एफआईआर एक विवादित कविता के कारण दर्ज हुई थी जिसकी ऑडियो पर कॉन्ग्रेस सांसद ने इंस्टा पोस्ट किया था। इसी मामले में सुनवाई करते हुए अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने कविता का सही अर्थ समझने में गलती की है।
इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने 17 जनवरी 2025 को इस एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने ‘कविता की पंक्तियाँ’ सुनने के बाद कहा था कि एक सांसद होने के नाते, प्रतापगढ़ी को अधिक संयम से व्यवहार करना चाहिए और किसी भी भारतीय नागरिक से अपेक्षा की जाती है कि वह सामाजिक या सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने वाला कार्य न करे।
जस्टिस संदीप भट्ट ने कहा, “कविता की भाषा और लहजे से स्पष्ट है कि यह ‘सत्ता’ और ‘ताकत’ की बात करती है। इसके अलावा पोस्ट पर आए रिएक्शन भी बताते हैं कि यह साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाला संदेश है। सांसद के रूप में उनसे जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार की उम्मीद है।”
इस आदेश के बाद इमरान प्रतापगढ़ी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जस्टिस एएस ओका के समक्ष ये मामला पहुँचा। सुप्रीम कोर्ट ने हर पक्ष सुनने के बाद पहले प्रतापगढ़ी को अंतरिम राहत देते हुए एफआईआर के आधार पर आगे की किसी भी कार्रवाई पर रोक लगा दी और आज इस केस में गुजरात पुलिस को फटकारा।
अदालत ने प्रतापगढ़ी की याचिका पर विचार करते हुए कहा कि कविता का संदेश सिर्फ ये है, ‘अगर कोई हिंसा करता है, तब भी हम हिंसा नहीं करेंगे।’ वहीं राज्य सरकार के वकील से अदालत ने कहा– “कृपया दिमाग लगाएँ, कविता का सही विश्लेषण करें और इसे रचनात्मकता के दृष्टिकोण से देखें। यह कविता किसी विशेष समुदाय के खिलाफ नहीं है और इसके अर्थ को गलत तरीके से समझा गया है।”
गौरतलब है कि इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ ये मुकदमा तब दर्ज हुआ था जब उन्होंने जामनगर के एक कार्यक्रम की क्लिप पर कविता की ऑडियो के साथ अपनी वीडियो शेयर की थी। इस कविता के बोल थे “उस रब की कसम हँसते-हँसते, इतनी लाशें दफना देंगे।” इसी के बाद जामनगर पुलिस ने इस मामले को बीएनएस की उचित दर्ज किया और फिर कॉन्ग्रेस सांसद गुजरात हाई कोर्ट गए और बाद में सुप्रीम कोर्ट।